शुक्रवार, 17 मार्च 2017

होली पर विशेष
पर्यावरण मित्र होली और गोरक्षा
डॉ. खुशालसिंह पुरोहित

    इन दिनों गाय के गोबर से बने कन्डों से होली जलाने के लिए सामाजिक स्तर पर जनचेतना अभियान चलाया जा रहा है । यह एक सामयिक कदम हैं जिससे गोरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्यों में सफलता प्राप्त् की जा सकती है । मालवा क्षेत्र में प्राचीन काल से ही पर्यावरण मित्र होली की परम्परा रही है । मालवा की प्राचीन नगरी उज्जैन में सिंहपुरी की होली का नाम इसमें प्रमुखता से आता है ।
    उज्जैन शहर में सिंहपुरी में विश्व की सबसे प्राचीन होली हमें पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन का संदेश देती है । वनों को बचाने के लिए यहां लकड़ी से नहीं बल्कि गाय के गोबर से बने कंडो की पारंपरिक होलिका का दहन किया जाता है । 
     भारत एक कृषि प्रधान देश   है । हमारी संस्कृति कृषि प्रधान है । विश्व में भारत ही ऐसा देश है जहां सदियों से करोड़ों लोग निरामिषभोजी रहे हैं । वैदिक काल में ही हमने गाय को अवधा मानकर पारिवारिक सदस्य का दर्जा दिया था । वेदों में गाय के लिए विश्व माता संबोधन किया गया है । गाय को गोमाता के रूप में पूज्य मानने में केवल धार्मिक आग्रह ही नहीं है, अपितु ये पशु और मानव संबंधो के मानवीय आधार की सर्वोत्कृष्ट परम्परा और भारत की सांस्कृतिक अस्मिता की प्रतीक है । महाभारत में यक्ष के प्रश्न अमृत क्या है ? के उत्तर में धर्मराज युधिष्ठिर कहते है गाय का दूध ही अमृत हैं ।
    कृषि भारतीय अर्थतंत्र का आधार है । पशु सम्पदा भारतीय कृषि और किसान की बहुमूल्य निधि है । हमारी कृषि प्रणाली में हर स्तर पर पशु पक्षी की महत्वपूर्ण भूमिका है । कृषि में खेत जोतने, बीज बोने से फसल आने तक और फिर कृषि उत्पादन को बाजार तक पहुंचाने के विविध कार्यो में पशु शक्ति का उपयोग होता है । देश में उपयोग आने वाली कुलऊर्जा का एक तिहाई भाग पशु एवं मानव शक्ति से प्राप्त् होता   है । गाय और गोवंश की देश में कृषि, चिकित्सा स्वास्थ्य, ऊर्जा, उद्योग और अर्थव्यवस्था के साथ ही पर्यावरण संतुलन में अपनी भूमिका है । गोवंश को सम्मान देने के लिए ही हमारे राष्ट्रीय चिन्ह में नंदी विद्यमान है ।
    आधुनिक कृषि में हरित क्रांति के बाद रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से खेतों में मृदा में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु की संख्या अत्यन्त कम होती जा रही है । इससे कृषि पैदावार पर विपरीत असर पड़ रहा है । महंगी होती कृषि मेंबढ़ते घाटे के कारा पिछले एक दशक में देश में करीब दो लाख किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा । इसलिए खेती में आज गाय और गोवंश के महत्व को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है ।
    गाय कभी भी किसान के लिए अनुपयोगी नहीं होती है । गाय बूढ़ी हो जाये या दुध देना बंद कर दे तो भी गोबर और मूत्र के जरिये उसका आर्थिक स्वावलंबन बना रहता है । एक गाय प्रतिदिन करीब १० किलोग्राम के हिसाब से वर्ष भर में ३६५० किलोग्राम गोबर देती है, जिससे करीब ६०००० रूपये मूल्य की कम्पोस्ट खाद बनायी जा सकती है । इसके साथ ही करीब १५०० लीटर गो मूत्र उपलब्ध होता है । इससे बनने वाली दवाईयां और कीटनाशक से २०००० रूपये मिल सकते हैं । गोघृत में वायुमण्डल को शुद्ध करने की अलोकिक शक्ति होती है । इसलिए गाय का ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रहा है ।
    देश में आथिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अपना महत्वपूर्ण स्थान होने के बाद भी आज देशी गाय अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है । भारतीय देशी गाय की सेकण्डों नस्लों में से केवल ३३ ही बची है, समय रहते नहीं चेते तो भारतीय गाय की सभी नस्ले समाप्त् होने में देर नहीं लगेगी । इसलिए संकर प्रजनन पर रोक लगाकर भारतीय नस्लों की शुद्धता की रक्षा करनी होगी । गोपालन के लिए सामाजिक स्तर पर अभियान चलाने की आवश्यकता है । हमारे देश में १९५१ में प्रति हजार व्यक्ति पीछे ४३० गोवंश था जो २००१ में प्रति हजार ११० ही रह गया था । यदि गो संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में प्रति हजार २० का औसत हो जायेगा ।
    भारत में पशुआें के वध का सवाल अर्थतंत्र के साथ ही सांस्कृतिक मूल्यों, पर्यावरणीय संतुलन और हमारी जैव विविधता से जुड़ा हुआ   है । पशु पक्षियों के प्रति प्रेम और आदर की भावना हमारी जातीय परम्पराआें ओर संस्कृति की शिक्षाआें में हैं । हम यह कैसे भूल सकते हैं कि हमारे प्रथम स्वतंत्र संग्राम १८५७ की चिंगारी के पीछे गो हत्या विरोध की भावना ही मुख्य थी । यह विडंबना ही कही जाएगी की देश में मांस और चमड़े का व्यापार प्रति वर्ष बढ़ता जा रहा है, सरकार वध शालाआें के आधुनिकीकरण पर करोड़ों रूपये खर्च कर रही है ।
    देश में गोवंश एवं पशुआें की रक्षा के लिए कई कानून बने है । १९६० में भारत सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम बनाया, जिसमें पशुआें के सहजतापूर्वक परिवहन के लिए भी नियम निर्धारित किये गए । केन्द्र के साथ ही गोवंश के वध एवं अवैध परिवहन को रोकने में राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात सहित अनेक राज्यों में कठोर कानून बनाये गए है । इन कानूनों का व्यवहारिक रूप से पालन सुनिश्चित करना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती   है । कानून व्यवस्था और अपराधों से जूझती पुलिस के लिए पुशआें की सुरक्षा के लिए समय का संकट बना रहता है । इसलिए पुलिस, वनरक्षक और अन्य बलों के सामान पशुधन की रक्षा के लिए विशेष सुरक्षा बल के गठन की मांग गो प्रेमी संगठन वर्षो से कर रहे है । इसके अतिरिक्त ग्रामो/शहरों में पशुपालन के प्रति जागरूक पशु पालकों को चारा पानी के लिए अनुदान की व्यवस्था होनी चाहिए ।

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