कचरे से सामुदायिक शहरी कृषि
डॉ. आर.एस.धनोतिया
शहरवासियों कचरे से प्यार करें। यह धन पैदा करने का एक स्त्रोत हैं । किन्तु आवश्यक यह है कि कचरे को ही `सोना' बनाने की साजिश से बचते हुए हम कचरे से सोना बनाएं । इससे कचरा निष्पादन की स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी शून्य तक पहुंच सकती है । बड़े-बड़े शहरों के विकास के साथ ही शहरों से गंदगी हटाने एवं कचरा निष्पादन की वैधानिक जिम्मेदारी स्थानीय शहरी निकायों पर आ जाती है और इसलिए बजट का बड़ा हिस्सा प्रतिवर्ष कचरा निष्पादन पर व्यय करना पड़ता है। फिर भी शहरों में चहुँ ओर गंदगी का साम्राज्य फैला रहता है । नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के साथ यदि अपने सामाजिक दायित्वों एवं कर्तव्यों का गंभीरता से निर्वहन करें तो चमत्कारिक परिणाम देखाने को मिल सकते हैं । इसी दिशा में `प्रयोग' परिवार के सान्निध्य एवं निर्देशन में मुम्बई शहर के निवासी डॉ. आर.टी. डोशी ने `कम्युनिटी सिटी फार्मिंग' (सामुदायिक शहरी कृषि) जो कि न दिखने वाला महान प्रकल्प है विकसित किया है। उम्मीद की जा रही है कि यह न केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक होगा वरन् पर्यावरण हितैषी भी सिद्ध होगा । बड़े शहरों में प्रति व्यक्ति लगभग ५०० ग्राम कचरा प्रतिदिन उत्पन्न होता है। इस तरह शहरों में हजारों टन कचरा प्रतिदिन उत्पन्न होकर निष्पादन की उचित व्यवस्था न होने के कारण गंदगी फैलाता है जो कई खतरनाक बीमारियों को जन्म देती है । यद्यपि करोड़ों का व्यय कर कचरे को ट्रेचिंग ग्राउण्ड पर एकत्रित कर दिया जाता है फिर भी स्थितियां बद्तर होती जा रही है । इसका प्रमुख कारण है नागरिकों का उदासीन रवैया । नागरिक सालाना कर चुकाकर स्वयं की सामाजिक जिम्मेदारी से मुक्त मानकर जीता रहता है और प्लेग जैसी महामारी को चुपके से आमंत्रित कर बैठता है । इसी कारण राजनीतिज्ञों और प्रशासन ने कचरा निष्पादन को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के समान उद्योग में परिवर्तित करने की साजिश रच डाली है । फिर भी समस्या सुरसा की तरह मुँह बायें ही खड़ी है । स्थानीय निकायों द्वारा ट्रेचिंग ग्राउण्ड पर एकत्रित करचे को मसाला मिट्टी में रूपांतरित कर इसे शाहरवासियों को किचन गार्डन व बगीचों के लिए उपयोग में लाए हेतु नाममात्र के मूल्य पर वितरित किया जा सकता है बशर्ते राजनीति एवं भ्रष्टाचार आड़े न आए । इसका एक और अति सरल एवं पर्यावरण हितैषी उपाय है कम्युनिटी सिटी फार्मिंग जिसके द्वारा रसोई के कचरे को उपयोगी मिट्टी में रूपांतरित कर घर पर ही ताजे फल, सब्जियाँ, फूल आदि प्राप्त् किए जा सकते हैं । अति लघु प्रशिक्षण द्वारा नेच्यूको कल्चर एवं कम्युनिटी सिटी फार्मिंग के मूल तत्वों से नागरिकों को प्रशिक्षित करते हुए प्रत्येक नागरिक को अपने आस-पास सफाई रखने तथा घर के कचरे को घर में ही पुनश्चक्रण करने के लिए तत्पर होना होगा । रसोई घर के कचरे से बायो गैस बनाने का उपकरण अब चलन में आने लगा है । बायो गैस प्राप्त् करने के बाद बचे अवशेष को किचन गार्डन में काम में लाया जा सकता है अथवा बायो गैस उपकरण की व्यवस्था न कर पाने की स्थिति में कॉलोनी के नागरिक मिलकर कम्युनिटी सिटी फार्मिंग प्रारंभ कर सकते हैं । पाँच सदस्यों के एक परिवार के लिए प्रतिदिन ताजा सब्जियाँ प्राप्त् करने के लिए अधिकतम दो सौ वर्ग फीट सूर्य प्रकाश को हार्वेस्ट करने की सुविधा, बाजार से सब्जी खरीदकर लाने में व्यय समय से भी कम समय में अपने घर पर पौधों से बातचीत करने की इच्छा शक्ति, स्वयं समय दे सके व थोड़ी मेहनत कर सकें तो व्यक्तिगत रूप से अपने घर की छत पर ही यह बागवानी