शुक्रवार, 17 मार्च 2017

पक्षी जगत
पक्षी विहार : पक्षियोंका नंदनवन
डॉ. किशोरीलाल व्यास
    हमारी संस्कृति पशु-पक्षियों को संरक्षण प्रदान करती है यदि इन मूल्यों को पुनरूज्जीवित किया जाए तो इस पक्षी विहार की गौरव-गरिमा पुन: लौटाई जा सकती है ।
    पक्षी ईश्वर के दूत होते है। वे प्रेम, सौन्दर्य, आनंद, उन्मुक्तता, स्वच्छन्दता और उदारता के प्रतीक   है । पक्षियों के लिए कहींकोई सीमाएं नहीं कहीं प्रतिबंध नहीं है । मानव के घोर स्वार्थ, अदूर दृष्टिकोण व्यवहार और मनमानी के कारण प्रकृति से कई प्राणियों का लोप हो गया है मनुष्य अपनी वीरता प्रदर्शन या अन्य कारणों से प्राणियों का अंधाधुंध शिकार करता है । 
     सौभाग्य से स्वतंत्रता के बाद ऐसे शिकार पर कानूनी प्रतिबंध लग गया । अपने आरंभिक दिनों में नव अमरीकनों ने, बाइसन नाम प्राणियों का जो कि जंगलों व मैदान में स्वच्छद झुण्ड के झुण्ड घूमा करते थे, इतना भयंकर संहारा किया कि बाइसन जाति के प्राणी प्राय: लुप्त् हो गये । पशुआें-पक्षियों का शिकार, गोश्त, चमड़ा, ऊन, झर, नाखून, सिंग, हडि्डयों, हाथी दांत आदि के लिए आज भी अवैध रूप से अबाध गति से चलता है । दवाई, तेल, फर-कोट, टोपी सजावटी वस्तुआें आदि के लिए शिकार किया जाता है । इन वस्तुआें की अवैध तस्करी कर, विदेश भेजी जाती है । तस्करी के अनेक अन्तर्राष्ट्रीय गुट बने हैं । यद्यपि ऐसे शिकार पर कानूनी प्रतिबंध है, पर यह कार्य गुप्त् रूप से जारी हैं जब तक दण्ड-विधान सख्त नहीं होगा तथा जन-जागरण नहीं आएगा, तब तक पशु-पक्षियों का शिकार अबाध गति से चलता    रहेगा । जंगलों का राजा सिंह प्राय: लुप्त् हैं अन्य लुप्त् होते जीवों में बाद्य, चीता, कस्तुरी मृग हैं जिसका पूरी तरह सफाया हो गया लगता है ।
    हिरण, कुरंग, छिपकलियां, हांगुल या कश्मीरी बारहसिंगा, बिल्ली, नेवला, बंदर, लंगूर, पहाड़ी भेड़, बकरियां, चकोर, मराल, गीदड़, लोमड़ी, काली गर्दन वाला सारस, बाज, सफेद पंख वाली बत्तख, सारंग, तोते आदि कई पक्षी हैं । हाथी, गैंडा जेसाविशाल पशु-समुद्री व्हेल जो दुनिया का सबसे बड़ा जानवर हैं आज इन सभी जीवों व प्राणियों का जीवन खतरे में है । इनसे चर्बी, तेल, हड्डी आदि कई चीजें मिलती है ।
    अपनी जरूरतों को इस क्रमश: कम करते जाएं । सादगी अपनाएं तथा पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों के प्रति बुद्ध और महावीर, वैष्णवों और संतों का करूणा भाव    अपनाएं ।
    अन्य प्राणियों के जीवन रक्षा का भाव प्राचीनकाल से हमारे परिवारों, समाजों तथा लोक जीवन का एक अनिवार्य अंग है । इसे नवीन पीढ़ी तक कारगर ढंग से पहुंचाए, यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए । मानव जाति की सुरक्षा भारतीय जीवन विधान में ही निहित है । पशु-पक्षियों की सुरक्षा हमारी वैदिक परम्परा है । अत: हम इनके अधिकारों के प्रति सजग रहें तथा इनका सम्मान करें ।
    फूलोंके परागण, फलों, बीजों के वितरण आदि में पक्षी बड़े सहायक होते हैं । हमारी संस्कृति में कई पक्षियों को शुभ माना गया है । यथा नीलकंठ, गरूड़, मयुर आदि पक्षियों का आना जीवन का प्रतीक  है । जहां जीवन का आनंद है, वही पक्षी आएंगे ।
    राजस्थान का भरतपुर पक्षी विहार वहां से विशाल जलाशय के कारण है जिसे दो सौ वर्ष पूर्व वहां के नरेश ने निर्मित किया था । आज वहां साइबेरिया से सहस्त्रों मील की यात्रा तय कर हजारों प्रवासी पक्षी आते हैं । पक्षी विहार निर्मित करने के लिए सरोवर के तट पर गहन वृक्षारोपण किया जाना चाहिए । साथ ही पक्षियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जानी चाहिए ।
    अंतत: वृक्षारोपण द्वारा ही घायल धरती को पुन: जीवनदान दिया जा सकता है । अत: हरित क्रांति कार्यक्रम को जीवन का अनिवार्य अंग बनाया जाना चाहिए । राजस्थान स्थित भरतपुर राष्ट्रीय पक्षी विहार देश का सबसे बड़ी पक्षी उद्यान है । जो लगभग ३० कि.मी. क्षेत्र में फैला   है ।
