भोजन की स्वतंत्रता का संघर्ष
सुश्री वंदना शिवा
जीनांतरित तकनीक व जी.एम. फसलों से हमारी पूरी भोजन प्रणाली परिवर्तित हो जाएगी । जी.एम. मक्का और जी.एम. आलू पर किए गए प्रयोग व शोध बताते है कि इनका नाजुक अंगों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । दूसरी और भारत में पिछले पन्द्रह वर्षो में जिन २,५०,००० किसानों ने आत्महत्या की है, उनमें से अधिकांश ने मोन्सेन्टा द्वारा विकसित बी.टी. कपास का बीज ही लगाया था ।
हमें बारम्बार बताया गया है कि जीनांतरित फसलें (जी.ई.) ही इस दुनिया का बचा पाएंगी । वे पैदावर बढ़ाकर और अधिक खाद्यान्न उपजा कर इस विश्व को बचा सकती है । वे कीड़े-मकोड़ो और खरतपवार पर नियंत्रण कर भी विश्व को बचाएंगी । वे अकाल को सहन कर पाने वाले बीज जो कि जलवायु परिवर्तन के समय में मददगार सिद्ध होंगे ऐसे बीज किसानों को उपलब्ध करवाकर विश्व को बचा लेगी । परन्तु जी.ई. के सम्राट मोन्सेन्टो के ये दावे विश्व भर के अनुभवों के आधार पर झूठे साबित हुए हैं । यह भी एक कटु वास्तविकता है कि अब तक जीनांतरित फसलों से एक भी फसल की पैदावार नहीं बढ़ी है ।
नवधान्य के भारत में किए गए शोध बताते है कि मोन्सेन्टो का यह दावा कि बी.टी. कपास की फसल प्रति एकड़ १५०० किलोग्राम फसल देती है, के विपरीत वास्तविकता यह है कि इस बीज से प्रति एकड़ मात्र ४००-५०० किलोग्राम कपास ही उपजती है । वही अमेरिका में यूनियन ऑफ कंसर्न्ड साइंटिस्ट की रिपोर्ट पैदावार में असफलता स्थापित करती है कि जी.ई. तकनीक ने किसी भी फसल की पैदावार बढ़ाने में कोई योगदान नहीं किया है । इस रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में पैदावार में वृद्धि मात्र फसल के पारम्परिक चरित्र से ही संभव हो पाई है। जी.ई. फसलों के व्यावसायिकरण के बीस वर्षोमेंकेवल दो धाराएं व्यापक स्तर पर विकसित हुई है वे हैं खरपतवार से सुरक्षा और कीड़ों से बचाव ।
खरपतवार रोधी (या रांउड अप रेडी) फसलों से उम्मीद की जा रही थी कि वे खरपतवार में कमी लाएंगी । वहीं बी.टी. फसलों का उद्देश्य था कीट नियंत्रण । परन्तु बजाए खरपतवार और कीड़ों पर नियंत्रण के जी.ई. फसलों के माध्यम से सुपर खरपतवार और सुपर कीड़े विकसित हो गए जिनसे अब किसी भी साधारण तरीके से निपट पाना असंभव है । ऐसा अनुमान है कि १.५ करोड़ एकड़ कृषि भूमि सुपर खरपतवार द्वारा लील ली गई है और उसे समाप्त् करने हेतु किसानों को मोन्सेन्टो को वियतनाम युद्ध में इस्तेमाल किए गए जानलेवा खरपतवार नाशक एजेन्ट आरेंज के इस्तेमाल हेतु १२ डॉलर प्रति एकड़ के हिसाब से भुगतान करना पड़ रहा है ।
भारत में बी.टी. कपास को बोलगार्ड के नाम से बेचा गया एवं उम्मीद की जा रही थी कि यह बोलवार्म नामक कीड़े पर नियंत्रण कर लेगा । लेकिन अब बोलवार्म ने बी.टी. कपास के खिलाफ ही प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर ली है । अतएव अब मोन्सेन्टो बोलगार्ड-।। बेच रहा है, जिसमें कि दो अतिरिक्त जहरीली जीन हैं । इसके परिणामस्वरूप नए किस्म के कीड़े उभर आए हैं और किसानों को कीटनाशकों पर पहले से अधिक व्यय करना पड़ रहा है ।
