अब पानी में घुलेगा प्लास्टिक
प्लास्टिक के आयटम आप हमेशा बाजार से खरीदते रहते है । क्या कभी आपने सुना है कि प्लास्टिक भी पानी में घुल जाता है । वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक को पानी में घुलने वाला बनाया है । इटली की एक कंपनी ऐसी प्लास्टिक बना रही है जो पानी में घुल सकती है । चुकंदर से निकलने वाले कचरे से प्लास्टिक का निर्माण हो रहा है । चुकंदर के उत्पादन से निकलने वाले बाई प्रॉडक्ट वातावरण के लिए वरदान साबित हो सकते है । इसके अलावा दुनिया की निर्भरता तेल से बनने वाली प्लास्टिक पर भी कम हो सकती है । एक छोटी इतावली कंपनी बायो ऑन जैव प्लास्टिक के क्षेत्र में नवीनतम प्रयास का प्रतिनिधित्व कर रही है ।
चुकंदर से बने प्लास्टिक १० दिन में पानी में घुल जाते है । बायो ऑन के वैज्ञानिकों ने पांच साल की मेहनत के बाद शीरे को प्लास्टिक में तब्दील किया है । कम्पनी चुकंदर के शीरे को ऐसे जीवाणु के साथ मिलाती है, जो किण्वन के दौरान चीनी पर पलते है । इस प्रक्रिया के दौरान लैक्टिक एसिड, फिल्ट्रेट और पॉलीमर बनता है, जिसका इस्तेमाल प्राकृतिक तरीके से सड़ने वाली प्लास्टिक बनाने में हो सकता है ।
इटली के शहर मिनेर्बिया में सबसे बड़ी चीनी उत्पादक कंपनी को प्रो बी चीनी बना रही है । लेकिन बायो ऑन की दिलचस्पी चीनी में नहीं, चुकंदर से चीनी बन चुकने के बाद बची हुई चीजों में है, जिसे कचरा मानकर फेंक दिया जाता है । चुंकदर के अशुद्धिकृत शीरे से बायो ऑन प्लास्टिक बनती है । चीनी के कारखाने से शीरा कचरें के तौर पर निकलता है ।
बॉयो ऑन के मुख्य जीव विज्ञानी साइमन बिगोटी ने पत्रकारों को बताया कि प्लास्टिक के लिए दुनिया की बढ़ती भूख से हम कई तरह की चीजें बना सकते हैं, क्योंकि कई तरह की प्लास्टिक सूत्रीकरण बना पाना मुमकिन है । हम पॉलीइथाइलिन, पॉलीस्टाइरीन, पॉलीप्रॉपाईलीन को बदल सकते है । कंपनी ने बॉयो पॉलीमर्स का विकास किया है । इसका इस्तेमाल कठोर और लचीली प्लास्टिक के लिए किया जा सकता है । बिगोटी का मानना है कि बायो प्लास्टिक उनके दफ्तर में प्लास्टिक से बनी ८० चीजों की जगह ले सकती है । बायो प्लास्टिक कई चीजों से बनती है । बिगोटी कहते हैं, हम ऐसी प्लास्टिक बना रहे है, जो जीवनकाल के खत्म होने के १० दिन के भीतर पानी में घुल जाएगी ।
एक शोध के मुताबिक बॉयो प्लास्टिक का बाजार २०११ और २०१५ के बीच दोगुना हो जाएगा । २०१० में सात लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ, जो इस साल १० लाख टन को पार कर जाएगा ।
वृद्धि के बाजवूद बायो प्लास्टिक का बाजार तेल आधारित प्लास्टिक की तुलना में छोटा है । प्लास्टिक उद्योग एसोसिएशन के मुताबिक २०१० में २७ करोड़ टन प्लास्टिक की खपत हुई । यूरोपीय बायो प्लास्टिक के अध्यक्ष कैब को विश्वास है कि यूरोप के प्लास्टिक बाजार के कुल हिस्से का ५ से १० फीसदी जगह बायो प्लास्टिक ले सकती है । बायो प्लास्टिक बनाने के लिए सिर्फ बायो ऑन ही शोध नहीं कर रही है ।
रसायन कंपनी जैसे बीएएसएफ ब्रास्केम एण्ड डॉ भी बायो प्लास्टिक उत्पाद बना रहे हैं । कंपनियां बायो प्लास्टिक उत्पादन क्षमता भी बढ़ा रही है । आम तौर पर प्लास्टिक को प्रदूषण बढ़ाने के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाता है । बायो ऑन के सह-संस्थापक मार्कोअस्टोरी का कहना है कि उनकी कंपनी अनोखी है, क्योंकि वह कचरे का इस्तेमाल कर प्लास्टिक बनाती है ।
चिंपैंजी भी समझ सकते है भाषा
अगर आपको लगता है कि केवल इंसानों के पास ही भाषा की समझ होती है तो आप गलत हो सकते है । एक नए अध्ययन में पाया गया है कि संभवत: चिपैजियों के पास भी भाषा को समझने की क्षमता होती है । पैंजी नाम की २५ साल की एक मादा चिंपैंजी पर किए गए इस अध्ययन से पता चलता है कि सुशिक्षित किए गए जानवर १३० से ज्यादा अंगेे्रेजी शब्दों को समझ सकते है । इसके अलावा वह शब्दों को साइन वेव के रूप में भी पहचान सकते है । डिस्करवरी न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक इस अध्ययन से पता चला कि चेपैंजी ने न सिर्फ किसी खास व्यक्ति की आवाज और भावनाआें पर ही प्रतिक्रिया दी बल्कि उसने मनुष्यों की ही भांति बातचीत को ग्रहण भी किया । यह अध्ययन जार्जिया स्टेट विश्वविघालय के भाषा शोध केन्द्र द्वारा किया गया ।
