महानगरों में बढ़ते वाहन, घटती सड़कें
कार, बस, ट्रक, ऑटो, स्कूटर, मोटरसाइकल, ठेलागाड़ी, बैलगाड़ी, साइकल और कभी-कभी हाथी सड़क पर और इन सबके बीच आदमी। सड़कों पर जमकर घुटन है और १ अरब १० करोड़ की आबादी वाले देश में हर वर्ग किलोमीटर में ३३६ लोग रहते हैं। क्षेत्रफल के लिहाज से देश में जनसंख्या धनत्व पाकिस्तान के मुकाबले दुगुना और बांग्लादेश के मुकाबले तिगुना है।
आबादी तक तो ठीक है, लेकिन यातायात शहरों तक ही सीमित है। भारत में आधुनिकता का अर्थ है गाड़ियों की चमचमाती लाइटें और ड्रेनेज के गड्ढे। जितनी गाड़ियाँ है, उतनी ट्राफिक लाइटें नही हैं।
गाड़ियों का शोर और उनके ध्वनियंत्र यानी हॉर्न का शोर तो ठीक है, लेकिन भारतीय सड़को पर चलने वाले १७ भाषाएँ और ८४४ बोलियाँ बोलते हैं।
देश में होने वाली कार दुर्घटना की दर दुनिया में सबसे ज्यादा है। फिलहाल देश में दुनिया की १ प्रतिशत कारें हैं यानी करीब ४५ लाख कारें चल रही हैं। हर साल यहाँ सड़क दुर्धटना में १,००,००० लोग मारे जाते है। यह आँकड़ा पूरी दुनिया में होने वाली सड़क दुर्घटनाआें का १० प्रतिशत है। अमेरिका में दुनिया की ४० प्रतिशत कारें है, लेकिन दुर्घटनाआें में मरने वालेां की संख्या ४३,००० है।
हालाँकि ये आँकड़ा नहीं है कि शहरों में कितने ऑटो रिक्शा और दोपहिया सड़क की छाती पर मँूग दलते हैं। मोटरसाइकल, स्कूटर और साइकलों के बारे में अनुमान है कि ये ५०० लाख से अधिक होंगी। बजाज ऑटो हर साल २० लाख दोपहिया और तिपहिया बनाता है।
ऐसा लगता है कि देश में वाहन भी बड़ी बेतरतीबी से बाँटे गए हों, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलूर में देश की ५ फीसदी आबादी हैं, लेकिन इन शहरों में देश के १४ फीसदी वाहन हैं।
एशिया में प्रदूषण तीन गुना तक बढ़ेगा
एशिया विकास बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले २५ वर्षो में एशिया में ग्रीनहाऊस गैसों का उत्सर्जन तीन गुना बढ़ जाएगा।
इस रिपोर्ट में परिवहन और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध होने का विस्तृत विवरण दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार ग्रीनहाऊस गैसो के बारे मे यह आकलने जितनी भयावह तस्वीर पेश करता है, वास्तविक स्थिति उससे भी गंभीर हो सकती है। एशिया में सड़क यातायात से संबंधित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में एशिया के लोगों के पास व्यक्तिगत वाहनों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। अगर है भी तो ज्यादातर लोगों के पास दुपहिया वाहन ही हैं।
इन देशों में जिस तरह से लोगों की आय बढ़ रही है और शहरी आबादी भी फैल रही है, उससे वाहनों की संख्या भी बढ़ने की संभावना जताई गई है। रिपोर्ट के अनुसार चीन पहले ही विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और तीस सालों में वाहनो की संख्या आज के स्तर से १५ गुनी बढ़कर १९ करोड़ से भी अधिक हो जाने की संभावना है। भारत में भी इसी अवधि के दौरान वाहनों में समान रुप से बढ़ोत्तरी होने की संभावना है।
