शुक्रवार, 17 मार्च 2017

विज्ञान जगत
चिकित्सा में उपयोगी कागजी सेंट्रीफ्यूज
अश्विन शेषशायी
    कागजी सेंट्रीफ्यूज यानी पेपरफ्यूज लगभग १ लाख २५ हजार चक्कर प्रति मिनट की रफ्तार से घूम सकता है और गुरूत्वाकर्षण से ३०,००० गुना ज्यादा बल पैदा कर सकता है । यह किसी भी नैदानिक प्रयोगशाला के लिए उपयुक्त है और इसकी लागत मात्र १४ रूपए है ।
    आधुनिक विज्ञान एक नफीस उद्यम है जिसके लिए उच्च् कोटि की कुशलता और काफी पैसे की जरूरत होती है । यदि विज्ञान के लाभ आम लोगों तक पहुुंचाने हैं तो यह एक बड़ा अवरोध साबित होता  है । स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह समस्या विशेष रूप से उभरती है । हमारे पास आज ऐसी टेक्नॉलोजी है जिसकी मदद से हम कई सारे जीवों में जेनेटिक परिवर्तन कर सकते हैं और एक मायने में ईश्वर-ईश्वर खेल सकते हैं । मगर दूर-दराज के किसी गांव में अत्यंत सामान्य नैदानिक जांच करने के मामले में हम समस्याआें सेे घिर जाते हैं । 
     इसका एक कारण यह है कि आजकल किसी आधुनिक नैदानिक प्रयोगशाला या अस्पताल में जिस ढंग की टेक्नॉलॉजी इस्तेमाल की जाती है वह पोर्टेबल नहीं होती या इतनी महंगी होती है कि उसका उपयोग किसी दूरस्थ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में करना मुश्किल होता है, ख्रास तौर से यदि उपयुक्त हुनर उपलब्ध न हों ।
    सवाल है कि क्या यह जरूरी है कि नैदानिक टेक्नॉलॉजी महंगी और पेचीदा हो ? स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक इंजीनियर मनु प्रकाश की प्रयोगशाला में इस समस्या का मुकाबला किया जा रहा है । कुछ समय पहले उन्होेने एक सस्ता ओेरिगैमी सूक्ष्मदर्शीबनाकर पेश किया था । इसे फोल्डस्कोप नाम दिया गया था । अब उन्होंने एक प्रकाशन में पेपरफ्यूज नामक एक उपकरण का विवरण दिया है । यह कागज से बना सेंट्रीफ्यूज उपकरण  है ।
    जैव चिकित्सा प्रयोगशालाआें में सेंट्रीफ्यूज एक महत्वपूर्ण उपकरण होता है । इसमें एक रोटर होता है जो निहायत तेज गति से - प्रति मिनट हजारों चक्कर की दर से घूमता है । इसके इस घूर्णन की वजह से बाहर की ओर बल लगता है । इस बल की मदद से किसी मिश्रण के घटकों को उनके वजन के हिसाब से अलग-अलग किया जा सकता है । उदाहरण के लिए, रक्त कई किस्म की कोशिकाआेंका मिश्रण होता है । सेंट्रीफ्यूज मेंथोड़ी दरे के लिए रक्त को घुमाया जाए, तो इन अलग-अलग कोशिकाआें को अलग-अलग किया जा सकता है ।
    एक छोटे-से टेबल-टॉप सेंट्रीफ्यूज की कीमत लाखों रूपए हो सकती है और यदि बड़ी मशीन लेना हो, दसियों लाख रूपए हो सकती    है । ऐसे नफीस सेंट्रीफ्यूज को काफी सावधानीपूर्वक चलाने और रख-रखाव की भी जरूरत होती है । इस वजह से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इनका उपयोग लगभग असभंव ही होता है ।
    मगर हम सबनेचित्र मेंदिखाया गया लट्टू तो देखा भी होगा और उसके साथ खेले भी   होंगे । यह एक गोलाकर चकती होती है जो एक लचीली डोरी को बार-बार खींचने और ढीला छोड़ने पर घूमती है । इसी खिलौने में थोड़ा फेरबदल करके गुब्बारे वाले समुद्र तटोंपर बेचते हैं । इसमें तो लाइटें भी लगी होती हैं जो चकती के घूमने के साथ जलती-बुझती रहती हैं । इसे बनाने में बहुत पैसा नहीं लगता और इसे चलाने में किसी खास हूनर की जरूरत भी नहीं पड़ती है । ऐसे खिलौने कम से कम २००० सालों में हमारे साथ रहे हैं ।
    स्टेनफोर्ड की उपरोक्त प्रयोगशाला के पोस्ट-डॉक्टरल फैलो साद भामला आर उनके साथियोंने इस खिलौने की मेकेनिक्स को समझा और यह पता किया कि डोरी के तनाव को कैसे एक ऐसे बल में तबदील किया जाता है जो डोरी से जुड़ी चकती को घुमाता है । उन्होंने देखा कि सिद्धांतत: एक उपयुक्त लट्टू खिलौना प्रति मिनट १० लाख चक्कर तक की गति पैदा कर सकता है ।
    अपनी गणनाआें की बुनियाद पर इन शोधकर्ताआें ने लट्टू सेंट्रीफ्यूज (पेपरफ्यूज) डिजाइन किया जो १,२५,००० चक्कर प्रति मिनट की गति से घूमता है और गुरूत्व बल से ३०,००० गुना ज्यादा बत उत्पन्न करता है । यह प्रयोगशालाआें और नैदानिक कार्योंा के लिए उपयुक्त है । चूंकि यह पूरी तरह कागज से बना है, इसकी कीमत मात्र १४ रूपए है ।
    अपने सिद्धांत के प्रदर्शन के तौर पर भामला और उनके साथियों ने पेपरफ्यूज का उपयोग रक्त से प्लाज्मा के पृथक्करण के लिए करके देखा प्लाज्मा के पृथ्क्करण के लिए रक्त के कोशिकीय पदार्थ को तली मेंबैठा दिया जाता है । ये लोग एक कदम और आगे बढ़े और पेपरफ्यूज का उपयोग करकेे रक्त में से मलेरिया परजीवी को भी पृथक कर लिया  ।
    अभी इसे आम उपयोग का उपकरण बनने में वक्त लगेगा किंतु इतना तय है कि रोजमर्रा के साधारण से  खिलौने को नवाचारी ढंग से प्रयोगशाला के एक उपकरण में बदलने का प्रयास जैव चिकित्सा के इस अत्यंत उपयोगी अस्त्र को दूर-दराज के इलाकों में ले जाने में बहुत मददगार हो सकता है ।   

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