शुक्रवार, 17 मार्च 2017

विशेष लेख
जल की किल्लत का मुकाबला कैसे करे ?
रितेन्द्र अग्रवाल

    सभ्यता के प्रारंभिक दौर से ही मनुष्य के जीवन में जल शुरू से ही जीवन का आधार रहा है । शायद यही वजह है कि देश के प्राचीन, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं शहरों की बसाहट नदियों के किनारे पर है ।
    जल हर जगह, हर मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन राजस्थान जैसे रेगिस्तानी प्रदेश में जल की पूजा की परम्परा रही है । इसीलिये पश्चिमी भू-भाग में कुंऐ, बावड़ियां और सरोवर नदियों के  समान सुन्दर बने हैं । परन्तु पिछले कुछ समय से हमारी सोच में बदलाव आया जिससे जल का दुरूपयोग और जल के स्त्रोतों की उपेक्षा होने लगी । यही वजह है प्राचीन जल स्त्रोत नष्ट हो गये, जिससे देश में जगह-जगह जल संकट के हालात उत्पन्न हो गये । 
     सम्पूर्ण विश्व में सम्पूर्ण जल मण्डल का २.६ प्रतिशत भाग ही शुद्ध जल के रूप में पाया जाता है, शेष महासागरों में स्थित है । इस २.६ प्रतिशत का भी ७७.२३ प्रतिशत भाग हिम टोपियों, हिम खण्डो तथा हिम नदो के रूप में है । कुल २२.२१ प्रतिशत जल भू जल के रूप में ४१ किमी की गहराई तक स्थित है । शेष अल्प मात्रा मृदा, झीलों, जीवमण्डल तथा वायुमण्डल में पाया जाता है ।
    जल संसाधन की दृष्टि से भारत की स्थिति चिन्ताजनक है । यहां औसत वार्षिक वर्षा ११७ सेमी  है । विश्व में भारत ११० से.मी. से अधिक वर्षा वाले देशों में उच्च् थान पर है किन्तु केवलमोयसिंग राम (मेघालय) में ही ११४८ सेमी वार्षिक वर्षा होती है । दूसरी ओर राजस्थान के जैसलमेर में वर्षा का औसत मात्र १० सेमी है । इस असमान वितरण से प्रतिवर्ष देश का कोई न कोई भाग जल अभाव से ग्रस्त रहता है । 
    आंकलन के अनुसार भारत में वर्षा से करीब ४२०० घन कि.मी. जल प्राप्त् होता है  । चूंकि जलवायु उष्ण है और उचित जल प्रबंधन का अभाव है इसलिये करीब प्राप्त् जल का एक तिहाई भाग वाष्पन द्वारा वायुमण्डल तथा सागरों में विलीन हो जाता है ।
    लगभग २० प्रतिशत जल जमीन द्वारा सोखने से भू जल में परिवर्तित हो जाता है । जो वास्तव में प्राप्त् जल है, वह है १८६९ घन कि.मी. इसके भी क्षेत्रीय वितरण में भारी असमानताएें है । क्योंकि देश के दसवे हिस्से में २०० सेमी से अधिक वर्षा होती है जबकि एक तिहाई क्षेत्र के ७५ सेमी से भी कम वर्षा होती   है । वर्षा की मात्रा के साथ-साथ वर्षा वाले दिनों में भी असमानता है । अत: जल संसाधन की सबसे बड़ी समस्या असमान वितरण है ।
    अभी तक हमने सतही एवं प्राप्त् जल की बात की । अब बाते करते है, भूजल की । भारत में भू जल की अनुमानित मात्रा करीब ४३३.९ घन किमी है जिसका करीब ४२ प्रतिशत भाग उत्तरी भारत के जलोढ़ मैदानी क्षेत्रों में पाया जाता है । चूंकि जलोढ़ मिट्टी में अधिक जल संधारण क्षमता होती है । इसके उलट दक्षिणी भारत में आग्नेय कठोर चट्टानो में जल रिसाव मंद मंद होता है, इसलिये भू जल अल्प मात्रा में पाया जाता    है । इस पर भी भारत में कुल भू जल अल्प मात्रा में पाया जाता है । इस पर भी भारत में कुल भू जल का केवल ३६.३७ प्रतिशत के लगभग उपभोग होता है ।
    जल का उपयोग जीवन की मूलभूत आवश्यकताआें की पूर्ति के लिए किया जाता है । इसमें घरेलू उपभोग से लेकर कृषि, उद्योग आदि में होता है । देखा जाये तो जल का सर्वाधिक उपयोग कृषि तथा उद्यान में होता है । घरेलू उपभोग में थोड़ा अंश ही आता है इसमें करीब ७ प्रतिशत ही उपयोग होता है ।
    देखा जाये तो कुल जल संसाधन की उपलब्धता के सापेक्ष केवल १० प्रतिशत के करीब उपयोग हो रहा है । चूकि इसका वितरण असमान है, इसलिए सर्वत्र जलापूर्ति नहीं हो पाती । परिणामस्वरूप जल संकट उत्पन्न हो जाता है ।
