मंगलवार, 3 जून 2008

११ ज्ञान विज्ञान

मानव की तरह चलेगा रोबोट


नीदरलैंड के डल्फ्ट तकनीकी विश्वविद्यालय के शोधार्थी ने एक ऐसा रोबोट बनाया है, जो हूबहू मानव की तरह चलता है । डान होबेलिन नामक इस छात्र ने ३० मई को अपनी पीएच-डी पूरी की और इसमें उसने पहली बार खोज कर बताया है कि कि रोबोट ऊर्जा बचाने वाले और स्थायित्व वाले हो सकते हैं । होबेलिन ने इस विषय पर अपने लेखों मेें कहा है कि उन्होने कम्प्यूटर और रोबोट के ऊपर इस तकनीक को आजमाने से पूर्व मानव के चलने के तरीकों का गहन अध्ययन किया था । इन सब बातों का ध्यान उन्होने अपने रोबोट के लिए तकनीक विकसित करने में लगाया उन्होने कहा कि उनका रोबोट उन सभी तरीकों को अपनाता है , जो मानव के है । इस तकनीक से उसकी चाल में सुधार हुआ है और वह मानव की तरह ही चलता है । उन्होने अपने रोबोट का नाम फ्लेम रखा है जिसमें सात मोटर संतुलन के एक विशेष अंग और स्थायित्व कें लिए जोड़-तोड़ किए गए है । अपने इस विशेष अंग के कारण यह चलते समय अपना पूरा संतुलन बनाए रखता है और इस वजह से इसके गिरने के मौके खत्म हो जाते है। होबेलिन के अनुसार फ्लेम दुनिया का एकमात्र ऐसा रोबोट है, जो हूबहू मानव की तरह चलता है । डेल्फ्ट विवि अपनी इस सफलता के बाद अब एक ऐसा रोबोट बनाने की सोच रहा है जो मानव की तरह दौ़़ड और सोच भी सके । वह रोबोट इतना आधुनिक हो कि फुटबॉल भी खेल सके । मानव की तरह चलने वाले रोबोट का प्रदर्शन विवि इंटरनेशनल डायनेमिक वाकिंग २००८ सम्मेलन में भी करेगा ।
करोड़ों साल पहले पृथ्वी के पास थे कई चाँद




वैज्ञनिकों द्वारा ब्राह्माण्ड के पुराने स्वरुप खोजने और उस पर मॉडल बनाए जाने की प्रक्रिया से पता चला है कि करोड़ साल पहले पृथ्वी पर कई चंद्रमाआें के अस्तित्व की संभावना थी । वैज्ञानिकों के अनुसार वह समय पृथ्वी पर कई प्राकृतिक उपग्रहों का था और इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस समय पृथ्वी से कई चाँद नजर आते होंगे । न्यू साइंटिस्ट पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार उस समय पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति जिस तरह की थी, उससे तो यहीं प्रतीत होता है कि पृथ्वी के लिए एक से ज्यादा चाँद उपलब्ध होंगे। इस बारे में नासा केेलिफोर्निया स्थित रिसर्च सेंटर के अध्ययन दल के सदस्य जैक लेसर बताते हैं कि यह स्थति लैगरेनगियन कहलाती है जिसमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बल से कई ग्रह और उपग्रह आपस में जुड़े होते है । ये सभी जिन बिन्दुआे पर एक दूसरे से जुड़ते हैं, उन्हें ट्रोजन कहा जाता है और अगर उस गुरुत्वाकर्षण में कोई छेड़छाड़ नहीं हो तो यह स्थिति लंबे समय तक जस की तस बनी रह सकती है । उस समय पृथ्वी के साथ भी कुछ ऐसी ही स्थित के साथ भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी होगी । अगर कोई अन्य उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में उस दौरान आया होगा और ट्रोजन बिंदु पर जम गया होगा तो उस स्थिति में वह उपग्र्रह १०० करोड़ साल तक पृथ्वी के लिए प्राकृतिक उपग्रह की भूमिका निभाता रहा होगा, ठीक उसी तरह जैसे कि आज चन्द्रमा निभा रहा है । बाद में जब उस स्थिमि में कोई बदलाव आया होगा तब वह उपग्रह या तो पृथ्वी की कक्षा से बाहर हो गया होगा या फिर पृथ्वी पर गिरकर नष्ट हो गया होगा । वैज्ञानिकों ने ऐसे उपग्रहों को `ट्रोजन सेटेलाइट' नाम दिया है । वैज्ञानिकों के अनुसार वह स्थिति बहुत रोचक रही होगी, क्योंकि तब ये उपग्रह पृथ्वी के आस-पास ठीक वैसे ही दिखते होंगे जैसे कि वर्तमान में जूपीटर और वीनस ग्रहों के उपग्रह दिखते हैं । वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट में कहा है कि हो सकता है कि उन उपग्रहों ने पृथ्वी की कक्षा में अरबों साल तक चक्कर लगाए हों और बाद में वे सब लापता हो गए हों ।
सबसे बुर्जुग गोरिल्ला ने ५५वाँ जन्मदिन मनाया

