आलू : अतीत से अब तक
डॉ. किशोर पंवार
राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन ने वर्ष २००८ को अंतराष्ट्रीय आलू वर्ष घोषित किया है । आलू आम व खास सभी के लिए महत्वपूर्ण पोषक पदार्थ है। घरों से लेकर उद्योगों तक आलू की पैठ है । आज जिस आलू के बिना हमारा काम नहीं चलता उसे एक जमाने में जहरीला पौधा समझा जाता था । कई बार उसे कैदियों को जबरन खिलाया गया । कुछ लोगों को उसके फूल इतने पसंद आए कि उन्होने इन्हें कोट के बटन में टांक लिया । आज आलू पूरी दुनिया में एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल के रुप में स्थापित हो चुका है । आलू बड़ा पाव, बटाटा राइस, आलू इन समोसा , आलू की चिप्स वगैरह, आज हर तरफ आलू है । आइए अंतर्राष्ट्रीय आलू वर्ष पर आलू से जुड़ी कुछ व्यावहारिक बातें की जाएं । कहां से आया आलू : यद्यपि आलू को आयरिश पोटेटो कहा जाता है मगर टिटिकाका झील के पठारी क्षेत्रों में (जो समुद्र तल से ३१२ मीटर ऊंचाई पर स्थित है ) आलू इनका लोगों द्वारा मक्का के साथ उगाया जाता था । ये उनके प्रमुख भोज्य पदार्थ थे । तब से यह कंद आज तक दक्षिणी अमेरिका के एनुडिअन क्षेत्र के लोगों के जीवन का प्रमुख हिस्सा है। वहां खुदाई से प्राप्त् बर्तनों पर इनकी आकृतियां इसका प्रमाण है । इन बर्तनों का काल ८०० से १५०० ईसा पूर्व निर्धारित किया गया है । आलू की खेती से सम्बंधित कई बातेंं इन बर्तनों पर उकेरी गई हैं । पुरानी दुनिया में १६ वीं शताब्दी के पूर्व तक आलू को कोई नहीं जानता था । यहां तक कि कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज के समय तक यह उत्तरी और मध्य अमेरिका में भी यह अनजाना था । अत: स्पेनिश विजेताआें ने ही आलू को यूरोप में प्रसारित किया, आयरिश लोगों ने नहीं जैसी कि मान्यता है । भारत में आलू : भारत में इसे पुर्तगाली लोगों द्वारा १७ वीं शताब्दी में लाया गया परंतु इसकी खेती बहुत धीरे-धीरे बढ़ी । सम्भवत: आयरिश लोगो ने ही आलू के महत्व को मुख्य खाद्य पदार्थ के रुप में पहचाना और इसे एक फसल के रुप में १७ वीं शताब्दी में उगाना शुरु किया । इसका उपयोग १८ वीं शताब्दी में धीरे-धीरे फैलने लगा । हालांकि यूरोप के कुछ हिस्सों में इसका तीव्र विरोध भी हुआ, क्योंकि यह पौधा और इसके अन्य सदस्य जैसे धतूरा, चिरकोटी आदि ज़हरीले कुल सोलेनेसी के सदस्य हैं । अलबत्ता १८ वीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में इसे एक महत्वपूर्ण व्यापारिक फसल का दर्जा प्राप्त् हो चुका था । खाद्य पदार्थ के रुप में इसके महत्व को देखते हुए जर्मनी और स्वीडन में इसे उगाने के लिए शाही आदेश दिए गए थे।