मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

४ विशेष लेख

पेड़, हमारे प्राणदाता
-डॉ. सुनील कुमार अग्रवाल
पेड हमारे प्राण हैं क्योंकि पेड़ ही हमें प्राणवायु प्रदान करते हैं । सघन वनों को हमारी धरती के फेंफड़े कहा जाता है । क्योंकि वन ही वायु के शोधक होते हैं । पैड़ ही तो हमें जीवन देते हैं । फिर क्यों हम इन मूक परमार्थी पेड़ोें को काट डालते हैं तो विरोध नहीं करते । आखिर कब तक हम लोग अपने विनाश का कारण स्वयं बनते रहेंगे ? कृषि भूमि विस्तार, शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण के कारण वनों का अतिशय क्षरण हो रहा है । वन प्रतिपालित जीवों का मरण हो रहा है । वनों की अंधाधुंध कटाई से जंगली जानवरों के आवास नष्ट हो रहे हैं जिससे वह मानव के रिहायशी इलाकों में आये दिन आ जाते हैं । पेड़ काटने से प्रदूषण बढ़ा है । धीरे-धीरे जंगलों का सफाया तो हो ही रहा है बस्तियों के पेड़ भी नदारद हो रहे हैं और हम पेड़ की छाया में खड़े होने का सुख खो रहे हैं । कहा जाता है कि जंगल में ही मंगल होता है । यकीनन जंगल ही जलवायु के रक्षक हैं । जंगल ही जंगली जानवरों के आश्रयदाता हैं । जंगल दुनिया भर से तेजी से लुप्त् हो रहे हैं । ज्ञातव्य है कि इमारती लकड़ी और इंर्धन के लिए प्रतिवर्ष लगभग ३.१ अरब घन मीटर काष्ठ जंगलों से प्राप्त् की जाती है । वैश्विक परिदृश्य के मुताबिक दुनिया से प्रतिवर्ष १.३ करोड़ हेक्टेयर जंगल पूर्ण रूप से मर रहे है और इसके साथ हो रहा हैं आरण्यक सभ्यता का समूल अंत । जंगलों की बदहाली से बदल रहा है मौसम । हो रहा है जलवायु में व्यापक परिवर्तन । क्योंकि पेड़ कार्बन डाई आक्साइड को अवशोषित कर कार्बन को जमा कर लेते हैं । जंगल कार्बन के संग्रह कर्ता हैं । आकलन के अनुसार संसार के सारे जंगलों मे जैव भार के रूप में २८३ गीगाटन (१०९) कार्बन संग्रहित है । जंगल में जीवंत पेड़-पौधों के अलावा भी कार्बन जैविकी कचरे के रूप में रहता है । अत: कार्बन का अनुपात वायुमण्डल की तुलना में उससे भी अधिक रहता है। जंगलों से पेड़ों के नदारद होने में प्रतिवर्ष १०१ गीगाटन कार्बन का ह्रास हो रहा है और यही चिंता कारण है । जंगल और यही चिंता कारण बहुमूल्य खो रहे हैं । जंगल लगातार कम हो रहे हैं, हमें पता हीनहीं है कि हम क्या बहमूल्य खो रहे हैं। हमें पेड़ लगाने के प्रति संजीदा होना ही पड़ेगा । पेड़-पौधे हमारे अच्छे मित्र होते हैं । पर्वतीय क्षेत्रों में देवदार के सघन वन थे, तराई के क्षेत्रों में सागौन वन थे, पठारी इलाकों में साल वन तथा मैदानी इलाकों में शीशम के पेड़ बहुतायत में थे। कहा जाता है वन से जीवन । निश्चित ही हमें यह बात दिल से स्वीकारनी होगी । अनेक पेड़ो को विशिष्ट बतलाया गया है। जिनमें एक पीपल भी है जो आक्सीजन अधिक मात्रा में अवमुक्त करता है । जब पीपल की स्वर्णिम पत्तियाँ हवा के किंचित झोंके से हिलती है, तो प्राण रक्षक वायु प्रवाहित होती है । पीपल की पल्लव छतरी बड़ी होती है जो तेजी से कार्बन डाई आक्साइड अवशोषित करती है ।जड़ें जमीन में गहरे जाकर जल पहुँचाती है। पीपल के अलावा नीम, बरगद, आम , पाखड़, गूलर, जामुन, महुआ, इमली, ढाक, साल, सागौन, कचनार गुलमोहर और अमलतास इत्यादि पेड़ पर्यावरण के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं । हर वृक्ष ही अनेक तरह से उपयोगी होता है । निश्चित ही वह एक अचल योगी होता है । विभिन्न प्रजाति के पेड़ों अपनी विशेषताएं होती है । पीपल, नीम, पाखड़ और देशी बबूल के पेड़ मिट्टी के क्षरण की रोकते हैं तथा ज़मीन की उर्वरा शक्ति के वर्धक होते हैं । तुलसी, अश्वगंधा, हरड़, घृतकुमारी की औषधीय महत्ता