पिछले दिनों अमेरिका में डलास के चिड़ियाघर में रहने वाली दुनिया की सबसे बुर्जुग गोरिल्ला जेनी ने अपना ५५वाँ जन्मदिन मनाया । जंगल में रहने वाले गोरिल्ला की उम्र ३०-३५ वर्ष तक होती है । पालतू प्राणियों या चिड़ियाघर के पिंजरे में बंद जानवरों की उम्र तो सही-सही बताई जा सकती है, परंतु जो जंगल में आजाद रहते हैं उनकी उम्र गिनना आसान नहीं है । इतना तय है कि मनुष्य के साथ पालतू बन कर रहने वालों की उम्र उनके वनवासी भाई-बहनों की तुलना में ज्यादा रहती है । कारण उनकी देखभाल और बेहतर खाने से है । वैज्ञानिकों ने जंगली जानवरों की उम्र का अंदाज ठीक-ठीक लगाने के तरीके खोज निकाले हैं। ये उनकी हडि्डयाँ, दाँत वगैरह को बारीकी से जाँचने के हैं। जिस तरह पेड़ के तने में हर वर्ष एक छल्ला बढ़ता है और सूखे या अच्छे साल के अनुसार छल्ला पतला-मोटा बनता है, प्राणियों की उम्र नापने का तरीका भी यही है ।

कीटनाशक बन सकते हैं कैंसर का कारण
पंजाब में हुए एक शोध के मुताबिक खेती में कीटनाशकों के इस्तेमाल से लोगों के डीएनए को नुकसान पहँच सकता है । शोध के मुताबिक खेत में काम कर रहे मजदूरों में कैंसर का कारण भी यही कीटनाशक हो सकते हैं । पटियाला विश्वविद्यालय के इस शोध में मजदूरों पर महीनों तक अध्ययन किया गया । यही कारण है कि इस शोध को अन्य अध्ययनों से बेहतर माना जा रहा है । कई वर्षो से इस बात पर चिंता जताई जाती रही है कि खेतों में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों से कैंसर जैसे रोग हो सकते हैं । इस नए अध्ययन में पंजाब के किसानों के डीएनए में परिवर्तन पाया गया जिससे उन्हें कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है । विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सतबीर कौर के मुताबिक इस शोध मेंपाया गया कि किसानों की उम्र, उनका शराब या सिगरेट का सेवन करना, इन सब बातों का डीएनए में होने वाले बदलाव से कोई ताल्लुक नहीं है । प्रोफेसर कौर कहती है कि डीएनए में होने वाले परिवर्तन का सबसे संभावित कारण खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव ही है । उधर क्रॉप केयर एसोसिएशन के सलिल सहगल का कहना है कि किसानों को होने वाले कैंसर का खेतों में कीटनाशकों के इस्तेमाल से कोई ताल्लुक नहीं हैं । वे कहते हैं -`आज की तारीख में खेतों में ऐसा कोई भी कीटनाशक इस्तेमाल नहीं होता है जिससे कैंसर हो सकता हो ।' श्री सहगल कहते हैं कि किसान कीटनाशक का इस्तेमाल हर सत्र में कुछ ही बार करते हैं, लेकिन किसान का कहना है कि उन्हें कीटनाशकों का इस्तेमाल बहुत ज्यादा बार करना पड़ता है ताकि फसल को नुकसान नहीं पहुँचे । ऐसे वक्त जब खाद्य वस्तुआें की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं और नई फसलों की किस्मों से जिस पैदावार की उम्मीदें लगाई जा रही थीं, वे उम्मीदें पूरी नहीं हो पाई हैं, उस वक्त इस शोध का निष्कर्ष चिंता का विषय है । पटियाला विश्वविद्यालय के इस शोध से सवाल भी खड़े हुए हैं कि क्या गहन खेती ज्यादा दिनों तक चल सकती है ? ***

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