मंगलवार, 3 जून 2008

१२ कविता

इस मिट्टी का कर्ज चुकाये
किशोर पारीक



हर बेटे से हर बेटी से, मेरा एक सवाल है,
इस मिट्टी का कर्ज चुकायें, वो ही मां का लाल है ।
छेद हुआ ओजोन परत में, वह जमीन को भारी है,
अंबर से भू पर तेजाबी, बरखा की तैयार है ।
कोई गन्दे नालों से, मां गंगा दूषित करता है,
चिमनी के धुएं से कोई, गगन कलुषित करती है ।
श्याम चिरैया, सोन चिरैया, ना गौरेया गाती है,
अमराई सूनी उदास है, कोयल ना इठलाती है ।
तिनका तिनका चुनकर पंछी बेमन नीड़ बनाते है,
फूलों के बिन तितली मधुकर, सब गुमसुम हो जाते हैं।
मन मोहक झरने केवल अब, चित्रों में बच पाये हैं,
मानव से स्वार्थ के खातिर, जंगल भी कटवाये हैं ।
नदिया कूप बावड़ी सूने, पानी गया पातालों में,
मीलों से जल लाती वधू के चरण भरे है छालों में ।
इस पीड़ा को कोई ना जाने, यही किशोर मलाल है,
आँखें खोलेगा जो जग की, सोई मां का लाल है ।
मौसम हमसे रूठ गये हैं तापमान भी ज्यादा है,
और सुनामी बाढ़े आने को, कितनी आमादा है ।
आये दिन अति वृष्टि कहीं तो, पड़ता कहीं अकाल है,
इस मिट्टी का कर्ज चुकाये, वो ही मां का लालहै।
पेड़ झाड़ियां ढूंढ बेलड़ी, गली सूखे सब कटते,
अपने अपने रूतबे माफिक, ऊपर तक हिस्से बँटते ।
कानन का आनन मुरझाया, ना चुग्गा है ना पानी,
गिद्ध हो गया गुम, बहुत सी नसलें, भी है गुम जानी ।
भूल गये तुम खेजड़ली की अदभुद सी कुरबानी को,
शीश कटा कर पेड़ बचाया, ऐसी अदभुद रानी को ।
मूक जानवर किससे बोलें अपने मन की लाचारी,
सलमान सरीखे भोले चेहरे उन पर पड़ते है भारी ।
कहां गई गोड़ावन अपनी, केहरी हुवा हलाल है,
इस संकट से हमें बचाए कोई मां को लाल है ।
हर बेटे से हर बेटी से, मेरा एक सवाल है,
इस मिट्टी का कर्ज चुकाये, वो ही मां का लाल है ।
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