बुधवार, 9 नवंबर 2011

जन जीवन

जीविका और जीवन उजाड़ता पर्यटन
सुश्री आरती श्रीधर

पूरा सरकारी तंत्र पर्यटन को रोजगार का बड़ा स्त्रोत बता रहा है । साथ ही इससे मिलने वाली विदेशी मुद्रा पर इतराता भी है । पर्यटन विकास की प्रक्रिया में हम भूल जाते हैं कि इससे पारम्परिक संसाधनों पर आश्रित समुदाय के रोजगार को चोट पहुंचती है। आवश्यकता है इस विरोधाभासी प्रवृत्ति को विस्तार से समझ कर कोई समझबूझ भरा हल निकाला जाए ।
इससे आगे जाना असंभव है । हाल ही में बनी पक्की सड़क एकाएक गायब हो गई । ऐसा लगता है कि बंगाल की खाड़ी की लहरें इस सड़कों को लील गई हैं । परन्तु अजीब बात है कि इसी के समानांतर भूमि पर समुद्र की भूख से अविचलित भवन निर्माण कार्य बदस्तूर जारी है । सामान्यतया समुद्र के इतने समीप निर्भीक होकर रहने का साहस केवल मछुआरे ही कर सकते हैं । परन्तु सोनार बांग्ला होटल या विशाल व मनोहारी श्री धनंजय कथा बाबा आश्रम या गांधी लेबर फाउंडेशन की रहवासी कॉलोनी, मछुआरों की रिहायशों के सटीक नाम नहीं जान पड़ते हैं और ना ही पुरी शहर के भीड़ भरे सी बीच रोड़ (समुद्र किनारे की सड़क) पर एक दूसरे से जुड़े हुए कपड़े के असंख्य एम्पोरियम, लाज, होटल या रेस्टारेंट कहीं से भी मछुआरों की बस्ती का आभास नहीं देते । वास्तविकता तो यही है कि यह सड़क किसी भी कोण से ओडिशा के समुद्रतटीय क्षेत्र का आभास नहीं देती ।
नेशनल फिशर वर्कस फोरम (एनएफएफ) ने २००८ में पारम्परिक मछुआरा समुदाय के लिए शर्तिया भूमि अधिकार की मांग करते हुए नारा दिया था समुद्र तट बचाओ-मछुआरों को बचाआें । प्रतिवर्ष जुलाई के महीने में लाखों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ और उनके संबंधियोंसे संबंधित रथयात्रा में शामिल होने के लिए शहर में इकट्ठा होते हैं । मंदिर भी पुरी के एक मछुआरा शहर होने का सहजता से छुपा लेता है और श्रद्धालु पर्यटक भी सी बीच रोड पर हो रहे तमाशे की वजह से इस स्थान पर कब्जा कर लेते हैं । इससे बची खुची जमीन भी समुद्र तट का हिस्सा हो जाती है और तट पर रहने वालों के लिए स्थान भी कम होता जाता है ।
मछुआरों की ये बस्तियां पुरी नगर पालिका की सीमा में स्थित हैं । इसमें मछुआरों की एक जाति नालिया निवास करती है, जो कि यहां विभिन्न चरणों में आकर बसी है । १५० वर्ष पूर्व बसी बालिनोलियासाही सबसे पुरानी बस्ती है जो कि बसे मध्य में स्थित है। इसके ५ कि.मी. उत्तर में पेंटाकोटा नामक बसाहट है जो कि मात्र ६० वर्ष पुरानी है । इसके दक्षिण में गौडाबादसाही स्थित है । पेटाकोटा सबसे बड़ी बस्ती है । जिसकी आबादी करीब बीस हजार है । बालिनोलियासाही और गौडाबादसाही में क्रमश: ५ हजार व ३ हजार मछुआरे रहते हैं ।
