विशेष लेख
अस्तित्व से जूझता राष्ट्रीय पक्षी मोर
नरेन्द्र देवांगन
केन्द्र सरकार की गलत नीतियों ने भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है । केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने मोरपंखों की खरीद व परिवहन की खुली छुट देकर मोर के शिकार का रास्ता खोल दिया है । मोरपंखों के व्यापार की छूट होने के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इंडियन पिकॉक के नाम से मशहूर भारत के मोरपंखों की इटली, फ्रांस, डेनमार्क व अमरीका में बेहद मांग के चलते मोरपंखो की तस्करी को बढ़ावा मिला है । आज तक ढीले-ढाले रवैये के चलते वन व पुलिस विभाग दस-बीस शिकारियों को भी नियमों के तहत सजा नहीं दिलवा पाए हैं और न जुर्माना वसूल सके हैं । पंखों की तस्करी के धन कमाने की लालसा का यही हाल रहा, तो मोर के दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे ।
अस्तित्व से जूझता राष्ट्रीय पक्षी मोर
नरेन्द्र देवांगन
केन्द्र सरकार की गलत नीतियों ने भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है । केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने मोरपंखों की खरीद व परिवहन की खुली छुट देकर मोर के शिकार का रास्ता खोल दिया है । मोरपंखों के व्यापार की छूट होने के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इंडियन पिकॉक के नाम से मशहूर भारत के मोरपंखों की इटली, फ्रांस, डेनमार्क व अमरीका में बेहद मांग के चलते मोरपंखो की तस्करी को बढ़ावा मिला है । आज तक ढीले-ढाले रवैये के चलते वन व पुलिस विभाग दस-बीस शिकारियों को भी नियमों के तहत सजा नहीं दिलवा पाए हैं और न जुर्माना वसूल सके हैं । पंखों की तस्करी के धन कमाने की लालसा का यही हाल रहा, तो मोर के दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे ।
१९६० में टोक्यो में पक्षियों का परीक्षण करने वाली अंतर्राष्ट्रीय परिषद की बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया था कि प्रत्येक राष्ट्र अपना राष्ट्रीय पक्षी घोषित करें । इसी प्रस्ताव के तहत १९६३ में जनवरी के अंतिम सप्तह माघ मास की पंचमी के दिन भारत सरकार ने मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया था । मोर को पक्षियों का राजा भी कहा जाता है । भारत सहित श्रीलंका और म्यांमार में भी मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया हैं । सौदर्य का प्रतीक मोर राजा-महाराजाआें के दरबार की शोभा बढ़ाने वाला रहा है । सुन्दर पंखों वाला मोर कलासाधकों की कलाकृतियों में प्रमुख स्थान रखता है ।
मोर दुनिया का सर्वाधिक सुन्दर पक्षी है । इसमें सुन्दरता, आत्मबल, धैर्य, मैत्री आदि भावनाआें का समागम मिलता है । अन्य जन्तु प्रजातियों के समान मोर में भी नर सुन्दरता में मादा से बाजी मार ले गया है । नर पक्षी की देह दुम सहित करीब दो मीटर लंबी होती है, जबकि मादा एक मीटर से ज्यादा बड़ी नहीं होती । मादा का पूरा बदन भूरा मटमैला और अनाकर्षक होता है, जबकि नर उन्नत ग्रीवा, सिर पर काली कलगी, मायल भूरे पंख और अद्भुत रंग विधान में रंगे पुच्छ-पंखों सहित बहुत ही मनोहारी दिखाई देता है ।
मोर को सर्द और गर्म दोनों ही तरह की जलवायु प्रिय है । इसीलिए यह हमारे देश में प्राय: सब जगह पाया जाता है । हिमालय के पहाड़ों में भी डेढ़ हजार मीटर की ऊंचाई तक मोर का मिल जाना सामान्य बात है । मुगल बादशाहों की तरह ही मोर के हरम मेंभी तीन से पांच तक रानियां होती हैं । वर्षा ऋतु इस पक्षी का जननकाल होता है । उस समय कामातुर नर मादा के सामने मस्त होकर नाचता है । उसके आतुर कंठ से निकली पीहू....पीहू की आवाजें भीगे मौसम को और अधिक मादक बना देती हैं । अंतत: मोरनी मोर के नृत्य पर रीझकर उसे अपनी देह समर्पित कर देती है । कुछ समय पश्चात वह जमीन पर बने घास-फू स के घोंसले में ६-७ अंडे देती है । अंडों और बाद में बच्चें की संभाल का सारा भार मोरनी पर ही आता है । मोर इस कठिन समय में निष्ठुर बनकर पारिवारिक उत्तरदायित्वों से मुंह मोड़ लेता है ।
स्वभाव से मोर बहुत चतुर पक्षी है तथा इसके आंख व कान बहुत तेज होते हैं । जरा-सा खटका होते ही नर-मादा सम्मिलित रूप से पीहू....पीहू चिल्लाकर आसमान सर पर उठा लेते हैं । शत्रु को निकट पाकर, ये पंखों को फटकारते हुए तुरंत ऊपर उड़ जाते हैं । इनकी उड़ान शुरू में तो धीमी होती है, लेकिन कुछ देर बाद ये अच्छी गति से उड़ने लगते हैं ।
मोर पूरे दिन खेतों में घूमता रहता है । यह सर्वभक्षी जीव है और अनाज के अतिरिक्त मेढ़क, कीड़े-मकोड़े, छोटे सांप आदि सब कुछ खा जाता है । सांझ ढले तक खूब खाकर यह पेटभर पानी पीता है, और फिर चैन से अपने रैन बसेरे की राह लेता है ।
मोर मनुष्यों की बस्ती के आसपास रहते हैं । ग्रामीण लोगों का अपार स्नेह पाकर मयूर बहुत ढीठ स्वाभाव का हो गया है और खड़ी फसल से उड़ाने पर भी नहीं उड़ता । यह जानता है कि ग्रामीण उसे मारेंगे नहीं, इसलिए इसके पास पहुंचना आसान होता है । ये बहुत अधिक दूर या ऊंचाई पर नहींउड़ सकते व नियत स्थानों पर रात बिताते हैं । इसलिए शिकारियों के लिए इनको निशाना बनाना आसान होता है । अत: मोर धीरे-धीरे विलुप्त् होता जा रहा है । शिकारियों का कहना है कि इन्हें पकड़ना मुश्किल भी हो, तो जहरीला दाना डाल देते हैं ।
सूखे के कारण राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तरप्रदेश में भारी संख्या में मोरों का शिकार हो रहा है । प्राकृतिक रूप से झड़ने वाले मोरपंख पर खून नहीं लगा होता । शिकारियों द्वारा मोरों की हत्या कर मोरपंखों को नोचे जाने पर खून लगा होने के कारण उसका कुछ हिस्सा काट दिया जाता है । डीडीटी के अंधाधंुंध छिड़काव तथा कीटनाशकों से उपचारित बीजों के कारण भी मोर मारे जाते हैं ।
कहने को राष्ट्रीय पक्षी मोर की हत्या को गैर जमानती माना गया है । वन्य जीव संरक्षण अधिनियम १९७२ के तहत मोर को अनुसूची-१ में श्रेणीबद्ध किया गया है । अनूसूची-१ में श्रेणीबद्ध पक्षियों के प्रति किसी भी अपराध के लिए १ से ७ वर्ष का कठोर कारावास व ५० हजार से लेकर ५ लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है । लेकिन पुलिस व वन विभाग की ढिलाई व कड़े कानूनों की अनदेखी के कारण समूचे देश में प्रतिदिन लगभग २०० मोरों का शिकार हो रहा है या उनकी हत्या हो रही है । अकेलेराजस्थान में प्रतिदिन औसतन १० मोर मारे जाते हैं ।
कई जीवों की तरह मोर भी लोगों की चिकित्सा-मान्यता का शिकार है । पंजाब के देहाती इलाकों में मोरपंखों का उपयोग दवा के रूप में भी होता है । मान्यता है कि सांप द्वारा डसा हुआ व्यक्ति यद इन पुखों को सुलफी में भरकर पी ले, तो उसके शरीर से सांप का जहर उतर जाता है । यह कहां तक सच है, कहना कठिन है ।
भारतीय जन जीवन के हर पक्ष के साथ मोर बहुत गहराई से जुड़ा है । प्राचीन भारत में मौर्य और गुप्त् वंश के सम्राट तो इस पक्षी को संरक्षक के रूप में पूजते थे । उस समय की भारतीय मुद्राआें पर मोर का ठप्पा अंकित होता था । सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों से पता लगता है कि मोर को उस समय लोग देवता के रूप में पूजते थे ।
मोर दुनिया का सर्वाधिक सुन्दर पक्षी है । इसमें सुन्दरता, आत्मबल, धैर्य, मैत्री आदि भावनाआें का समागम मिलता है । अन्य जन्तु प्रजातियों के समान मोर में भी नर सुन्दरता में मादा से बाजी मार ले गया है । नर पक्षी की देह दुम सहित करीब दो मीटर लंबी होती है, जबकि मादा एक मीटर से ज्यादा बड़ी नहीं होती । मादा का पूरा बदन भूरा मटमैला और अनाकर्षक होता है, जबकि नर उन्नत ग्रीवा, सिर पर काली कलगी, मायल भूरे पंख और अद्भुत रंग विधान में रंगे पुच्छ-पंखों सहित बहुत ही मनोहारी दिखाई देता है ।
