शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

जनजीवन
ज्ञान के सामूहिक सृजन की ताकत 
प्रो. माधव गाडगिल

    विकी सॉफ्टवेयर एक जबर्दस्त नवाचार है जो सहयोगी ढंग से सूचना के निर्माण की इजाजत देता है । इसके रचयिता यदि इसे पेटेंट करा लेते तो खूब पैसा कमा सकते थे । मगर उन्होंने इसे मुफ्त में उपलब्ध करवाया, जिसें चलते विपुल संभावनाएं खुल गई ।
    विश्वकोश यानी एनसाय-क्लोपीडिया सदियों से ज्ञान के सागर रहे हैं और पारंपरिक रूप से ये विशेषज्ञ-निर्देशित व व्यापारिक रूप से तैयार किए जाते रहे हैं । मगर वर्ल्ड वाइड वेब के साथ सृजनात्मक साझा संसाधन जैसी अवधारणाएं पनपीं । यह उन लोगों के लिए एक मंच है जो चाहते हैं कि उनकी रचनाएं - पाठ्य वस्तु, चित्र, संगीत-सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हों सिर्फ मजे के लिए नहींबल्कि परिवर्तन करने के लिए, तर्क करने के लिए, उसे बेहतर बनाने के लिए । यह सकारात्मक फीडबैक की प्रक्रिया है जिसमें रचनाएं और रचनात्मकता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है । बाजार के पुजारियों को लगता है कि निजी मुनाफे  के खाद-पानी के बगैर सृजनात्मक साझा संसाधन तो सदा बंजर ही रहने चाहिए थे । मगर तथ्य यह है कि पिछले वर्षोंा में यह एक हरा-भरा बगीचा बन गया है, जिसकी देखरेख वे लोग बहुत प्यार से कर रहे हैं जो निजी लाभ से आगे भी देख पाते हैं । 
     विकीपीडिया एक विशाल वटवृक्ष है जो सार्वजनिक बगीचे में फल-फुल रहा है । पहला पेड़ एक सार्वजनिक विश्वकोश -न्यूपीडिया - था जिसे विशेषज्ञों ने तैयार किया था । वह ज्यादा दूर तक नहीं पहुंचा । विशेषज्ञ व्यस्त लोग होते हैं और आम तौर पर निजी मुनाफे की तमन्ना काफी शक्तिशाली होती है । ये लोग इस जन-भावना से प्रेरित उद्यम में नेतृत्व की भूमिका न ले सके ।
    यह समय था जब विकीपीडिया ने यह दबंग निर्णय लिया कि किसी भी विषय पर आलेख में योगदान करने के लिए किसी भी आम व्यक्ति का स्वागत होगा, बशर्तेंा कि यह योगदान सूचना के स्वीकार्य स्त्रोतों पर आधारित हो । लोगों, खासकर विशेषज्ञों को दूसरों की गलतियां निकालने से ज्यादा मजा किसी और चीज में नहीं आता, तो इंटरनेट पर वैध सूचना तक  पहुंचने का एक उम्दा मार्ग यह है कि शुरूआत के लिए वहां कुछ सूचना डाल दी जाए, भले वह गलत ही क्यों न हो ।
    विकीपीडिया सारे आगंतुकों को आमंत्रित करता है कि वे हर आलेख में प्रस्तुत सूचना के हर टूकड़े की जांच करें, गलतियां दूर करें और उसकी गुणवत्ता में सुधार करें । इसने विश्ेाषज्ञों को भी प्रेरित किया और आज वे काफी उत्साह से विकीपीडिया के इस समावेशी, समतामूलक नवाचार में भागीदारी कर रहे हैं ।
    ज्ञान के साझा संसाधन की इस नई संस्कृति में विशेषज्ञ पूर्व की अपनी वर्चस्वपूर्ण, एकाधिकारवादी भूमिका की बजाय सहयोग औा मार्गदर्शन की एक रचनात्मक भूमिका में ढल  गए हैं  । इस प्रकार, विकीपीडिया सूचना का मानक स्त्रोत बन गया है, पेशेवर गणितज्ञों के लिए भी क्योंकि इसमें जो सामग्री है उसे बनाने में कामकाजी गणितज्ञों ने योगदान किया है और विकीबुक्स के रूप में सामूहिक  रूप से गणित की असाधारण पाठ्य पुस्तकेंे विकसित की हैं ।
    इस प्रक्रिया का संतोषजनक परिणाम यह है कि विकीपीडिया पर जानकारी की विश्वनीयता किसी भी व्यावसायिक विश्वकोष के तुल्य रखी जा सकी है जबकि विकीपीडिया पर जानकारी की मात्रा किसी भी व्यावसायिक विश्वकोश के मुकाबले हजारोंगुना ज्यादा है । और सबसे बड़ी बात है कि यह जानकारी एकदम अधुनातन होती है । भारत के पूर्वी तट पर सूनामी के आगमन के चंद घंटों के अंदर विकीपीडिया पर इस घटना की प्रामाणिक तस्वीरेंऔर जानकारी उपलब्ध थी । खुशी की बात है कि सारी प्रमुख भारतीय भाषाआें में अपने-अपने विकीपीडिया हैं और हिंदी, तमिल, तेलुगु में ५०-५० हजार आलेख हैं ।
