शुक्रवार, 7 सितंबर 2007

११ ज्ञान विज्ञान

दुनिया का सबसे छोटा कम्प्यूटर शीघ्र बनेगा
अमेरिकी वैज्ञानिक इन दिनों दुनिया के सबसे छोटे कम्प्यूटर को विकसित करने में लगे हुए हैं । नैनोमैकेनिकल ऐसा कम्प्यूटर होगा जो इलेक्ट्रानिक्स के बजाय अस्थित सूक्ष्म उपकरणों के इस्तेमाल से चलेगा। इसके पार्ट्स इतने सूक्ष्म होंगे कि उन्हें खाली आँखों से नहीं देखा जा सकता है । माना जा रहा है कि इस कदम से कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी के नए युग की शुरूआत होगी । वैज्ञानिकों की यह कोशिश कारगर रही तो कम्प्यूटरों में बिजली की खपत में तो कमी आएगी ही, पारंपरिक कम्प्यूटरों का आकार भी काफी छोटा हो जाएगा ।

यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉनसिन में इलेक्ट्रिकल और कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के प्रोफेसर रॉबर्ट ब्लिक कहते हैं कि हमारा मकसद कंप्यूटिंग एप्लीकेशन के लिए नए तरह का उपकरण तैयार करना है । पारंपरिक उपकरणों में इलेक्ट्रॉन्स का इस्तेमाल किया जाता है जो सर्किट में चलते हैं और कम्प्यूटर चिप को सक्रिय करते हैं । हालाँकि नैनोमैकेनिकल कम्प्यूटर भी इलेक्ट्रॉन्स पर ही निर्भर होंगे, लेकिन वे इलेक्ट्रॉन्स के प्रवाह के लिए ठोस इलेक्ट्रानिक कंपोनेंट्स के बजाय सूक्ष्म आकार वाले लाखों घूमते पार्ट्स के प्रेशर का इस्तेमाल करेंगे । प्रो. ब्लिक ने बताया कि नैनोमैकेनिकल चिप बिजली की खपत में कमी लाएगी । ये ५०० डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा तापमान में परफार्म कर सकेंगी । वे कहते हैं कि अमेरिका में कुल एनर्जी का १५-२० प्रतिशत कम्प्यूटरों को ऑपरेट करने और उन्हें ठंडा रखने में खर्च होता है । हमारा मकसद ऊर्जा खपत की समस्या से निजात दिलाना भी है । यही नहीं, इन चिप की मदद से पोर्टेबल कम्प्यूटर बनाने में भी मदद मिलेगी और लेपटॉप में बैटरी जल्द खत्म हो जाने की समस्या भी बहुत हद तक दूर हो सकेगी।

मक्खियाँ इंसानों जैसा सूँघती हैं
मक्खिया देखते ही ये लगने लगता है कि आसपास कहीं गंदगी है और इस वजह से वे भिनभिना रही है परंतु क्या आप जानते हैं कि मक्खी और आदमी में समानता है । यह सुनने में भले ही थोड़ा अटपटा लगता हो लेकिन छोटी सी मक्खी में भी इंसानों जैसे गुण हो सकते हैं । वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि इंसान और मक्खियों में सूँघने की क्षमता करीबन एक जैसी है । इंसान और मक्खियों में सूँघने की क्षमता के अध्ययन रॉकफेलर विश्वविद्यालय में किए गए । शोधकर्ता के मुताबिक इंसान की तरह कीड़े-मकोड़े और मक्खियों से किसी भी महक को लेकर प्रतिक्रिया पाना बहुत मुश्किल था ।

सुगन्ध के मामले में उनके व्यवहार को लेकर कोई खास जानकारी उपलब्ध नहीं थी । शोधकर्ताआे ने फल मक्खी और इंसान में अलग-अलग खुशबूआे को लेकर होने वाली प्रतिक्रिया के बारे में जानने का प्रयास किया । दोनों के इस व्यवहार में काफी समानता देखने को मिली हैं । अध्ययन से जुड़े न्यूरोबायोलॉजिस्ट एन्ड्रिआस केलर और कीमर्स लैबोरेट्री के प्रोफेसर लेसली वोशाल के अनुसार मक्खी और इंसान दोनों ही महक की तीव्रता को एक जैसे भाँपते हैं । बस महक की गुणवत्ता के मामले में दोनों के निर्णय में अंतर होता है । उनके मुताबिक मनुष्यों के समान ही मक्खी में भी घ्राण प्रणाली तंत्रिका कोशिकाआे से संबंधित होती है । इन सभी कोशिकाआें में गंध को पहचानने के लिए खास संवेदक मौजूद होते हैं । संवेदक छोटे-छोटे समूह में गंध को पहचानते हैं और तंत्रिकाएँ संयुक्त रूप से हर सुगन्ध के प्रति प्रतिक्रिया दिखाती है । हालाँकि अलग-अलग जन्तुआे में संवेदकों की संख्या में अंतर होते हैं । चूहे में यह संख्या १२००, इंसानों में ४०० और फल मक्खी में ६१ संवेदक होते हैं । शोधकर्ता वोशाल और कैलर यह जानने के प्रयास में है कि इंसान और फल मक्खियों में गंध को पहचानने के लिए उपस्थित संवेदकों के विकास और संख्या में इतना अंतर क्यों है । अभी तक यह पता नहीं है कि अलग -अलग प्रजाति के जीव-जंतुआं में संवेदकों की संख्या में अंतर गंध को पहचानने में क्या फर्क पड़ता है ।
लुप्त् होते चिंकारा को बचाने की मुहिम
लुप्त्प्राय: चिंकारा को बचाने के लिए हैदराबाद के वैज्ञानिक आगे आए हैं। उन्होंने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे इनका संरक्षण संभव हो गया है । यह वही चिंकारा है जिसका शिकार करने पर फिल्म अभिनेता सलमान खान को पांच साल की सजा मिली है । इसके लिए कंजर्वेशन ऑफ एन्डेंजर्ड स्पेसीज नामक प्रयोगशाला में एक विशेष तकनीक `इंट्रा वेजीनलइनसेमिनेशन' को अपनाया गया ।

इसके लिए प्रयोगशाला के निदेशक डॉ. लालजीसिंह के साथ तीन अन्य वैज्ञानिकों संदानंद सोनातक्के, मनोज पटेल और जी. उमापति ने पांच चिंकारा से ८५ वीर्य सेंपल जमा किए । उनसे तीन मादा चिंकारा को गर्भवती करने की कोशिश की गई । इनमें से केवल एक ही गर्भवती हो पाई । उसी से एक छौना मिला है जिसे `ब्लेकी' नाम दिया गया है । कंजर्वेशन ऑफ एन्डेंजर्ड स्पेसीज नामक इस अति आधुनिक प्रयोगशाला में विलुप्त् हो रही प्रजाति के जानवरों के शुक्राणुआे को सुरक्षित रखकर प्रयोग किए जाते हैं । इसमें कृत्रिम वीर्यारोपण (इनसेमिनेशन) की सटीक विधि को भी विकसित किया गया है। वैज्ञानिकों के दावानुसार इस विधि से यह दुनिया का पहला हिरण है । इसका वजन २.६ किग्रा है । करीब १८ महीने पहले इसी तकनीक से एक सामान्य हिरण के छौने को पैदा करने में वैज्ञानिकों ने सफलता पाई थी । उसे `स्पॉटी' नाम दिया गया था ।
विकिरण से बचाएगी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक चिप
विकिरण हमेशा से मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है और कई बार विश्व स्तर पर किए गए अनुसंधानों में सिद्ध भी हो चुका है । ये विकिरण हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से निकलते हैं चाहे वो मोबाइल फोन हो, माइक्रोवेव, हेयर ड्रायर, यूपीएस यहाँ तक कि लेपटॉप और अन्य उपकरण । यद्यपि अलग-अलग उपकरणों से निकलने वाले विकिरण का परिणाम अलग होता है, परंतु ये सभी हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा रहे हैं । एक बड़ा प्रश्न सामने है कि क्या हम ऐसी तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर सकते जिससे विकिरण हमें नुकसान न पहुँंचा सके । इलेक्ट्रानिक उपकरण बनाने वाली एक कंपनी के मुताबिक इसका उत्तर है `हाँ' । इस भारतीय कंपनी का यह दावा है कि उसकी नई चिप हमें विकिरण से बचाने में मदद करेगी । कोर्जेट ईएमआर सोल्यूशन लि. द्वारा निर्मित यह चिप हमारे मोबाइल फोन में आसानी से फिट की जा सकती है । यह हमें खतरनाक विकिरण से बचाएगी तो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों द्वारा निकल रहा है । कोजेंट ग्रुप के चेयरमेन का कहना है कि हम बहुत सी ऐसी किरणों द्वारा बुने गए मकड़जाल के बीच जिंदगी जी रहे हैं, जिन्हें हम देख नहीं सकते । विकिरण से हमें बहुत सी ऐसी लाइलाज बीमारियाँ हो सकती हैं जो हमारे शरीर हो नुकसान पहुँचाती है जैसे इंसोमेनिया (नींद न आने का रोग), ब्रेन ट्यूमर और अन्य प्रकार के कैंसर आदि । यदि गर्भवति महिलाएँ माइक्रोवेव का का उपयोग करती हैं तो इससे निकलने वाला विकिरण उनको नुकसान पहुँचा सकता है । जो उत्पाद हमने बनाए हैं वो हमारे शरीर को इलेक्ट्रोमेगनेटिक विकिरण से काफी हद तक सुरक्षित रख सकेंगे ।

कंपनी इन उत्पादों को बाजार में लाने की तैयारी में है और इन उत्पादों को विकसित करने का मुख्य उद्देश्य खतरनाक विकिरण से मानव सभ्यता को बचाना है और इसीलिए इनकी कीमत काफी कम रखी गई है । जाने-अनजाने हर व्यक्ति इलेक्टोमेगनेटिक विकिरण का सामना कर रहा है । कंपनी कुछ ऐसे उत्पादों का निर्माण भी कर रही है, जो खतरनाक रेडिएशन को सुरक्षित किरणों में बदल देंगे। ये उत्पाद चिप से लेकर एप्रन की तरह रहेंगे जो विभिन्न नष्ट हो चुके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से निकलने वाले विकिरण से हमारे शरीर को बचाएँगे । इन उत्पादों की कीमत की काफी कम रखी गई है और ये १०० रू. से लेकर ५०० रू. तक उपलब्ध रहेंगे । यह चिप जल्द ही बाजार में उपलब्ध हो जाएगी ।

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