जलवायु परिवर्तन और हमारा भविष्य
डॉ. लक्ष्मीकांत दाधीच
बदलती जलवायु के प्रमुख कारक कार्बन डाई आक्साइड की अधिक मात्रा से गरमाती धरती का कहर बढ़ते तापमान से अब स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगा है । तापमान का बदलता स्वरूप मानव द्वारा प्रकृति के साथ किये गये निर्मम तथा निर्दयी व्यवहार का सूचक है । अपने ही स्वार्थ में अंधे मानव ने अपने ही जीवन प्राण वनों का सफाया कर प्रकृति के प्रमुख घटको जल, वायु तथा मृदा से स्वयं को वंचित कर दिया है। बढ़ती कार्बन डाई आक्साइड ने वायु मंडल से आक्सीजन को कम कर वायुमंडलीय परिवर्तन को ``ग्लोबल वार्मिंग'' का नाम दिया गया है ने संसार के सभी देशों को अपनी चपेट में लेकर प्राकृतिक आपदाआें का तोहफा देना प्रारंभ कर दिया है । भारत और चीन सहित कई देशों में भूमि कंपन, बाढ़, तूफान, भूस्खलन, सूखा, अतिवृष्टि, अल्पवृष्टि, भूमि की धड़कन के साथ ग्लेशियरों का पिघलना आदि प्राकृतिक आपदाआें के संकेत के रूप में भविष्य दर्शन हैं । गर्माती धरती का प्रत्यक्ष प्रभाव समुद्र तथा नदियों के जल तापक्रम में वृद्धि हैं जिसके कारण जलचरों के अस्तित्व पर सीधा खतरा मंडरा रहा है । यह प्रत्यक्ष खतरा मानव पर अप्रत्यक्ष रूप से उसकी क्षुधापूर्ति से जुड़ा है । पानी के अभाव में कृषि व्यवस्था का जब दम टूटेगा तो शाकाहारियों को भोजन का अभाव झेलना एक विवशता होगी तो मरती मछलियों, प्रांस (झींगा) तथा अन्य भोजन जलचरों के अभाव में मांसाहारियों को कष्ट उठाना होगा । उक्त दोनों प्रक्रियाआें से आजीविका पर सीधा असर होगा तथा काम के अभाव में शिथिल होते मानव अंग अब बीमारी की जकड़ में आ जायेंगे। वैश्विक जलवायु परिवर्तन मानव को गरीबी की ओर धकेलतेहुए आपराधिक दुनियां की राह दिखायेगा जिससे पर्यावरणीय आतंकवाद को बढ़ावा मिलेगा तथा दुनियां में पर्यावरण शरणार्थियों को शरण देने वाला कोई नहीं होगा । बढ़ता तापक्रम विश्व के देशों के वर्तमान तापक्रम प्रक्रिया में जर्बदस्त बदलाव लायेगा जिसके कारण ठंडे देश गर्मी की मार झेलेंगे तो गर्म उष्ण कटिबंधीय देशों में बेतहाशा गर्मी से जल संकट गहरा जायेगा और वृक्षों के अभाव में मानव जीवन संकट में पड़ जायेगा । वैश्विक जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम फलस्वरूप कृषि तंत्र प्रभावित होकर हमें कई सुलभ ख़ाद्य पदार्थो की सहज उपबल्धि से वंचित कर सकता है । अंगूर, संतरे, स्ट्राबेरी, लीची, चेरी आदि फल ख्वाब में परिवर्तित हो सकते है । इसी प्रकार धोघे, यूनियों, छोटी मछलियां, प्रांस, वाइल्ड पेसिफिक सेलमान, स्कोलियोडोन जैसे कई जलचर तथा समुद्री खाद्य शैवाल मांसाहारियों के भोजन मीनू से बाहर हो सकते हैं । तापक्रम में वृद्धि के कारण वर्षावनों में रहने वाले प्राणी तथा वनस्पति विलुप्त् हो सकते हैं तथा नये कीट जन्म लेकर उपलब्ध वनस्पति को चट कर सकते हैं । हमारी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहरों को नुकसान पहुंच सकता है और हम पर्यटन के रूप में विकसित स्थलों से वंचित हो सकते हैं । वर्षो तक ठोस बर्फ के रूप में जमें पहाड़ों की ढलानों पर स्क्रीइंग खेल का आनंद बर्फ के अभाव में स्वप्न हो सकता है । हॉकी, बेसवाल, क्रिकेट, बेडमिंटन, टेनिस, गोल्फ आदि खेलों पर जंगलों में उपयुक्त लकड़ी के अभाव तथा खेल के मैदानों पर सूखे का दुष्प्रभाव देखने को मिल सकता है । विभिन्न खेलों में कार्यरत युवतियों की आजीविका छिनने से व्यभिचार और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है । समुद्री जलचरों में तापक्रम परिवर्तन के कारण अलग थलग पड़े जलचर अपनी सीमा लांघ सकते हैं तथा समुद्री सीमाआें को लांधकर अन्य जलचरों को हानि पहुंचा सकते हैं । वैश्विक तापक्रम वृद्धि के फलस्वरूप जंगली जीवों की प्रवृति तथा व्यवहार में परिवर्तन होकर उनकी नस्लों की समािप्त् हो सकती हैं । प्रवजन पक्षी (माइग्रेटरी बर्डस) अपना रास्ता बदलकर भूख और प्यास से बदहाल हो सकते है। घर के पिछवाड़े में आने वाली चिड़ियों की आवाजों से हम वंचित हो सकते हैं । सांप, मेंढक, तथा सरीसर्प प्रजाति के जीवों को जमीन के अंदर से निकलकर बाहर आने को बाध्य होना पड़ सकता है। पिघलते घुवों पर रहने वाले स्लोथ बीयर जैसे बर्फीले प्रदेश के जीवों को नई परिस्थितियों और पारिस्थितिकी से अनुकूलनता न होने के कारण अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ सकता हैं । बढ़ते तापमान के कारण उत्पन्न लू के थपेड़ो से जनजीवन असामान्य रूप से परिवर्तित हो सकता है तथा शहरों व कस्बों के नदी, नाले व झीलें सूखकर सूखे मैदानों में परिवर्तित होकर हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता की याद के रूप में गहरे कुआें व बावड़ियों, कुईयों आदि के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अभी हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में वैश्विक जलवायु परिवर्तन के भावी परिदृश्य के रूप में बढ़ते तापक्रम के साथ बढ़ते प्रदूषण से बीमारियों विशेषत: हार्ट अटैक, मलेरिया, डेंगू, हैजा, एलर्जी तथा त्वचीय रोगों में वृद्धि के संकेत देकर विश्व की सरकारों को अपने शारारिक स्वास्थ्य बजट में कम से कम २० प्रतिशत वृद्धि करने की सलाह दी हैं। विभिन्न देशों के विदेश मंत्रालयों तथा सैन्य मुख्यालयों द्वारा जारी सूचनाआें में वैश्विक तापमान वृद्धि से विश्व के देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरें के मंडराने का संकेत दिया गया हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ महासचिव बान की मून ने इसी वर्ष अपने प्रमुख भाषण में वैश्विक तापमान वृद्धि पर चिंता व्यक्त करते हुये इसे `युद्ध' से भी अधिक खतरनाक बताया हैं । वैश्विक जलवायु परिवर्तन के भविष्य दर्शन के क्रम में यह स्पष्ट हैं कि पर्यावरण के प्रमुख जीवी घटको हेतु अजीवीय घटकों वायु, जल और मृदा हेतु प्रमुख जनक वनों को तुरंत प्रभाव से काटे जाने से संपूर्ण संवैधानिक शक्ति के साथ मानवीय हितों के लिये रोका जाये ताकि बदलते जलवायु पर थोड़ा ही सही अंकुश तो लगाया जा सके । अन्यथा सूखते जल स्त्रोत, नमी मुक्त सुखती धरती, घटती आक्सीजन के साथ घटते धरती के प्रमुख तत्व, बढ़ता प्रदूषण, बढ़ती व्याधियों, पिघलते ग्लेशियर के कारण बिन बुलाये मेहमान की तरह प्रकट होती प्राकृतिक आपदायें मानव सभ्यता को कब विलुप्त् कर देगी, पता ही नहीं चल पायेगा। आवश्यकता है वैश्विक स्तर पर पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण के साथ प्रस्फुटित राजनीतिक इच्छा शक्ति की, जिसमें मानव के साथ पर्यावरण की सुरक्षा एवं संतुलन का एक निष्ट भाव निहित हो ।***
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