शुक्रवार, 7 सितंबर 2007

१२ जन जीवन

दिल्ली में निजी कारों पर पाबन्दी क्यों न हो ?
सुनील
इन दिनों दिल्ली की सड़को पर दिखाई देती हैं कारें ही कारें, नए-नए मॉडलों की अनगिनत कारें । बसों, ऑटो, रिक्शों आदि के मुकाबले उनकी संख्या तेज़ी से बढ़ी है । साइकिलें और दुपहिया स्कूटर-मोटर साइकिलें तो अब कम ही दिखाई देती हैं । गाड़ियों के इस विशाल हुजूम में अब ऐसे वाहन चलाना खतरे से खाली भी नहीं है । तांगे, साइकिल रिक्शे, बैलगाड़ियां, हाथ ठेले तो अब लुप्त् हो रहे हैं । इस `कार-क्रांति' को वैश्वीकरण के युग की देन माना जा सकता है । दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या ४० लाख है, जिनमें कारों की संख्या लगभग १५ लाख है । एक जानकारी के मुताबिक वर्ष १९९४-९५ से २००३-०४ के बीच दिल्ली में छोटी चार पहिए वाली गाड़ियों की संख्या में ९.२७ प्रतिशत वार्षिक का इज़ाफा हुआ है । हाल के वर्षो में यह वृद्धि दर दुगनी हो गई होगी । यानी दिल्ली में कारों की संख्या में विस्फोट हो रहा है। हम अक्सर जनसंख्या विस्फोट की चर्चा व चिंता करते हैं, किन्तु उससे बड़ा यह `कार-विस्फोट' है, जो दिल्ली व देश के अन्य महानगरों में घटित हो रहा है । इस कार-क्रांति पर आज चाहे कोई इतरा ले, लेकिन दिल्लीवासियों के लिए यह गले की हड्डी बन गई है । गाड़ियों की संख्या में इतनी तेज़ी से वृद्धि होने से दिल्ली की यातायात व्यवस्था ध्वस्त हो गई है । ट्राफिक जाम होना आम बात है और उसमें फंसना एक यातना से कम नहीं होता । दिल्ली में कारों का यह विशाल रेला कई बार चींटियों की चाल से चलता है और एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने में घंटो लग जाते हैं । यातायात को सुगम बनाने के लिए सड़के लगातार चौड़ी की जा रही हैं, सैकड़ो फ्लाई ओवर और पुल बनते जा रहे हैं । इन फ्लाई ओवरों से दिल्ली अब वैसा ही बन गया है, जैसा कुछ साल पहले लन्दन व न्यूयॉर्क के चित्रों को हम हैरानी से देखते थे । चौराहों, ट्राफिक बत्तियों, सबवे आदि का भी लगातार आधुनिकीकरण और विकास हो रहा है । लेकिन यातायात की समस्या सुरसा-मुख की तरह बढ़ती जा रही है । सड़को पर दुर्घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं । मोटरगाड़ियो से वायु प्रदूषण और शोर प्रदूषण दिल्ली में चरम पर पहुंच रहा है । लाखों कारों की यह विशाल संख्या जब चलती हैं, तब तो सड़कों को जाम करती ही है, जब खड़ी रहती है, तब भी समस्या बनती है । दिल्ली की सबसे महंगी जमीन पर बहुत सारे बड़े-बड़े (अब बहुमंजिले) पार्किंग स्थल बनाने पर भी समस्या बढ़ती जा रही है । बहुमंजिला आवासीय इमारतों तथा हाउसिंग सोसायटियों में भी कारों की नित बढ़ती भीड़ के कारण रात को कार खड़ी करना और सुबह निकालना एक बड़ा सिरदर्द हैं। कई परिवारों में अब दो-दो कारें है । दिल्ली की गंभीर यातायात समस्या को सुलझाने के लिए सुझाव दिए जा रहे हैं, अध्ययन और सर्वेक्षण हो रहे हैं, कदम उठाए जा रहे हैं । कई बार ये कदम व सुझाव गरीब विरोधी होते हैं, जैसे तांगे व साइकिल-रिक्शे बंद करना, खोमचे वालों को हटाना, झुग्गियों को हटाकर सड़कों को चौड़ी करना या पार्किग स्थल बनाना आदि । मानों दिल्ली में सिर्फ कारवालों को ही रहने व जीने का हक हो । लेकिन गरीबों पर अत्याचारों और देश का पैसा खर्च करने के बाद भी दिल्लीकी यातायात समस्या हल नहीं हो रही है । इस सुरसा-मुखी समस्या का एकमात्र हनुमान रूपी समाधान है कि कारों के स्थान पर परिवहन के सार्वजनिक साधनों को सुलभ व बेहतर बनाया जाए । ज्यादा व अच्छी बसे चले, टैक्सियों व रिक्शों की सेवाआे को सुधारा जाए । दिल्ली में मेट्रो रेल का विस्तार तो हो ही रहा है । जिसको