सोमवार, 14 मई 2012

विज्ञान हमारे आसपास
जी.एम. फसल पर अंतहीन बहस
भारत डोगरा

    जी.एम. फसलों की बहस को बार-बार चर्चा में लाने के पीछे की साजिश यह है कि धीरे से इसे स्वीकार्यता प्रदान करवा दी जाए । वैश्विक तौर पर यह सिद्ध हो जाने के बाद कि इन फसलों से मनुष्य सहित पूरे पर्यावरण को खतरा है, के बावजूद इसकी स्वीकार्यता को लेकर की जा रही बहस साफ दर्शा रही है कि बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियां अपने लाभ के लिए पूरी पृथ्वी को संकट में डालने में नहीं हिचकिचाएंगी ।
    बी.टी. बैंगन व बी.टी. कपास के संदर्भ में जी.एम. फसलों पर हाल ही मेंे देश में तीखी बहस हुई । अंतत: बी.टी. बैंगन पर रोक लग गई । बी.टी. कपास पर बहस अभी भी जारी है । आंध्रप्रदेश व महाराष्ट्र के विदर्भ में कपास की इस किस्म से किसानों की भारी क्षति हुई है । बी.टी. बैंगन की बहस के दौरान कुछ ऐसे मुद्दे उठे जो विशेषकर बैंगन से संबंधित थे । यह कहा गया कि भारत बैंगन के जन्म का देश है व यहां के १३४ जिले बैंगन की जैव-विविधता के लिए चर्चित हैं व इसकी ३९५१ किस्में देश में उपलब्ध   हैं । जी.एम. फसल आने से बैंगन के जन्म के देश में इसकी जैव विविधता पर आघात होगा । इसी तरह बी.टी. बैंगन पर हुए अनुसंधान में कितनी गंभीर कमियां रहीं व यह इसका प्रसार करने वाली कंपनी के ही नियंत्रण में किया गया, यह भी चर्चा का विषय   बना ।
    पर इससे आगे यह कहना जरूरी है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग से प्राप्त् जी.एम. या जी.ई. फसलों में मूल रूप से कई कमियां हैं । बी.टी. बैंगन को जो निहित स्वार्थ देश में लाना चाहते थे, वही स्वार्थ इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण अन्य जी.एम. फसलों को भी भारत में लाना चाहते हैं । इन पर ये कंपनियां व उनके सहयोगी परीक्षण कर रहे हैं । अब सवाल यह है कि क्या ऐसी हर फसल के बारे में इतना बड़ा विवाद होगा ? जैसे बी.टी. बैंगन विवाद में अरबपति कंपनियों ने गलत ढंग के परीक्षणों व प्रचार से पलड़ा अपने पक्ष में करने का कुप्रयास किया, वैसा वे पुन: करेंगी । यह भी हो सकता है कि वे साम्राज्यवादी हितोंे से उच्च्तम स्तर पर भी अपने लिए सहयोग प्राप्त् करें ।
    अत: हमें अब तक के उपलब्ध वैज्ञानिक अध्ययनों व विमर्श के आधार पर पर जी.एम. फसलों के बारे में एक व्यापक निर्णय लेना होगा । आईए देखे विश्व के कुछ विख्यात वैज्ञानिक इस बारे में क्या कहते हैं । अनेक निष्ठावान वैज्ञानिकों ने बहुत स्पष्ट शब्दों में इस विषय पर अपने तथ्य व विचार सामने रखे हैं । जनहित के मामलों में मार्गदर्शन करने के लिए अनेक देशों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक एक हुए व उन्होनें एक इंडिपेंडेंट साइंर्स पैनल (स्वतंत्र विज्ञान मंच)का गठन किया । इस पैनल ने जी.एम. फसलों पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किया है । इस दस्तावेज के निष्कर्ष में कहा गया है - जी.एम. फसलों के बारे में जिन लाभों को वायदा किया गया था वे प्राप्त् नहीं हुए हैं व ये फसलें खेतों में बढ़ती समस्याएं उपस्थित कर रहीं हैं ।
    अब इस बारे में व्यापक स्वीकृति है कि इन फसलों का प्रसार होने पर ट्रान्सजेनिक प्रदूषण से नहीं बचा जा सकता है । अत: जी.एम. फसलों व गैर जी.एम. फसलों का यह अस्तित्व नहीं हो सकता है । सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जी.एम. फसलों की सुरक्षा प्रमाणित नहीं हो सकी है । इसके विपरीत पर्याप्त् प्रमाण प्राप्त् हो चुके है जिनसे इन फसलों की सुरक्षा संबंधी गंभीर चिताएं पुष्ठ होती हैं । यदि इनकी उपेक्षा की गई हो तो स्वास्थ्य व पर्यावरण की जो क्षति होगी उसकी पूर्ति नहीं हो सकती है। अतएव जी.एम. फसलोंको अब दृढ़ता से अस्वीकृत कर देना चाहिए । विश्व के इन जाने माने वैज्ञानिकों ने विस्तृत अध्ययन के बाद जो इतना स्पष्ट निष्कर्ष दिया है इससे अधिक स्पष्ट राय और क्या हो सकती है ?
    यूनियन ऑफ कन्सर्नड साईटिस्टस नामक वैज्ञानिकों के संगठन ने कुछ समय पहले अमेरिका में कहा था कि जेनेटिक इंजीनियरिंग के उत्पादों पर फिलहाल रोक लगनी चाहिए क्योंकि यह असुरक्षित हैं । इनसे उपभोक्ताआें, किसानों व पर्यावरण को कई खतरे है ।
    भारत में बी.टी. बैंगन के संदर्भ में इस विवाद ने जोर पकड़ा तो विश्व के १७ विख्यात वैज्ञानिकों ने भारत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस बारे में नवीनतम जानकारी उपलब्ध करवाई । पत्र में कहा गया है कि जी.एम. प्रक्रिया से गुजरने वाले पौधे का जैव-रसायन बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है जिससे उसमें नए विषैले या एलर्जी उत्पन्न करने वाले तत्वों का प्रवेश हो सकता है व उसके पोषण गुण कम हो सकते हैं या बदल सकते हैं । उदाहरण के लिए मक्का की जी.एम. किस्म जी.एम. एमओएन ८१० की तुलना गैर-जी.एम. मक्का से करें तो इस जी.एम. मक्का में ४० प्रोटीनों की उपस्थिति महत्वपूर्ण हद तक बदल जाती है । जीव-जन्तुआें को जी.एम. खाद्य खिलाने पर आधारित अनेक अध्ययनों से जी.एम. खाद्य के गुर्दे (किडनी), यकृत (लिवर) पेट व निकट के अंगों (गट), रक्त कोशिका, रक्त जैव रसायन व प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी सिस्टम) पर नकारात्मक स्वास्थ्य असर सामने आ चुके हैं ।
    वैज्ञानिकों के इस पत्र में आगे कहा गया है कि जिन जी.एम. फसलोंकी स्वीकृति मिल चुकी है उनके संदर्भ में भी अध्ययनों से यह नकारात्मक स्वास्थ्य परिणाम नजर आए है जिससे पता चलता है कि कितनी अपूर्ण जानकारी के आधार पर स्वीकृति दे दी जाती है व आज भी दी जा रही है ।
    इन वैज्ञानिकों ने कहा है कि जिन जीव -जन्तुआें को बीटी मक्का खिलाया गया उनमें प्रत्यक्ष विषैलेपन का प्रभाव देखा गया । बी.टी. मक्का पर मानसैंटो ने अपने अनुसंधान का जब पुनर्मूल्यांकन किया तो अल्प-कालीन अध्ययन में ही नकारात्मक स्वास्थ्य परिणाम दिखाई दिए । बी.टी. के विषैलेपन से एलर्जी व रिएक्शन का खतरा जुड़ा हुआ है ।
    अब तक उपलब्ध सभी तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सभी जी.एम. फसलों पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए । इनके परीक्षणों पर भी रोक लगनी चाहिए ताकि इनसे जेनेटिक प्रदूषण फैलने की कोई संभावना न रहे । देश की कृषि, स्वास्थ्य व पर्यावरण की रक्षा के लिए यह नीतिगत निर्णय लेना जरूरी है ।

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