बीमार से दवाई छीनने की साजिश
मार्टिन खोर
यूरोपीय सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा भारत और चीन के विकासशील देशों को निर्यात की जाने वाली कम मूल्य वाली जेनेरिक दवाआें को जब्त कर लिए जाने से इन देशों के निवासियों के स्वास्थ्य को नया खतरा पैदा हो गया है । इस कार्यवाही से एड्स, हृदयरोग, अल्जीमर्स जैसी बीमारियों एवं मनोवैज्ञानिक समस्याआें एवं उच्च् रक्तचाप से पीड़ित मरीज दवाईयों से वंचित हो रहे हैं । मुख्यत: भारत के जेनेरिक दवाई निर्माताआेंद्वारा निर्मित ये दवाईयां लेटिन अमेरिका एवं अफ्रीकी देशों को निर्यात की जा रही थीं । अपने अंतिम गंतव्य पर पहुंचने के पहले ही इन्हें नीदरलैंड और जर्मनी के हवाई अड्डों पर नकली होने की संभावना बताते हुए जब्त कर लिया गया। अक्सर होता यह है कि यूरोप की बड़ी दवाई कंपनियां यह आरोप लगाते हुए शिकायत करती हैं कि ये दवाईयां नकली हैं या इनके निर्माण में बौदि्घक संपदा कानून का उल्लंघन किया गया है । हालांकि बाद में पता यह चला कि न तो ये उत्पाद नकली है और न ही इनके माध्यम से किसी पेटेंट कानून का उल्लंघन हुआ है । बल्कि इन्हें पूरी कानूनी वैद्यता के साथ भारतीय कंपनियेां ने उत्पादित किया है और ब्राजील, पेरू, कालंबिया, मेक्सिको, नाईजीरिया व अन्य अफ्रीकी देश इन्हें ब्रांडेड दवाईयों के मुकाबले काफी कम मूल्य पर खरीद रहे हैं। इस जब्ती से इन दवाईयों के निर्यातक व आयातक देशाों के अलावा स्वास्थ्य समूहों में भी रोष फैल गया है । उनकी चिंता का विषय यह है कि यूरोपीय सरकारें बड़ी दवाई कंपनियों के व्यावसायिक हितों को अवांछित रूप से प्रश्रय देते हुए विकासशील देशों के मध्य हो रहे इस पूर्णतया वैधानिक व्यापार को रोकने में लगी हुई हैं । वाल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार पिछले वर्ष नीदरलैण्ड और जर्मनी में २० से अधिक बार भारतीय औषधियों को यह कहते हुए रोक लिया गया है कि इनके निर्माण में यूरोपीय पेटेंट कानूनों का उल्लंघन किया गया है । जबकि ये दवाईयां यूरोप में बेचने के उद्देश्य से बनाई ही नहंीं गई थीं। भारत अब औपचारिक रूप से विश्व व्यापार संगठन में इस मामले की शिकायत करने जा रहा है जिससे कि यूरोपीय कार्यवाही को रोका जा सके । शिकायत में यह दवा किया जाएगा कि यूरोपीय यूनियन ने अपनी महाकाय दवाई कंपनियों को सीमा शुल्क नियमन के दुरूपयोग की छूट इसलिए दी है जिससे कि इस वैघानिक जेनेरिक औषधि व्यापार को रोका जा सके। कहा जा रहा है कि अनेक यूरोपीय देश मुख्यत: यूरोपीय आयोग नियमन १३८३/२००३ का दुरूपयोग कर रहे हैंजिसके अंतर्गत इस बात की अनुमति है कि किसी औषधि को नकली होने या बौद्धिक संपदा कानूनों की अवहेलना करने के शक पर राजसात किया जा सकता है। भारतीय वाणिज्यमंत्री आनंद शर्मा का कहना है कि उनकी सरकार ने यूरोपीय यूनियन से यह कहते हुए कि उनकी कार्यवाही पूर्णतया अनुचित है, अपना विरोध दर्ज करवाया है । भारतीय वाणिज्य एवं व्यापार फेडरेशन का कहना है कि इस कार्यवाही से देश की दवाई कंपनियों को गहरा धक्का लगा है । भारतीय कंपनियों को अब ऐसे वैकल्पिक मार्गोंा से दवाई भेजना पड़ रही है जो यूरोप से न गुजरता हो । इसमें उन्हें दुगुना व्यय करना पड़ रहा है । जिससे दवाई की लागत में वृद्धि हो रही है । इसी के साथ यूरोपीय कार्यवाही से स्वयं को बचाने के लिए वकीलों की सेवाएं लेने में भी उन्हें काफी खर्च करना पड़ रहा है । १६ गैर सरकारी संगठनों ने भी डच और जर्मनी की इन कार्यवाहियों का विरोध किया है । वालस्ट्रीट जर्नल ने जब्ती की कुछ घटनाओं का वर्णन करते हुए बताया कि नवम्बर २००८ में डच अधिकारियों ने एमस्टरडम हवाईअड्डे पर खून पतला करने वाली दवाईयों के दो शिपमेंट, जो कोलंबिया जा रहे थे, को जब्त कर लिया ।