सौर मण्डल
कितनी ऊर्जा उत्पन्न करता है सूर्य ?
डॉ. विजय कुमार उपाध्याय
काफी प्राचीन काल से ही मानव यह जानने का प्रयास करता आ रहा है कि सूर्य कितनी ऊर्जा उत्पन्न करता है । सूर्य द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा का मापन करने हेतु हमें सूर्य से पृथ्वी की दूरी तथा भू सतह पर पहंुचने वाले सौर विकिरण का परिमाण मालूम करना होगा ।
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चला है कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग १५ करोड़ किलोमीटर (अर्थात १.५ १०१३ सेंटीमीटर) है । विकिरण द्वारा भू सतह पर पहुंचने वाली सौर ऊर्जा का परिमाण लगभग २ कैलोरी प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट है । चूंकि सूर्य से विकिरण द्वारा बाहर निकलने वाले ऊर्जा चारों दिशाआें में समान रूप से फैलती है, अत: यह कहा जा सकता है कि सूर्य से पृथ्वी की दूरी को त्रिज्या मानकर यदि एक गोला खींचा जाए तो इस गोले की सतह के प्रत्येक बिन्दु पर पहुंचने वाली ऊर्जा का है । अर्थात २ कैलोरी प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट । इस काल्पनिक गोले के पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल होगा लगभग २.८ १०२७ वर्ग सेंटीमीटर । इसका मतलब है कि सूर्य की पूरी सतह से निकलने वाली ऊर्जा पृथ्वी की बराबर दूरी पर इतने बड़े गोले की पूरी सतह पर फैल जाती है ।
इस काल्पनिक गोले की सतह द्वारा ग्रहण की जाने वाली सौर ऊर्जा का परिमाण होगा ५.६ १०२७ कैलोरी प्रति मिनट । इसका तात्पर्य यह हुआ है कि सूर्य इसी दर से ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है ।
वैज्ञानिकोंने अनुमान लगाया है कि हमारा सूर्य विगत तीन अरब वर्षो से इसी दर से ऊर्जा का उत्पादन करता आ रहा है । ऐसा अनुमान जीवाश्मों के अध्ययन के आधार पर लगाया गया है । ये जीव लगभग उसी तापमान पर पृथ्वी पर अस्तित्व में रहे होंगे जिस तापमान पर आजकल के जीव अस्तित्व में हैं । सबसे पुरानी चट्टाने, जिनमें ये जीवाश्म पाए गए हैं, लगभग तीन अरब वर्ष पूर्व निर्मित हुई थी । यदि सूर्य विगत तीन अरब वर्षो (अर्थात् १.५ १०१५ मिनट) से इसी प्रकार ऊर्जा का उत्पादन करता आ रहा है तो इतने समय में कुल ८ १०४२ कैलोरी ऊर्जा का उत्सर्जन हुआ है । यदि सूर्य के द्रव्यमान (२ १०३३ ग्राम) के दृष्टिकोण से इसे देखा जाए तो कहा जा सकता है कि सूर्य द्वारा विगत तीन अरब वर्षो के दौरान ४ अरब कैलोरी प्रति ग्राम की दर से ऊर्जा का उत्सर्जन होता रहा है ।
अब प्रश्न उठता है कि सूर्य ने इतनी अधिक ऊर्जा का उत्पादन कैसे किया ? पेट्रोल जैसे ईधन को जलाने पर भी प्रति ग्राम पेट्रोल से सिर्फ तीन हजार कैलोरी ऊर्जा का उत्पादन होता है । यह परिमाण सूर्य के प्रति ग्राम से उत्पन्न चार अरब कैलोरी की तुलना में नगण्य है । एक शताब्दी पूर्व तक वैज्ञानिकों की धारणा थी कि सूर्य द्वारा ऊर्जा का उत्पादन उसके संकुचन के कारण होता है । हालांकि संकुचन के कारण थोड़े समय तक ऊर्जा का उत्पादन संभव है, परन्तु तीन अरब वर्षो की लम्बी अवधि तक इतनी अधिक (चार अरब कैलोरी प्रति ग्राम) ऊर्जा का उत्पादन असंभव है । वैज्ञानिकों को अनुमान है कि यदि एक ग्राम द्रव्यमान की कोई वस्तु प्लूटो जैसी दूरी वाले स्थान से भी संकुचित होने लगे तो वह सूर्य द्वारा उत्सर्जित उपरोक्त ऊर्जा (४ अरब कैलोरी) की तुलना में सिर्फ उसका ९० वां अंश ही उत्पन्न कर पाएगी ।