इस अध्ययन के लिए हेमबॉर और उनके सहयोगियों ने साइन वेव के रूप में संचारित किए गए शब्दों को समझने की पैंजी क्षमता को परखा । प्रयोग के लिए जिन शब्दों का उपयोग किया गया उनमें टिकल, एमएंडएम, लेमोनेड और स्पार्कलर कुछ प्रमुख शब्द थे । इसके अलावा जब शब्दों को उनके सहज बातचीत के ध्वनि तत्वों से अलग कर प्रस्तुत किया गया तब भी पैंजी ने उनके मतलब को पकड़ लिया और उनके समतुल्य चित्रों से उनका मिलान कर दिया ।
अकूस्टिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका की वार्षिक बैठक के दौरान प्रस्तुत किए गए इस अध्ययन से स्पीच इज स्पेशल नामक सिद्धांत का खंडन होता है ।
पक्षियों के निर्बाध उड़ने का रहस्य खुला
अमेरिका में भारतीय मूल के एक अनुसंधानकर्ता की अगुवाई मेंवैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगा लिया है कि पक्षी संकरे स्थानों से, बिना किसी अवरोध से टकराए निर्बाध उड़ान कैसे भर लेते है । विजन सेंटर के प्रो. मान्दमय श्रीनिवासन और क्वीन्सलैण्ड विश्वविद्यालय में उनके सहयोगियों ने पता लगाया है कि पक्षी घने जंगलों से और संकरे स्थानों से बार बार और सुरक्षित उड़ान इसलिए भर लेते हैं, क्योंकि उनकी आंखे दोनो ओर की पृष्ठभूमि की तस्वीरों की गति भांप कर उसके अनुसार अपनी उड़ान को समन्वित कर लेती हैं । अनुसंधानकर्ता का कहना है कि यह खोज पक्षियों के लिए सुरक्षित शहरी ढांचा तैयार करने कई तरह के सुधार करने में उपयोगी साबित हो सकती है ।
प्रो. श्रीनिवासन ने कहा कि जैसे पशु आगे की ओर बढ़ते है तो उनके करीब की वस्तुएं भी तेज गति से उनकी ओर आती प्रतीत होती है, जबकि दूर की वस्तुआें की गति धीमी प्रतीत होती है । यही बात पक्षियों के लिए भी लागू होती है । हमने पाया कि पक्षी पहले यह सुनिश्चित करते है कि उनकी दोनो आंखों में पृष्ठभूमि की तस्वीरों की गति उनकी उड़ान जितनी ही हो और इसके बाद वह सुरक्षित संतुलन बनाते है ।
उन्होने कहा कि इसका मतलब यह है कि अगर पक्षी किसी एक ओर कोई अवरोध के करीब पहुंचता है तो उस ओर की आंख तेजी से उस अवरोध को गुजरते हुए देख लेगी । दूसरी आंख से उस अवरोध की गति धीमी नजर आएगी । इस असंतुलन के कारण पक्षी फौरन उस अवरोध से दूर हो जाएगा ।
अमेरिका में भारतीय मूल के एक अनुसंधानकर्ता की अगुवाई मेंवैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगा लिया है कि पक्षी संकरे स्थानों से, बिना किसी अवरोध से टकराए निर्बाध उड़ान कैसे भर लेते है ।
विजन सेंटर के प्रो. मान्दमय श्रीनिवासन और क्वीन्सलैण्ड विश्वविद्यालय में उनके सहयोगियों ने पता लगाया है कि पक्षी घने जंगलों से और संकरे स्थानों से बार बार और सुरक्षित उड़ान इसलिए भर लेते हैं, क्योंकि उनकी आंखे दोनो ओर की पृष्ठभूमि की तस्वीरों की गति भांप कर उसके अनुसार अपनी उड़ान को समन्वित कर लेती हैं । अनुसंधानकर्ता का कहना है कि यह खोज पक्षियों के लिए सुरक्षित शहरी ढांचा तैयार करने कई तरह के सुधार करने में उपयोगी साबित हो सकती है ।
प्रो. श्रीनिवासन ने कहा कि जैसे पशु आगे की ओर बढ़ते है तो उनके करीब की वस्तुएं भी तेज गति से उनकी ओर आती प्रतीत होती है, जबकि दूर की वस्तुआें की गति धीमी प्रतीत होती है । यही बात पक्षियों के लिए भी लागू होती है । हमने पाया कि पक्षी पहले यह सुनिश्चित करते है कि उनकी दोनो आंखों में पृष्ठभूमि की तस्वीरों की गति उनकी उड़ान जितनी ही हो और इसके बाद वह सुरक्षित संतुलन बनाते है ।
उन्होने कहा कि इसका मतलब यह है कि अगर पक्षी किसी एक ओर कोई अवरोध के करीब पहुंचता है तो उस ओर की आंख तेजी से उस अवरोध को गुजरते हुए देख लेगी । दूसरी आंख से उस अवरोध की गति धीमी नजर आएगी । इस असंतुलन के कारण पक्षी फौरन उस अवरोध से दूर हो जाएगा ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें