गुरुवार, 22 मार्च 2012

ज्ञान विज्ञान

नशे में शिकार करती है फ्रूट फ्लाई

फलों पर मंडराने वाली फ्रूट फ्लाई की नशाखोरी के आगे बड़े से बड़े शराबी भी पीछे छूट जाते है । बहुत नशा करने के बाद भी वे बीमार नहीं पड़ती । वैज्ञानिकों ने पाया है कि ये ततैया या अन्य परजीवियों को मारने से पहले नशे में धुत हो जाती है ।
अटलांटा स्थित ईमोरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता की एक टीम नें पाया है कि फ्रूट फ्लाई के लार्वा सड़े हुए या खमोर वाले फलों से केवल खमोर और फफूंद ही नहीं खाते । ये नशे वाले ऐसे अन्य उपोत्पाद (बाईप्रोडक्ट्स) भी चट कर जाते हैं जिनमें चार फीसदी तक अल्कोहल होता है । करंट बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के अनुसार हैरत की बात यह है कि नशे में धुत फ्रूट फ्लाई के लार्वा भोजन कर फैलते है और अल्कोहल का हस्तेमाल कर ततैया को उन्हींके रक्तप्रवाह से मार डालने के लिए करते है । इस शोध के अगुआ टोड स्कलेके ने कहा कि अल्कोहल का उच्च् स्तर फ्रूट फ्लाई के लिए जहरीला हो सकता है । यदि अल्कोहल का स्तर बहुत अधिक हो जाए तो वे बहुत जल्द उसे कम नहीं कर सकती । अध्ययन के दौरान इन मक्खियों के रक्त में ०२ फीसदी अल्कोहल का स्तर पाया गया । यदि ये आदमी होती और इन्हें वाहन चालान होता तो शराब पीकर वाहन चलाने पर रोक के लिए इन्हें चौगुना नशा करना होता ।
फल के जिस टुकड़े पर धुत फ्रूट फ्लाई बैठती है उन्हें परजीवी अक्सर बाधित करते हैं । इनमें ततैया भी है जो फ्रूट फ्लाई के लार्वा में ही अपने अंडे देती है । यदि ये नशा नहीं करे तो छोटी ततैया भी फ्रूट फ्लाई को मार डाले लेकिन ये मक्खियां अल्कोहल बर्दाश्त करने की क्षमता के कारण ही बची रहती है ।

जानवरो की गुप्त् भाषा का खुला रहस्य

प्राणी जगत में उपयोग की जाने वाली गुप्त् भाषा का पता लग गया है । वैज्ञानिकों का दावा है कि संवाद के लिए कुछ प्राणी एक खास किस्म के प्रकाश का प्रयोग करते हैं
पत्रिका करेंट बॉयोलॉजी के मुताबिक वैज्ञानिकों ने पता लगाना शुरू किया कि जानवर धुव्रीकरण का प्रयोग संवाद के लिए कैसे करते हैं । यह प्रकाश की एक प्रकार है जो मनुष्यों को नहीं दिखता है । वैज्ञानिकों ने एक समुद्री जीव कटलफीश की प्रजाति पर अध्ययन किया कि प्राणी जगत में धुव्रीकरण को किस तरह संवाद के लिए इस्तेमाल किया जाता है और जीव विज्ञान में इन संकेतों का क्या महत्व है । ब्रिटेन के ब्रिस्टल विश्वविघालय और ऑस्ट्रेलिया के क्कीसलैंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के मुताबिक अध्ययन से खुलासा हुआ कि समुद्री जीव सीफालोपोडस को पोलराइज्ड लाइट की कई सारी दिशाआें का कैसे पता होता है। स्तनपायी और कुछ अन्य समूहों में पी-वीजन नहीं है लेकिन प्राणी जगत के कई समूहों में यह होता है । चींटियां, मक्खी और मछली भी ध्रूवी- करण का इस्तेमाल मार्गनिर्देशन के लिए करते हैं ।
जिस तरह से रंग की अहमियत हमारे लिए है उसी तरह पशु भी आपस में संवाद के लिए पी विजन का प्रयोग करते हैं ।

बैक्टीरिया में चुंबक के बंटवारे की दिक्कत

बैक्टीरिया एक-कोशिकीय जीव होते हैं जिनके बारे में गलतफहमी है कि वे सब रोगजनक होते हैं । १९७० के दशक में रिचर्ड ब्लेकमोर ने सबसे पहले चुंबकीय बैक्टीरिया का विवरण दिया था । इन बैक्टीरिया की कोशिका में चुंबक होता है और इसकी मदद से ये पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से सीध मिला सकते हैं । माना जाता है कि यह गुण इन बैक्टीरिया को गहरे समुद्रों में दिशा पता करके आगे बढ़ने में मदद करता है ।