गाड़ियों से कार्बन डाईऑक्साइड गैस के उत्सर्जन की मात्रा भी भारत में ३.४ गुना और चीन में ५.८ गुना बढ़ जाने की संभावना हैं। ब्रितानी विदेश मंत्री मारग्रेट बेकेट ने भारत से अनुरोध किया था कि वह जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों में सहयोग करे। उनका बयान ब्रिटिश सरकार की उस रिपोर्ट के पहले आया था, जिसमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए धनी देशों से तुरंत कार्रवाई करने को कहा गया था।
इस बीच इंडोनेशिया में हुए एक सम्मेलन में कहा गया कि हालाँकि कुछ एशियाई सरकारों ने गाड़ियों के उत्सर्जन मानकों को कड़ा बनाया है। कई देशों ने सीसा वाले गैसोलीन का इस्तेमाल भी रोक दिया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि एशिया में बढ़ रहा प्रदूषण प्रत्येक वर्ष ५ लाख ३७ हजार लोगों की अकाल मृत्यु का कारण बन सकता है। हृदय और साँस संबंधी रोगो में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है।
सब्जियों में मिले प्रतिबंधित कीटनाशक
उ.प्र. में नोएडा और ग्रेटर नोएडा शहरों के ईद-गिर्द के खतों में ऐसे कीटनाशकों का इस्तेमाल हो रहा है जो पूरी दुनिया में अपनी जहरीली तासीर के कारण प्रतिबंधित है। यह खुलासा जल संवर्द्धन एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र की एक स्वयंसेवी संस्था जनहित फाउंडेशन ने अपनी रिपोर्ट में किया है।
संस्था ने देहरादून स्थित पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट (पीएसआई) की प्रयोगशाला में जिले की खेतिहर भूमि, पानी और सब्जियों की जाँच कराने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। साफ आबोहवा और ताजे खानपान की चाहत में दिल्ली से नोएडा, ग्रेटर नोएडा का रुख करने वाले यह जानकर दंग रह जाएँगे कि जो पानी वे पी रहे हैं और सब्जियाँ खा रहे हैं, वे इन कीटनाशकों की बदौलत जहरीली हो चुकी है।
जनहित फाउंडेशन ने जाँच के लिए गाँव छलैरा, झूंडपुरा, बरोला फार्म, कुलेसरा, भगेल, सूरजपुर सब्जी मंडी से नमूने लिए। इनकी जाँच से यह पता लगा कि इनमें ऐसे कीटनाशकों के अंश समा चुके हैं जिन्हें स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई अंतरराष्ट्रीय संधि के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था। ये कीटनाशक हैं - क्लोरडेन, डीडीटी, डाइएल्ड्रिन, एन्ड्रिन, हेक्लाक्लोर।
रिपोर्ट में यह भी इशारा किया गया है कि सब्जियों में इन कीटनाशकों की इतनी मात्रा धुल चुकी है कि उन्हें खाने का मतलब सीधे तौर पर बीमारियों को दावत देना है। इन कीटनाशकों का पाया जाना यह भी साबित कर रहा है कि प्रतिबंध के बावजूद ये बाजार में उपलब्ध हैं। मूली, गोभी, प्यास, बैंगन, आलू भी इसकी चपेट में हैं। इनमें बीएचसी-एल्फा, बीटा, गामा व डेल्टा, हेप्लाक्लोर और एल्ड्रिन शामिल है।
डॉक्टर सलाद खाने की सलाह देते हैं, लेकिन गौतम बुद्धनगर की हरी सब्जियाँ बीमारियाँ परोस रही हैं। इन सब्जियों के सेवन से हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, दिमागी बुखार, लकवा, चर्म रोग व अन्य गंभीर बीमारियाँ लोगों को शिकंजे में ले रही है। समय रहते कीटनाशकों का प्रयोग न रोका गया तो जमीन के साथ-साथ सेहत पर भी बुरा असर पड़ते देर नहीं लगेगी।
सरदार सरोवर बांध का कार्य पूर्ण
