मंगलवार, 30 नवंबर 2010

दीपावली पर विशेष

कौन सुनेगा गजराज की आवाज
डॉ. सुनील कुमार अग्रवाल

जल और जंगल का साथी है, हाथी यह बच्चें से लेकर बूढ़ों तक सबको प्रिय तभी तो प्रेम से गुनगुनाते हैं । चल-चल मेरे हाथी ......ओ मेरे साथी..... । धरती पर विशालतम जीवंत प्राणी हाथी है । भोजन करने में हाथी पूर्णतया शाकाहारी धर्म निभाता है । गन्ना हाथियों को बहुत भाता है । जल क्रीड़ा करने में हाथियों को बहुत मजा आता है । यह शुंड युक्त प्राणाी झुण्ड बनाकर समूह में रहता है । यद्यपि हाथी की ज्ञानेन्द्रियां शरीर के आकार के अनुपात मेंछोटी होती है । किन्तु फिर भी हाथी की पहचान एक अति संवेदनशील प्राणी के रूप में होती है । हाथी के व्यवहार में धीरता एवं वीरता का अदभुत समन्वय देखा जाता
है ।
हाथियों में सामाजिकता भी देखी जाती है । अपने किसी साथी की मृत्यु पर हाथी उसके मृत्यु स्थल पर शोक मनाते हैं । हाथी को हम लोक जीवन एवं पर्वोत्सवों पर अपने नजदीक पाते हैं । किसी भी शोभा यात्रा में प्रथमत: हाथी ढोल नगाड़ों की आवाजों के साथ प्रदर्शित किये जाते हैं । हाथी प्रकृति ही नहीं हमारी संस्कृति का भी अभिन्न अंग हैं । युगों-युगों से हाथी ऐश्वर्य और समृद्धि का सूचक रहा है । प्राचीन समय में राज सत्ताआें की शक्ति का अनुमान इसकी सेना के हाथियों एवं घोड़ों की संख्या से किया जाता था । हाथियों के प्रति आकर्षण को इस सुभाषित से समझा जा सकता है ।
गोधन गजधन बाजिधन और रतन धन खान ।
जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान ।।
प्राकृतिक रूप से जंगलोंेमेंरहने वाला हाथी अपनी धीरता एवं गम्भीरता के कारण ही लोक जीवन से जुड़ा रहा है । जो चिड़िया घरों तथा सर्कस आदि में लोकानुरंजन का साधन भी है । प्रथम पूज्य देव पौराणिक आख्यान है । अत: हाथी हमारे लिए श्रृद्धा एवं सम्मान का पात्र और संस्कृतिक से जुड़ा है । संस्कृति ही नहीं मौसम विज्ञान के भी मिथक गजराज से जुड़े हैं । वृष्टि हमारी कृषि से जुड़ी है । वृष्टि समृद्धि की भी सूचक
है । दीपावली पर लक्ष्मी पूजा के लिए लक्ष्मी-
गणेश के चित्रांकन पर हाथियों को सूँड द्वारा वृष्टि पात करनते हुए चित्रित किया जाता है । वस्तुत: यह मिथकीय चित्रांकन मेघ विज्ञान पर आधारित है ।
भारतीय ऋतुविज्ञान में हस्तिकर अथवा हाथी सूँड की अवधारा जल स्तम्भ से सम्बन्धित है । जब वायुवेग या अन्य ऋत्विक, मौसमी अथवा भौतिक स्थिति के कारण जल स्त्रोतों का जल वाष्पित होकर स्तम्भ रूप में धनीभूत वाष्प समूह बनाता है तो यह जल स्तम्भन की वृष्टि प्रक्रिया कहलाती है । जिस प्रकार से हाथी अपनी सूँड द्वारा जल राशियों से जल वाष्प ग्रहण करते हैं । इसीलिए उन्हें हस्तिकर (हस्ति शुण्ड) कहा जाता है । ब्रह्मवेतर्त पुराण में कहा गया है -
हस्ति समुद्रादाय करेण जल भीप्सितम् ।
तद्याद धनाप तद तद्याद् वार्तन प्रेरितं धन: ।।
(ब्रह्म वेर्त पुराण २१/१/५)
