भारत में एण्डोसल्फान पर प्रतिबंध
डॉ एस. एज़हिल वेंदान
एण्डोसल्फान एक कार्बनिक -क्लोरीन कीटनाशक है जिसका उपयोग कई खाद्य फसलों और नगदी फसलों में किया जाता है । यह पानी में आसानी से नहीं घुलता । धूप में तो यह आसानी से विघटित हो जाता है, मगर छाया में या नम स्थान में यह मिट्टी के कणों से चिपक जाता है और इसे विघटित होने में बहुत समय लगता है । एण्डोसल्फान एक तंत्रिकाविष है और हल्के सिरदर्द से लेकर गंभीर विषाक्तता तक उत्पन्न करता हे । इससे संपर्क का परिणाम मौत भी हो सकता है, जो इसकी मात्रा व अन्य कारकोंपर निर्भर है ।
यूएस पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी ने एण्डोसल्फान को अत्यन्त विषैला पदार्थ के रूप में वर्गीकृत किया है । जन्तुआें पर कुदरती पर्यावरण में किए गए प्रयोगों में एण्डोसल्फान का कैंसरकारी खतरा साबित हुआ है । अलबत्ता, मनुष्यों में इसके कैंसरकारी गुण का कोई प्रमाण नहीं है ।
एण्डोसल्फान को ७५ से ज्यादा देशों में प्रतिबंधित किया गया है । अर्जेटाइना, पेरू और चिली जैसे देशों में एण्डोसल्फान पर प्रतिबंध के बाद वैकल्पिक कीटनाशकों की मांग में वृद्धि हुई है । हाल में, एण्डोसल्फान पॉइजनिंग की रिपोट्र्स और राजनैतिक दबाव के चलते भारत में एण्डोसल्फान पर प्रतिबंध के लिए काफी हंगामा मचा था ।
कीटनाशक हानिकारक कीटोंके खिलाफ कारगर हथियार हैं मगर ये कभी-कभी गैर-लक्षित या गैर हानिकारक और लाभदायक जीवों को भी प्रभावित करते हैं । कई बार ये हवा, पानी या मिट्टी में बने रहते हैं । अधिकांश संश्लेषित रासायनिक कीटनाशक पर्यावरण के लिए विभिन्न स्तरों तक विषैले होते हैं । सजीवों पर कीटनाशकों के विषैले असर संपर्क के तरीके, मात्रा, संपर्क की अवधि और व्यक्तिगत गुणधर्मोपर निर्भर करते हैं । कृषि में प्रयुक्त कीटनाशकों से संपर्क मूलत: भोजन व संदूषित पेयजल के जरिए होता है । असुरक्षित ढंग से इस्तेमाल, त्वचा से सीधे संपर्क और सांस के जरिए किसानोंका कीटनाशकों से संपर्क होने की संभावना ज्यादा होती है ।
१९५० से लेकर आज तक मानव आबादी बढ़ने के साथ विश्व स्तर पर कीटनाशकों का उपयोग ५० गुना बढ़ गया है । निम्नलिखित कीटनाशकों की वजह से देश के विभिन्न भागों में १९५८-२००२ के बीच कई दुघटनाएं हुई हैं : पेराथियोन, बीएचसी, एण्ड्रिन, डीडीटी, डाएजिओन, एल्युमिनियम फॉस्फाइड, मिथाइल आइसोसायनेट, कार्टेप हायड्रोक्लोराइड, फोरेट और एण्डोसल्फान । इनमें से डीडीटी, डाएजिओन, एल्युमिनियम फॉस्फाइड, मिथाइल आइसोसायनेट, कार्टेप हायड्रोक्लोराइड, फोरेट और एण्डोसल्फान पर अब तक प्रतिबंध नहीं लगा है ।
पूर्व में केरल में एण्डोसल्फान पर प्रतिबंध लगा था और हाल में बिहार में इस पर प्रतिबंध लगाया गया है । भारत में कीटनाशक कानून (१९६८) के सेक्शन ९(३) के तहत २१७ कीटनाशकों का पंजीयन है, जबकि ६५ तकनीकी दर्जे के कीटनाशकों का उत्पादन देश में ही होता है ।
दुनिया भर में भारत एण्डोसल्फान का सबसे बड़ा निर्माता है । भारत में इसका उपयोग भी सबसे ज्यादा होता है । भारत में कृषि वैज्ञानिक आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण तमाम कीटों के नियंत्रण के लिए एण्डोसल्फान के उपयोग की सलाह देते हैं : जैसे अमरीकन बोलवर्म (हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा), एशियन आर्मीवर्म (स्पोडोप्टेरा लिटुरा) । अकेले अमरीकन बोलवर्म ने भारत में ५००० करोड़ रूपए की फसलों का नुकसान किया है । फिलहाल देश में विभिन्न फसलों की रक्षा के लिए एण्डोसल्फान ही सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाना वाला कीटनाशक है ।