लंबी दूरी की यात्रा करना है, वह सार्वजनिक साधनों से जाए । जिसे नजदीक जाना है, वह पैदल, साइकिल या मोटर साइकिल से जाए । यदि ऐसा कर दिया जाए तो इससे कई फायदे होंगे । दिल्ली की सड़कों पर वाहनों में एक तिहाई कमी हो जाएगी । ट्राफिक जाम लगभग खत्म हो जाएंगे । दिल्ली में आने-जाने का समय भी बचेगा। दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य को दोहरा फायदा होगा । प्रदूषण तो कम होगा ही, लोग ज्यादा पैदल या साइकिलों पर चलेंगे, जिससे उनकी शारीरिक कसरत होगी । उन्हें अलग से जिम, व्यायाम शाला, मोटापा कम करने वाले केन्द्रो और सुबह शाम भ्रमण हेतु पार्को में जाने की जरूरत भी कम होगी । एक सर्वेक्षण के मुताबिक दिल्ली की ५७ प्रतिशत यात्राएं ५ कि.मी. से कम की होती हैं । अर्थात प्रतिदिन ४५ लाख यात्राओ की दूरी ५ कि.मी. से कम होती है । ये यात्राएं साइकिलों से आसानी से की जा सकती है, जिसमें धन, समय व स्वास्थ्य तीनों की बचत होगी । निजी कारों पर पाबन्दी लगाने से दिल्ली में साइकिलों की संख्या में भारी वृद्धि होगी। `कार-क्रांति' का स्थान `साइकिल-क्रांति' ले लेगी । इसके लिए यातायात व्यवस्था में कुछ बदलाव करना होगा । कारों से खाली हुई सड़को पर पैदल व साइकिलों की लिए अलग से सुरक्षित लेन बनानी होगी । निजी कारों पर पाबन्दी लगाने से इंर्धन की काफी बचत होगी । हमें पेट्रोल व गैस विदेशों से आयात करना पड़ता है, जिसे संतुलित करने के लिए देश को निर्यात पर बहुत जोर देना पड़ता है । निर्यात के लिए अनुदान व करों में छूट दी जाती है । इंर्धन बचने से ग्रीनहाउस गैसों को कम करने और ग्लोबल वार्मिग का खतरा टालने में भी दिल्ली अपना योगदान कर सकेगा । कारें बंद होने से दिल्ली में नए पार्किंग स्थल नहीं बनाने पड़ेंगे और सड़कों को और चौड़ी करने की जरूरत भी कम हो जाएगी । कई पार्किंग स्थलों को छोटा या खत्म भी किया जा सकता है । इससे जो जगह बचेगी, वहां बच्चें के लिए खेलने के मैदान, पार्क, अस्पताल, वृद्धाश्रम, रैन बसेरे आदि बनाए जा सकते हैं। यातायात की समस्या हल हो जाने से अपने कार्यस्थल तक आने-जाने में बचा समय दिल्ली के नागरिक अपने बच्चें व परिवार के साथ बिता सकेंगे तथा रचनात्मक गतिविधियों में ज्यादा समय दे सकेंगे । कुल मिलाकर दिल्ली का जीवन बेहतर बनेगा । सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि दिल्ली के अमीरों और गरीबों में बढ़ती दूरी तथा सामाजिक भेदभाव कम होगा । गरीब मजदूर और करोड़पति दोनों सार्वजनिक साधनों से यात्रा करेंगे । इससे यातायात के सार्वजनिक साधनों से यात्रा करने की सेवाएं सुधारने की ओर समाज के प्रभावशाली तबके का ध्यान अपने आप जाएगा । आज अपनी वातानुकूलित कारों में यात्रा करने के कारण वे कभी बसों या रेल के बारे में सोचते भी नहीं है। समानता की दिशा में दूसरा फायदा यह होगा कि दिल्ली की सड़को, पुलों, फ्लाई ओवरों, पार्किंग स्थलों आदि को विकसित करने में इस गरीब देश के संसाधनोंका जो गैर अनुपातिक हिस्सा खर्च हो रहा है, उसमें भी कमी आएगी । गांधी के इस देश में सादगी और वैकल्पिक जीवन शैली की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण प्रयोग होगा। दिल्ली की सीमा में निजी कारों को बंद करने वाला यह प्रस्ताव कई लोगों को काफी क्रांतिकारी, अटपटा व अस्वीकार्य लग सकता है । विशेषकर निजी गाड़ी में आने-जाने के अभ्यस्त हो गए अमीर एवं मध्यम वर्ग को यह बात आसानी से नहीं पचेगी । लेकिन इसके अलवा कोई विकल्प नहीं है । दिल्ली के बिगड़ते हालात का और कोई समाधान नहीं है । कुछ लोग कह सकते हैं कि यह अव्यावहारिक है, इससे असुविधा होगी और इसें कैसे लागू किया जाएगा? किंतु यह