हमारा भूमण्डल
पूंजीवाद का यथार्थ
कश्मीर उप्पल
पिछले बीस वर्षों के आर्थिक उदारीकरण ने भारत में आर्थिक खाई को और चौड़ा किया है । प्रति व्यक्ति आय में असमानता लगातार बढ़ रही है और अत्यधिक शहरीकरण सामान्य जीवनशैली को तहस नहस कर रहा है । पूंजी का अत्यधिक दबाव इसका एक प्रमुख कारण है। अतएव अब यह आवश्यक है कि पूंजीवाद के साथ ही साथ आर्थिक विकास के इतिहास को भी सिलसिलेवार ढंग से समझा जाए ।
ब्रिटेन, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन और हालैण्ड जैसे अनेक यूरोपीय देश जिस समय नये-नये उपनिवेश स्थापित कर रहे थे, ठीक उसी समय वे आपसी युद्धों मंे भी व्यस्त थे । इसी दौरान मंे यूरोप में दो तरह की क्रान्तियां हो रही थीं । एक वैज्ञानिकऔर दूसरी वैचारिक । हाब्सन के अनुसार पूंजीवाद के विकास में सबसे प्रमुख भौतिक घटक मशीनें थीं । जेम्स वाट द्वारा भाप से मशीनें चलाने के अविष्कार के फलस्वरूप ब्रिटेन संसार का सबसे अधिक शक्तिशाली राष्ट्र बन गया था । जेम्स वाट और मैथ्यू वाल्टन ने सन् १७८५ और १८०० के बीच भाप के २८० एंजिन बनाए थे । इनका उपयोग कई उद्योगों और भाप से चलने वाले जहाजों में किया गया था । भाप से चलने वाले इंजिनों की ताकत से ही ब्रिटेन ने फ्रांस, स्पेन और हालैण्ड आदि को युद्ध और व्यापार दोनों में हराया था । औद्योगिक क्रान्ति के दौरान ही ब्रिटेन की अधोसंरचना स्थापित हुई थी । इसके अन्तर्गत महत्वपूर्ण नगरों, बन्दरगाहों, आन्तरिक जल, रेल, सड़क आदि के साधनों का विकास हुआ था ।
पूंजीवाद का यथार्थ
कश्मीर उप्पल
पिछले बीस वर्षों के आर्थिक उदारीकरण ने भारत में आर्थिक खाई को और चौड़ा किया है । प्रति व्यक्ति आय में असमानता लगातार बढ़ रही है और अत्यधिक शहरीकरण सामान्य जीवनशैली को तहस नहस कर रहा है । पूंजी का अत्यधिक दबाव इसका एक प्रमुख कारण है। अतएव अब यह आवश्यक है कि पूंजीवाद के साथ ही साथ आर्थिक विकास के इतिहास को भी सिलसिलेवार ढंग से समझा जाए ।
ब्रिटेन, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन और हालैण्ड जैसे अनेक यूरोपीय देश जिस समय नये-नये उपनिवेश स्थापित कर रहे थे, ठीक उसी समय वे आपसी युद्धों मंे भी व्यस्त थे । इसी दौरान मंे यूरोप में दो तरह की क्रान्तियां हो रही थीं । एक वैज्ञानिकऔर दूसरी वैचारिक । हाब्सन के अनुसार पूंजीवाद के विकास में सबसे प्रमुख भौतिक घटक मशीनें थीं । जेम्स वाट द्वारा भाप से मशीनें चलाने के अविष्कार के फलस्वरूप ब्रिटेन संसार का सबसे अधिक शक्तिशाली राष्ट्र बन गया था । जेम्स वाट और मैथ्यू वाल्टन ने सन् १७८५ और १८०० के बीच भाप के २८० एंजिन बनाए थे । इनका उपयोग कई उद्योगों और भाप से चलने वाले जहाजों में किया गया था । भाप से चलने वाले इंजिनों की ताकत से ही ब्रिटेन ने फ्रांस, स्पेन और हालैण्ड आदि को युद्ध और व्यापार दोनों में हराया था । औद्योगिक क्रान्ति के दौरान ही ब्रिटेन की अधोसंरचना स्थापित हुई थी । इसके अन्तर्गत महत्वपूर्ण नगरों, बन्दरगाहों, आन्तरिक जल, रेल, सड़क आदि के साधनों का विकास हुआ था ।
ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति में 'के` का फ्लाइंग शटल, हारग्रीब्ज की स्पिनिंग जैनी, रिचर्ड आर्कराइट का वाटरफ्रेम, क्रॉम्पटन का म्यूल, एडमंड कार्टराइट का पावरलूम आदि प्रमुख थे । इन मशीनों के चलन से ही कारखाना-पद्धति उत्पादन प्रणाली की नींव पड़ी थी । औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप औद्योगिक क्षेत्रों का विकास, बैंक और बीमा संस्थानों का जन्म, संयुक्त पूंजी कंपनियों क ा उदय और कृषि का यंत्रीकरण जैसे बड़े परिवर्तन हुए । औद्योगिक क्रान्ति से एक और बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि इसके फलस्वरूप राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय व्यापार का कार्य व्यापारियों के हाथों से निकलकर उद्योगपतियों के हाथों मंे आ गया ।
इंग्लैण्ड मंे औद्योगिक क्र्रान्ति सन् १७६० मंे शुरु हुई थी जबकि यूरोप के अन्य देशों में उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इसका प्रभाव पड़ना शुरु हुआ था । १९वीं शताब्दी के अन्त में अमेरिका, जर्मनी और जापान ने ब्रिटेन के औद्योगिक नेतृत्व को चुनौती दी । सन् १७७६ में संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्वयं को ब्रिटेन की सत्ता से मुक्त कर लिया था । अमेरिका में स्वतंत्रता के बाद नई पूंजी मुख्यत: राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय यातायात और व्यापार मंे लगाई गई । अमेरिका के समुद्री जहाजों ने ही सर्वप्रथम ब्रिटेन की सामुद्रिक शक्ति को चुनौती दी थी ।
अमेरिका मंे सन् १८६९ में अमरीकी महाद्वीप के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने वाली पहली रेल लाइन बनकर तैयार हो गई थी । इसी के साथ अमेरिका मंे भी आर्थिक विकास हेतु एक सुदृढ़ आर्थिक ढांचा बनकर तैयार हो गया था । वर्तमान में अमेरिका ही पूंजीवादी देशों का नेतृत्व कर रहा है । १९वीं शताब्दी के अन्त तक अमेरिका ने औद्योगिक क्षेत्र में प्रत्येक यूरोपीय देश को पीछे छोड़ दिया था । यह कहा जाता है कि पूंजीवाद की जड़ें ब्रिटेन की भूमि मंे हैं परन्तु वह अपने वास्तविक स्वरूप मंे अमेरिका में जीवित है । अमेरिका को पूंजीवाद का 'नर्व सेन्टर` (स्नायु तंत्र) माना जाता है ।
पूंजीवाद को प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सन् १९२९ की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने और द्वितीय विश्वयुद्ध ने प्रमुख रूप से प्रभावित किया । जॉन वैजे के अनुसार पूंजीवाद का भविष्य निरन्तर परिवर्तन होती तकनालॉजी मंे निहित है । पूंजीवाद की विशाल उत्पादन क्षमता की कार्ल मार्क्स ने भी एक प्रकार से प्रशंसा की है । कार्ल मार्क्स के अनुसार 'मुश्किल से अपने एक शताब्दी के शासनकाल में पूंजीपति वर्ग ने जितनी शक्तिशाली और जितनी प्रचंड उत्पादक शक्तियां उत्पन्न की हैं, उतनी पिछली तमाम पीढ़ियों मंे मिलाकर भी सामने नहीं आई हैं ।
