शुक्रवार, 7 सितंबर 2007

९ पर्यावरण परिक्रमा

जल को शुद्ध बनाने की नई तकनीक विकसित
सफाई के लिए काम करने वाली संस्था सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन ने प्रदूषित जल को शुद्ध बनाने की अभिनव तकनीक विकसित की हैं । इसके सहारे नदियों को प्रदूषणमुक्त कर देश के जल संकट से निपटने के लिए महत्वपूर्ण मदद मिल सकती है । ऑर्गनाइजेशन के प्रमुख तथा इस तकनीकी के प्रणेता डॉ. विन्देश्वरी पाठक ने कहा कि इस तकनीक में थोड़ा और सुधार कर इसका इस्तेमाल गंगा और यमुना जैसी प्रमुख नदियों को प्रदूषणमुक्त करने में किया जा सकता है । इस तकनीक का विकास सुलभ इंटरनेशनल विज्ञान प्रयोगशाला में किया है । प्रयोगशाला ने तारकोल आधारित जिस अल्ट्रा वायलेट वाटर फिल्टर को विकसित किया है वह मानव मल से चालित बायोगैस प्लांट के अवशिष्ट और अपजल का शोधन करता है और इस तकनीक से जल रंगहीन, गंधहीन और पैथोजन से मुक्त है । उन्होंने कहा कि इस जल का इस्तेमाल मछली पालन से लेकर सिंचाई और बागवानी में भी किया जा सकता है और उसे प्रदूषण होने के भय के बिना किसी नदी-तालाब में छोड़ा जा सकता हैं । डॉ. पाठक ने बताया कि इस जल में नाइट्रोजन, पोटेशियम और फास्फेट के अतिरिक्त पौधों की वृद्धि में सहायता के लिए आवश्यक सूक्ष्मतम पोषक तत्व हैं । इसमें कई तरह के अजैविक उर्वरकों के लाभ मौजूद हैं जो मिट्टी को बेहतर बनाते हैं और उसमें किसी तरह की अम्लता या खारापन पैदा नहीं होने देता है । उन्होंने बताया कि मानव मल से पैदा की गई बायोगैस खाना पकाने से लेकर गैस और मेंटल लैंप्स जलाने के साथ ही इसका इस्तेमाल उर्वरक के रूप में भी किया जा सकता है क्योंकि इसमें नाइट्रोजन, पोटेशियम और फास्फेट का प्रतिशत अच्छा होता है । बायोगैस के इस उपउत्पादों से संस्थान ने दरवाजों और खिड़कियों के पल्ले भी तैयार किए हैं । इसी तरह की सामग्री का इस्तेमाल का संस्थान ने एक शेड भी तैयार किया है । यदि इस तकनीकी में कुछ विकास किया गया तो न सिर्फ पानी को प्रदूषण से मुक्त रखा जा सकता है बल्कि देश में मैला ढोले की प्रथा से मुक्ति मिलने के साथ पानी का बचाव किया जा सकता है । साथ ही ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या से निपटा जा सकता है ।
पॉलीथिन पर पाबंदी में सरकारी उदासीनता
मध्यप्रदेश में पॉलीथिन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के प्रति राज्य सरकार कितनी गंभीर है इस बात का अंदाजा कानून बनने के बाद उस पर अब तक अमल न होने से सहज ही लगाया जा सकता है । इस सिलसिले में पारित विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद भी महज इसलिए लागू नहीं किया जा सका, क्योंकि दो लाइन की अधिसूचना पूरे पौने तीन साल बाद भी जारी नहीं हो पाई । इस कानूनी उलझनों के चलते प्रदेश को पॉलिथीन मुक्त बनाने के सरकारी प्रयास केवल कागजों तक सिमट कर रह गए हैं । केंद्र सरकार ने पहले रिसायकल्ड पॉलिथिन के उपयोग पर पाबंदी लगा रखी है । केवल नए प्लास्टिक दानों से बनी बीस माइक्रोन से अधिक की थैलियों का ही उपयोग किया जा सकता है । २५ माइक्रोन से कम की रिसायकल्ड प्लास्टिक की थैलियां और २० माइक्रोन से कम की नई प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग पर प्रतिबंध रहेगा। किसी भी नदी-नाले, पाइप लाइन और पार्क आदि सार्वजनिक स्थलों पर इन थैलियों का कचरा डालने पर रोक रहेगी । नगरीय निकाय इन थैलियों के लिए अलग-अलग कचरा पेटी रखेंगे। इस कानून का उल्लंघन करने वालों को दंडित किया जा सकेगा । पहली बार गलती करने पर एक हजार रूपये का जुर्माना या एक माह की कैद । एक से अधिक बार उल्लंघन करने पर पांच हजार रूपये जुर्माना या तीन माह की कैद हो सकेगी । कानून का पालन कराने के लिए जिम्मेदार अफसरों के लापरवाही बरतने पर उनके विरूद्ध जुर्माना भी किया जा सकेगा । पॉलीथिन के कारण सीवर लाइन बंद हो जाती है । इस वजह से दूषित पानी बहकर पाइप लाइन तक पहुंचकर पेयजल को दूषित करता है जिससे बीमारियां फैलती है । इसे उपजाऊ जमीन में फेंकने से भूमि बंजर होती जाती है । कचरे के साथ जलाने से जहरीली गैसे निकलती हे जो वायु प्रदूषण फैलाती है और ओजोन परत को क्षति पहुंचाती है ।