    आम लोग जब सामूहिक रूप से कार्य करते हैं, तो वे सार्वजनिक भलाई के अद्भुत स्त्रोत साबित होते हैं । दूसरी ओर, यह दुखद तथ्य है कि जब विशेषज्ञों को एकाधिकारवादी भूमिका दी जाती है तो वे सार्वजनिक हित को छल सकते हैं । मसलन, गोवा के खनिज व भूविज्ञान विभाग से उम्मीद की जाती है कि वह नियमित रूप से खदानों का निरीक्षण करे, सही आंकड़े रखे और यह सुनिश्चित करे कि खनन कार्य के कारण अनावश्यक पर्यावरणीय व सामाजिक लागतेंन वहन करनी पड़ें ।         मगर गोवा में गैर-कानुनी खनन के सम्बन्ध में शाह आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिनियम के तहत निर्दिष्ट ढंग से लौह खदानों का निरीक्षण नहीं किया गया था । इस वजह से इकॉलॉजी, पर्यावरण, खेती, भूजल, तालाबों, नदियों और जैन विविधता को नुकसान पहुंचा । आयोग ने इस सारे नुकसान के लिए स्पष्ट रूप से कई सरकारी विशेषज्ञों को दोषी ठहराया है । मेरा अपना अध्ययप दर्शाता है कि निजी संस्थाआें के विशेषज्ञ  खदानों के पर्यावरण प्रभाव आकलन में गलत जानकारियां देने के दोषी हैं ।
    विकीपीडिया एक विश्वकोष है, उपलब्ध ज्ञान को संग्रहित करने की एक कवायद है । इसके अलावा, सहयोग की इसी समावेशी संस्कृति में नए ज्ञान का सृजन भी उतने ही कारगर ढंग से किया जा सकता है क्योंकि आम लोग अपने अनुभव से काफी कुछ जानते हैं ।
    मैंने इस बात का एक अद्भुत उदाहरण तब देखा था जब में बांस की इकॉलॉजी और प्रबंधन को लेकर फील्ड अनुसंधान कर रहा था । वनकर्मी का निर्देश था कि बांस के तनों के आधार पर से कटींला छिल्का हटाना होगा ताकि अन्य तनों को बढ़ने का मौका मिले । गांव के लोगों  ने मुझे बताया कि यह गलत है, कांटे हटा देने से नए अंकुर गाय-भैसों व अन्य जंगली जानवरों के चरने के लिए खुल जाते हैं । इससे बांस के पेड़ों पर प्रतिकू ल असर पड़ता है । तीन साल तक सावधानीपूर्वक किए गए फील्ड अध्ययन से पता चला कि गांव के  लोग एकदम सही थे ।
    इस तरह की स्थान व समाज सापेक्ष जानकारी को व्यवस्थित रूप से रिकॉर्ड करना बहुत महत्तवपूर्ण हो सकता है । मसलन, ऑस्ट्रेलिया में एक सिटीजन्स रिवर वॉच प्रोग्राम (नागरिक नदी निगरानी कार्यक्रम) है जिसमें स्थानीय लोग नदी के एक हिस्से को अपना लेते हैं और उसकी निगरानी करत हैं । सरकार सारे ऐसे लोगों के लिए एक-दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करती हैं । प्रशिक्षण में पानी के प्रवाह और गुणवत्ता का आकलन करने की आसान तकनीकें सिखाई जाती हैं । पानी की गुण्वत्ता का आकलन उसमें उपस्थित जंतुआें के आधार  पर किया जाता है । जैसे डेमसलफ्लाई साफ पानी में ही रहती है जबकि काइरोनोमिड्स अत्यंत प्रदूषित पानी में देखे जाते हैं । असंख्य स्वैच्छिक प्रेक्षक ऐसे आंकड़े अपलोड करते हैं । इसके लिए आसान ऑनलाइन डैटा एंट्री फॉर्म्स बनाए गए हैं । ये आंकड़े सर्व सम्बंधितों द्वारा छानबीन व सुधार के लिए खुले रहते हैं ।
