मंगलवार, 30 नवंबर 2010

हमारा भूमण्डल

वैश्विक गर्मी और जलवायु शरणार्थी
रिचर्ड महापात्र

वैश्विक तापमान में वृद्धि के परिणामस्वरूप समुद्र का स्तर बढ़ता जा रहा
है । इस वृद्धि से भारत के सर्वाधिक प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है । हमें यह समझना होगा कि महज आखें बन्द कर लेने से समस्या हल नहीं हो जाएगी । आवश्यकता इस बात की है कि विश्व के सारे देश आपसी मतभेद भुलकर इस समस्या से छुटकारा पाने का प्रयत्न करें ।
पश्चिम बंगाल के संुदरबन मेंस्थित सागर द्वीप का निवासी बिप्लब मण्डल पिछले २५ वर्षोंा से एक शरणार्थी की तरह दिल्ली की गोविन्दपुरी नामक गंदी बस्ती में रह रहा है । पिछली बातों को याद करते हुए वह कहता है कि मैं जब भी समुद्र को देखता था तो मुझे लगता था कि जैसे वह मेरे गांव में घुस
आएगा । वह १९९२ में दिल्ली में बस गया और दिहाड़ी पर काम करने लगा । साथ ही दिल्ली में बसने के लिए उसने मकान खरीदने के लिए बचत भी प्रारंभ कर दी । १७ वर्ष बाद बिप्लब की आशंका सही साबित हुई । उसके रिश्तेदारों ने बताया कि समुद्र ने धीरे-धीरे मेरे घर को डुबोना प्रारंभ कर दिया है और अब वहां घर जैसा कहने को कुछ भी नहींबचा है ।
सन् २००९ में उसने गोविन्दपुरी में ७० हजार में एक अवैध झोपड़ी खरीद ली । अब उसका कहना है कि मेरी झोपड़ी अवैध जरूर है परंतु वह डूबेगी नहीं । पिछले ३० वर्षोंा में सुंदरबन के अनेक द्वीप डूब गए हैं और अनेक लोग दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में जाकर बस गए हैं । बिप्लब और उसके जैसे अनेक अब जलवायु शरणार्थीहो रहे थे । आने वाले वर्षोंा में मुंबई, चेन्नई और अन्य बड़े समुद्र तटीय शहरों के निवासी भी समुद्र की मार से जलवायु शरणार्थी बनने लगेंगे ।
दिल्ली के दिहाड़ी मजदूर बाजार में देश के तटीय इलाकों के निवासी बड़ी संख्या में दिखाई देते हैं । सभी जगह पलायन की परिस्थितियां एक सी है तूफान, सूखा, समुद्र का रहवासी इलाकों में प्रवेश और खेती के लिए शुद्ध पानी का अभाव । उड़ीसा का केन्द्रपाड़ा जिला जो कि १९९९ के भयानक तूफान में सर्वाधिक प्रभावित था, के निवासी जगन्नाथ साहू का कहना है कि मेरे पिता १९७१ के तुफान बाद कोलकता चले गए थे क्योंकि वह हमारे ६ लोगों के परिवार का पोषण नहीं कर पा रहे थे । वे कभी गांव वापस नहीं लौटे । मैंने अपनी थोड़ी सी कृषि भूमि के साथ १९९९ तक संघर्ष किया । परंतु उस भयानक समुद्री तुफान ने मेरी पुरी जमीन को क्षारीय कर
दिया । अभी १५ गांवों में समुद्र प्रवेश कर गया है जिससे आव्रजन एकदम से बढ़ गया
है ।
भारत की ८००० कि.मी. लम्बी समद्री सीमा में नौ राज्य और द्वीपों के दो समूह आते हैं । वास्तव में वैश्विक तापमान वृद्धि से समुद्र का स्तर बढ़ गया है जिसके कारण समुद्री तट के किनारे बसने वाली भारत की २५ प्रतिशत आबादी के लिए यह महज वैज्ञानिक सिद्धांत भर नहीं बल्कि जिन्दा बचे रहने का सवाल है । इसके परिणामस्वरूप भारत के अन्य इलाकों में प्रवासियों की बाढ़ आ जाएगी । कभी उम्मीदों की द्वीप कहे जाने वाले मुंबई, चेन्नई और कोलकता जैसे शहरों को अब और अधिक प्रवासियों को अपने अंदर समेटना
होगा । इसका सीधा सा अर्थ है वर्तमान उपलब्ध सुविधाआें पर अतिरिक्त भार । इससे आपसी संघर्षोंा में भी वृद्धि होगी ।