पिछले दिनों देश के सबसे विवादास्पद बाँध सरदार सरोवर की ऊँचाई १२१.९२ मीटर करने का कार्य पूर्ण हो गया है। पिछले दो दशक से ये परियोजना चल रही थी। इसका काम १९८७ से शुरु हुआ था।
अधिकारियों के मुताबिक इससे चार राज्य के लोगों को पेयजल मुहैया कराया जा सकेगा। नर्मदा नदी पर बने इस बाँध से बिजली की जरुरत को बहुत हद तक पूरा किया जा सकेगा। १२२ मीटर ऊँचे और १२५० मीटर लंबे बाँध पर काम १९८७ में शुरु हुआ, लेकिन तमाम विरोध, विलंब और कानूनी बाधाआें में यह उलझा रहा।
अदालत ने बाँध की ऊँचाई १२१.९२ मीटर करने की अनुमति दे दी थी, लेकिन कुछ आंदोलनकारियों ने इसे ११०.६४ मीटर से ज्यादा बढ़ाने पर खतरे का अंदेशा व्यक्त किया था। इनका कहना था कि इससे हजारों लोगों की जान को खतरा है।
इसका शिलान्यास १९६१ में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने किया था। काम शुरु हो सका १९८७ से। इसके बाद नर्मदा बचाआें आंदोलन ने इसका विरोध शुरु किया। यह आंदोलन इस बाँध की वजह से चार राज्यों के हजारों लोगों के विस्थापन के खिलाफ आवाज उठा रहा था। इसके बाद अदालत के स्थगनादेश, भूख हड़ताल और वाद-विवाद का दौर चलता रहा।
पिछले वर्ष ६माह पहले प्रधानमंत्री कार्यालय ने सुप्रीम कोर्ट को यह आश्वासन दिया कि इस बाँध की इतनी ऊँचाई पूरी होने से जो विस्थापित होंगे, उनको पुन: बसाया जाएगा। इसके बाद २७ अक्टूबर से दिन-रात एक करके इंजीनियर और श्रमिकों ने इसे इस ऊँचाई तक पहुँचाया।
नर्मदा भारत की पाँचवी सबसे बड़ी नदी है। मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली यह नदी अमरकंटक नामक स्थान पर ९०० मीटर की ऊँचाई से निकलती हैऔर १३१२ किलोमीटर बहती है। नदी प्रारंभ में १०७७ किमी मध्यप्रदेश में बहती है। फिर ३५ किमी मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र की तथा ३५ किमी महाराष्ट्र व गुजरात की सीमा बनाती हुईबहती है। आखरी १६५ किमी का बहाव गुजरात में है। फिर भी गुजरात राज्य नर्मदा नदी का उपयोग करने में सबसे आगे रहा है। सरदार सरोवर बाँध का काम पूरा हो गया और नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्रवाई चलती रही। नर्मदा घाटी विकास की योजना पर विचार-विमर्श तो सन् १९४६ में ही शुरु हो गया था।
नर्मदा में १६ स्थानों पर ३००० मेगावाट जलविद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने तथा ६० लाख हैक्टेयर भूमि पर सिंचाई करने की क्षमता का आकलन किया गया था। गुजरात राज्य ने सरदार सरोवर बाँध की तथा मध्यप्रदेश ने इंदिरा सागर, आेंकारेश्वर, महेश्वर, मान, जोबट, बरगी, बरगी डायवर्शन, अवंति सागर, हालोन, अपर नर्मदा, बेटा अपर, लोअर गोई जैसी तीस योजनाआें की रुपरेखा को अंतिम रुप दिया। आश्चर्य यही है कि योजनाआें पर काम चल रहा है और पुनर्वास का काम ही पूरा नहीं हो पया हैइसके लिये गुजरात, महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश की सरकारों को पहल करनी होगी ।बाँध का जल तो मध्यप्रदेश से ही बहकर जाता है और उस जल का प्रवाह मध्यप्रदेश के लिए भी मूल्यवान है। कोई उपयोग करे या न करे नर्मदा बहती रहेगी। ***
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