    ऐसे नागरिक-वैज्ञानिक आंकड़ों ने ऑस्ट्रेलिया में नदियों की स्थिति का बढ़िया ज्ञान-कोश तैयार कर दिया है । यदि विशेषज्ञ अपने आप में सिमटकर काम करते रहते तो ऐसा डैटाबेस कभी तैयार नहीं हो सकता      था । विशेषज्ञों की संख्या बहुत कम है, वे बहुत खर्चीले हैं और उन्हें एकाधिकारवादी भेमिका देना खतरनाक हो सकता है । इसके अलावा, आंकड़ों के संग्रह और जांच में सारे सम्बन्धित नागरिकों को शामिल  करने से यह सुनिश्चित हो जाता है कि गलतियां, जानबुझकर की गई गलतबयानी समेत, तुरंत पकड़ में आ जाती हैं । ऐसे नागरिक-विज्ञान प्रोजेक्ट आज दुनिया भर में जड़ें जमा रहे हैं । केरल के लोगों को गिट्टी खदानों के बारे में कोई समुचित डेटाबेस नहीं है । इनमें से अधिकांश कथित रूप से गैर-कानूनी हैं, पर्यावरण के लिए विनाशकारी हैं और सामाजिक रूप से खतरनाक  हैं । आखिर यह केरल ही तो था जहां वैज्ञानिकों ने साइलेंट वेली प्रोजेक्ट का एक खुला व पारदर्शी पर्यावरणीय व टेक्नो-आर्थिक आकलन करके सरकारी संस्थाआें के शिंकजे को तोड़ना शुरू किया था ।
    आज इस नई सदी में पत्थर खदानों का एक डाटाबेस तैयार करने के लिए स्वैच्छिक कार्यकर्ताआें का एक दल आसानी से खड़ा किया जा सकता है क्योंकि आसानी से उपलब्ध जीपीएस उपकरणों की मदद से भौगोलिक स्थिति सही-सही पता चल जाती है और उपग्रह से प्राप्त् तस्वीरें भूमि उपयोग का पैटर्न साफ-साफ दर्शा देती हैं - पत्थर खदानें, उनसे प्रभावित जलमार्ग, उनके द्वारा शुरू किए गए  भुस्खलन, और उनके द्वारा नष्ट किए गए खेत व प्लांटेशन । स्थानीय बाशिंदे शामिल होकर तेजी से जरूरी भौगोलिक आंकड़े इकट्ठे कर सकते हैं और साथ ही इनके द्वारा उत्पन्न रोजगार, अन्य आर्थिक प्रभाव, सामाजिक, व स्वास्थ्य सम्बन्धि असर की विस्तृत जानकारी भी जुटा सकते हैं । वे यह भी पता कर सकते हैं कि क्या सम्बन्धित ग्राम सभा इस उद्यम का समर्थन करती है या विरोध करती है । यदि केरल शास्त्र साहित्य परिषद और विज्ञान भारती जैसे संगठन प्रयास करें, तो चंद हफ्तों में दही एक समृद्ध व विश्वसनीय डैटाबेस तैयार हो जाएगा ।
    वास्तव में तो यह काम अब तक शुरू भी हो जाना चाहिए था । जैन विविधता कानून, २००२ समस्त पंचायत निकायों को जैव विविधता का लोक रजिस्टर बनाने का अधिकार व निर्देश देता हैं । इस रजिस्टर में वे कई तत्व शामिल होंगे जिनकी चर्चा ऊपर की गई है । पर्यावरण के कारको का प्रत्यक्ष अवलोकन एक महत्तवपूर्ण शैक्षणिक औजार होगा, इस बात को समझते हुए केंद्रीय शिक्षा सलाहकार मंडल (केब) ने उस कार्यक्रम का जोरदार समर्थन किया है जिसके तहत देश भर में छात्रों के पर्यावरण शिक्षा प्रोजेक्ट्स की मदद से वर्ष २००५ तक ऐसा डैटाबेस तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था ।
    यही बात ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण पर्चे में भी कही गई थी । मगर ये औपचारिक प्रावधान किसी काम नहीं आए क्योंकि हमारे शासक राजनीति की तकरीबन ढाई हजार साल पुरानी चीनी संहिताओ ते चिंग की इस बात के कायल हैं, प्राचीन लोग जिन बातों का पालन करते थे, उनके बारे में उन्होंने लोंगो को रोशनी नहीं दी, बल्कि उन्होंने इनका उपयोग लोगों भोंचक्का करने के लिए किया, लोगों पर शासन करना मुश्किल होता है जब उनके पास बहुत अधिक ज्ञान हो । लिहाजा किसी राज्य पर ज्ञान के जरिए शासन करना राज्य को डांवाडोल करने जैसा है । किसी राज्य पर अज्ञान के जरिए राज करने से राज्य में स्थिरता आती है ।
    विश्व के नागरिक आज राष्ट्र-राज्यों के कई कुप्रबंधित जहाजों को डांवाडोल करने को तैयार हैं । लोगों द्वारा ज्ञान के उद्यम की बागडोर अपने हाथों में लेना इस क्रांति की दिशा में एक कदम होना चाहिए । केरलको नागरिक-विज्ञान के तरीके को अपनाने में अग्रणी भूमिका निभाते हुए आज के एक महत्तवपूर्ण मुद्दे - ईश्वर के अपने देश में पत्थर खदानों द्वारा पर्वतों की तबाही - पर ध्यान केंद्रित करना होगा ।

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