मोन्सेन्टो दावा कर रही है कि वे जी.ई. के जरिए अकाल का मुकाबला करने वाली एवं जलवायु परिवर्तन से अप्रभावित रहने वाली फसलें विकसित कर पाएगी । यह एक झूठा वादा है । अमेरिका कृषि विभाग ने मोन्सेन्टो के नए अकालरोधी जी.ई मक्का के पर्यावरणीय प्रभाव पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पारम्परिक बीज तैयार करने वाली पद्धतियों के माध्मय से भी इतनी ही मात्रा में पैदावार देनी वाली मक्का के बीज तैयार किए जा सकते है । वही ब्रिटेन की जीन वाच की हेलेन वालास ने चेतावनी देते हुए कहा है कि जीनांतरित बीजों वाले उद्योग को आम आदमी को यह विश्वास दिलाने वाली अपनी सनक से बाहर आना चाहिए कि विश्व का पेट भरने के लिए जी.एम. फसलों की आवश्यकता है ।
जी.ई. सम्राट ने कोई कपड़े नहीं पहन रखे है अर्थात् जी.ई. फसलें विश्व का पेट नहीं भर सकती, लेकिन उनमें इस विश्व को नुकसान पहुंचाने और गुलाम बनाने की क्षमता तो है । अब तक ऐसे भरपूर अध्ययन हो चुके हैंजो हमें बताते है कि जी.ई. भोजन से स्वास्थ्य को हानि पहुंच सकती है । उदाहरण के लिए बायो केमिस्ट अरपाड पुस्झ्ताई का शोध बताता है कि जिन चूहों को जी.ई. आलू खिलाए गए उनके अग्नाशय बढ़ गए, दिमाग सिकुड़ गया और प्रतिरोधक क्षमता का क्षरण हुआ । वहीं गिल्लीस-इरिक सेरालिनि का शोध बताता है कि अन्य अंगों को भी हानि पहुंची है ।
यूरोपीय संघ के आदेश पर कमेटी ऑफ इंडिपेडेंट रिसर्च एण्ड इन्फारमेशन ऑन जेनेटिक इंजीनियरिंग एवं केईन और रोयेन स्थिति विश्वविद्यालयों ने मोन्सेन्टो द्वारा सन् २००२ में जी.ई. मक्का की स्वीकृत किस्मों एन.के. ६०३ (राउण्ड अप से मुकाबला कर सकने वाला) और एम.ओ.एम. ८१० एवं एम.ओ.एम. ८६३ (दोनों में कीडों से बचाव हेतु रासायनिक जहर इस्तेमाल किया गया था) को चूहों को खिलाए जाने के नतीजे सन् २००५ में सार्वजनिक किए गए । इससे साफ जाहिर हुआ कि इससे चूहों के अंगों को नुकसान पहुंचा है । केईन विश्वविद्यालय की जीव विज्ञानी सेरालिनी का कहना है कि आंकड़ों से साफ पता चलता है कि इससे किडनी और लीवर एवं अन्य शुद्धिकरण अंगो पर विपरीत प्रभाव पड़ा है इसी के साथ दिल, तिल्ली और रक्त प्रणाली भी खराब हुई है । बायो तकनीक उद्योग ने पुस्झाताई, सेरालिनी एवं ऐसे सभी स्वतंत्र वैज्ञानिकों के प्रति आक्रोश जताया जिन्होनें जीनांतरित प्रणाली का स्वतंत्र शोध किया है । इससे साफ जाहिर होता है जीनांतरित प्रणाली का स्वतंत्र शोधकर्ताआें और स्वतंत्र विज्ञान के साथ सहअस्तित्व हो ही नहीं सकता । ऐसा नहीं है जीनांतरित प्रणाली के प्रभाव सिर्फ स्वास्थ्य पर ही पड़ेगे । इसका पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ेगा । केनेड़ा के एक किसान को पड़ोस के खेत में लगी जी.ई. फसलों से फैले प्रदूषण की वजह से अपने पारम्परिक बीजों से हाथ धोना पड़ गया ।
सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के अतिरिक्त जी.ई. बीज पेंटेट व बौद्यिक संपदा अधिकार के जरिए कारपोरेट जगत के अपने बीज के लिए रास्ता खोल रहे हैं । इन पेटेंट के माध्यम से धारकों को रायल्टी मिलेगी और कारपोरेट का एकाधिकार भी कायम हो जाएगा । इसके परिणामस्वरूप मोन्सेन्टो जेसी कंपनियां सुपर लाभ प्राप्त् करने लगेगी ।
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