हाथी को उष्णकटिबंधीय तथा समशीतोष्ण जलवायु पसंद है । आँकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया में कुल ४,७०,००० हाथी मौजूद हैं । अफ्रीका में पाये जाने वाले हाथी १० फीट ६ इंच लम्बा होता है । तथा इसका वजन ७ टन होता है ।
केवल एशिया में ६०,००० हाथी हैं । जिनमें से २५००० हाथी भारत में रहते हैं । यह एशियन हाथी, जिसे भारतीय हाथी के रूप में जाना जाता है, का प्राणी वैज्ञानिक नाम हैं एलिफास मैक्सिमस (एश्रशहिरी ारुर्ळाीी) । भारत में यह हाथी उत्तर प्रदेश से मेघालय तक हिमालय की तराई के अलावा बिहार, उड़ीसा एवं दक्षिणी राज्यों कर्नाटक, केरलएवं तमिलनाडु में मिलता है । भारतीय हाथी, अफ्रीकी हाथी से कई मायनों में भिन्नता रखता है ।
भारत में पाये जाने वाले ३५०० हाथी मंदिरों, मठों, सर्कस या चिड़ियाघरों मे रहते हैं अथवा कहा जाये कि पालित हैं । शेष अपने प्राकृतिक निवासों में संरक्षित अथवा असंरक्षित क्षेत्रों में रहते हैं । संरक्षित क्षेत्रों में वन्य जन्तु उद्यान एवं वन्य जन्तु अभयारण्य आते हैं । हाथियों के निवास के रूप में केरल राज्य में ७७७ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तारित पेरियार वाइल्ड लाइफ सेंचुरी प्रसिद्ध है । यह सेंचुरी सन् १९४० से पेरियार नदी के परिक्षेत्र में स्थित है । यहाँ नदि के गहरे जल में हाथी तैरने का अभ्यास भी करते हैं ।
अभी एक अच्छी खबर मिली है कि हाथी को राष्ट्रीय धरोहर पशु के रूप में घोषित किया गया है । हाथियों को बचाने के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की तर्ज पर हब हाथी संरक्षण प्राधिकरण गठित किया
जाएगा । दरअसल हाथियों को लेकर डॉ. महेश रंगराजन की अध्यक्षता में गठित टास्क फोर्स ने इस प्राधिकरण के गठन की सिफारिश सरकार से की है । केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने रिपोर्ट की सिफारिशों पर अमल का न सिर्फ ऐलान किया है वरन् वह गम्भीरता के साथ इस कार्य मेंजुट भी गए हैं ।
प्रश्न यह उठता है कि जंगल की आन बान शान के प्रतीक गजराज को संरक्षण की दरकार क्योंहुई ? अपने नैतिक पतन के कारण थोड़े से लालच में आदमी दरिंदा हो गया है । वह निरीह जीव-जन्तुआें को बेतहाशा मारने लगा है । हजारों प्रजातियां या तो विलुप्त् हो गई हैं या विलुप्त् होने के कगार पर हैं । हाथी को उसके दाँतों के लिए मारा जाता है । लोक शैली में कहा जाता है जिन्दा तो जिन्दा, मरा हुआ हाथी भी सवा लाख का भारत में हाथी सदियों से संरक्षित रहा, पूजनीय रहा और पालतू भी रहा । जंगल में शिकार करने हेतु जाने के लिए भी शिकारियोंे ने हाथी को प्रशिक्षित किया । मालवाहक के रूप में तथा शान की सवारी के रूप में भी हाथी प्रयोग होते हैं । हाथी को मारना अपराध माना जाता है । हाथी अवध्य है । किन्तु केवल दाँतों के लिए हाथी मार दिये जाते हैं । बड़े ही अमानुषिक तरीके से तस्कर इनको जहरीला इंजेक्शन लगाते हैं।
