जीवन शैली
हम दरख्त वापस नहीं ला सकते
डॉ. ओ.पी. जोशी
हमारे देश में महानगरों, नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े राजनेताआें की यात्राआें एवं राजनैतिक दलों की रैलियों, सभाआें या स्थापना दिवस आदि मनाने हेतु निर्दयतापूर्वक वृक्ष काटे जाते रहे हैं । आजादी के बाद की ६४-६५ वर्षोंा की समयावधि का आंकलन किया जाए तो हमें ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जब यात्राआें, रैलियों एवं जनसभाआें के लिए हरियाली का हरण किया गया ।
श्रीमती इंदिरा गांधी लम्बे समय तक प्रधानमंत्री रहीं, जबकि राजीव गांधी कम समय के लिए रहे, परंतु इनकी यात्राआें के समय देश में कई स्थानों पर पेड़ काटे गये, विशेषकर हेलिपेड बनाने हेतु । उस समय मीडिया इतना सशक्त नहीं था एवं नही पर्यावरण के प्रति इतनी जागरूकता थी, अत: पेड़ों के कटनेके समाचार स्थानीय समाचारपत्रों के अंदर के पन्नोंपर दबकर रह जाते थे ।
वर्ष १९९६ में तत्कालीन प्रधानमंत्री देवगौड़ा की मेवात (हरियाणा) यात्रा के समय ३०० हरे भरे पेड़ों को काटकर हेलिपेड बनाया गया था । इनमें से ज्यादातर नीम एवं शीशम के पेड़ थे, जिन्हें वाई. एम. डिग्री कॉलेज के विद्यार्थियोंने बड़े परिश्रम से बड़ा किया था । इस घटना की जानकारी जब वहां के मुख्यमंत्री बंसीलाल को लगी तो उन्होंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा था कि वें स्वयं इस क्षेत्र में कई बार हेलिकॉप्टर से यात्रा कर चुके हैं परंतु पेड़ कभी नहीं काटे गए क्योंकि वहां हेलिकॉप्टर उतारने की व्यवस्था पहले से ही मौजूद है । उन्होंने राज्य सरकार से दोषियों को सजा देने हेतु कहा । चंडीगढ़ पर्यावरण सुरक्षा समिति ने इस संबंध में पंजाब व हरियाणा उच्च् न्यायालय में जनहित याचिका भी लगाई थी । इन सभी के क्या परिणाम निकले, पता नहीं चल पाया ।
वर्ष २००२ के नवम्बर माह में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की हिमाचल प्रदेश की यात्रा के समय भी व्यवस्था एवं सुरक्षा हेतु सैकड़ों पेड़ काटे गये थे । पेड़ों के कटने की घटना समाचार पत्रों एवं टी.वी. चेनल्स पर आने से इसका भारी विरोध हुआ । विरोध को देखते हुए सरकारी विभागों ने इस पर लीपापोती की एवं बताया कि बेकार वृक्ष ही काटे गये थे । अब सरकारी विभागों को कौन समझाये कि वृक्ष जीवनपर्यन्त कभी बेकार नहीं होते हैं ?