आलू और अकाल आयरलैंड में आलू को मुख्य भोजन के रुप मेें विशेषकर गरीब लोगों द्वारा अपनाया गया । वहां के लोग १८४५-४६ तक मुख्य रूप से इसी पर निर्भर रहे । इसी समय आलू पर पोटेटो ब्लाइट नामक बीमारी का आक्रमण हुआ जो एक फफूंद से होती थी । उसके प्रकोप से पूरे यूरोप में आलू की फसल चौपट हो गई । इस तरह इतिहास का एक बहुत ही बुरा अकाल देखने में आया । जिसे दी ग्रेट आयरिश पोटेटो फेमीन कहा जाता है । इस अकाल के कारण हजारों लोगों को देश भी छोड़ना पड़ा ।आलू चीज़ क्या है ? तो देखें कि सबकी पसंदीदा सदाबहार सब्जी आलू है क्या ? वनस्पति विज्ञान की दृष्टि से आलू तना है । यह रूपांतरित तना जड़ की तरह जमीन में रहता है और जड़ की ही तरह भूरा मटमैला होता है । आलू तना है, इसके पक्ष में कई प्रमाण है । मसलन आलू पर गठानों का पाया जाना और इस पर `आंखे' होना। आलू की सतह पर यहां-वहां दिखाई देने वाले छोटे-छोटे गढ्ढे जिन्हें बोलचाल में आंखें कहते हैं वास्तव में तने पर पाई जाने वाली कलियां है । एक आंख में प्राय: ऐसी तीन कलियां होती हैं । कली की उपस्थिति तने पर गठान (पर्व संधि) की मौजूदगी दर्शाती है । दो आंखों के बीच की जगह को पर्व कहते हैं । आलू (सोलेनम ट्यूबरोसम) का पौधा एक बहुवर्षीय शाक है जिसे खेती के तहत एक वर्षीय बना दिया गया है । इसके मुख्य तने के आधार से कई शाखाएं निकलती हैं जो मिट्टी के अंदर सतह के समानांतर आगे बढ़ती हैं । कुछ ही समय बाद इन शाखाआेंकी आगे की वृद्धि रूक जाती है परंतु पत्तियों में बन रहे भोजन का नीचे की ओर प्रवाह बना रहता है । इस अतिरिक्त भोजन के कारण इनका आगे का भाग भोजन संग्रह के कारण धीरे-धीरे फूलता जाता है और आलू के रूप में हमारे सामने आता है । तो आलू एक फूला हुआ तना है जो जमीन के अंदर रहता है और इसे ट्यूबर (कंद) कहते हैं। यह कंद सफेद, लाल, जामुनी और पीला भी होता है । यानी आलू का रंग पीला, सफेद ही नहीं लाल, नीला भी होता है। आलू की बाहरी सतह में ही प्रोटीन, खनिज लवण, टेनिन और रंजक पाए जाते हैं । अत: आलू को ज्यादा छीलना उचित नहीं होता क्योंकि इसी पर्त में प्रमुख पोषक पदार्थ रहते हैं । आलू की कुछ किस्मों में फूल आते हैं, कुछ में नहीं । फूल आने पर फल बने यह भी जरूरी नहीं । फूल बैंगन, टमाटर जैसे ही होते हैं क्योंकि ये भी सोलेनेसी कुल के सदस्य हैं । आलू के फल गोल १.२ से २.५ से.मी. व्यास के कच्च्े रहे होते हैं और पकने पर पीले, जामुनी या काले होते हैं । प्रत्येक फल में लगभग २०० बीज होते हैं ।पोषण मान आलू का हमारे यहां सब्जी के रूप में ही उपयोग किया जाता है या पोटेटो चिप्स के रूप में जो एक फलता-फूलता व्यवसाय है । आलू में लगभग ७८ प्रतिशत पानी, १८ प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, २ प्रतिशत प्रोटीन, ०.१ प्रतिशत वसा और लगभग १ प्रतिशत पोटेशियम होता है । आलू विटामिन सी और खनिज लवणों, विशेषकर पोटेशियम, फास्फोरस, लोह और मैंगनीज़ जैसे तत्वों का एक अच्छा स्त्रतोत है । हरे या उगते हुए आलू खाने से बचना चाहिए क्योंकि इनमें एक जहरीला पदार्थ सोलेनिन होता है। ज्यादा मात्रा में उपयोग करने पर यह जानलेवा हो सकता है ।आलू की आंख आलू की खेती भी बड़ी रोचक है । अन्य फसलों और सब्जियों की तरह आलू के बीज नहीं बोये जाते । ऐसा नहीं है कि आलू में बीज बनते ही नहीं है । परंतु आलू की खेती के लिए इसके बीजों का नहीं इसकी आंखों का प्रयोग किया जाता है । आलू की आंखों को ही बीजों की तरह प्रयोग करते हैं । आलू के तीन-चार टुकड़े करके उन्हें जमीन में गाड़ा जाता है। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उस टुकड़े के कम से कम दो-तीन आंखे जरूर हों । ऐसे आंख दार आलू को जब हम बोते हैं और वे नई-नई शाखाआें को जन्म देती है । परंतु आलू को शीत गृह में रखने पर ये लंबे समय तक सुप्त् रखने के लिए नेफ्थलीक ऐसीटिक अम्ल का घोल भी छिड़का जाता है । जब आलुआें का प्रयोग बीज के रूप में करना होता है तब इन्हें शीतग्रहों से निकालकर २ प्रतिशत अमोनियम थायोसायनिक अम्ल से उपचारित करते हैं । आलू को इथीलीन क्लोरोहायड्रिन की वाष्प में २४ घंटे रखने से भी उनकी नींद उड़ जाती है और ये अंकुरित हो उठते हैं ।किचन से प्रयोगशाला तक दुनिया की अर्थव्यवस्था में आलू का बड़ा महत्व है । ताजी सब्जी के रूप में आलू को उबालकर, भूनकर, तलकर कई तरीकों से खाया जाता है । किचन में तो आलू एक आवश्यक सब्जी के रूप में रहता है कि अन्य कोई सब्जी न हो तो आलू-प्याज ही बना लो । दोनों की विशेषता है लंबे समय तक बिना किसी सुरक्षा के खराब ना होना । हमारे देश में भी जब से आलू आया है तब से नई-नई डिश हमारे खाने में जुड़ गई है । जैसे बटाटा भात, आलू की कचोरी व समोसे । समोसे तो बिना आलू के बन ही नहीं सकते । आलू का आटा भी बनाया जाता है । इससे रूसी शराब वोदका बनाई जाती है । छोटे कंद पालतू जानवरों को खिलाए जाते हैं । इससे स्टार्च, अल्कोहल, लेक्टिक अम्ल बनाया जाता है । आलू का उपयोग प्रयोगशालाआें में भी होता है । बिना आलू के जीव विज्ञान की प्रयोगशाला पूरी नहीं होती । परासरण क्रिया का प्रदर्शन करने के लिए आलू को काटकर उससे पोटेटो ऑस्मोस्कोप बनाया जाता है । विज्ञान की पुरानी शाखा मार्फोलॉजी से लेकर बायोटेक्नोलाजी तक आलू का प्रयोग होता है । सूक्ष्मजीवियों अथवा कोशिकाआें को कृत्रिम पोषक माध्यम में उगाने के लिए इससे पी.डी.ए. माध्यम बनाया जाता है जिस पर सूक्ष्मजीवियों को कांच के बर्तनों में उगाया जाता है । निश्चित रूप से वह आलू ही था जिसने जर्मनी को दो विश्वयुद्धों के दौरान जीवित रखा । क्योंकि दुश्मन अन्य फसलों की तरह इसे जला या नष्ट नहीं कर पाते थे । हमारे देश में आलू की जो किस्में लोकप्रिय हैं उनमें कुफ्री अलंकार, कुफ्री ज्योति एवं कुफ्री शीतमान । ये शब्द कुफ्री शिमला के पास कुफ्री स्थित पोटेटो रिर्सच इन्टीट्यूट का है जहां आलू की नई-नई किस्में बनाई जाती हैं । ***
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