शुक्रवार, 17 मार्च 2017

सामयिक
नर्मदा, मात्र नदी नहीं है
अनिल माधव दवे

    दर्शन मात्र से ही कल्याण करने वाली पुण्य सलिला नर्मदा को जानने की जिज्ञासा ने मुझे यात्रा के लिए प्रेरित किया । यात्रा के समय नदी के दोनों किनारों, घाटों, तीर्थो को देखने और नर्मदा तट के आसपास निवासरत समाज, वनवासियों से सीधे संवाद के अनुभवों के साथ अमरकंटक से भरूच तक की यात्रा समाप्त् हुई ।
    इस यात्रा ने मुझे नर्मदा को देखने, नदी संस्कृति को समझने और नदी संसार की संगति-विसंगतियों का अनुभव करने का अवसर दिया । इस बीच नदी, पानी, किनारों की जीवन शैली और संस्कृति को   जाना । यही नर्मदा संरक्षण के लिये कार्य व योजनाआें के सृजन का आरम्भिक बिन्दु था । 
     नर्मदा का जल उसकी गति, गति से उत्पन्न कल-कल स्वर साधारण नहीं है । यह एक वैज्ञानिक और रासायनिक प्रक्रिया है । इसमें बारह प्रकार के तत्व पनपते है । यही तत्व जीवन देते हैं और प्राणों को पुष्ट करते हैं । यह तथ्य आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी अपने शोध और अनुसंधानों से पृष्ट कर दिया है । भारतीय मनीषी मानवीय विचारों को प्रकृतिस्थ बनाना चाहते थे इसीलिए उन्होंने अपने आश्रम, तपोस्थलियाँ नदियों के किनारे प्रकृति की गोद में ही बनाई । मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कहीं जाने वाली पुण्य सलिला नर्मदा इस शोध परम्परा के केन्द्र में थी । देव सरिता गंगा के किनारे यदि मानव सभ्यता के विकास की परम्परा रही तो उस परम्परा को आयाम दिया है ।
    नर्मदा की घाटी, उसके किनारे की पर्वत कंदराआें, वन-बल्लरियों के बीच बने ऋषि आश्रमों में निरन्तर संचालित शोध और अनुसंधानों ने । अतीत के आख्यानों से यह तथ्य स्पष्ट है कि नर्मदा मात्र एक नदी नहीं है । यह प्रकृति की तृष्टि-पुष्टिदायक जीवन रेखा भी है और सभ्यताआें की सृजक और सिद्धांतों की जन्मदायी भी ।
    मूलत: नदियां और जल के महत्व को सभी जानते है फिर भी पूरे संसार में जल को अशुद्ध किया जा रहा है । ऐसा भी नहीं है कि जल संरक्षण या जल संवर्धन के प्रयत्न नहीं हो रहे है, बहुत हो रहे है लेकिन उनके परिणाम प्रयत्न के अनुपात में नहीं आ रहे हैं । न धरती से रसातल की ओर खिसकते जल में विराम लगा और न प्रवाहित सरिताआें में अशुद्धि मिलाने का कुचक्र रूका । इसका एक मात्र कारण यही लगता है कि न विचारों में शक्ति थी न चिन्तन में, इसीलिए परिणाम नहीं आए ।
    नर्मदा समग्र ने नर्मदा पर काम करने से पहले एक दर्शन की आवश्यकता महसूस की । इस दर्शन में तीन मूलभूत सिद्धान्त बनाये   गये ।
    पहला नदी का एक जीवमान इकाई माना जाये । यदि जीवमान इकाई मानेंगे तो इसको देखने की दृष्टि भिन्न होगी, व्यवहार भिन्न   होगा ।
    दूसरा नर्मदा अमरकंटक से भरूच तक ओर प्रत्येक सहायक नदी के उद्गम और संगम तक एक इकाई है ।
    तीसरा सम्पूर्ण नदी संसार को लेकर जो विचार हो, वह समग्रता के साथ हो । इन तीनों सिद्धान्तों के कारण हमारा भाव, हमारा व्यवहार बदल जायेगा, हमारी दृष्टि बदल जायेगी । नर्मदा अंचल में बसे वनवासी नर्मदा को मैया कहते हैं । जब भी कहते हैं तो भाव उसी अनुरूप होते हैं और व्यवहार भी वैसा होता है ।
    यात्रा के दौरान हर पड़ाव पर चोपाल में स्थानीय लोगों के साथ होने वाली चर्चा में एक मुख्य बात सामने आई नर्मदा में मिलने वाली सहायक नदियों का जल निरन्तर सूख रहा है । मैने यात्रा में अपनी आंखों से शक्कर, साकरी गंगा और दूधी नदी को देखा जो बूंद भर पानी भी नर्मदा में नहीं ला रही थी । नर्मदा की ४१ सहायक नदियों में से अधिकांश नदियों ने प्रदूषित गंदे नाले का रूप ले लिया है । नर्मदा का अस्तित्व पहाड़ों और जंगलों से रिस-रिस कर आने वाले जल पर निर्भर   है । साथ ही सहायक नदियों के मिटते अस्तित्व का नर्मदा पर असर पड़ना भी स्वाभाविक हैं । इसीलिये सहायक नदियों के जंगलों का संरक्षण आवश्यक है । जंगलों की अंधाधंुध कटाई बड़ी चिन्ता का विषय है । यदि इनका संरक्षण नहीं किया गया तो आने वाले समय में नर्मदा में जल स्तर खतरनाक ढंग से कम हो जायेगा ।
