मंगलवार, 30 नवंबर 2010

८ विज्ञान जगत

पर्यावरण के विविध आयाम
डॉ. वींरेन्द्र सिंह यादव

पृथ्वी के अन्दर मानव द्वारा जब खनन का कार्य किया गया तब उसे नहीं मालूम था कि वह ऐसा कार्य कर रहा है जो उसके अपने लिए भी घातक सिद्ध हो सकता है अर्थात् यह मानव का पर्यावरण प्रदूषण के प्रति छेड़छाड़ का प्रथम प्रयास था, जिससे पर्यावरण को प्रदूषित करने की प्रक्रिया आरम्भ हुयी थी । तत्पश्चात मानव ने जानवरों से रक्षा एवं अपने भोजन को प्राप्त् करने के लिए पत्थरोंेे को तोड़कर हथियार बनाये तो यह भी प्रकृति से छेड़छाड़ का दूसरा प्रयास हुआ । इसके साथ ही मानव ने जैसे ही आग जलाने की कला सीखी तो वायु प्रदूषण प्रारम्भ हो गया ।
खाद्य आवश्यकताआें व आवास की तलाश में जब उसने वनस्पतियों का दोहन शुरू किया तो, प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ाने लगा । खाने की वस्तुआें की तलाश में मानव ने लकड़ी को जैसे ही जलाना शुरू किया तो वायुमंडल असुरक्षित हो गया और वनों के लगातार कटने से अब कुछ अव्यवस्थित सा हो गया । भौतिकता की दौड़ एवं तकनीकी तथा प्रौद्योगिकी के विकास ने विभिन्न तरह के प्रदूषणों को जन्म दिया । बड़े उद्योंगों के बढ़ने से उसने निकलने वाले धुंए से वायुमंडल प्रदूषित तो हुआ ही इसके साथ ही उससे निकलने वाले कचरे से मिट्टी तथा उत्सर्जित जल से जल संसाधनों पर खतरा मंडराने
लगा । इतना ही नहीं नित नूतन औद्योगिक इकाईयांे के शुरू होने सेउससे निकलने वाले इलैक्ट्रॉनिक कचरे से नाभिकीय प्रदूषण, समुद्री प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण व वायु प्रदूषण (जहरीली गैंसें, धुंए व उड़ी राख) तेजी से अपनी विनाश लीला फैला रहे हैं और अब ऐसा लगने लगा है कि अचानक बाढ़, सूखा, मृदा अपरदन, अम्ल वर्षा जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ने के साथ ही वर्तमान में मानवता भी सुरक्षित नहीं प्रतीत हो रही है ।
प्रदूषण को अंग्रेजी शब्द झश्रिर्श्रीींळिि कहा जाता है जो लेटिन भाषा के झश्रिर्श्रीशीश शब्द से बना है । प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ हुआ प्रकृष्ट रूप से दूषित करने
की क्रियास । व्यापक अर्थोंा में इसकी चर्चा करें तो इसे विनाश अथवा विध्वंश अथवा नाश होने के अर्थ से जोड़ा गया हैं वहीं अंग्रेजी का पाल्यूशन शब्द पल्यूट क्रिया से बना है जिसका बेवस्टर (थशलीींशी) शब्दकोष में गंदा करना (ढि ारज्ञश िी ीशविशी र्ीलिश्रशरि) अपवित्र करना (ढि वशषळशि), दूषित करना (ऊशीशलीरींश), अशुद्ध करना (झीषिरशि) मिलता है । ई.पी. ओडम के अनुसार - हवा, जल और मृदा के भौतिक, रसायनिक, जैविक गुणांे के ऐसे अवांछनीय परिणामोंसे जिससे मनुष्य स्वयं को तथा सम्पूर्ण परिवेश प्राकृतिक, जैविक और सांस्कृतिक तत्वों को हानि पहुँचाता है, प्रदूषण कहते हैं ।
डिक्सन के अनुसार वे सभी सचेतन तथा अचेतन मानवीय तथा पालतू पशुआें की क्रियायें एवं उनके परिणाम जो मानव को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लघुकाल या दीर्घकाल में उनके पर्यावरण आनन्द तथा उससे पूर्ण लाभ प्राप्त् करने की योग्यता से वंचित करती है । प्रदूषण कहलाती हैं । राथम हैरी ने पर्यावरण प्रदूषण को इस तहर से परिभाषित किया है वह यह कि पर्यावरण, प्रदूषण जो मानवीय समस्याआें को प्रकृति के ताने-बाने तक पहुँचाता है, स्वमेव, सामान्य सामाजिक संकट का प्रमुख अंग है । यदि सभ्यता को लौटकर बर्बर सभ्यता तक नहीं लाना है तो उस पर विजय प्राप्त् करना अत्यावश्यक हैं । वहीं संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की मानेें तो प्रदूषण की समस्या संसाधनों के स्थानांतरण की समस्या है । संसाधनों का अधिकांश भाग एक तंत्र में तथा अल्पांश दूसरे तंत्र में रहता है । यही समस्या की जड़ है किसी तंत्र मे विद्यमान अनुपयुक्त संसाधन उस तंत्र में एक अप्राकृतिक उत्तेजना एवं दबाव उत्पन्न करता है । ये उत्तेजना कुछ जैविक प्रक्रियाआें का अन्त कर देती हैं । तथा नवीन जैविक प्रक्रियाएं प्रारम्भ कर देती है । ये नवीन प्रक्रिया में परितंत्र की दक्षता में परिवर्तन कर देती हैं । वहीं संयुक्त राष्ट्रसंघ के पर्यावरण सम्मेलन में संसाधनों को हानि पहुँचाने वाले पदार्थोंा को प्रदूषण के अन्तर्गत माना गया है । प्रदूषण वायु, जल और स्थल की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताआें का अवांछनीय परिवर्तन है जो मनुष्य और उसके लिए नुकसानदायक है । दूसरे जन्तुआें पौधों, औद्योगिक संस्थानों एवं कच्च्े माल आदि को किसी भी रूप में हानि पहुँचाता है । अवांछित तत्वों की मौजूदगी पर्यावरण प्रदूषण कहलाती है । उपर्युक्त परिभाषाआें से स्पष्ट होता है कि पर्यावरण की समस्या मानवीय प्रक्रियाआें के उपरांत ही जन्म लेती है क्योंकि मानव ने अपनी आवश्यकताआें को पूरा करने के लिए पर्यावरण की ओर ध्यान न देते हुए इसका जरूरत से ज्यादा उपयोग किया, हानि पहुँचायी । वही व्यापक प्रदूषण सम्बन्धी समस्या को भारतीय
संदर्भ में एकलव्य चौहान की टिप्पणी की ओर ध्यान दें तो बात काफी कुछ स्पष्ट हो जाती है- निर्धनता और अल्प-विकास भारत की मुख्य प्रदूषण सम्बन्ध की समस्याएं हैं जो देश में बड़े पारिस्थैतिक असंतुलन तथा मानव पर्यावरण की निर्धन गुणवत्ता के मूल कारण हैं ।