आगे चलकर पता चला कि बैक्टीरिया कोशिका में यह चुंबक अत्यन्त सूक्ष्म उपांगों से बना होता है । इन्हें मेग्नेटोसोमा कहते हैं । मेग्नेटोसोमा में लौह ऑक्साइड (मेग्नेटाइट) या लौह सल्फाइड (ग्रेगेट) अथवा अन्य चुंबकीय पदार्थ होते हैं । यह मेग्नेटोसोमा इतने सूक्ष्म होते हैं कि एक अकेला मेग्नेटोसोमा बैक्टीरिया में चुंबकीय गुण पैदा नहीं कर सकता । लिहाजा कोशिका के अंदर ये विशेष विन्यास में व्यवस्थित रहते हैं । कुछ बैक्टीरिया में ये एक जंजीर की शक्ल में जमे होते हैं तो किसी बैक्टीरिया में ये बाहरी झिल्ली में धंसे होते हैं । कुछ बैक्टीरिया में मेग्नेटोसोम्स की दो लड़ियां होती हैं जो काशिका के दो सिरों पर स्थिर रहती हैं जबकि कुछ अन्य में ये परस्पर गुंथी होती हैं ।
समस्या यह है कि जब बैक्टीरिया में कोशिका विभाजन होगा तब मेग्नेटोसोम्स दोनों को बराबर-बराबर कैसे मिलेंगे । समस्या को समझने के लिए बैक्टीरिया विभाजन की क्रिया पर गौर करें। बैक्टीरिया में विभाजन के समय पहले तो कोशिका लंबी हो जाती है । फिर बीच में से सिकुड़ने लगती है, जैसे रस्सी बांधकर कसा जा रहा हो । जब इस तरह से कसते-कसते झिल्ली पूरी तरह बंद हो जाती है तो दो कोशिकाएं स्वतंत्र हो जाती हैं । मगर हो सकता है कि सारे मेग्नेटोसोम्स एक ही कोशिका में रह जाएं।
होता यह है कि पहले तो किसी भी अन्य बैक्टीरिया के समान मेग्नेटोस्पा-यरिलम की कोशिका भी बीच में सिकुड़ती है । मगर जल्दी ही इसमें एेंठन पैदा होती है और दो हिस्से करीब ५० डिग्री के कोण पर मुड़ जाते है । फिर एक झटके के साथ ये दोनों हिस्से अलग-अलग होते हैं, जैसे किसी लकड़ी को तोड़ा जाता है ।

ततैया चेहरे पहचानती हैं

कुछ लोग कहते है कि वे किसी शक्ल को एक बार देख लें तो भूलते नहीं । शायद ततैया भी यह दावा कर सकती है कि वे अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों की शक्लें पहचान लेती हैं ।
वर्ष २००२ में न्यूयॉर्क स्थित कॉर्नेल विश्वविद्यालय की स्नातक छात्र एलिजाबेथ टिबेट्स ने प्रयोगों की मदद से दर्शाया था कि सुनहरी ततैया पोलि-स्टेस अपनी ही प्रजाति की अन्य ततैयों को उनके चेहरे पर उपस्थित चिन्हों की मदद से पहचान लेती हैं । उनके प्रयोगों से पहले यदि कोई यह बात कहता तो पागल ही माना जाता ।



मगर अब उनकी बात की ओर पुष्टि हुई है । वैसे वैज्ञानिकों के बीच यह बहस का मुद्दा रहा है कि चेहरे पहचानने की क्षमता जैव विकास के दौरान पैदा हुई है या हर जंतु को यह क्षमता अपने जीवन काल में हासिल करनी होती है । इसी सवाल से प्रेरित हाकर टिबेट्स के एक छात्र माइकल शाहीन ने ततैया की ही एक अन्य प्रजाति पोलिस्टेस मेट्रिक्स मेट्रिक्स और पोलिस्टेस फस्केटस की तुलना करके देखा ।
पोलिस्टेस फस्केटस ततैयों में चेहरों पर ऐसे निशान होते हैं जो उन्हें अलग-अलग पहचानने योग्य बनाते हैैं । पोलिस्टेस फस्केटस और मेट्रिक्स दोनों ही सामाजिक कीट हैं और बस्तियां बनाकर रहते हैं । मगर फस्केटस की बस्तियों में सामाजिक जीवन कहीं अधिक पेचीदा होता है क्योंकि उनकी एक ही बस्ती में कई रानियां होती हैं और उन सबकी संतानें होती हैं । लिहाजा उनमें कोठर सामाजिक क्रम पाया जाता है । इस वजह से उनकी बस्ती में यह जरूरी होता है कि सारे सदस्य एक-दूसरे की हैसियत पहचान पाएं और उसी के अनुरूप व्यवहार करें । दूसरी ओर मेट्रिक्स में एक ही रानी होती है जो बाकी सारे सदस्यों पर राज करती है।


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