है । तुलसी तो इसीलिए हर घर आंगन में विराजती रही वृंदावन का महात्म हम जानते हैं । बहुत से पेड़ प्रदूषण रोकथाम में महती भूमिका निभाते है इन पेड़ों में नीम अमलताश, शीशम, बाँझ (ओक), पीपल, मोलश्री, आम, जामुन, अर्जुन, सागवान और इमली आते है । बबूल, गुलमोहर, अर्जुन, सिरस कदंब और अमलतास के पेड़ बंजर नम तथा कूड़े-करकट वाली जमीन को भी उपयोगी बनाते है । शोर भी प्रदूषण के रूप में बढ़ता जा रहा है । ध्वनि प्रदूषण रोकने वाले पेड़ों में अशोक, नीम, बरगद कचनार पीपल एवं सेमल सर्वोपरि है । गैसीय प्रदूषण को अवशोषित करने वाले पेड़ों में बेल, बोगनविलिया, शीशम, पीपल, महुआ इमली, तथा नीम का नाम है । ऊसर, क्षारीय, लवणीय तथा भारी धात्विक प्रदूषण से युक्त बंजर भूमि पर नींबू घास, पामरोज, वेटीवर, केमोमिल, कालमेघ, खस, सेट्रोनिला तथा जावा घास लगाने की सिफारिस विशेषज्ञ करते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि वृक्ष ही शिवरूप हैं जो हमारे परिवेश के जहर को पीकर हमें अभयदान देते हैं ऐसे शिवमयी पेड़ों पर भी कुल्हाड़ी चलाते हुए हम नहीं हिचकिचाते हैं यही लज्जा की बात हैं । वृक्षों से हमें बहुत कुछ व्यक्त-अव्यक्त मिलता है । पेड़ पर खिला हर फूल प्यार बांटता हैं । वृक्षों से हमें नीति-पालन और नैसर्गिक अनुकरण के साथ नैतिक शिक्षा भी मिलती है । हमारे निराशा भरे जीवन में आशा और विश्वास तथा धैर्य की शिक्षा नितांत जरूरी है । यह शिक्षा हमें वृक्षों से सहज ही मिलती है । मनुष्य जब यह देखता है कि ठूंठ में तब्दील पेड़ या शाखा विहीन पेड़ भी कुछ दिनों बाद समय अनुकूल होने पर फिर हरा भरा हो उठता है - तो उसकी समस्त निराशा शांत हो जाती है वह नये उत्साह से भर कर साहस बटोर कर आगे बढ़ता है । कहा जा सकता है कि उसकी आशाएं भी हरी भरी हो उठती है यहींतो हरित विश्वास है । यही बात हमारा शास्त्र कहता है -
``छिन्नोडपिरोहति तरू: क्षीणो%त्युपचीयते पुनश्चन्द्र:।
इंति विमृशन्त:सन्त:सन्तप्यन्ते न ते विपदा।।''
जब इस नीति श्लोक के भाव को हम आत्मसात करते हैं तो हमारे मुखमण्डल से मलिनता तिरोहित हो जाती है । मुस्कान हमारे होठों पर नर्तन करने लगती हैं । हमें प्रकृति प्रिय लगती है । सब और हरियाली और खुशहाली दिखती है। हरित विश्वास जमाने का काम कर रहा है उद्यान विभाग । अब विशेषज्ञों के प्रयास से बूढ़े पेड़ों को जवान करने की कवायद शुरू की गई है । यह कार्य एवं आपरेशन के तहत चलाया जायेगा जिसका आधा व्यय सरकार उठायेगी । तीस साल पुराने वृक्ष को तीन साल का बना दिया जायेगा । इसमें पेड़ से सभी पुरानी और रोगग्रस्त टहनियों को काटकर अलग कर दिया जायेगा । इन हिस्सों से जो नए कल्ले उगेगें उनका ट्रीटमेंट करके एक तंदरूस्त पौधा तैयार होगा । तकरीबन दो से तीन साल के भीतर फिर से यह पेड़ आम के फलों से लद जायेगा । ज्ञातव्य है कि आम के पेड़ की उम्र बढ़ने के साथ ही फसल कमजोर होती है । जानकारों के मुताबिक कई बार तो पेड़ दस से बीस साल पुराना होने पर इतना कमजोर हो जाता है कि उस पर बहार तक नहीं आती। अब इन बूढ़े आसक्त पेड़ों पर भी आ सकेगी अमराई ।यह सराहनीय है । विडम्बना है कि एक ओर तो मृतप्राय पेड़ों को पुर्नजीवित करने के सार्थक प्रयास किये जा रहे है दूसरी ओर सरसब्ज पेड़ भी काट डाले जाते हैं । पेड़ टूट जाते हैं । जब कोई पेड़ टूटता हैं तो मुझे लगता है जैसे किसी ने मेरी बाजू को उखाड़ फैंका हो । हमारा दायित्व है कि हम पेड़ों का दर्द समझे, उन्हें टूटने न दें , तभी तो कहता हूँ कि चुन ले कोई एक पेड़ और झटपट रोप दें उसे किसी उदास जमीन पर ताकि सरसब्ज हो हरियाली और खुशियाँ चहचहा उठें । ***

कोई टिप्पणी नहीं: