ग्लोबल वार्मिंग : समस्या और समाधान
सूरज प्रकाश गुप्त
पृथ्वी की सतह का कुल क्षेत्र १९७० लाख वर्गमील है । इसमें १/४ भाग ठोस एवं शेष ३/४ भाग तरल पानी से घिरा हुआ है । धरती का ११ प्रतिशत भाग कृषि कार्य के लिए उपयोग में आता है । पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर पानी तरल अवस्था में पाया जाता है तथा जिसका १/१० भाग हमेशा बर्फ से ढका रहता है । पृथ्वी पर कुल पानी का २ प्रतिशत भाग ही नदियों, झीलों आदि में सोफ्ट वाहट के रूप में है । तथा शेष ९८ प्रतिशत पानी हार्ड वाटर के रूप में समुद्रों, महासागरों आदि में है । पिछले १०० वर्षो में पृथ्वी का तापमान ०.७४ डिग्री अधिक हो गया है। और आने वाले ५० वर्षो में यह ताप ३ से ४ प्रतिशत डिग्री और बढ़ने की संभावना है । सन २०३५ तक सभी बर्फ से ढके हुए ग्लेसियर पूरी तरह पिघल जाने की संभावना है । चाहे वह हिमालय पर जमीं बर्फ हो या उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव प्रदेश हो । बर्फ पिघलने से प्राप्त् मीठा पानी समुद्रों में समा जाने वाला है जिससे सागरों, महासागरों का वर्तमान जलस्तर ऊँचा होकर तबाही मचाने वाला है । सागरों, महासागरों के किनारे बसे दुनिया के २२ बड़े शहर जिनमें मुम्बई, कोलकाता, न्यूयार्क, टोकियो आदि शामिल है सभी डूबने वाले हैं । इस प्रकार ग्लोबल वार्मिंग के कारण मनुष्यों की एक बड़ी आबादी नष्ट होने के साथ साथ अन्य जीवों की प्रजातियों के समाप्त् होने का खतरा सर पर मण्डरा रहा है । इस भयंकरतम तबाही को रोकने के लिए क्या किया जावे ? ग्रीन हाउस गैसों तथा कार्बन डाई आक्साईड, नाइट्रस आक्साईड, मिथेन आदि जो हर समय प्राकृतिक रूप से एक निश्चित अनुपात में वातावरण में रहती हैं। किन्तु मानवीय क्रियाकलापों के कारण यह गैसे अत्यधिक मात्रा में उत्सर्जित होकर प्राकृतिक चक्र बिगाड़ रही हैं । जिसके कारण ओजोन परत जो सबसे उपरी परत है और जो सूर्य की किरणों को जमीन पर सीधा आने से रोकती है, में विशाल छिद्र हो गए हैं । इस कारण सूर्य किरणें सीधे धरती पर आ रही है । इससे तापमान बड़ रहा है । अत्यधिक प्रखरता के कारण धरती पर ``ग्लोबल वार्मिंग'' जैसी समस्या उत्पन्न हो गई है । इस समस्या से उबरने के लिए क्या किया जावे ? इस पर सारी दुनिया में चिंता हो रही है । आज मनुष्य ने ऐसे मकानों को बनाना आरंभ कर दिया है जिसकी छतों पर सूर्य ताप को रोककर व उसे सोलर एनर्जी में बदलकर, उससे घर गृहस्थी में खर्च होने वाली बिजली की पूर्ति हो जाती है । मकानों की छतों पर बरसात का पानी रोककर उसे जल प्रािप्त् के स्त्रोतों पर पहुंचाकर, स्त्रोतों की रिचार्जिंग आरंभ कर दी है । इस क्रिया को ``वाटर हार्वेस्टिंग'' कहते हैं । घर-गृहस्थी में काम आ चुके पानी को भी साफ कर पुन: काम में लेने की विधियां भी प्रयोग में आने लगी हैं। समन्दर के खारे पानी को साफ कर सोफ्ट वाटर में बदल लिया गया है जो मनुष्य के रोजमर्रा के इस्तेमाल में आता है । अब एक-एक बूंद पानी खर्च करने के प्रति जागरूकता आई है/किन्तु ये प्रयत्न अभी बहुत छोटे स्तर पर हैं और इनकी प्रगति इतनी धीमी है कि ग्लोबल वार्मिंग जैसी बड़ी विश्वव्यारी समस्या के आगे ऊँट के मुंह में जीरा जैसी स्थिति में हैं। कहते हैं जहां समस्या होती है उसके समाधान के साधन भी वहीं छुपे होते हैं । इस दृष्टि से देखें तो सूर्य ताप का बढ़ता हुआ प्रकोप हमारे लिए वरदान भी बन सकता है । बशर्ते विश्व स्तर पर इस दिशा में सभी का सहयोग ईमानदारी से हो व दृढ़संकल्प और पूर्ण निष्ठा के साथ हो। ग्लोबल आधार पर हर राष्ट्र, हर संस्था, यू.एन.ओ. वर्ल्ड बैंक एवं अन्य अन्तर्राष्ठ्रीय संस्थाएं एक साथ मिलकर बैठकर एक ही प्रोग्राम हाथ में लेवें, कि सोलर हीट को जहां पर भी संभव हो, और जैसे भी संभव हो, सस्ती महंगी विधि से उसे सोलर एनर्जी में बदलना है । इतने विशाल पैमाने पर बिजली उत्पादन करने से क्या होगा ? धरती पर पानी दो प्रकार का है, (१) नदियों, झीलों आदि में सोफ्ट वाटर जो हमारे पीने के काम आता है, यह पानी बिजली का अच्छा संचालक नहीं होता है और (२) हार्ड वाटर जो समुद्रों में है, उसमें थोड़ा फेर बदल कर देने से यह बिजली का सुचालक बन जाता है । पानी विज्ञान की भाषा में क२ज कहलाता है । याने हाईड्रोजन के दो अणु और ऑक्सीजन का एक अणु मिलकर पानी बनता है और यदि विद्युत-विच्छेदन की किया की जावे तो क२ तथा ज गैसोंको अलग भी किया जा सकता है । सोलर हीट से प्राप्त् सोलर एनर्जी का उपयोग कर समुद्री पानी को हाईड्रोजन व ऑक्सीजन गैसों के रूप में बदला जा सकता है । इस क्रिया को करने में किसी भी प्रकार से प्राप्त् बिजली काम में आ सकती है । किन्तु सोलर हीट हमको प्रचुरता से प्राप्त् होने के कारण इसका उल्लेख किया गया । हाईड्रोजन ज्वलनशील गैस है तथा ऑक्सीजन जलने में सहायक गैस है । प्राकृतिक क२ और ज अनुपात में प्राप्त् इन गैसों को जलाकर विस्फोटक स्थिति बन जाती है । और इन विस्फोटों से प्राप्त् शक्ति को आटोमेशन प्राप्त् करने के लिए यंत्रों वाहनों मशीनों आदि सभी प्रकार के साधनों में इन्हें इंर्धन के बतौर काम में लिया जा सकता है । इस प्रकार समाप्त् होते जा रहे हमारे तेल, कोयला के भण्डारों के मुकाबले इंर्धन का एक बड़ा स्त्रोत हमारे हाथ में आ जाता है । यह क्रिया जब विश्व स्तर पर एक साथ की जावेगी तो समुद्र खाली होने लगेंगे और उनमें बर्फीले ग्लेशियरों का पिघल कर आने वाला पानी समा जावेगा। इस प्रकार ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न गर्मी और उससे पिघलने वाले बर्फीले ग्लेशियारों का पानी समुद्रों में आने पर, उनका जल स्तर नहीं बढ़ेगा और मानव जाति एक भयंकरतम तबाही से त्राण पा जावेगी । साथ में हमारे हाथ में आ जावेगा हाइड्रोजन एवं आक्सीजन गैसों का विशाल भण्डार जिसका उपयोग हम इंर्धन के रूप में हमारे सभी यांत्रिक एवं औद्योगिक क्रियाकलापों को पूरा करने में कर सकते हैं । इंर्धन के रूप में प्रयुक्त होने के बाद भी हमोर पास गैसों का विशाल भण्डार शेष रहेगा । उसको पुन: पानी में बदलकर नदीयों व झीलों की प्यास बुझेगी और सिंचाई के लिए कृत्रिम वर्षा कर खेतों में फसलें उगाने के काम आवेगी । मानव की भूख और प्यास दोनों मिटेंगी । और धरती हरी भरी बनेगी । आज के क्रिया कलापों से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन रूक जावेगा और एक ग्रीन अर्थ एण्ड क्लीन अर्थ पर मानव जाति अन्य जीवों के साथ रहने के लायक बन जावेगी । ***
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