आज पूंजीवादी व्यवस्था एक ओर उभार पर भी है और दूसरी ओर वह संकट मंे भी है । सं.रा. अमेरिका में ओबामा के हेल्थकेयर कानून २०१०, बैंक, बीमा और रीयल स्टेट के संकट नए रूप में इसे प्रभावित कर रहे हैं । गौरतलब है कि इन संकटों को अमरीकी शासकीय सहायता के द्वारा हल करने की कोशिश समाजवादी व्यवस्था के मॉडल का अनुकरण करने की प्रक्रिया लगती है। वैसे पूंजीवादी व्यवस्था मंे सरकारी नियंत्रण कोई नई बात नहीं है । पूंजीवादी व्यवस्था मंे सुधार लाने के लिए पूंजीवादी देशों में भी कई तरह के नियंत्रणों का उपयोग किया जाता है । परंतु इन नियंत्रणों को केन्द्रीय नियोजन नहीं कहा जा सकता । उदाहरणस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका में १९३४ तक संरक्षणात्मक तटकर लगाया गया । राष्ट्रपति निक्सन ने सन् १९९१ मंे स्वर्णकोषों मंे निरंतर कमी को रोकने तथा मुद्रा प्रसार मंे कमी करने के लिए मजदूरी और कीमतों पर प्रभावी नियंत्रण लगा दिये थे। लेकिन आज अमेरिका विकासशील देशोंे के इन्हीं कदमों का विरोध करता है ।
अमरीका और यूरोप के पूंजीवादी देशों मंे औद्योगीकरण केवल इन देशों के आर्थिक विकास में परिवर्तन का साधन नहीं रह गया है। आज के पूंजीवाद ने एक देश के भीतर और बाहर की दुनिया को आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक रूप से बदलना शुरु कर दिया है । पूंजीवाद के प्रथम चरण मंे बड़े पैमाने के उत्पादन ने बाहरी बाजारों की खोज को आवश्यक बनाया था । पूंजीवाद के दूसरे चरण में बड़े पैमाने के उत्पादन के साथ-साथ तकनीकी एकाधिकार ने बाहरी बाजारों पर नियंत्रण को स्थापित कर दिया है । इसी 'खोज` और 'नियंत्रण` मंे विश्व संकट के बीज छिपे हैं ।
विश्व की वर्तमान स्थिति पर महान साहित्यकार आक्तावियो पाज का यह कथन सर्वोत्तम टिप्पणी है ''विचारधाराएं समाज के चेहरे पर पड़ा हुआ छद्म परदा है और यह परदा धीरे-धीरे उठ रहा है । विचारधाराओं का युग अब समाप्त हो रहा है ।
इंग्लैण्ड मंे औद्योगिक क्र्रान्ति सन् १७६० मंे शुरु हुई थी जबकि यूरोप के अन्य देशों में उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इसका प्रभाव पड़ना शुरु हुआ था । १९वीं शताब्दी के अन्त में अमेरिका, जर्मनी और जापान ने ब्रिटेन के औद्योगिक नेतृत्व को चुनौती दी । सन् १७७६ में संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्वयं को ब्रिटेन की सत्ता से मुक्त कर लिया था । अमेरिका में स्वतंत्रता के बाद नई पूंजी मुख्यत: राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय यातायात और व्यापार मंे लगाई गई । अमेरिका के समुद्री जहाजों ने ही सर्वप्रथम ब्रिटेन की सामुद्रिक शक्ति को चुनौती दी थी ।
अमेरिका मंे सन् १८६९ में अमरीकी महाद्वीप के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने वाली पहली रेल लाइन बनकर तैयार हो गई थी । इसी के साथ अमेरिका मंे भी आर्थिक विकास हेतु एक सुदृढ़ आर्थिक ढांचा बनकर तैयार हो गया था । वर्तमान में अमेरिका ही पूंजीवादी देशों का नेतृत्व कर रहा है । १९वीं शताब्दी के अन्त तक अमेरिका ने औद्योगिक क्षेत्र में प्रत्येक यूरोपीय देश को पीछे छोड़ दिया था । यह कहा जाता है कि पूंजीवाद की जड़ें ब्रिटेन की भूमि मंे हैं परन्तु वह अपने वास्तविक स्वरूप मंे अमेरिका में जीवित है । अमेरिका को पूंजीवाद का 'नर्व सेन्टर` (स्नायु तंत्र) माना जाता है ।
