बुधवार, 9 नवंबर 2011

सामयिक

बाढ़ रोकने में कारगर नहीं हैं, बड़े बांध
भारत डोगरा
भारत में इस वर्ष चहुंओर बड़े बांधों ने बाढ़ रोकने की बजाए उसको और मारक व विनाशक बनाने में मदद की है । इसकी वजह बांधों को लचर प्रबंधन रहा है या बांध बाढ़ नियंत्रण का जरिया हैं, जैसे सिद्धांत का ही असफल हो जाना है ? आवश्यकता इस बात की है कि बड़े बांध निर्माण के पारम्परिक विचार की ही समीक्षा की जाए ।
अनेक राज्यों में बाढ़ की समस्या उग्र होने का कारण यह बताया गया कि बड़े बांधों से अधिक पानी छोड़ना एक मजबूरी थी । एक ओर झारखंड के चांडिल बांध से पानी छोड़ने से पश्चिम बंगाल के पूर्व व पश्चिम मिदनापुर में बाढ़ की भीषण समस्या उत्पन्न हुई, तो दूसरी ओर झारखंड की अपनी शिकायत यह थी कि उत्तर प्रदेश में रिहंद बांध से सोन नदी में अधिक पानी छोड़ने के कारण राज्य के गढ़वा और डालटनगंज जिलों के कई गांव बाढ़ग्रस्त हो गए । भाखड़ा व पोंग बांधों से अधिक जल छोड़े जाने के कारण पंजाब के एक बड़े क्षेत्र में कपास की फसल तहस-नहस हुई । उधर हीराकुंड बांध से अधिक पानी छोड़े जाने के कारण उड़ीसा के लाखों लोग बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए ।
इस तरह बड़े बांधों से उत्पन्न भीषण बाढ़ के उदाहरण केवल भारत में नहीं देखे गए हैं । अनेक पड़ोसी देशों जैसे चीन में भी ऐसे उदाहरण सामने आए है । बड़े बांध बनाने में तो चीन भारत से भी कही आगे रहा है व चीन की कुछ सबसे विशाल व प्रतिष्ठित बांध परियोजनाएं तो विशेषकर बाढ़ नियंत्रण के बड़े दावे कर रही थीं । अत: यह सोचना होगा कि बाढ़ नियंत्रण के उपायों में निवेश का समुचित लाभ भारत व आस-पड़ोस के देशों को क्यों नहीं मिला व बाढ़-नियंत्रण नीतियों - परियोजनाआें में कैसेबदलाव की जरूरतें हैं ?
वैसे तो देश के एक बड़े भाग में बाढ़ की समस्या काफी समय से व्यापक रूप में मौजूद रही है । जलवायु बदलाव के दौर में यह और गंभीर हो सकती है व इसके रूप में कुछ बदलाव आ सकते है । वैज्ञानिक जिस तरह के बदलते मौसत की तस्वीर हमारे समाने रख रहे हैं, उसमें प्राय: वर्षा की मात्रा बढ़ने पर एवं वर्षा के दिन कम होने की बात की गई है । दूसरे शब्दों में अपेक्षाकृत कम समय में कुछ अधिक वर्षा होने की संभावना है । कम समय में अधिक वर्षा होगी तो बाढ़ की संभावनाएं बढ़ेगी ।
बड़े बांधों के बारे में प्राय: यह देखा गया है कि अधिक वर्षा होने पर उनमें इतना जल छोड़ने की स्थिति आ जाती है जो अधिक वेग तथा अधिक विनाशक बाढ़ का कारण बनता है । बांध-प्रबंधन में बाढ़-नियंत्रण को कम महत्व देने व बांध-प्रबंधन में कमियों के बारे में कई बार सवाल उठाए गए हैं ।
अब यह सवाल उठाना और जरूरी है कि इन सभी बांधों से पानी छोड़ने से आई बाढ़ों के अनुभव को देखते हुए हम महंगे एवं कई अन्य समस्याआें से भी जुड़े बांध निर्माण को बाढ़ नियंत्रण का उपाय कब तक मानते रहेंगे ?
बड़े बांधों में जितनी तेजी से मिट्टी-गाद भरती है, यह भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है । इसके साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि जलवायु बदलाव के दौर में अप्रत्याशित तौर पर अधिक वर्षा की संभावना होने पर बांध कितनी सुरक्षा दे सकते हैं या यह कितने असुरक्षित हो सकते है ।
इस बारे में विचार करना जरूरी है कि बहुउद्देश्यीय परियोजनाआें में जब बाढ़ नियंत्रण, बिजली उत्पादन व सिंचाई के उद्देश्यों में टकराव उत्पन्न होता है तो इनमें बाढ़ नियंत्रण को कितना महत्व दिया जाता है ।
इन सब पहलुआें पर समुचित ध्यान देते हुए सरकार को इस बारे में निष्पक्ष निर्णय लेना होगा कि बड़े बांधों का सक्षम उपाय माना जाए या नहीं । साथ ही यह तय करना होगा कि क्या कठिन परिस्थितियों में बांध प्रबंधन को बाढ़ नियत्रंण को प्राथमिकता देने संबंधी नए निर्देश देने जरूरी हैं ?
जहां बड़े बांधों में पानी छोड़ने के कारण भीषण बाढ़ आती है, वहां की परिस्थितियों के बारे में सरकार की ओर से जनता को लिखित व प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध करवानी चाहिए ।

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