मंगलवार, 30 नवंबर 2010

७ जन स्वास्थ्य

स्टीविया : मिठास पर तीखी बहस
अंकुर पालीवाल

शून्य कैलोरी वाली प्राकृतिक मिठास स्टीविया को भारतीय बाजार से बाहर रखे जाने की साजिश बता रही है कि इस खुले औद्योगिक, भूमंडलीकरण वाले विश्व में हम सब कुछ कंपनियों के इशारे पर अपनी प्राथमिकताएं तय करने को अभिशप्त् हैं । आवश्यकता इस बात की है कि भारतीय किसान को भी इस विमर्श में शामिल किया जाए और उपभोक्ता मंचों की भी इसमें सक्रिय भागीदारी हो । इसी के पश्चात् कोई निर्णय लिया जाए ।
वे लोग जो स्टीविया को शीतल पेयों एवं संसाधित खाद्य पदार्थोंा में एक यौगिक तत्व के रूप में शामिल करने की वकालत कर रहे हैं, का मुंह अधिकारियों के पक्षपातपूर्ण रवैये से कड़वा हो गया है । पेरूग्वे में जन्मा स्टीविया पौधा (जिसका वानस्पतिक नाम स्टीविया रिबाऊडायना है) सूरजमुखी परिवार का सदस्य है जिसमें स्टीविओसाइड नामक रसायन पाया जाता है जो कि शक्कर से ३०० गुना मीठा है ।
भारतीय स्टीविया संघ के प्रमुख सुभाष अग्रवाल का कहना है कि वे अचम्भित हैं कि सरकार स्टीविया को जो न केवलप्राकृतिक है बल्कि सुरक्षित भी है, अनुमति नहीं दे रही है वहीं दूसरी ओर उसने सुरक्षित सिद्ध करने के अपर्याप्त् आंकड़ों के बावजूद कृत्रिम मिठास को अनुमति दे रखी
है । व इस संबंध में २००४ से अब तक कई बार भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण से संपर्क भी कर चुके हैं। परंतु मई २००९ में प्राधिकरण ने स्टीविओसाइड को अनुमति न देने का खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के अधिकारी सीधा सा कारण बता रहे हैं । इसके सहायक निदेशक धीर सिंह का कहना है कि खाद्य अपमिश्रण अधिनियम १९५४ में जड़ी बूटी वाली मिठास का कोई जिक्र नहीं है । और कृत्रिम मिठास वाले अवयवों का इसमें उल्लेख है । अधिकारियों ने हाल ही में शीतल पेयों में एसीसल्फेम पोटेशियम एवं सुक्रॉलोस को मिलाने की अनुमति दे दी है ।
भारत मधुमेह की राजधानी बन चुका है । अनुमान है कि भारत मेंं १० से २० प्रतिशत व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित हैं और यदि मोटे और वजन के लिए जागरूक व्यक्तियों को भी इसमें जोड़ लिया जाए तो यह आंकड़ा २५ प्रतिशत तक पहुंच जाता है । इन सबको कम कैलोरी वाली कृत्रिम मिठास की आवश्यकता है । खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के अलावा अन्य विभागों की स्टीविया में निहित संभावनाआें में रूचि है । राष्ट्रीय औषधीय वनस्पति बोर्ड उन किसानों को २० प्रतिशत की सब्सिडी देता है जो इसकी खेती करते हैं । बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी बालाप्रसाद का कहना है कि स्टीविया की फसल वर्ष में ३ से ४ बार तक ली जा सकती है ।
किसान स्टीविया के पत्तोंसे प्रति किलोग्राम ७० से १२० रू. तक कमा सकते हैं और इसे २०० से २५०रू. प्रति किलो के हिसाब से निर्यात भी किया जा सकता है । बोर्ड की योजनाआें के अन्तर्गत देश के विभिन्न स्थानों पर करीब १८०० एकड़ में स्टीविया लगाया जाता है । वही बालाप्रसाद का कहना है कि बोर्ड ने इस मामले को प्राधिकरण के सम्मुख उठाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन भी किया है ।
स्टीविया की व्यावसायिक खेती करने वाली कंपनी सन फ्रुटस लि. के निदेशक शिवराज भोंसले का कहना है कि खाद्य, पेय, कृषि, औषधि, पशु आहार और त्वचा की रक्षा करने वाले ऐसे सारे उत्पाद जिन्हें सुक्रोज की आवश्यकता होती है कि मिठास वाले उत्पादों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । वर्तमान में वैश्विक वैकल्पिक शक्कर बाजार में स्टीविया की हिस्सेदारी महज एक प्रतिशत है । वहीं बाजार सर्वेक्षण समूह मिटेल का अनुमान है कि इसका बाजार जो २००८ में २१ मिलियन अमेरिकी डॉलर था वह २०११ तक बढ़कर २१०० मिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है । श्री अग्रवाल का कहना है कि यदि सरकार मदद करे तो हमारे देश में भी मिठास (स्वीटनर) के बाजार में उछाल आ सकता है। तमिलनाडु स्थित ग्रामोटर बायोटेक लि. के निदेशक एन.भारती का कहना है कि जहां ०.४ हेक्टेयर में बोए गए गन्ने से ४ टन शक्कर प्राप्त् होती है वहीं स्टीविया के माध्यम से उतने ही बड़े खेत में ६० टन शक्कर के बराबर की मिठास प्राप्त् की जा सकती है ।