कर सकते हैं अन्यथा एक श्रमिक रखकर कुछ परिवार मिलकर भी यह कार्य सामूहिक रूप से कर सकते हैं । इसे कम्युनिटी सिटी फार्मिंग कहते हैं । इससे सबसे अधिक लाभ नगर निगम या स्थानीय निकाय को होगा । कचरा इकट्ठा करना, परिवहन द्वारा उसे निष्पादित करना आदि में स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी लगभग शून्य तक पहुंच जाएगी तथा करोड़ों रूपए की बचत होगी जिसे अन्य विकास कार्यो पर खर्च किया जा सकता है । दूसरा प्रमुख लाभ गृहणियों को होगा वे अपने घरों के आसपास ही उच्च् गुणवत्ता युक्त प्राकृतिक स्वाद वाली ताजी सब्जियाँ प्राप्त् कर सकेगी । कम्युनिटी सिटी फार्मिंग के प्रमुख तत्व इस प्रकार कचरा जहां उत्पन्न होता है वहीं उसे दो अलग-अलग बाल्टियों में जैविक एवं अजैविक कचरे के रूप में इकट्ठा कर लिया जाता है । दो सौ लीटर क्षमता वाले ड्रम होते हैं । इसके ऊपरी एवं निचले ढक्कनों (पैंदे) को हटा देते हैं, इस तरह यह एक बेलनाकार बन जाता है। यह ड्रम ९० से.मी. ऊँचा तथा ६० से.मी. व्यास का होता है । इसमें ८ से १० से.मी. व्यास के १२ छेद किए जात हैं । निचली सतह से २२ से.मी. ऊँचाई पर समान दूरी पर ४ छेद किए जाते हैं । पुन: ४४ से.मी. ऊँचाई पर इसी तरह ८ से १० से.मी. व्यास के ४ छेद किए जाते हैं । ४५ डिग्री पर ६६ से.मी. ऊँचाई पर इसी तरह ४ छेद और किए जाते हैं । इस तरह कुल मिलाकर समान व्यास वाले १२ छेद हो जाते है। प्रत्येक परिवार के लिए एक ड्रम नियत किया जाता है जिसमें उस परिवार का जैविक कचरा डाला जाता है । पैंदे में सर्वप्रथम लगभग ५ से.मी. मोटाई की बायो मास की परत बिछा दी जाती है, इसके लिए गन्ने की बगास, गिरी पड़ी सूखी पत्तियाँ एवं अन्य वनस्पति ले सकते हैं । इस पर रसोई का जैविक कचरा डालना प्रारंभ करते हैं । कचरा सूख कर सिकुड़ना प्रारंभ कर देता है । इस तरह कचरा डालना जारी रखें । प्रथम तल पर छेद तक कचरा डालते रहे । अब इस कचरे की सतह पर चारों छेदों से सब्जियों के पौधे लगा दे या बीज भी डाल सकते हैं । इन पौधों पर या बीजों पर गन्ने की बगास या अन्य बायो मास डाल दें तथ रसोई का जैविक कचरा डालना जारी रखें ताकि ४४ से.मी. ऊँची पंक्ति के छेद तक ड्रम की भराई हो जाए। पुन: छेदों में पौधे लगा दे या बीज डाल दे और वही प्रक्रिया तब तक दोहराए जब तक कि तृतीय स्तर के छेद तक बायोमास न पहुंच जाए । इस तृतीय स्तर के छेदों में पौधे लगा दें और पुन: कचरा भरना जारी रखें जब तक कि ऊपरी सतह तक कचरा न पहुंच जाए । ऊपरी सतह पर भी समान दूरी पर सब्जी के चार पौधे लगा दें । इस तरह एक ड्रम में कुल १६ पोधे उगाये जा सकते हैं । सब्जी का चयन सुविधानुसार किया जा सकता है । इस प्रक्रिया के प्रारंभ के दो हफ्तों के भीतर गैस का उत्पादन प्रारंभ हो जाता है। प्रति परिवार एक ड्रम नियत किया जाता है जिसे भरने में लगभग एक वर्ष का समय लग जाता है किंतु प्रथम सतह तीन या चार महीने में भर सकती है और उसमें पौधे लगाए जा सकते हैं । भराव के दौरान ड्रम से यद्यपि किसी भी प्रकार की गंध नहीं आती हैं किंतु अगर गंध आने लगे तो गन्ने के बगास की एक पतली परत बिछा दें । गर्मी के दिनों में पांच लीटर पानी प्रतिदिन प्रति ड्रम पर्याप्त् है । पानी ड्रम की दीवारों के सहारे डालना चाहिए ताकि पौधों की जड़ों को पर्याप्त् पानी मिलता रहें । यद्यपि `सामुदायिक शहरी कृषि' जो कि किचन गार्डन का ही उन्नत स्वरूप है शहरवासी अपने स्तर पर बिना किसी बाहरी सहायता के अपना सकते हैं । इसकी सफलता की सर्वाधिक संभावना तभी है जबकि यह पूरा कार्य आपसी सहयोग से हो एवं स्थानीय निकायो का कम से कम सहयोग लिया जाए । ***
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