मध्यप्रदेश मेंनादियों का पानी बना जहर
मध्यप्रदेश की नदियों में कई स्थानों पर बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) की मात्रा मानक स्तर से कहीं अधिक मिली हैं । नदियों के अधिकांश हिस्सों का पानी न तो पीने लायक है ना ही नहाने योग्य । नदियों के कई हिस्सों का पानी तो जहर बन गया है ।केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने हाल ही में जो मॉनीटरिग रिपोर्ट जारी की है उसके अनुसार लगभग सभी प्रमुख नदियों में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ बीओडी की मात्रा ६ मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक मिली है । जबकि पीने व उपयोग में लाये जाने वाले पानी में बीओडी का मानक स्तर ३ मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे कम होना चाहिए ।
सीपीसीबी ने नर्मदा, खान, बेतवा, मंदाकिनी, क्षिप्रा, चंबल, टोन्स, कलियासोत नदी के विभिन्न स्थानों के जल की मॉनीटरिंग की है । मॉनीटर की कुछ जगहों पर बीओडी का स्तर २०-३० मिलीग्राम प्रति लीटर तक पाया गया है । सबसे ज्यादा खराब स्थिति इंदौर में खान, नागदा में चंबल तथा उज्जैन में क्षिप्रा नदी की है । नदियों के जो सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र माने गए हैं, उनमें इंदौर से बहने वाली खान नदी के शक्कर खेड़ी, सांवेर कबीट खेड़ी में बीओडी की मात्रा ५० मिलीग्राम प्रति लीटर तक मिली है । इसका मुख्य कारण इन्दौर से निकलने वाला सीवेज है । वहीं नागदा में चंबल नदी में बीओडी की मात्रा ३४ मिलीग्राम प्रति लीटर तक मिली है । इसका मुख्य कारण औद्योगिक व घरेलू दूषित जल है । हालाँकि मानक स्तर के लिहाज से देखे तो होशंगाबाद में नर्मदा नदी के सेठानीघाट में बीओडी की मात्रा ३.१ मिलीग्राम प्रतिलीटर है जबकि होशंगाबाद के ही कुछ क्षेत्रों में बीओडी की मात्रा ११.४ मिलीग्राम प्रति लीटर है ।
सीपीसीबी ने पानी की शुद्धता को मापने के लिए प्राथमिकता के अनुसार मापदण्ड तैयार किए है । इसके लिए पाँच प्राथमिकता तय की गई है । पहली प्राथमिकता के लिए तय मापदंड में ऐसे स्थानों को रखा गया है जिसमें बीओडी की मात्रा ३० मिलीग्राम प्रति लीटर तक है । दूसरी प्राथमिकता के लिए तय मापदण्ड में उन स्थानों को रखा गया गया है जहाँ बीओडी की मात्रा २०-३० मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच पाई गई है । तीसरी प्राथमिकता में बोओडी की मात्रा १०-२० मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच, चौथी प्राथमिकता में बीओडी की मात्रा ६-१० मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच तथा पाँचवी प्राथमिकता में बीओडी की मात्रा ३-६ मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच होना रखा गया है ।
जबकि तय मापदण्ड के अनुसार परम्परागत ट्रीटमेंट के बिना व कीटाणुआें को दूर कर पीने के जलस्त्रोत में बीओडी की मात्रा २ मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे कम कम होनी चाहिए । इसके अलावा परम्परागत ट्रीटमेंट के साथ व कीटाणुआें को दूर कर पीने के जलस्त्रोत में बीओडी की मात्रा ३ मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे कम होनी चाहिए । वहीं आउटडोर स्नान के लिए उपयोग में लाए जाने वाले पानी में बीओडी का स्तर भी ३ मिलीग्राम प्रति लीटर या कम होना चाहिए । यही नही मछलीपालन व वन्य जीवन के पनपने के लिए पानी में पीएच की मात्रा ६.५ से ८.५ तथा डिजाल्वड ऑक्सीजन की मात्रा ४ मिलीग्राम प्रति लीटर या अधिक तथा अमोनिया की मात्रा १.२ मिलीग्राम प्रति लीटर या कम निर्धारित है । विशेषज्ञों के अनुसार बीओडी पानी में कार्बनिक यौगिकों के माइक्रोबियल चयापचय के लिए जरूरी ऑक्सीजन की मात्रा है । पानी को शुद्ध रखने वाले जीवाणुआें के लिए बीओडी की मात्रा पानी में निर्धारित मानक से कम या ज्यादा नहीं होनी चाहिए ।
युवक ने बनाई हवा से बिजली
हवा से बिजली पैदा करके एक ग्रामीण युवक ने अपनी प्रतिभा का परिचय तो दे दिया है लेकिन सरकार से आज भी मदद का इंतजार है । ताकि वह अनोखे सपने को अंजाम दे सके ।मेहनतकश गरीब परिवार ने कभी उसके प्रयोगों को पागलपन से ज्यादा नहीं समझा । लेकिन हवा से बिजली पैदा कर सुनील ने ऐसा करिश्मा किया कि एक नई दुनिया की उम्मीदें रोशन हो गई । अब ये गरीब परिवार पैसों से न सही, लेकिन हौसले से हमेशा सुनील का साथ देगा । सुनील ने हवा से बिजली उत्पन्न करने वाले प्रोजेक्टर से पंखा, रेडियो व ट्यूब जलाकर लोगों को हैरत में डाल दिया है ।