भारत में स्टीविया के सीमित बाजार के पीछे एक वजह है- देश में इसे तैयार करने की प्रक्रियागत सुविधाआें का अभाव । सरकार द्वारा हिमाचलप्रदेश के पालमपुर में संचालित संस्थान हिमालयन बायोसोर्स टेक्नोलॉजी दिल्ली के निकट देश की प्रथम पर्यावरण अनुकूल पेटेंट की गई निर्माण इकाई डाल रहा है । परन्तु इसकी क्षमता बहुत अधिक नहीं है और यह संयंत्र एक दिन में ३०० किलो पत्तियों का ही उपयोग कर पाएगा । संस्थान के जैव तकनीकी विभाग के प्रमुख अनिल सूद का कहना है कि आयातित स्टीविया में स्टोविओसाईड के सत की मात्रा बहुत कम
है । यह सामान्य तौर पर एक तरह के शक्कर अल्कोहल मेन्नीटॉल, स्टीविओसाइड और अन्य शक्कर अणुआें का मिश्रण है और मेन्नीटॉल इसमें यौगिक का कार्य करता है जो कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है । उन्हें उम्मीद है कि सरकार इसे शक्कर के विकल्प के रूप में मान्यता दे
दे । लेकिन खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण टस से मस नहीं हो रहा है । वही स्टीविया उद्योग का विचार है कि कृत्रिम मिठास उत्पाद तैयार करने वालों की लॉबी भारत में स्टीविया की उम्मीदों से सेंध लगा रही है।
कृत्रिम मिठास तो विवादों के घेरे में ही है । इनमें से कई कैंसरजन्य तक माना गया है । कोलकता विश्वविद्यालय के एक
अध्ययन में पाया गया है इसके तत्व डी.एन.ए. को भी प्रभावित कर सकते हैं । इस खतरे के चलते चिकित्सक और आहार विशेषज्ञ कृत्रिम मिठास की अनुशंसा करते समय चौकस रहते हैं । विशेषज्ञों का मानना है कि प्रकृति ने जो कुछ हमें दिया है उसकी उद्योगों के बने किसी भी उत्पाद से भरपाई नहीं हो सकती । साथ ही यह दावा भी किया जा रहा है कि सेकरीन से स्मृति दोष तक हो सकता है । अतएव वनस्पति आधारित मिठास उत्पाद सुरक्षित हैं । कोची (केरल) स्थित जैव विज्ञान एवं जैव तकनीकी शोध एवं विकास संस्थान के निदेशक सी. मोहनकुमार का कहना है, शरीर के प्रतिकिलो वजन के हिसाब से २००० मि. ग्राम तक स्टीविओसाइड देने के बावजूद शरीर के सभी अंगों को पूर्णतया ठीक-ठाक पाया गया ।
कुछ समस्यामूलक अध्ययनों में पाया गया कि स्टीविओसाईड से कैंसर हो सकता है । और यौन इच्छाआें में कमी आती है, परंतु इन्हें नकार दिया गया । बेसलाइन हेल्थ फांउडेशन के जान बॅरोन का कहना है ये सभी समस्यामूलक अध्ययन चूहोंऔर गले की थैलियों वाले चूहों पर किये गये हैं और उन्हें यह बहुत अधिक मात्रा में दिया गया था ।
परन्तु सभी इस बात से संतुष्ट नहीं है कि स्टीविया सुरक्षित है । हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान के वैज्ञानिक सुदर्शन राव का कहना है यह आवश्यक नहीं है कि सभी प्राकृतिक वस्तुएं अच्छी ही हों । उनका कहना है कि पश्चिम मे विषैले तत्वों संबंधी परिक्षण के पश्चात इन्हें बहुत कम मात्रा में देने की अनुशंसा की गई है । दो कृत्रिम मिठास उत्पाद शुगर फ्री गोल्ड (अस्पारटेम) एवं शुगर फ्री नेचुरा (सुक्रालोस) बनाने वाली कंपनी जाइडस केेडिला के एक अधिकारी का कहना है, स्टीविया को खाने के बाद पत्ती जैसा स्वाद आता है और उत्पाद के विकास में स्वाद का बहुत महत्व है । इसे शक्कर के अधिकाधिक समीप आना होगा । उद्योग के प्रतिनिधियोंका कहना है कि स्टीविओसाइड का सत् निकालना बहुत फायदेमंद नहीं है क्योंकि पत्ति में सिर्फ १० से १५ प्रतिशत तक स्टीविओसाइड होता है और पत्तियों की हमेशा ही कमी बनी रहती है । स्टीविया के विरोध को देखते हुए भारत मे इस मिठास का आगमन अनिश्चित ही दिखता है । ***

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