१४ कृषि जगत
बांझ बीज और हताश किसान
शैलेष कुमार
तमिलनाडू सरकार ने महिको कम्पनी के बी.टी. कपास के बीजों की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया है । धरमपुरी जिले में इन बीजों से फसल पूरी तरह से बर्बाद होने की शिकायत मिली थी । इसके पूर्व सन् २००४ में खरीफ की फसल खराब होने के बाद आंध्रप्रदेश सरकार ने बी.टी. बीजों की प्रमुख भारतीय निर्माता कम्पनियों को काली सूची में डाला था ।
धरमपुरी के हजारों किसानों ने जिलाधीश से बी.टी. कपास के बीजों के घटिया होने की शिकायत दर्ज की थी । जिलाधीश पंकजकुमार बंसल के अनुसार 'इस जिले के २५०० एकड़ क्षेत्र में बी.टी. कपास के बीज बोने वाले लगभग २००० किसानों को इससे भारी नुकसान उठाना पड़ा है । साथ ही प्रारंभिक जांच से यह स्पष्ट हो रहा है कि इस सबके लिये बीज ही जिम्मेदार है ।'
इस घटना को प्रदेश सरकार ने गंभीरता से लिया और साथ ही जांच का आदेश देते हुए प्रदेश के कृषि मंत्री वीरपण्डी एस. अरूमुगम ने कहा, 'जांच पूरी होने तक महिको के बीज बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है । उन्होंने बीज कंपनी से प्रभावित किसानों को मुआवजा देने को भी कहा ।'
इस प्रतिबंध से अनुवांशिक रूप से संशोधित बीजों की मुखालफत करने वाले खुश हैं । अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस के अभियानकर्ता राजेश कृष्णन का कहना है कि 'आंध्रप्रदेश के बाद तमिलनाडू में भी बी. टी. बीज नाकारा सिद्ध हुए हैं । लेकिन जैविक अभियांत्रिकी तकनीक की इस विफलता का खामियाजा अन्तत: तो किसानों को ही भुगतना पड़ता है । बीजों के लगातार असफल होने के बावजूद ये कंपनियां लुभावने विज्ञापनों के दम पर अपने बीज बेचने में कामयाब हो जाती हैं ।'
यद्यपि अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि घटिया बीज ही धरमपुरी में कपास की फसल बर्बाद होने का कारण हैं । तमिलनाडू के कृषि सचिव सुरजीत चौधरी ने एक उदाहरण देते हुए बताया कि प्रदेश के एक किसान को प्रति एकड़ १५ क्विंटल कपास मिला, बीजों के ६००० रूपये घटाने के बाद उन्हें ५४००० रूपयों का लाभ हुआ । खेती की गलत पद्धति और बीज कंपनी का पर्याप्त् सहयोग न मिलना भी कपास की फसल खराब होने का कारण हो सकता है । कृषि उत्पादकता आयुक्त के पद पर भी आसीन श्री चौधरी ने कहा, 'बीज बेचते समय कंपनी समुचित जानकारी और सहयोग दे या फसल खराब होने पर किसानों को मुआवजे का भुगतान करें ।'
महिको कंपनी ने भी धरमपुरी में फसल खराब होने की बात स्वीकार की है लेकिन इस संबंध में उसने अपने बीजों को इसका कारण मानने से साफ इंकार भी किया है । महिको के उप-महाप्रबंधक संजय देशपाण्डे ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, 'पौधों में मुरझाने की समस्या नजर आई है, किन्तु यह हमारे बीजों के कारण नहीं हुआ है । बीज के हर पैकेट पर हमने लिखित सूचनाएं दी थीं । मुआवजे के लिए सरकार ने समिति गठित कर दी और जल्द ही हम इस पर निर्णय ले लेंगे ।'
इसके पूर्व सन् २००६ में मोंसेन्टो की सहायक कंपनी महिको मोंसेन्टो बायोटेक इंडिया लि. ने बीजों के १८०० रूपये लाभकारी मूल्य वाले ४५० ग्राम के पैकेट पर १२५० रूपये का 'गुण मूल्य' (ट्रेट वेल्यू एक प्रकार की रॉयल्टी) भी लगाया था । जबकि आंध्रप्रदेश सरकार ने ४५० ग्राम के पैकेट का मूल्य ७५० रूपये निर्धारित किया था । मोंसेन्टो द्वारा इसे अस्वीकार करने पर जनवरी २००६ में आंध्रप्रदेश सरकार यह मामला एकाधिकार एवं प्रतिबंधित व्यापार आयोग के पास ले गयी । १० मई २००६ को अंतरिम आदेश देते हुए इस आयोग ने मोंसेन्टो को लाक्षणिक मूल्य घटाने के लिये कहा । इस पर कंपनी सर्वोच्च् न्यायालय में चली गई है ।
इस आयोग ने अंतिम सुनावाई की तारीख २९ जनवरी २००७ तय की थी । इसके बाद सर्वोच्च् न्यायालय में होने वाली सुनवाई के लिये तमिलनाडू सरकार नीति-निर्धारण करने वाली थी । मगर इसके साथ ही आंध्रप्रदेश में बी. टी. कपास के बीजों के मामले में अदालत से बाहर समझौता करने की कोशिशें भी चल रही हैं । प्रदेश में बिक्री करने वाली कुछ भारतीय कंपनियों ने सरकार का फैसला स्वीकार करने का संकेत देते हुए अदालत के बाहर समझौता करने पर जोर दिया है । आंध्रप्रदेश के कृषि मंत्री एन. रघुवीर रेड्डी ने बताया कि, 'किसानों के हित में हम अदालत से बाहर समझौता करने को तैयार हैं । अन्य प्रदेशों की सरकार ने भी अदालत में याचिका दायर की है परन्तु शायद वो भी अदालत के बाहर समझौते के लिए तैयार हो जाएं ।'
अनेक सामाजिक कार्यकर्ता इस बात से नाराज हैं कि जिस कंपनी के बीजों की वजह से किसान बर्बाद होकर आत्महत्या करने को मजबूर हुए हैं सरकार उन्हें मुआवजा दिलाने के बजाय उसी कंपनी के साथ अदालत से बाहर समझौता करने को तैयार है जबकि ज्यादातर लोेगों का कहना है कि न्यायिक प्रक्रिया जारी रहना चाहिए ।
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1 टिप्पणी:
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