    नर्मदा मात्र नदी नहीं है । एक जीवन शैली है । इसकी अपनी कला व संस्कृतिहै । अपना अर्थशास्त्र है, अपना व्यवहार है । इसीलिये भारतीय ऋषियों ने गहन चिंतन के बाद प्रकृति के सभी तत्वों के प्रति ईश्वर दृष्टि रखने के लिए प्रेरित  किया । हमारी संस्कृति में नदियों, पशु-पक्षी, वृक्ष को देवरूप मानकर पूजा गया, देवत्व का स्थान दिया गया । एक मनीषी परम्परा विकसित की गयी । बदलते परिदृश्य में वह मनीषी परम्परा विखण्डित हुई है । हमारी देखने की, समझने की दृष्टि में परिवर्तन आया, हमारा व्यवहार बदला और इस बदले व्यवहार से ही नर्मदा का अस्तित्व खतरे में आ  गया । नीति निर्धारकों के लिए जल का भण्डार है, जिसका अधिकतम उपभोग व उपयोग वे करने की योजना बनाते रहते हैं । नर्मदा जी के ंसंरक्षण को लेकर उठी इसी चिंता की समाज के साथ बैठकर, विचार करने, मंथन करने, कार्य योजना बनाने और क्रियान्वयन करने के लिए नर्मदा समग्र ने अन्तर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव की शुरूआत की । यह महोत्सव उत्सव आयोजन मात्र नहीं है ।
    देश दुनिया के लोगों के साथ मिलकर नदियों के प्रति सह-अस्तित्व और सांकरी दृष्टि विकसित करने का प्रयास है । यह प्रयास भारतीय संस्कृति, दर्शन और अनुसंधान का समायोजन है । इसके लिये सम्पूर्ण नदी संसार की समझना आवश्यक है । इसे किसी फाइव स्टार होटल के वातानुकूलित कक्ष में नहीं समझा जा सकता । इसे नर्मदा के किनारे उसको कल-कल ध्वनि और जल के स्पन्दन को ह्दय से अनुभव करके ही समझा जा सकता था । नदी को समझने में जीवन, जीवन सिद्धान्त, समाज और सभ्यता का मूल समाहित है । इसीलिये बांद्राभन में नर्मदा के किनारे नर्मदा तथा संगम स्थल की नदी महोत्सव के लिये चुना गया, ताकि विचार और वृत्ति, सृजन के समीप हो और यथेष्ठ चिंतन हो सके ।
    इन महोत्सवों में देश दुनिया के वैज्ञानिकों, सामाजिक कार्यकताआें, बुद्धिजीवियों, शिक्षकों, शोधार्थियों, कला, संस्कृतिविशेषज्ञों, नर्मदा सेवियों में जल में स्थित जीवन के सभी तथ्यों पर मंथन किया । इन सैकड़ों विद्धानों के निष्कर्षो ने बांद्राभान घोषणा पत्र जारी किया, जिसके अनुसरण में नर्मदा को हरी चुनरी ओढ़ाने का प्रयास, जल शुद्धिकरण के लिये तांबे-चांदी के सिक्कों की घाटी पर उपलब्धता, नदी के घाटी की सफाई, नर्मदा जयंती व अन्य आयोजनों में प्लास्टिक से बने दीपक के स्थान पर पत्तों व आटे से बने दीपक से दीपदान करने के लिये प्रेरित करना, जहरीले रसायनों से निर्मित मूर्तियों को नर्मदा में प्रवाहित न कर वैकल्पिक व्यवस्था करना जैसे कार्यो व योजनाआें का क्रियान्वयन और संचालन किया जा रहा है ।
    नर्मदा समग्र का प्रयास है वर्तमान परिस्थितियों में नदी के सभी पक्षों को समझना और नदी के समग्र  आयामों पर विचार कर एक ऐसी सामाजिक चेतना और दृष्टि प्रवाहित करना जिससे नदी संरक्षण की परम्प्रा विकसित हो । प्रदूषित होती नदी को शुद्ध करने के लिये सामाजिक, राजनैतिक और सरकारी उपक्रम सभी के साझे प्रयत्न हो, एक सामूहिक कार्य संस्कृति विकसित हो । वस्तुत: नर्मदा यात्रा के समय नर्मदा अंचल वासियों के साथ चौपाल में होने वाले संवाद और मंथन से जो विचार उठे, जो संकल्प बने यह उनका क्रियान्वयन है ।
    यदि समाज आगे आ गया तो नदियों का सदा नीरा बनाये रखने इसके अस्तित्व को सर्वोपरी बनाने, इसकी जेब विविधता के संरक्षण के साथ होने वाले प्रदूषण और इसके स्वास्थ्य में गिरावट को कम करने की पहल सार्थक होगी । यह संभव हो गया तो नर्मदा संरक्षण के सृजन का आरंभिक बिन्दु निश्चित ही विराट में परिणित होगा । 

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