    गौर कीजिये हम १० प्रतिशत ही जल उपभोग कर रहे है फिर भी जल संकट है । माना कि वितरण असमान है । फिर भी देखिये हमारे  अधिकतर इकाईयों में जल शोधक संयत्र है और जलापूर्ति के नियम है फिर भी ? ऐसा इसलिये क्योंकि हम उद्योगों का गंदा जल सीधे नदियों में, या फिर अन्य स्त्रोतों में प्रवाहित कर देते है जिससे समस्त जल प्रभावित हो रहा है ।
    ठीक इसी तरह कृषि में जल की जरूरत काफी है, चूंकि उष्ण वातावरण है तो जरूरत ज्यादा ही    है । फिर हम वह फसल उगाते है, जिनमें पानी की आवश्यकता ज्यादा रहती है । जैसे चावल, गन्ना जूट  आदि । इसके साथ ही भूमि के अधिकतम उपयोग के लिए बहुफसली खेती करते है जिससे जल की मांग बढ़ती है ।
    घरेलू कार्य के लिए खाना पकाने, स्नान करने, कपड़े धोने आदि के लिए उपयोग होता है । इसके अलावा पशु पक्षियों और पौधों के लिए भी प्रदूषण रहित जल की आवश्यकता होती है ।
    अब देखिये नदियों के किनारे शहर होने पर भी शुद्ध जल की उपलब्धता दूभर है क्योंकि नगरों के अशुद्ध जल ने इन जल स्त्रोतों को प्रदूषित कर दिया है । कानपुर, वाराणसी, गंगा किनारे, कोलकाता हुगली किनारे, आगरा, दिल्ली यमुना किनारे इसके उदाहरण है, जहां नगरीय प्रदूषित जल सीधा नदियों में आकर मिल रहा है । नदी में जल आने के प्राकृतिक स्त्रोत छोटे-छोटे नाले और छोटी नदियां तथा तालाब जैसे जलीय स्त्रोतों में जल की कमी होने से नदी में जल का निरन्तर प्रवाह प्रभावित हो रहा है । 
    अब आप कहेंगे बेकद्री  कैसी ? तो साहब घर से शुरू हो जाइये - आप पीने के लिये पानी लेते है एक गिलास । कुछ घुंट पीकर छोड़ देते हैं । वह छूटा पानी बेकार हो  गया । आप ब्रश करते, दाढ़ी बनाते है वाश बेसिन पर खड़े होकर और पूरे समय नल से पानी चलता रहता है ।  आप नहाते है - शॉवर से उसमें पानी बेकार जाता है । बाल्टी में लेकर नहाये । अगर बर्तन धोन, कपड़े धोने से जो गंदा पानी शेष रहे, उससे टॉयलेट साफ किया जा सकता है, घर में पोंछा लगवाया जा सकता है । यह बात परिवार विशेष के संदर्भ में अलग-अलग हो सकती है ।
    अब देखिये - सुबह- सुबह पानी नल में आता है । प्रेशर थोड़ा कम हुआ आपने पाईप लाईन में बूस्टर लगा दिया । यानि आपके घर के आगे सप्लाई अवरूद्ध । हम पानी की सोच समझकर ईमानदारी से उपयोग लाना चाहिये । पानी को एक से ज्यादा कामों में प्रयोग ले ।
    पानी की बेकद्री को हम यहां भी देख सकते हैं । जब आपने नल खुला छोड़ दिया और पानी बह रहा  है । पाईप लाईन लीक हो गई, पानी बह रहा है । आप अनदेखी कर रहे  है । अगर राह में कहीं पाईप लाईन टूटी या पानी बहता नजर आया तो आप देखकर भी अनदेखा कर निकल जाते हैं । इसके अलावा बढ़ता शहरीकरण जिससे तालाबों, नदियों के केचमेंट क्षेत्र का अतिक्रमण हुआ है या फिर इनके आसपास बसावट कर क्षेत्र कम कर दिया गया है जिससे पानी की आवक घट गई या फिर स्त्रोत ही सूख गए ।
    भू जल का दोहन भी सोच समझकर करे अन्यथा स्त्रोत जल के अभाव में सूख जायेंगे । ध्यान रहे पानी का दोहन रिचार्ज क्षमता से ज्यादा न हो । बेहतर होगा हम पानी को दो-तीन बार उपयोग में लाये या फिर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर गंदे पानी को साफ करके इस्तेमाल में लाये तो पानी को कुछ सीमा तक सहज सकते है ।
    खेती में कम पानी की फसले, और ऐसे उपाय करे कि पानी कम लेगे । स्प्रिंकलर का प्रयोग करे, ड्रिप सिंचाई करे । बेहतर हो हम क्षेत्र के पुराने जल तंत्रों बावड़ी, तालाब, पोखर आदि को ठीक करा कर, ठीक से रख रखाव करे तथा प्रयोग में लाये । अगर तालाब, पोखर बावड़ी नहीं है तो क्षेत्र में जल संचयन के लिए चेक डैम, तालाब, पोखर, स्टोरेज टैंक आदि का निर्माण कर प्रयोग ले । छत पर भी वर्षा जल संचयित कर नीचे टयूबवेल, भूतल टैंक में पानी को प्रवाहित कर जल संचयन किया जा सकता है ।
    संचयन एक बात है । प्रथम है, जो जल उपलब्ध है उसको ईमानदारी से २-३ बार उपयोग में लेना । जल के संदर्भ में आगामी समय कष्टप्रद है । आज से ही चेतिये, कल संवारिये । जल है तो कल है, वर्ना क्या कल है ?

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