पुरी जिले की ओडिशा पारम्परिक मछुआरा यूनियन के समन्वयक अंका गणेश राव हमें इस बस्ती में ले गए जिसे सघन होटलों और दुकानों में घेर रखा है । इस मछुआरा बस्ती में न तो किसी के पास पट्टा है और बालिनोलियासाही जैसी बस्ती के लोगों के पास सामुदायिक अधिकार भी नहीं है । राज्य द्वारा मछुआरा समुदायों को भू स्वामित्व या भूअधिकार देने का मसला अभी भी उलझा हुआ है । सर्वव्याप्त् विभ्रम और अनेक विकल्पों के चलते ऐसा कोई कानूनी प्रयत्न हीं नहीं हो रहा है जिससे मछुआरा समुदाय की स्थिति और उनके अधिकार सुस्पष्ट हो सके ।
समुद्र तट मछुआरा समाज के सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन से जुड़ा हुआ है तभी तो वे समुद्रतटीय विषम जलवायु, चक्रवात और तूफान से निपटते रहते हैं । सन् १९९९ में आए भयावह तूफान के बावजूद सभी बस्तियां तट पर पर उसी स्थान पर बसी हुई हैं । हाल ही में विभिन्न कारणों के चलते समुदाय दूसरी जगह बसने को तत्पर हुआ है । भूमि की उपलब्धता और तट पर स्थान की कमी बसाहटों की वृद्धि में बड़ी रूकावट है । समुद्र के क्षरण के कारण भी कई परिवार सरकार द्वारा सुझाई गई भूमि पर बसने के प्रस्ताव से सहमत हो रहे हैं । परन्तु पारम्परिक मछुआरा, समुदायों को अपनी नावों को खड़ा करने, मछलियों की नीलामी, मछली सुखाने, जाल बनाने व सुधारने के लिए समुद्र पर स्थान की आवश्यकता है । इसी के साथ वर्ष में औसतन पर्यटकों के दो बार भ्रमण के कारण होने वाली अत्यन्त भीड़ की वजह से वहां पर विभिन्न गतिविधियां चलती रहती है । इस सबके बीच पुरी के होटल मालिक जो कि मछुआरों की गतिविधयों से अनभिज्ञ भी नहीं हैं, लगातार असहनशील बने हुए हैं ।
मछुआरे मछलियों को पकड़ने के बाद उन्हें तट पर फैलाते है । होटल वाले जिला कलेक्टर से बदबू की शिकायत करते हैं । पुलिस मछुआरों को धमकी देती है । मछुआरे क्षेत्र खाली कर देते हैं । इसके बाद वे कुछ देर, इंतजार करते हैं, देखते हैं और तट पर वापस आ जाते हैं । बालिनोलियासाही मछुआरे पूछते है कि यदि हम मछलियां तट पर नहीं रखेंगे और सुखाएंगे तो ये कार्य और कहां करेंगे । पर्यटन से संबंधित निर्माण की अंतिम परिणिति पेंटाकोटा मछुआरा बस्ती है । हालांकि यह सघन और बड़ी बस्ती है और ओडिशा के समुद्र तट पर बसी अन्य नालिया बस्तियों की तरह दूर तक फैली हुई है ।
पेंटाकोटा भारत के ३२०२ मछुआरा गांवों में से एक हे । नवीनतम जनगणना के अनुसार इन गांवों में ३५.२० लाख मछुआरे रहते हैं । आजादी के बाद से आज तक किसी भी राज्य सरकार ने यह आवश्यक नहीं समझा कि मछुआरा समुदाय को समुद्रतटीय भूमि पर अधिकार दे दिए जाए । इतना ही नहीं उन्हें समुद्र में पहुंच संबंधी अधिकार भी नहीं दिए गए । इसके विपरीत प्रत्येक सरकार ने समुद्रतटीय औद्योगिकरण और गैर समुद्रीय गतिविधियों को वरदहस्त प्रदान कर रखा है ।
नोबल पुरस्कार विजेता इलिनोट ओस्ट्रोम द्वारा सामान्य लोगों पर किया गया अध्ययन बताता है कि सामुदायिक संपत्ति संसाधन के सिद्धांत को सामान्यतया बहुत ही हल्के फुल्के ढंग से समझा गया है । लेकिन इस संबंध में की गई कोई भी गलती का प्रभाव पारम्परिक रूप से इन संसाधनों पर निर्भर समुदाय के जीवित रहने और उनकी पहचान पर विपरीत ही पड़ेगा ।

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