पर्यावरण के घटक एवं उनके मुख्य प्रदूषक तत्व एवं स्त्रोत

क्र.सं. घटक प्रदूषक तत्व स्त्रोत
१. वायु कार्बन डाई-आक्साइड, सल्फर आक्साइड, कोयला, पेट्रोल,
नाइट्रोजन आक्साइड,हाइड्रोजन, अमोनिया, डीजल जलाना
लेड एल्डिहाइड्स, एस्बेस्टस तथा ठोस अवशिष्ट
बेरीलियम सीवर आदि
२. जल घुले तथा लटकते ठोस पदार्थ अमोनिया, सीवर नालियाँ
यूरिया, नाइट्रेट एवं नाइट्राइट, क्लोराइड, नगरीय प्रवाह,
फ्लोराइड उद्योगों के कार्बोनेटस, तेल जहरीले प्रवाह
ग्रीस, कीटनाशक टेनिन, कोली फार्म और खेतों तथा अणु
सल्फेटस, सल्फाइड, भारी धातुएं शीशा- संयंत्रों के प्रवाह
आरसेनिक, पारा मैंगनीज तथा रेडियोधर्मी
पदार्थ
३. मिट्टी मानव एवं पशु निष्कासित पदार्थ वायरस अनुचित मानव क्रियायें
एवं बैक्टीरीया, कूड़ा करकट उर्वरक, अशोधित औद्योगिक
कीटनाशक क्षार फ्लोराइड, रेडियोधर्मीपदार्थ व्यर्थ पदार्थ, उर्वरक एवं
कीटनाशक
४. ध्वनि शोर (सहन सीमा से उच्च् ध्वनि स्तर) हवाई जहाज स्वचालित
वाहन औद्योगिक क्रियायें, लाउडस्पीकर आदि