कीट प्रबंधन के संदर्भ में कीटनाशकों के खिलाफ प्रतिरोधी कीट सबसे प्रमुख समस्या रहे हैं । अधिकांश पोलीफैगसकीटों में सामान्यत: उपयोग किए जाने अधिकांश कीटनाशकों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित हो गया है । इनमें अमरीकन बोलवर्म और एशियन आर्मीवर्म शामिल हैं । प्रतिरोध पैदा हो जाने के चलते कई सारे कीटनाशक नाकाम हो गए हैं । इस वजह से किसान अपने खेतों में इनकी ज्यादा से ज्यादा मात्रा डाल रहे हैं और एण्डोसल्फान जैसे अपेक्षाकृत ज्यादा विषैले कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं ।
हानिकारक कीटों की आबादी को नियंत्रण में रखने, कीटनाशकों के विरूद्ध प्रतिरोध के विकास से बचने और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आजकल एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीति की सलाह दी जाती है । भारत में कई कृषि विश्वविद्यालय, स्वैच्छिक समूह, व एनजीओ एकीकृत कीट प्रबंधन, जैविक खेती और गैर-रासायनिक प्रबंधन कार्यक्रमों में शामिल हैं । ये किसानों में जागरूकता व प्रशिक्षण के कार्यक्रम भी चलाते हैं । भारत सरकार की फंडिंग संस्थाएं, जैसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद, विज्ञान व टेक्नॉलॉजी विभाग, जैव टेक्नॉलॉजी विभाग, और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग वैज्ञानिकों व स्वैच्छिक कार्यकर्ताआें को पर्यावरण मित्र खेती के कार्यक्रम चलाने के लिए वित्तीय सहायता दे रही हैं । इसके बावजूद, जानकारी के अभाव, निरक्षरता, गरीबी व प्रतिस्पर्धा के चलते किसान रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधंुध उपयोग कर रहे हैं ।
भारत एक कृषि प्रधान विकासशील देश है । करीब ६०-७० प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं । एकीकृत कीट प्रबंधन या जैविक खेती पूरे देश में लागू नहीं किए जा रहे हैं । शायद ५-१० प्रतिशत किसान ही पर्यावरण-मित्र कीटनाशक प्रबंधन के तरीकों को अपनाते हैं । पर्यावरण मित्र कार्यक्रम बड़े किसानों के समान ही छोटे किसानों के लिए भी आकर्षक नहीं हैं क्योंकि इनमें मेहनत और हुनर की जरूरत होती है ।
विकासशील देशों में कीटनाशक छिड़काव के समय सुरक्षा हेतु विशेष पोशाकें न तो उपलब्ध है, न ही किसान व छिड़काव करने वाले मजदूर इनका खर्च वहन कर सकते हैं । आम तौर पर छिड़काव करने वाले लोग नंगे पैर ही छिड़काव का काम करते हैं । उनके पास चश्मे, दस्ताने, पूरी बांह के कमीज या रेस्पिरेटर जैसा कोई सुरक्षा उपाय नहीं होता है । इसके विपरीत विकसित देशों में किसान परिष्कृत सुरक्षा उपायों के साथ काम करते हैं ।
इसके अलावा समशीतोष्ण इलाकों में कीट की समस्या गर्म इलाकों की तुलना में कम होती है । बदकिस्मती से भारत की जलवायु गर्म है और फसलों पर कीटों का हमला ज्यादा होता है । कीटनाशक के मुद्दे को सुलझाने के लिए वैकल्पिक संसाधनों की तत्काल जरूरत है । भारत में जैविक कीटनाशकों और अन्य संसाधनों की मांग पहले ही बढ़ चुकी है । जर्मनी में जहां एण्डोसल्फान पर प्रतिबंध है, फसलों की सुरक्षा के वैकल्पिक तरीके उपलब्ध करा रहे हैं । मगर सवाल यह है कि क्या ये तरीके भारतीय परिस्थिति के लिए उपायुक्त हैं ।
भारत एण्डोसल्फान का प्रमुख उत्पादक, उपभोक्ता व निर्यातक है । जहां तक एण्डोसल्फान पर प्रतिबंध का सवाल है, निर्णय प्रक्रिया में चिकित्सा विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों, समाज वैज्ञानिकों रणनीतिज्ञों की अपेक्षा कीट प्रबंधन विशेषज्ञ, खासकर कीट वैज्ञानिक अहम भूमिका निभाते हैं । जरूरत इस बात की है कि मैदानी स्तर पर अधिक संख्या में एकीकृत कीट प्रबंधन कृषक शालाएं खोली जाएं और जैविक खेती के कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए । जिनेटिक रूप से परिवर्तित फसलों का उपयोग करके हम कीटनाशक का उपयोग कम कर सकते हैं । अन्यथा एण्डोसल्फान पर प्रतिबंध खेती में दिक्कतें पैदा कर सकता है ।
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