साँप के जहर से कैंसर की दवा
विषस्य : विष औषधूम जहर ही जहर को खत्म करता है । पुराणों की कही गई यह बात अब फिर सच साबित होने जा रही है । वैज्ञानिकों ने काले नाग (ब्लैक कोबरा) और वाइपर जैसे घातक विषैले सर्पो के जहर से कैंसर के उपचार का तरीका खोजा है । भारतीय जैव रसायन विज्ञान संस्था व कोलकाता के वैज्ञानिकों ने खोज से पता लगाया है कि इन सर्प विषों में कैंसर जैसी मारक बीमारी के उपचार की संभावना छुपी है । वैज्ञानिक विष से उस प्रोटीन को अलग करने के प्रयास कर रहे हैं, जिसमें कैंसर निवारण की अद्भुत क्षमता विद्यमान है । यह प्रोटीन कैंसर की कोशिकाआे की वृद्धि को रोक देता है । अनुसंधान दल की प्रमुख सुश्री अपर्णा गोम्स ने बताया कि इस अनुसंधान से कैंसर रोधी दवा के निर्माण की संभावना बनी है । वैज्ञानिक चूहों के रक्त, ऊतक और त्वचा पर इसका प्रयोग कर रहे हैं। सुश्री गोम्स ने बताया कि सर्प विष कई घातक विषैलें प्रोटीन्स और एंजाइम का मिश्रण है । यह विष जब मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है तो ये प्रोटीन्स व एंजाइम ही उसके प्राण ले लेते हैं, लेकिन उचित मात्रा में इनका चिकित्सकीय सेवन जान बचाने का कार्य भी करता है ।
खास हार्मोन की कमी बनाती है इंसान को पेटू
वैज्ञानिकों के मुताबिक जो लोग भूख नहीं होने की सूरत में भी कुछ न कुछ खाते रहते हैं वे एक खास तरह की भूख नियंत्रणकारी हार्मोन की कमी के शिकार होते हैं । ऐसे लोगों के अधिक आहार लेने की वजह होती है उनमें लेप्टिन नामक हार्मोन की कमी । वैज्ञानिकों ने इस हार्मोन पर गहन अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है । यह हार्मोन लोगों को सीमा से अधिक भोजन लेने से रोकता है, लेकिन जिनके शरीर में इसकी कमी होती है, वे भूख नहीं होने पर भी खाते रहते हैं । ऐसे हार्मोन की कमी वाला इंसान अधिक आहार लेने के कारण मोटापे की गिरफ्त में आ जाता है । शरीर में स्थित वसा कोशिकाएं लेप्टिन नामक हार्मोन पैदा करती है और जब यह हार्मोन रक्त के माध्यम से दिमाग तक पहुंचता है तो व्यक्ति भूख से निजात महसूस करता है । इस हार्मोन के दिमाग तक पहुंचते ही व्यक्ति पेट भर जाने के अहसास से लैस हो जाता है और आहार लेना बंद कर देता है । कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सा विभाग के सदस्य पॉल सी फ्लेचर के नेतृत्व वाले शोधकर्ताआे की टीम ने दुर्लभ आनुवांशिक असंतुलन के शिकार दो लोगों पर गहन अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है । इस खास तरह के आनुवांशिक संतुलन के शिकार व्यक्ति के अंदर लेप्टिन हार्मोन बनना बंद हो जाता है । ऐसे मरीज अधिक मात्रा में आहार लेने लगते हैं और मोटापे की गिरफ्त में आ जाते हैं । रिपोर्ट के मुताबिक जब इन दोनों मरीजों का लेप्टिन हार्मोन से इलाज किया गया तो उन्होंने आहार लेना कम कर दिया और उनका वजन घट गया। इस शोध के तहत शोधकर्ताआे ने इन दोनों मरीजों को विभिन्न व्यंजनों की तस्वीरें दिखाई और उनकी दिमागी प्रतिक्रिया का आकलन किया । वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि तस्वीर देखते ही दिमाग के सैट्रीएटल हिस्से में नयी हरकत होने लगी। यह हिस्सा भावनाआे और इच्छाआे के नियंत्रण से जुड़ा है ।

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