गत वर्ष एक आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक ने रहस्योद्घाटन किया कि समुद्र का बढ़ता जलस्तर नई पीढ़ी को जन्म लेने से पहले ही मार देगा । उन्होंने अंदेशा जताया कि इसकी वजह से लोगों को मजबूरन खारा पानी पीना पड़ेगा । जिससे तटीय इलाकों में रह रही गर्भवती महिलाआें में गर्भपात की संख्या बढ़ जाएगी । कई अन्य वैज्ञानिक भी इससे सहमत हैं । ब्रिटिश वैज्ञानिकों के एक दल जिसने बांग्लादेश में तटीय गर्भवती महिलाआें पर बढ़ते समुद्री जलस्तर के प्रभाव का सर्वेक्षण किया है, का कहना है कि भारत में परिस्थितियां इससे भिन्न नहीं होंगी ।
उष्मीय विस्तारण की वजह से समुद्र का पानी गरम होने से उसके आकार में वृद्धि होती है । सन् १९६१ के प्रयोग बताते हैं समुद्र ३००० मीटर तक गर्म हो चुका हैं और यह वातावरण में मौजूद ८० प्रतिशत गर्मी को सोख लेता है । इसकी वजह से पानी का फैलाव होता है साथ ही ग्लेशियर के पिघलने से भी स्तर बढ़ता है । समुद्र का स्तर बढ़ने के बहुआयामी प्रभाव पड़ते हैं । इससे समुद्र तटीय बसाहटें जलमग्न होती हैं, बाढ़ की भयावहता में वृद्धि, तट का टूटना, आगे की बसाहटों पर विपरित प्रभाव पड़ना, बड़ी मात्रा में भूमि का बंजर होना और पानी के स्त्रोतों का खारा होना भी शामिल है । संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर अन्तर मंत्रीय समिति का कहना है बढ़ते जलस्तर से एशिया और अफ्रीका के सर्वाधिक घने बसे तटीय शहर प्रभावित होंगे जिनमें मुंबई, चैन्नई एवं कोलकता भी शामिल हैं । समिति के अनुसार भारत में २.४ मि.मी. प्रतिवर्ष के हिसाब से समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा जो कि २०५० में कुल ३८ सें.मी. हो जाएगा ।
संयुक्त राष्ट्र की एक दूसरी समिति के अनुमान से यह ४० सें.मी. होगा क्योंकि हिमालय व हिन्दुकुश श्रंृखला के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इसके परिणामस्वरू भारत के तटीय इलाकों में रहने वाले ५ लाख लोग तत्काल प्रभावित होंगे तथा सुंदरबन सहित तटीय इलाकों के पानी में खारापन भी बढ़ जाएगा । समिति का यह भी आकलन है कि सन् २१०० तक भारत व बांग्लादेश के तटीय इलाकों में रह रही ८ करोड़ अतिरिक्त जनसंख्या प्रभावित होगी । वहीं ग्रीन पीस का तो कहना है कि सदी के अंत तक स्तर में ३ से ५ मीटर एवं वैश्विक तापमान में औसतन ४ से ६ डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से इन्कार नहीं किया जा सकता ।
भारत में लाखों लोग तट से ५० कि.मी. की परिधि में रहते हैं । समुद्र तट से १०
मीटर तक की ऊँचाई वाला इलाका निम्न ऊँचाई समुद्री क्षेत्र कहलाता है । यह सबसे पहले डूबेगा । इस क्षेत्र में ग्रामीण व शहरी आबादी बराबर है । इससे भारत का ६००० वर्ग कि.मी. क्षेत्र डुब में आ जाएगा । अनेक अध्ययन बताते हैं कि समुद्री जलस्तर बढ़ने से भारत और बांग्लादेश में सन् २१०० तक करीब १२ करोड़ लोग बेघर हो जाएगें । संयुक्त राष्ट्र विश्व विद्यालय के कोको वार्नर का कहना है जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ऐसा विशाल मानव अप्रवास होगा जैसा पहले कभी नहीं देखा गया ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान में २.४ करोड़ व्यक्ति जलवायु शरणार्थी बन चुके हैं। श्री वार्नर का कहना है कि भारत इससे सर्वाधिक प्रभावित हो सकता है । जलवायु परितर्वन के मानव प्रभाव रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन का आगामी २० वर्षोंा में अधिक प्रभाव पड़ेगा । इसके अनुसार बढ़ता समुद्री जलस्तर जो अभी कम लोगों पर असर डाल रहा है, भविष्य में अधिक आबादी पर असर पड़ेगा । पानी गरम होने में समय लेता है, अतएव अगले कुछ वर्षोंा में समुद्र का तापमान बढ़ने से इसके आकार में वृद्धि होगी तथा इसका परिणाम अधिक विध्वंस ही
होगा । ***

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