पर्यावरण पदूषण के प्रकार :
पर्यावरण में संतुलन बनाये रखने के लिए प्रकृति से कुछ तत्व हमें उपहार स्वरूप मिले हुए हैं । ये सभी तथ्व (घटक) एक निश्चित मात्रा में हमारे वातावरण में उपस्थित रहते हैं । इन पर्यावरणीय घटकों की मात्रा कभी-कभी या तो आवश्यकता से अधिक हो जाती है या कम अथवा हानिकारक तत्व पर्यावरण में प्रविष्ट होकर इसे प्रदूषित कर देते हैं जो जीवधारियों के जीवन के लिए घातक एवं हानिकारक सिद्ध होता है । यही रूप पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है । इन्हीं तत्वों में जो तत्व पर्यावरण में प्रतिकूल परिवर्तन लाता है अर्थात् जहाँ मनुष्य निवास करता है उनके आस-पास के क्षेत्र को प्रदूषित करता है । सर फ्रेड्रिक वार्नर
के शब्दों में कहे तो कोई भी पदार्थ सामान्यता
प्रदूषक माना जाता है यदि वह प्रजातियों की वृद्धि दर में परिवर्तन द्वारा पर्यावरण में प्रतिकूल परिवर्तन कर देता है, भोज्य श्रृंखला को बाधा उपस्थिति करता है, जहरीला अथवा स्वास्थ्य, आराम सुविधाआें तथा लोगों की सम्पत्ति के मूल्यों में बाधा उपस्थित करता है । वार्नर साहब की व्याख्या से स्पष्ट है कि प्रदूषक तत्व शहरी अथवा ग्रामीण क्षेत्रों के द्वारा उत्सर्जित वे पदार्थ हैं जिसका संकेन्द्रण जल प्रवाह, अवशिष्ट दुर्घटना-जन्य प्रवाह, उद्योगों के उप-उत्पादों तथा अनेकानेक मानव क्रियाआें द्वारा होता
है । प्रत्यक्ष प्रदूषक तत्वों में प्रमुख चिमनी धुंआ, कूड़ा-करकट, अपशिष्ट जल आदि । अदृश्य तत्वों में भ्रष्टाचार एवं अपराध, शोर तथा बैक्टीरिया प्रमुख हैं ।

पर्यावरण प्रदूषण का वर्गीकरण

प्रकृति जन्य प्रदूषण मानव जन्य प्रदूषण

वायु प्रदूषण जल प्रदूषण मिट्टी प्रदूषण

कृषि प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण औद्योगिक प्रदूषण सामाजिक प्रदूषण मानसिक प्रदूषण

स्पष्ट है कि पर्यावरण के प्रमुख प्रकार वायु, जल, भूमि मिट्टी के साथ-साथ मानवजनित सामाजिक प्रदूषण हैं । घरेलू लकड़ी, वाहनों से उत्सर्जित धुंआ, कूड़ा करकट, शक्ति उत्पादक इंर्धन से निकली आग से धुंआ वायुमंडल में जाता है । वह वायु प्रदूषण कहलाता है ं उद्योगों एवं अन्य लोगों से अनेक जहरीले पदार्थ जल में मिलकर उसे जहरीला बना देते हैं जिससे जल प्रदूषण हो जाता है । अत्यधिक कीटनाशकों एवं भारी मात्रा में उर्वरकों तथ अवशिष्ट पदार्थोंा को भूमि पर फेंकने से भूमि प्रदूषण होता है । छोटे-बड़े वाहनों के चलने, रेलों, हवाई जहाज, लाउडीस्पीकर तथा जेट विमानों से निकलने वाली आवाज से ध्वनि प्रदूषण होता है । मानव जनित प्रदूषण में जुंआ, शराब, नैतिक अध: पतन तथ चोरी आदि आते हैं ।
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