तितलियों की बढ़ती तस्करी
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
तितलियों के लगातार हो रहे विनाश से प्रकृति संतुलन गड़बड़ा सकता है । दु:ख की बात है कि तस्करी के कारण तितलियों के वजूद पर संकट मंडरा रहा है । भारत में नार्थ ईस्ट स्टेटस-मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, आसाम, पंजाब, हिमाचल व जम्मू-कश्मीर में तितलियों को पकड़ कर विभिन्न राज्यों के साथ-साथ विदेश में तस्करी करके भारी दामों पर इन्हें बेचा जाता है । गहनों एवं सजावटी सामान के तौर पर इस्तेमाल पकड़ कर मारी गई तितलियों को फोटो फ्रेम में बंद कर दीवारों पर सजाने, कानों में गहनों की तरह पहनने और सजावटी सामान के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है ।
पूरे विश्व में हर वर्ष तकरीबन २० मिलियन डालर का तितलियों का अवैध कारोबार बेधड़क चल रहा है । अंतराष्ट्रीय बाजार में कुछ तितलियों की प्रजातियों का गहनों के बराबर का मूल्य है तथा वह काफी मंहगे दामों पर बेची जाती है ।
साधारणतया तितलियों को पकड़ने वाले तस्कर पेट्रोल जेनरेटर, अल्ट्रावायलेट बल्वस, बटरफलाई कलेक्शन जार, विभिन्न रसायन पदार्थ एवं जाल का उपयोग इन्हें पकड़ने के लिए करते हैं । विश्व में तकरीबन तितलियों की २४०० प्रजातियां हैं, जिनमें अकेलेभारत में तकरीबन १५०० प्रजातियां पाई जाती हैं । विभिन्न प्रजातियों की तितलियों का जीवनकाल भी अलग-अलग होता है । पंजाब में तिलियों की १४२ प्रजातियां तथा उनकी १४ फैमिलीज पाई जाती हैं जो कि यहां पर मौजूद १२ नैचुरल वैटलैंडस तथा १० मैन मेड वैटलैंडस में साधारणत: देखी जा सकती हैं । भारत में ही करीब सौ तितलियों की प्रतातियां विलुप्तहोने की कगार पर हैं । पंजाब में पाई जाने वाली कैबेज तितली प्रजाति के संरक्षण में बहुत सहायक मानी जाती हैं ।
अध्ययन के अनुसार एक तितली का अंडे से व्यस्क होने तक का जीवन दो सप्तह से लेकर कई महीनों तक हो सकता है । वास्तव में तितलियों का लारवा प्रकृतिके अनेक जीवों विशेषकर पंछियों का भोजन बनने के कारण भोजन श्रंृखला का अहम हिस्सा है । बहुत से पंछी अपने बच्चें को तितलियों के लारवा को ही भोजन के रूप में देते हैं, क्योंकि इसमें प्रोटीन के तत्व बहुतायात में होते हैं, जिससे शरीर का विकास जल्दी होता है । लारवा के भोजन श्रंृखला का हिस्सा होने के कारण मात्र पांच फीसदी तितलियां ही प्रकृति में बच पाती हैं ।
गहने बनाने वाले व्यापारी पकड़ कर मारी हुई तितलियों के पंख तथा समूची तितली को प्लास्टिक अथवा शीशे की परत चढ़ा कर बतौर गहनों में उपयोग किए जाने वाले पैंडेंट, तितलीयुक्त क्रिस्टल पेपरवेट, तितलियों के चाबीयों के छल्ले तथा इयररिंग्स के तौर पर प्रति पीस ५ से १० हजार रूपए तक बेचते हैं । उपरोक्त बताए गए सभी सजावटी चीजें एवं गहने अधिकतर फिलीपीन्स, थाईलैंड, चीन व जापान के तस्कर इन्हें वहां से पकड़कर अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बेधड़क बेचते हैं । आंकड़ों के अनुसार इनके गहनों व सजावटी वस्तुआें का विश्व में हर वर्ष तकरीबन एक मिलियन डालर का गैरकानूनी गोरखधंधा बेधड़क चलता है । औरतों को चाहिए कि वह तितलियों के बने हुए गहनों का उपयोग न कर इसके संरक्षण में समूची मानवता को सहयोग दें ।
वाइल्ड लाइफ एक्ट १९७२ के अन्तर्गत संरक्षित होने के कारण तितलियों को पकड़ना, मारना व इसकी तस्करी करना कानूनन जुर्म है, परन्तु दु:ख की बात है कि देश में कानून को सख्ती से लागू नहीं किया जा सका जिसके कारण इनकी तस्करी बेधड़क जारी है । गौरतलब है कि १९९४ में इंदिरा गांधी, अन्तर्राष्ट्रीय नेशनल एयरपोर्ट पर दो जर्मन लोगों को ४५००० तितलियों की खेप, १९९६ में दार्जिलिंग के इलाके में एक जापानी टूरिस्ट को १२०० तितलियों की खेप, २००१ में दो रूसी टूरिस्टों को सिक्किम में २००० तितलियों की खेप तथा २००८ में दो चेकोस्लोवाकिया के टूरिस्टों को बेस्ट बंगाल में १३००तितलियों की खेप के साथ गिरफ्तार किया गया ।
हाल ही में सन् २००९-२०१० में रूस के एक बड़े बटर फलाई पोचरस ग्रुप को तकरीबन १६ किलो की विशिष्ट विलुप्त् होने वाली तितलियों की खेप के साथपकड़ा गया, पंरतु कानून की ढुलमुल नीति होने के कारण जमानत देकर साफ छुट गए । जरूरत है कि वाइल्ड लाइफ संरक्षण एक्ट १९७२ को शक्ति से लागू करने की तितलियों की तस्करी को समय रहते रोक कर वातावरण में संतुलन कायम किया जा सके ।
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