घरेलू प्रदूषक
- श्रीमती पुष्पलता सक्सेना
आज हर समझदार व्यक्ति प्रदूषण को रोकने के लिए जागरूक है । सभी शिक्षित यह जानते हैं कि प्रदूषण क्या है और इस समस्या का निदान कैसे पाया जा सकता है । आमतौर पर हम लोगों को प्रदूषण के नाम पर दौड़ती मोटर गाड़ियाँ और बड़े- बड़े कारखानों से निकलते धुएँ और जहरीले रसायन की याद आतीहै परंतु यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि हमारे घरों से भी अनेक प्रकार का प्रदूषण पाया जाता है । घरों में स्नानागार और शौचालय की स्वच्छताके लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एसीड प्रमुख घरेलू प्रदूषण प्रसारक है । सफाई के दौरान इस एसीड से न सिर्फ फर्श पर कटाव होता है अपितु यह सफाई के पश्चात् जिस मिट्टी में जाता है उसका भी कटाव करता है । एसीड प्रभाव तो उत्पन्न करेगा ही, मृदा में उपस्थित जीवों को भी नष्ट करेगा । एसीड के स्थान पर जल, विभिन्न प्रकार के ब्रश, चूना (कुंचा), हल्के डिटरजेंट का उपयोग किया जा सकता है । पर्यावरण को क्षति पहुंचाने में प्लास्टिक थैलियों की भूमिका भी कम नहंी है । बाज़ार जाते वक्त बिना झोला या कपड़े की थैली लिए निकल जाना हमारे लिए बेशक सुविधाजनक है पर जरा सोचिए कि ये प्लास्टिक बेग्ज़ पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं । प्रत्येक सामान की खरीदी के बाद दुकानदार आपको प्लास्टिक की थैली में समान दे देता है और थैलियां घरों के सामने , सड़कों पर, जल स्रोतों में सभी दूर फैली हुई नजर आती हैं । यह इसलिए भी खतरनाक है कि इन थैलियों में खाद्य पदार्थ रखकर फेंक देने से पशु इन थैलियों को भी उदरस्थ कर जाते हैं और इसका परिणाम पशुआें की मृत्यु होता है । शहरीकरण और मनुष्य की महत्वाकांक्षाआें ने इस कदर पैर पसारे हैं कि हर शहर में नई-नई कॉलोनियां का विकास हो रहा है । जहां आलीशान मकान बना लिए जाते हैं लेकिन निर्माण कार्य योजनाबद्घ तरीके से नहीं होने से घरेलू ड्रेनेज की गंदगी घर के आगे या पीछे फैली रहती है । जगह-जगह ग े भरे रहते हैं । सड़ांध आती है और बीमारी फैलाने के लिए मच्छरोंऔर अन्य माइक्रोब्स को मिलता हैं मनपसंद निवास । इन तकलीफों से बचने के लिए आवश्यक है कि घरेलू ड्रेनेज अंडरग्राउण्ड हो । हमें अपने आचरण में भी सुधार करना होगा और अपने घरेलू कचरे का निपटारा समझदारी से करना होगा वरना शिक्षित होकर भी हममें अशिक्षा ही परिलक्षित होगी और अपने पर्यावरण के विनाश का कारण हम स्वयं ही बनते रहेंगें जिन देशों में मक्खी, मच्छर नहींहोते हें अवश्य ही इस व्यवस्था में वहां की जनता की निजी समझ भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हर अच्छा कार्य डंडे के बल पर ही नहीं होता । अपने घर से कचरे को बाहर करके पड़ोसी के बंद घर के आगे ढेर लगा देने से इस समस्या का अंत नहीं हो सकता । फल एव सब्जियों के छिलकों तथा बासी भोजन (पुराना खाना) को पशु आहार में भी बदला जा सकता है । अन्य कई अनावश्यक घरेलू पदार्थोंा को जमीन में गड्डा बनाकर उसमें एकत्रित करके अपघटकों के द्वारा खाद में रूपान्तरित किया जा सकता है । महत्वकांक्षाी होना गलत नहंी है परन्तु आरामदायी जीवन जीने की मनुष्य की प्रबल इच्छाशक्ति के कारण घरों में एयर कंडीशनर और फ्रीज का उपयोग कई गुना बढ़ा है जिससे ओजोन परत को तो नुकसान पहुंच ही रहा है कई नई- नई बीमारियां मनुष्य को पकड़ती जा रही हैं । जब घर में ए.सी. की ठंडक है तो शुद्घ प्राकृतिक हवा में टहलने की क्या जरूरत ? फ्रीज है तो रोजाना झोला लेकर सब्जी मंडी जाने की क्या जरूरत? ऐसे में यदि डाइबिटिज, श्वास रोग, हृदय रोग, त्वचा रोग, मोटापा आदि बीमारियों का सामना करना पड़े तो आश्चर्य क्यों होना चाहिए ? घरेलू प्रदूषण में जोरों से आवाज़ करती मोबाईल की घंटियां, टी.वी. और टेप रिकार्डर का शोर भी पीछे नहंी हैं । इन साधनों ने मनुष्य की दृश्य-श्रृव्य क्षमताआें को चुनौती दे रखी है । कई बार हम दूर तक की सोच लेते हैं लेकिन सामने जो दिखाई दे रहा है उसके बारे में अपनी समझ स्पष्ट नहंी कर पाते हैं, घरों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण के बारे में भी यही स्थिति है । इस ओर भी हमें अपनी जागरूकता बढ़ानी होगी । ***
1 टिप्पणी:
bahut sundar likha hai aapne.. paryavaran ke leye jan chetna bahut jaruri hai jo aap kar rahe hai sadhuvad...
sanjay khare
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