पर्यावरण समाचार
नर्मदा को प्रदूषण मुक्त करने की तैयारी
नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने तैयारी कर ली है । इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ५३ नगरीय निकायों की जिम्मेदारी सौंपी है ।
अमरकंटक से लेकर धार जिले के धरमपुरी तक नर्मदा किनारे बसे शहरोंऔर कस्बों में बोर्ड की टीम सर्वे कर चुकी है । पिछले दिनोंे आवास एवं पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया के बंगले पर नगरीय प्रशासन मंत्री बाबुलाल गौर की मौजूदगी मेंप्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नगरीय प्रशासन विभाग के अफसरों की बैठक हुई । इसमें नर्मदा को प्रदूषण मुक्त करने के संबंध मेंतैयार की गई प्री फिजिबिलिटी रिपोर्ट को लेकर चर्चा की गई । प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड २१ बिन्दुआेंके आधार पर प्रदूषण की मानीटरिंग करेगा । इस कार्ययोजना पर अमल कर रही मंडल की नर्मदा शमन समिति ने बैठक में इस रिपोर्ट का ब्योरा पेश किया ।
योजना के पहले चरण में नर्मदा किनारे बसे दस हजार से ज्यादा आबादी वाले २३ शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट का काम होगा । प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधीक्षण यंत्री एवं नर्मदा शमन समिति के अध्यक्ष आरके श्रीवास्तव ने बताया कि डेढ़ महीने पहले २३ नगरीय निकायों के सीएमओ की कार्यशाला आयोजित की गई थी ।
बोर्ड ने नर्मदा मेंप्रदूषण को लेकर शहरों और कस्बों को तीन श्रेणियों में बांटा है । बोर्ड की टीम ने अमरकंटक, होशगांबाद, डिडोरी, मंडला, जबलपुर, बरमान, ओकारेश्वर, महेश्वर, मंडलेश्वर, खलघाट और धरमपुरी का दो-तीन बार दौर कर चुकी है । इनमें से डिंडोरी और होशगांबाद को सी, बाकी को ए और बी श्रेणी में रखा गया है । सबसे ज्यादा प्रदूषण धरमपुरी में पाया गया ।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने होशगांबाद स्थित सिक्योरिटी पेपर प्रबंधन को नोटिस दिया है । जिसमें छह महीने के भीतर नर्मदा का पानी लिए जाने के सिस्टम को बंद करने को कहा गया है ।
बाघ अभयारण्यों में राजमार्गो से वन्यजीवों को खतरा
भारत में बाघों को बचाने के लिए व्यापक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन एक अध्ययन में सामने आया है कि अभयारण्यों में व्यस्त राजमार्गो एवं सड़कों के अंधाधंुध निर्माण से वन्यजीवोंकी संख्या एवं उनके प्राकृतिक पर्यावास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा । क्योंकि यह जीव ऐसे स्थानों पर जाने से बचते हैं ।
यह अध्ययन रपट ऐसे समय पर आई है जब देश में सिर्फ १७०६ बाघ बचे हैं और विभिन्न बाघ अभयारण्यों में राजमार्गो के निर्माण के लिए पर्यावरण मंत्रालय से सहमति लेने पर बहस चल रही है । वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसायटी (डब्ल्यूसीएस) और वाइल्ड लाइफ स्टडीज द्वारा यह अध्ययन कर्नाटक के नागरहोल बाघ अभयारण्य में कराया गया । इस दौरान प्रारंभिक अध्ययन में अभयारण्य से गुजरने वाले राजमार्गोंा से वाहनों की आवाजाही का हाथी, चीतल, बाघ, चीता, गौर और जंगली सुअर आदि स्तनधारियों पर पड़ने वाले प्रभावों का परीक्षण किया गया । डब्ल्यूसीएस-इंडिया कार्यक्रम के संजय गुब्बी ने कहा कि हमने पाया कि राजमार्ग के जिस भाग में वाहनों की अत्यधिक आवाजाही है वहां चीतल और गौर राजमार्ग पर कम आते हैं । अध्ययन में कहा गया है कि भारत की विकास की रफ्तार तब तक बनी रहेगी जब तक पर्यावरण प्रभावों के आंकलन को आर्थिक विकास के लिए नहींछोड़ा जाएगा ।
वन्य जीवन अभ्यारणों में सड़कों के व्यस्त रहने से विलुप्त्प्राय: प्रजातियों पर असर पड़ता है । यह जानने के बाद भी पर्यावरण पर सड़कों के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए कोई भी प्रयास नहीं हो रहा है, खासतौर पर बड़े जानवरों पर । इसलिए भारत में सड़कों एवं वाहनों की आवाजाही का विलुप्त्पा्रय: जानवरों पर क्या प्रभाव पड़ता है इसके विषय में कम जानकारी है । इस रपट में विकास योजनाआें के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया गया है ताकि इसके दुष्प्रभावों को पहचान कर इससे समय रहते निपटा जा सके ।
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