आज भी शेष है भोपाल में जहर
भोपाल गैस त्रासदी के २५ साल बाद भी यूनियन कार्बाइड फेक्ट्री के जहरीले रसायन भोपाल की जमीन और पानी को बुरी तरह प्रदूषित कर रहे हैं । फेक्ट्री से तीन किमी दूर तक जमीन के अंदर पानी में जहरीले रसायनिक तत्व मौजूद हैं जिनका उत्पादन यूनियन कार्बाइड की फेक्ट्री में होता था । इनकी मात्रा पानी में निर्धारित भारतीय मानकों से ४० गुना अधिक पाई गई है । फैक्ट्री परिसर मेें सतही जल के पानी में कीटनाशकों का मिश्रण मानक से ५६१ गुना ज्यादा पाया गया । ये निष्कर्ष सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट नई दिल्ली द्वारा किए अध्ययन में सामने आए हैं । सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण और संयुक्त निदेशक चंद्र भूषण ने भोपाल में १ दिसम्बर को पत्रकारवार्ता में अध्ययन से संबंधित रिपोर्ट जारी करते हुए कहा जांच के निष्कर्ष चिंताजनक है । निष्कर्षोंा से पता चलता है कि पूरा क्षेत्र बुरी तरह दूषित है और फैक्ट्री क्षेत्र भीषण विषाक्तता को जन्म दे रहा है लिहाजा यह जरूरी हो गया है कि फैक्ट्री के प्रदूषित कचरे का न केवल जल्द से जल्द निष्पादन किया जाए बल्कि पूरे फैक्ट्रि परिसर की सफाई हो । इसकी जिम्मेदारी यूनियन कार्बाइड को खरीदने वाली डाउ केमिकल्स की है । डाउ केमिकल्स ने जिम्मेदारी से बचने के लिए भारत और अमेरिका में अभियान चला रखा है । श्री भूषण ने कहा फैक्ट्री से बाहर की बस्तियों के भूजल के नमूनों में मिले रसायनों का चरित्र और फैक्ट्री परिसर व उसके निस्तारण स्थल के कूड़े से मौजूद रसायनों से मेल खाता है । सुश्री नारायण ने कहा यह तो नहीं कहा जा सकता कि इस प्रदूषण से तत्काल हमारे शरीर पर कितना कैसा असर पड़ेगा लेकिन यह साफ है कि इसका असर धीमे जहर की तरह हो रहा है । भूजल और मिट्टी में पाए गए क्लोरिनोटिड बेंजीन के मिश्रण हृदय और रक्त कोशिकाआें को प्रभावित कर सकते है जबकि ऑर्गेनोक्लोरिन कीटनाशक कैंसर और हडि्डयों की विकृतियों की बीमा के जनक है । सीएसई का मानना है कि इस रसायनों से होने वाले प्रभावों का विस्तृत अध्ययन होना चाहिए । हादसे के तत्काल बाद इसकी जिम्मेदारी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद को दी गई थी, लेकिन वर्ष १९९४ में यह अनुसंधान अचानक बंद कर दिया गया । ***
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