मोर को सर्द और गर्म दोनों ही तरह की जलवायु प्रिय है । इसीलिए यह हमारे देश में प्राय: सब जगह पाया जाता है । हिमालय के पहाड़ों में भी डेढ़ हजार मीटर की ऊंचाई तक मोर का मिल जाना सामान्य बात है । मुगल बादशाहों की तरह ही मोर के हरम मेंभी तीन से पांच तक रानियां होती हैं । वर्षा ऋतु इस पक्षी का जननकाल होता है । उस समय कामातुर नर मादा के सामने मस्त होकर नाचता है । उसके आतुर कंठ से निकली पीहू....पीहू की आवाजें भीगे मौसम को और अधिक मादक बना देती हैं । अंतत: मोरनी मोर के नृत्य पर रीझकर उसे अपनी देह समर्पित कर देती है । कुछ समय पश्चात वह जमीन पर बने घास-फू स के घोंसले में ६-७ अंडे देती है । अंडों और बाद में बच्चें की संभाल का सारा भार मोरनी पर ही आता है । मोर इस कठिन समय में निष्ठुर बनकर पारिवारिक उत्तरदायित्वों से मुंह मोड़ लेता है ।
स्वभाव से मोर बहुत चतुर पक्षी है तथा इसके आंख व कान बहुत तेज होते हैं । जरा-सा खटका होते ही नर-मादा सम्मिलित रूप से पीहू....पीहू चिल्लाकर आसमान सर पर उठा लेते हैं । शत्रु को निकट पाकर, ये पंखों को फटकारते हुए तुरंत ऊपर उड़ जाते हैं । इनकी उड़ान शुरू में तो धीमी होती है, लेकिन कुछ देर बाद ये अच्छी गति से उड़ने लगते हैं ।
मोर पूरे दिन खेतों में घूमता रहता है । यह सर्वभक्षी जीव है और अनाज के अतिरिक्त मेढ़क, कीड़े-मकोड़े, छोटे सांप आदि सब कुछ खा जाता है । सांझ ढले तक खूब खाकर यह पेटभर पानी पीता है, और फिर चैन से अपने रैन बसेरे की राह लेता है ।
मोर मनुष्यों की बस्ती के आसपास रहते हैं । ग्रामीण लोगों का अपार स्नेह पाकर मयूर बहुत ढीठ स्वाभाव का हो गया है और खड़ी फसल से उड़ाने पर भी नहीं उड़ता । यह जानता है कि ग्रामीण उसे मारेंगे नहीं, इसलिए इसके पास पहुंचना आसान होता है । ये बहुत अधिक दूर या ऊंचाई पर नहींउड़ सकते व नियत स्थानों पर रात बिताते हैं । इसलिए शिकारियों के लिए इनको निशाना बनाना आसान होता है । अत: मोर धीरे-धीरे विलुप्त् होता जा रहा है । शिकारियों का कहना है कि इन्हें पकड़ना मुश्किल भी हो, तो जहरीला दाना डाल देते हैं ।
सूखे के कारण राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तरप्रदेश में भारी संख्या में मोरों का शिकार हो रहा है । प्राकृतिक रूप से झड़ने वाले मोरपंख पर खून नहीं लगा होता । शिकारियों द्वारा मोरों की हत्या कर मोरपंखों को नोचे जाने पर खून लगा होने के कारण उसका कुछ हिस्सा काट दिया जाता है । डीडीटी के अंधाधंुंध छिड़काव तथा कीटनाशकों से उपचारित बीजों के कारण भी मोर मारे जाते हैं ।
कहने को राष्ट्रीय पक्षी मोर की हत्या को गैर जमानती माना गया है । वन्य जीव संरक्षण अधिनियम १९७२ के तहत मोर को अनुसूची-१ में श्रेणीबद्ध किया गया है । अनूसूची-१ में श्रेणीबद्ध पक्षियों के प्रति किसी भी अपराध के लिए १ से ७ वर्ष का कठोर कारावास व ५० हजार से लेकर ५ लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है । लेकिन पुलिस व वन विभाग की ढिलाई व कड़े कानूनों की अनदेखी के कारण समूचे देश में प्रतिदिन लगभग २०० मोरों का शिकार हो रहा है या उनकी हत्या हो रही है । अकेलेराजस्थान में प्रतिदिन औसतन १० मोर मारे जाते हैं ।
कई जीवों की तरह मोर भी लोगों की चिकित्सा-मान्यता का शिकार है । पंजाब के देहाती इलाकों में मोरपंखों का उपयोग दवा के रूप में भी होता है । मान्यता है कि सांप द्वारा डसा हुआ व्यक्ति यद इन पुखों को सुलफी में भरकर पी ले, तो उसके शरीर से सांप का जहर उतर जाता है । यह कहां तक सच है, कहना कठिन है ।
भारतीय जन जीवन के हर पक्ष के साथ मोर बहुत गहराई से जुड़ा है । प्राचीन भारत में मौर्य और गुप्त् वंश के सम्राट तो इस पक्षी को संरक्षक के रूप में पूजते थे । उस समय की भारतीय मुद्राआें पर मोर का ठप्पा अंकित होता था । सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों से पता लगता है कि मोर को उस समय लोग देवता के रूप में पूजते थे ।
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