उ.प्र. में मुजफ्फरनगर के खेड़ा अफगान गांव के मोकम सिंह के पांच बेटों में से एक सुनील केवल सातवी तक ही पढ़ पाया, क्योंकि आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । सुनील ने २००३ से ही बिजली पैदा करने वाला यंत्र बनाने का सपना अपने मन में संजो रखा था । चार साल के अथक प्रयास के बाद उसकी मेहनत रंग लाई और २००७ में उसने अपने सपने को साकार कर दिखाया । उसने हवा से बिजली उत्पन्न करने वाले ऐसे यंत्र का आविष्कार कर दिया । सुनील ने मात्र ५० रूपये की लागत से घर पर ही ऐसा यंत्र तैयार किया, जिससे चार वोल्ट डीसी का करंट उत्पन्न होता है । उसके इस कार्य की सराहना करते हुए बसपा के डॉ. मेघराज सिंह जरावरे ने २००८ में उसे सम्मानित किया । जब इस कारनामे की खबर बिजली निगम को लगी तो उन्होनें भी सुनील के आविष्कार को देखा ।
सुनील का कहना है कि उसके काम की सराहना तो सभी ने की, लेकिन सरकार या किसी ने कोई आर्थिक सहायता नहीं की । उसने कहा कि यदि सरकार उसे साधन उपलब्ध कराए तो वह हवा से बिजली उत्पन्न करने वाली एक बड़ी परियोजना तैयार कर सकता है । वो ऐसे आविष्कार कर सकता है जो दुनिया बदल दें ।
दवाआें में लगती है भारतीयों की ज्यादा तनख्वाह
भारत के लोग दवाआें में काफी खर्चा कर रहे हैं और इससे वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) काफी चिंतित है । डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हाई मेडिकल बिलों के कारण ३.२ प्रतिशत भारतीय गरीबी रेखा के नीचे जा सकते है । करीब ७० प्रतिशत भारतीय अपनी पूरी इन्कम हेल्थकेयर और दवाआें को खरीदने में खर्च कर देते है । वहीं दूसरे एशियाई देशों जैसे श्रीलंका में ये प्रतिशत ३० से ४० प्रतिशत है ।योजना आयोग ने भी यह माना है कि हेल्थकेयर में भारी खर्चा भारत की तेजी से बढ़ती समस्या है । बताया गया है कि हर साल ३ करोड़ ९० लाख लोग खराब सेहत की वजह से गरीबी की ओर बढ़ रहे है । साल २००४ में करीब ३० प्रतिशत ग्रामीण इलाके के लोग आर्थिक मजबूरी की वजह से कोई ट्रीटमेंट नहीं ले पाए । शहरी इलाकों में यह प्रतिशत थोड़ा कम रहा । यहां २० प्रतिशत बीमारी से पीड़ित लोग आर्थिक तंगी के कारण अपना इलाज नहीं करा पाए ।
भारत के ग्रामीण और शहरी इलाकों के अस्पतालोंमेंकरीब ४७ और ३१ प्रतिशत भर्ती लोग ऋण और संपत्ति को बेचकर अपना इलाज करा रहे हैं ।
वृक्ष गंगा अभियान में एक करोड़ पौधे लगेंगे
गायत्री परिवार द्वारा परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की जन्म शताब्दी के दौरान १ करोड़ पौधे लगाने का वृक्ष गंगा अभियान प्रारंभ किया गया है ।
गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पंड्या ने बताया कि इस अभियान के लिए हरियाणा, राजस्थान, उप्र, मप्र, गुजरात, बिहार और झारखंड जैसे उन राज्यों को चुना गया है, जहाँ वृृक्षावरण १५ फीसदी से भी कम है । उन्होनें कहा कि योजना आयोग के अनुसार भी स्वस्थ पर्यावरण के लिए प्रत्येक राज्य के कुल क्षेत्रफल में कम से कम ३३ प्रतिशत इलाके में वृक्षारोपण होना चाहिए । मगर योजना आयोग के आवश्यक मानदंडों को पूरा करने में सारे सरकारी प्रयास नाकाफी हो गए है । यही वजह है कि गायत्री परिवार ने इस महाअभियान को प्रारंभ किया है ।
पेड़ सांसों में छोड़ी गई दूषित कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर वातावरण को भी शुद्ध करते है । यही कारण है कि लोगों को शुद्ध वायु प्रदान करने के लिए गायत्री परिवार ने वृक्ष गंगा अभियान प्रांरभ किया है । अभियान के तहत उन पेड़ों की प्रजातियों को प्रमुखता से चुना गया है जिनकी आयु अधिक होती है ।
वृहद पैमाने पर लगाए गए पौंधों की देखभाल करने के लिए तरूमित्र और तरूपुत्र भी बनाए गए है, जो पौधों के बड़ा होने तक उनकी देखरेख करेंगे । केवल इतना ही नहीं, शांतिकुंज आश्रम में विभिन्न संस्कार संपन्न कराने पर तरू प्रसाद के रूप में पौधे दिए जा रहे हैं । अब तक ५ लाख पौधे बाँटे जा चुके है ।
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