तस्कर एवं शिकारी ही हाथी को नहीं मार रह हैं वरन् हाथियों के प्राकृतिक निवास नष्ट होते जा रहे हैं । वनों का व्यापक विनाश हुआ है जो भारत में ३३ प्रतिशत भू भाग से घटकर ३ प्रतिशत भू भाग पर रह गए हैं । ऐसे में हाथी भी कैसे निरापद रह सकते हैं । मोटर मार्गोंा का विस्तार एवं रेल पथों का विस्तार भी जिम्मेदार हैं । अनेक हाथी चलती ट्रेनों की चपेट में आकर मारे जाते हैं । पोषक तत्वों की कमी के चलते हाथी कुपोषण का शिकार भी हुए हैं ।
हाथी संरक्षण हेतु टास्क फोर्स ने जो रिपोर्ट दी है उसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रकृति को इस अनमोल धरोहर को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने हेतु यह जरूरी है कि नए सुरक्षित क्षेत्र हाथियोंके निवास हेतु निर्धारित किये जाये । इन क्षेत्रों को बचाने हेतु उनके पुराने कॉरीडोर भी खोलने होंगे । उत्तराखण्ड में यमुना से शारदा नदी के बीच बंद हो चुके एलीफेंट कॉरीडोर को खोलने की सिफारिश की गई है । ताकि हाथी निर्भय होकर राजाजी पार्क से कोटद्वार, जिम कार्बेट पार्क और तराई के जंगलों से होकर नेपाल के सीमावर्ती जंगलोंें एवं उत्तरप्रदेश में दुधवा पार्क तक निरापद विचरण कर सके ।
हाथियोंके प्रति सरकार की हमदर्दी स्वागत योग्य है । देर आयद दुरूस्त आयद आखिरकार हाथियों की सुध तो आई । प्रकृति ने एक जीवन कृति भी ऐसी नहीं बनाई कि जिसका हमारे जीवन के लिए महत्व हो, हमारे अस्तित्व से सरोकार न हो । वस्तुत: पृथ्वी पर जीवंत जैव विविधता ही हमारे जीवन का आधार है । उन्ही के सहारे प्रकृति ने जीवन निर्वाही तंत्र का निर्माण किया हुआ है । अत: हमको भी व्यक्तिगत रूचि लेकर सरकार के काम में हाथ बंटाना होगा । पर्यावरण प्रेमियों के साथ कदमताल में आना होगा ।
हाथी संरक्षित एवं सुरक्षित होंगे इस खुशफहमी को कुछ समय भी नहीं बीता कि हाथियों के साथ हादसा हो गया । दिनांक २४ पिछले दिनों को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में बरेनहाट रेलवे स्टेशन
के समीप रेलवे ट्रेक पर चलती मालगाड़ी से टकरा कर एवं कटकर सात हाथियों की मौत हो गई । रेलवे ट्रेक पर पहले भी ऐसी दुर्घटनाएं हुई हैं । किन्तु वर्तमान घटना को सबसे बड़ा बतलाया गया है । संयोग से जलपाईगुड़ी क्षेत्र हाथियों के गलियारे (कॉरीडोर) के रूप में पूर्व घोषित है । यहाँरेलवे को यह सख्त हिदायत है कि सुरक्षित क्षेत्र से गुजरते हुए ट्रेनों की गति धीमी रखी जाए ताकि कोई हादसा न हो ।
अब जब हादसा हो गया तो कौन सुनेगा गजराज की आवाज ? कहाँ मिलेगा उस विशालतम जीवंत प्राणी को न्याय, जिसके सामने आदमी का लालच और भी अधिक विशाल है ? ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति रोकने हेतु रेलवे विभाग को सख्त उपाय करने होंगे और जनता को वन्य जीवन रक्षा के संकल्प को मजबूती से लागू करवाने की आवश्यकता है । ***

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