    आज से दो सौ वर्ष पूर्व भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने एक बरसाती नालों तथा बाण गंगा, परिल और गंभीर नदियों को रोककर, इसी निर्मित किया था । सन् १९५६ में इस क्षेत्रों में पक्षियों के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया । सूरजमल बड़े प्रतापी, वीर व दूरदृष्टि सम्पन्न राजा थे जिन्होंने मुगलों से वर्षो तक टक्कर ली । युद्ध में लड़ते हुए इनकी मृत्यु १७६३ में नदीम खां मुगल के हाथों में हुई थी ।
    राजा ने काफी लम्बा बांध बना दिया जिससे वर्षा का जल विस्तृत क्षेत्र में फैल गया । कतिपय वर्षो तक पानी संग्रहित होता रहा और जलीय प्रभाव के कारण अनेक पेड़ पौधे, जलीय वनस्पति, मछलियां इत्यादि स्वयं पनपने लगे । पेड़ बड़े और घने हो गये । किसी को पेड़ काटने की अनुमति नहीं थी । क्रमश: इन पेड़ों पर पक्षियों ने अपना डेरा बनाया । कालांतर में हजारों मील की यात्रा तय कर साहबेरिया से सारस तथा अन्य पक्षी आने लगे । इस क्षेत्र में लगभग ३५० प्रजातियों के पक्षी पाये जाते    हैं । जिनमें लगभग २०० भारतीय व १५० विदेशी व प्रवासी पक्षी होते हैं ।
    इस क्षेत्र में साइबेरिया, मंगोलिया, चीन, तिब्बत, मध्य एशिया आदि देशों में बढ़ी मात्रा में पक्षी आते हैं । इस पक्षी विहार में क्रमश: जीव वैविध्य पनपने लगा । चीतल, नील, गाय, जंगली सूअर, गीदड़, नेवले, सांप तथा अन्य छोटे बड़े कई प्राणी बसते है । पेन्टेड स्टार्क, ओपन स्टार्क, द ग्रेट बत्तखे, सारस जैसे पक्षी शीतकाल में यहां आंकर अंडे देते हैं फिर अंडो से बच्च्े निकलकर बड़े होते है । उड़ना और मछली का शिकार करना सीखते हैं और शीतकाल के समाप्त् होते ही लम्बी यात्रा पर निकल पड़ते हैं । हजारों मील उड़कर ये पक्षी अपने मूल स्थानों पर पहुंच जाते हैं ।
    फ्लेमिगो, आर्केटिक टन्र, सारस, इंजीरियल ईगल, स्टेप ईगल, मार्श हैटियर, कैंगर फाल्म आदि पक्षी भी आते हैं । भारतीय पक्षियों में नीलकंठ, बुलबुल, कठफोडवा, कबतूर, मोर और तरह-तरह की चिड़िया होती है । ये पक्षी इन पेड़ों पर अपना आहार व आश्रय पाते हैं । भरतपुर का पक्षी विहार विश्व प्रसिद्ध है । यह एक उथली मानव-निर्मित झील है जो इस बात की द्योतक है कि यदि वर्षा जल को छोटे बांधों द्वारा रोका जाए, तो जल के कारण जैव प्रक्रियाएं आरंभ हो जाती हैं । मनुष्य इस में हस्तक्षेप न करे तो क्रमश: जलीय वनस्पतियां पेड़ पौधे विकसित होते हैं । केचुएं, मछलियां, झिंगे आदि पनपते है । वन्य जीव जन्तु आ जाते हैं और पक्षियों का मेला आरंभ होता है ।
    दुर्भाग्य से झील जल संरक्षण क्षेत्र मं गांव वालों द्वारा पानी को रोक लिये जाने के कारण इस झील में प्रतिवर्ष जलस्तर कम होता जा रहा  है । प्रवासी पक्षियों की संख्या भी घट रही है । विश्व में दूसरे स्थान पर आने वाला यह पक्षी विहार धीरे-धीरे समाप्त् हो जाएगा, यदि इस झील पर ध्यान न दिया । अन्य अभ्यारण्यों तथा विहारों के समान जनसंख्या का दबाव यहां भी देखा जा सकता है ।
    वर्षा जल संचयन द्वारा इस प्रकार के अनेक जलाशय निर्मित किये जा सकते हैं । हमारे देश में जो पानी बरसता है, उसमें से अधिकांश मात्र में जल व्यर्थ बह जाता है । यदि निश्चयपूर्वक ग्रामीण सरोवरों का उद्धार किया जाय, नये जलाशय निर्मित किये जांय, पुराने गाद भरे जलाशयों से मिट्टी निकाल दी जाए, सरोवरों की सीमा निर्धारित की जाए तथा इनकी मेड पर वृक्षों की गहरी बाड़ लगाई जाय, तो सहज ही ये सरोवर पक्षी विहार का रूप धारण कर लेंगे । जल धाराआें को रोककर तथा वृहत् वृक्षारोपण द्वारा जैव विविधता की रक्षा की जा सकती    है ।

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