पूंजीवाद को प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सन् १९२९ की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने और द्वितीय विश्वयुद्ध ने प्रमुख रूप से प्रभावित किया । जॉन वैजे के अनुसार पूंजीवाद का भविष्य निरन्तर परिवर्तन होती तकनालॉजी मंे निहित है । पूंजीवाद की विशाल उत्पादन क्षमता की कार्ल मार्क्स ने भी एक प्रकार से प्रशंसा की है । कार्ल मार्क्स के अनुसार 'मुश्किल से अपने एक शताब्दी के शासनकाल में पूंजीपति वर्ग ने जितनी शक्तिशाली और जितनी प्रचंड उत्पादक शक्तियां उत्पन्न की हैं, उतनी पिछली तमाम पीढ़ियों मंे मिलाकर भी सामने नहीं आई हैं ।
आज पूंजीवादी व्यवस्था एक ओर उभार पर भी है और दूसरी ओर वह संकट मंे भी है । सं.रा. अमेरिका में ओबामा के हेल्थकेयर कानून २०१०, बैंक, बीमा और रीयल स्टेट के संकट नए रूप में इसे प्रभावित कर रहे हैं । गौरतलब है कि इन संकटों को अमरीकी शासकीय सहायता के द्वारा हल करने की कोशिश समाजवादी व्यवस्था के मॉडल का अनुकरण करने की प्रक्रिया लगती है। वैसे पूंजीवादी व्यवस्था मंे सरकारी नियंत्रण कोई नई बात नहीं है । पूंजीवादी व्यवस्था मंे सुधार लाने के लिए पूंजीवादी देशों में भी कई तरह के नियंत्रणों का उपयोग किया जाता है । परंतु इन नियंत्रणों को केन्द्रीय नियोजन नहीं कहा जा सकता । उदाहरणस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका में १९३४ तक संरक्षणात्मक तटकर लगाया गया । राष्ट्रपति निक्सन ने सन् १९९१ मंे स्वर्णकोषों मंे निरंतर कमी को रोकने तथा मुद्रा प्रसार मंे कमी करने के लिए मजदूरी और कीमतों पर प्रभावी नियंत्रण लगा दिये थे। लेकिन आज अमेरिका विकासशील देशोंे के इन्हीं कदमों का विरोध करता है ।
अमरीका और यूरोप के पूंजीवादी देशों मंे औद्योगीकरण केवल इन देशों के आर्थिक विकास में परिवर्तन का साधन नहीं रह गया है। आज के पूंजीवाद ने एक देश के भीतर और बाहर की दुनिया को आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक रूप से बदलना शुरु कर दिया है । पूंजीवाद के प्रथम चरण मंे बड़े पैमाने के उत्पादन ने बाहरी बाजारों की खोज को आवश्यक बनाया था । पूंजीवाद के दूसरे चरण में बड़े पैमाने के उत्पादन के साथ-साथ तकनीकी एकाधिकार ने बाहरी बाजारों पर नियंत्रण को स्थापित कर दिया है । इसी 'खोज` और 'नियंत्रण` मंे विश्व संकट के बीज छिपे हैं ।
विश्व की वर्तमान स्थिति पर महान साहित्यकार आक्तावियो पाज का यह कथन सर्वोत्तम टिप्पणी है ''विचारधाराएं समाज के चेहरे पर पड़ा हुआ छद्म परदा है और यह परदा धीरे-धीरे उठ रहा है । विचारधाराओं का युग अब समाप्त हो रहा है ।
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