यह दवाई भारतीय कंपनी इंड-स्विफ्ट द्वारा निर्मित की गई थी एवं इसे यूरोपीय कंपनी सनोफी के कहने पर जब्त किया गया । इन दवाईयों को मई २००९ में लौटाया गया । इस दौरान भारतीय कंपनी को निर्यात हेतु मार्ग पुर्ननिर्धारण कर दवाईयां मलेशिया एवं सिंगापुर के रास्ते भेजना पड़ी जिसमें दुगुनी लागत आई । इसी तरह नवम्बर २००८ में भारतीय कंपनी सिपला द्वारा पेरू को निर्यात की जा रही अल्जीमर्स के उपचार की औषधी को नोवारटीस कंपनी के कहने पर जब्त कर लिया गया । ये दवाईयां अभी तक नीदरलैंड के ही कब्जे में हैं । फरवरी २००९ में पुन: एमस्टरडम हवाई अड्डे पर नाइजीरिया को निर्यात की जा रही एड्स निरोधक दवाईयों को जब्त कर लिया गया। नाईजीरिया द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में शिकायत किए जाने के बाद ही ये दवाईयां मुक्त की गई । विश्व व्यापार संगठन की बैठक में भारत और ब्राजील ने यूरोपीय यूनियन की इस मामले में आलोचना की है । आलोचना में कहा गया है कि वैधानिक रूप से निर्मित जेरेनिक औषधियों को नकली बताकर गरीब देशों की कम कीमत प दवाईयों की उपलब्ध पर रोक लगाने का प्रयास किया जा रहा है । ब्राजील का कहना है कि ये जेनेरिक दवाईयं पूर्णतया वैध हैं एवं इन्हं नकली या मिलावटी बताना एक भूल है । यूरोपीय सीमा शुल्क विभाग की कार्यवाही से विकासशील देशों की सस्ती जीवन रक्षक दवाईयों की पहुंच में बाधा पड़ रही है । चीन, क्यूबा, कोलंबिया, इक्वाडोर, मिस्त्र, अर्जेंाटाईना, वेनेजुएला और दक्षिण अफ्रीका ने भी यूरोपीय कार्यवाही की खिलाफत की है । यूरोपीय आयोग ने जवाब में कहा है कि वह सस्ती दवाईयों तक पहुंच बनाए रखने के प्रति पूर्णतया प्रतिबद्ध है, परंतु वह नकली दवाईयों की रोकथाम के खिलाफ सीमा शुल्क अधिकारियों की मुहिम भी जारी रखे ।***
विफल रहे तो फायदा : नासा
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के प्रमुख वैज्ञानिक जेम्स हंसेन ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन पर होने वाली कोपेनहेगन वार्ता का विफल होना पृथ्वी के लिए फायदेमंद साबित होगा । हंसेन ने कार्बन मार्केट योजना का विरोध करते हुए कहा कि कार्बन उत्सर्जन के लिए परमिट खरीदना और बेचना जलवायु परिवर्तन को रोकने का हल नहीं है । नासा गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज के प्रमुख ने कहा कि इस वक्त जो कदम उठाए जा रहे हैं, या जिनके उठाने की तैयारी है उनकी बुनियाद ही गलत है , इसलिए पूरी स्थिति को दोबारा देखने की जरूरत है । उन्होंने कहा कि अगर यह क्योटो प्रोटोकॉल की तरह ही हुआ तो लोगों को इसे समझने में ही वर्षोंा लग जाएेंगें । कोपेनहेगन सम्मेलन की सफलता /विफलता को लेकर कयास लग रहे हैं । ब्रिटिश अखबार `गार्जियन' के एक सर्वे के मुताबिक दुनिया के १० में से ९ वैज्ञानिकों का मानना है कि कोपेनहेगन में उठाए जाने वाले कदम सफल नहीं होंगें । इसके पीछे जो कारण हैं उनमें चीन जैसे देशांे का रवैया और आर्थिक मंदी प्रमुख है ं ।
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