वैज्ञानिकों का विचार है कि सूर्य द्वारा इतनी अधिक ऊर्जा के उत्पादन की व्याख्या सिर्फ नाभिकीय क्रियाआें के आधार पर ही की जा सकती है । वैज्ञानिकों की धारणा है कि ऐसी नाभिकीय क्रिया के दौरान सूर्य में हाइड्रोजन का परिवर्तन हीलियम में हो जाता है । जब एक ग्राम हाइड्रोजन का परिवर्तन हीलियम में होता है तो १.५ १०११ कैलोरी ऊर्जा का उत्पादन होता है । सौर किरणों के विश्लेषण से पता चला है कि सूर्य की सतह ७० प्रतिशत हाइड्रोजन, २५ प्रतिशत हीलियम तथा ५ प्रतिशत अन्य तत्वों से निर्मित है । अब प्रश्न उठता है कि क्या सूर्य में ऊर्जा का उत्पादन सचमुच ही हाइड्रोजन के हीलियम में परिवर्तन के कारण हो रहा है ? वस्तुत: हाइड्रोजन को हीलियम में परिवर्तित होने के लिए काफी उच्च् तापमान की आवश्यकता होती है । इतना उच्च् तापमान सूर्य की सतह पर उपलब्ध नहीं है ।
एक संभावना यह व्यक्त की गई है कि सूर्य के आंतरिक भाग में इतना उच्च् तापमान उपलब्ध हो सकता है । कुछ वैज्ञानिकों ने सूर्य के आंतरिक भाग का गणितीय मॉडल विकसित किया है । यह मॉडल प्रयोगशाला में उच्च् तापमान पर गैसों के अध्ययन के आधार पर बनाया गया है । इस मॉडल से पता चलता है कि सूर्य के भीतरी भाग में दाब तथा तापमान इतना ऊंचा है कि हाइड्रोजन आसानी से हीलियम में परिवर्तित हो सकती है । इस नाभिकीय क्रिया में जिस दर से ऊर्जा का उत्पादन होता है उसकी गणना अध्ययन के आधार पर की जा सकती है ।
अब पूछा जा सकता है कि सूर्य द्वारा कब तक इस प्रकार ऊर्जा का उत्पादन चलता रहेगा ? एक अन्य प्रमुख प्रश्न यह है कि सूर्य अपना कितना द्रव्यमान ऊर्जा उत्पादन के कारण खोता जा रहा है ? अनुमान लगाया गया है कि वर्तमान दर पर यदि ऊर्जा का उत्पादन चलता रहा तो सूर्य ६० अरब वर्षो तक ऊर्जा के उत्पादन में सक्षम बना रहेगा । परन्तु अनेक वैज्ञानिकों का विचार है कि इस प्रकार हाइड्रोजन से हीलियम के निर्माण के कारण सूर्य के क्रोड के गैसीय संघटन मेंपरिवर्तन आता जा रहा है । इसकी वजह से सूर्य की संरचना में परिवर्तन आता जाएगा । संरचना मे ंपरिवर्तन के कारण आज से करीब दस अरब वर्षो के बाद ऊर्जा उत्पादन की दर में कमी आ जाएगी ।
ऊपर बताया जा चुका है कि सूर्य से ऊर्जा उत्पादन की दर ५.६ १०२७ कैलोरी प्रति मिनट है । गणनाआें से यह भी पता चला है कि जब हाइड्रोजन का परिवर्तन हीलियम में होता है तो इसके कारण प्रति ग्राम हाइड्रोजन में ०.००७२ ग्राम का क्षय हो जाता है । आइस्टान के सूत्र (ए=ाल२) के अनुसार इतनी हाइड्रोजन १.५ १०११ कैलौरी ऊर्जा के रूप में प्रगट होती है । इन आंकड़ों का उपयोग कर हम यह पता लगा सकते हैं कि ऊर्जा उत्पादन के कारण सूर्य के पिण्डमान में कितना क्षय होता है ।
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