वैसा ही है, जैसे महानगरों की कई सड़को पर दिन में भारी वाहन आने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता हे या कई स्थानों पर पार्किग या यू-टर्न प्रतिबंधित कर दिया जाता है । यूरोप के कई शहरों में पहले से कुछ घने इलाकों में वाहनों पर प्रतिबंध है और लोग वाहन खड़ाकरके वहां पैदल जाते हैं । सिंगापुर में भी कारों पर कुछ रोक लगाई गई है । यह उसकी तरह का थोड़ा प्रतिबंध है । सार्वजनिक हित में कुछ असुविधा तो उठानी होगी । नहीं तो भविष्य में असुविधा सबको होगी और भयानक रूप ले लेगी । कुछ लोग सुझाव दे सकते है कि निजी कारें प्रतिबंधित करने की बजाए उन्हें महंगा कर दिया जाए, जिससे उनकी संख्या कम हो जाएगी । जैसे पार्किंग शुल्क बढ़ा दिए जाएं । किंतु इस सुझाव की खामी यह है कि जो ज्यादा अमीर होंगे, वे निजी गाड़ियों का उपयोग पूर्ववत करते रहेंगे । एक अन्य सुझाव है कि गाड़ियोंके नंबर अंतिम अंक के आधार पर उन्हें समाप्त् के अलग-अलग दिन चलने की अनुमति दी जाए । किंतु इसकी निगरानी दिल्ली जैसे विशाल महानगर में काफी मुश्किल होगी । फिर, इन आंशिक उपायों से दिल्ली की यातायात समस्या का पूरा समाधान भी नहीं निकलेगा । कुछ लोगों को निजी कारों को बंद करने का यह प्रस्ताव एक प्रकार की तानाशाही भरा कदम लग सकता है । लेकिन जनहित में कड़े निर्णय तो लोकतंत्र में भी लेने पड़ते हैं । दिल्ली में ही पर्यावरण को बचाने के लिए प्रदूषणकारी उद्योगों को दिल्ली से बाहर करने तथा पेट्रोल-डीजल चालित बसों, आटो रिक्शा व टैक्सियों को बंद करने के कड़े आदेश क्रियान्वित भी किए जा चुके हैं । इस मामले में भी सवाल पर्यावरण और जनहित का ही है । पिछली बार सार्वजनिक वाहनों पर जिम्मेदारी डाली गई थी, किंतु उनमें डीजल-पेट्रोल की जगह सी.एन.जी. उपयोग करने से प्रदूषण की समस्या हल नहीं हुई । समस्या का प्रमुख स्त्रोत निजी कारें है, जिन्हें प्रतिबंधित किए बगैर काम नहीं चलेगा । वास्तव में ठंडे दिमाग से, ध्यान से सोचा जाए तो इस प्रस्ताव में सबको फायदा ही है । इसमें नुकसान सिर्फ कारें बनाने और बेचने वाली कंपनियों का होगा और विरोध भी उनकी तरफ से ही सबसे ज्यादा होगा । कारें बनाने वाली देशी और विदेशी कंपनियों की यह लॉबी इतनी ताकतवर है कि वह भारत सरकार की नीतियों को भी प्रभावित करती है । इसलिए इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए काफी राजनैतिक इच्छा शक्ति की जरूरत होगी, जिसकी काफी कमी वर्तमान सरकारों में दिखाई देती है । इसलिए दिल्ली की जनता को इस मांग को एक जन-आंदोलन का रूप देना होगा । बिजली और पानी के निजीकरण के खिलाफ दिल्ली के कॉलोनी वासियों ने जिस जागरूकता का परिचय दिया है, उसी तर्ज पर, किंतु उससे ज्यादा सामूहिक व संगठित प्रयास और आंदोलन की जरूरत होगी । एम.सी. मेहता, अनुपम मिश्र और सुनीता नारायण जैसे पर्यावरणविद, अरूंधती राय और अरविन्द केजरीवाल जैसे सामाजिक कार्यकर्ता, प्रभाष जोशी, कुलदीप नैय्यर और राजिन्दर सच्च्र जैसे बुद्धिजीवी इस मामले में महत्वपूर्ण पहल कर सकते हैं । भारत की राजधानी, ढाई हजार साल पुरानी इस ऐतिहासिक नगरी, दिल्ली के बाशिंदे के सामने दो ही विकल्प है । एक साहसिक फैसला लेकर न केवल अपनी यातायात समस्या को हल करें, बल्कि देश व दुनिया के अन्य महानगरों के सामने एक अनुकरणीय मिसाल पेश करें । अपने शहर को भी जीने लायक बनाएं और ग्लोबल वार्मिंग में कमी की भी एक राह दुनिया को बताएं । दूसरा विकल्प है कि पहले से नर्क बनती जा रही दिल्ली को और ज्यादा नर्क बनने दें, जिसका शिकार दिल्ली के अमीर और गरीब दोनों बनने को अभिशप्त् होंगे ।

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