नवम्बर २००४ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. कलाम की दक्षिण भारत की यात्रा के समय एर्नाकुलम के मेरीन ड्राइव क्षेत्र में गुलमोहर के कई पेड़ काटे गये थे । कई पर्यावरण एवं वृक्ष प्रेमियों ने इससे नाराज होकर डॉ. कलाम को संदेश भेजकर दुख जताया । डॉ. कलाम ने इसे बहुत ही संवेदनशीलता से लिया । यात्रा के बाद राष्ट्रपति भवन से उनके प्रेस सचिव पी.एस. नायर ने स्थानीय प्रशासन को पत्र लिखकर काटे गये वृक्षों के बदले दस गुना नये पेड़ लगाने के निर्देश दिये ।
दिसम्बर २००७ में भी तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल की तीन दिवसीय अंडमान निकोबार को पारिवारिक यात्रा हेतु भी सैकड़ों वृक्षों की बलि चढ़ाई गयी थी । हेलिपेड निर्माण व अन्य कार्यो हेतु हेवलाक, वांडूर एवं पोर्टब्लेयर स्थानों पर ४०० से ज्यादा पेड़ काटे गये थे । झारखंड राज्य की दूसरी वर्षगांठ मनाने हेतु नवम्बर २००२ में सभास्थल क्षेत्र में लगे ऐसे २००० पेड़ काट दिये गये जो वन विभाग द्वारा १०-१२ वर्ष पूर्व लगाये गये थे । उत्तर प्रदेश में इसी वर्ष अम्बेडकर रैली के आयोजन हेतु ३००० पेड़ काटे गये थे एवं सर्वोच्च् न्यायालय की अधिकार प्राप्त् समिति से इसकी शिकायत भी की गई थी ।
ये तो ऐसी कुछ घटनाएं है, जो अधिक वृक्षों के काटे जाने से मीडिया में आई एवं जिन्होनें लोगों का ध्यान आकर्षित किया । परन्तु राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की यात्राआें, रैलियों एवं सभाआें से देश के अन्य शहरों एवं ग्रामीण इलाकों में कितने वृक्ष काटे गये, इसकी कोई जानकारी नहीं है । जुलाई २०१० में तत्कालीन केन्द्रीय वन व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने निजी हेलिपेड बनाने पर जो रोक लगाई थी, उसका पालन राजनेताआें की यात्रा के समय भी किया जाना चाहिए ।
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय तथा गृह विभाग को राजनेताआें की यात्रा, रैलियां एवं सभा स्थल आदि पर हरियाली को सुरक्षित बनाये रखने हेतु नियम, कानून बनाकर उन पर अमल करवाना चाहिये । राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के अपने कार्यालयों से यात्रा संबंधित जो दिशा-निर्देश दिये जाते हैं उसी में पेड़ों को बचाने के निर्देश भी दिये जाने चाहिये । जरूरी यह है कि यात्रा के रास्तों से पेड़ काटने के बजाय यात्राआें के रास्ते बदले दिए जाएं । यात्राएं, सभा व रैलियां तो महज कुछ घंटों या कुछ दिनों में समाप्त् हो जाती हैं परन्तु इनके लिए वर्षो पुराने वृक्षों को काटना किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं है ।
राजनेताआें एवं दल के प्रमुख लोगों को मुगल बादशाह औरंगजेब की पेड़ों के प्रति प्रेम दर्शाने वाली घटना से प्रेरणा लेना चाहिए । औरंगजेब के शासनकाल मेंएक बार समाचार आया कि एक मस्जिद गिर गयी है । बादशाह ने तुरन्त पूछा कि मस्जिद के पास जो दरख्त (वृक्ष) थे वे सही सलामत हैं या नहीं ? समाचार देने वाले ने कहा कि जहांपनाह दरख्त तो महफूज (सुरक्षित) हैं । बादशाह ने खुदा का शुक्रियाअदा किया । बादशाह के एक वजीर ने सकुचाते हुए पूछा कि हुजूर दरख्तों में ऐसा क्या है ? बादशाह ने जवाब दिया कि मस्जिद तो हम तुरन्त दोबारा बनवा सकते हैं मगर इतने पुराने दरख्तों को अपनी सारी उम्र्र लगाकर भी वापस नहीं ला सकते है ।
हम दरख्त वापस नहीं ला सकते
डॉ. ओ.पी. जोशी
हमारे देश में महानगरों, नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े राजनेताआें की यात्राआें एवं राजनैतिक दलों की रैलियों, सभाआें या स्थापना दिवस आदि मनाने हेतु निर्दयतापूर्वक वृक्ष काटे जाते रहे हैं । आजादी के बाद की ६४-६५ वर्षोंा की समयावधि का आंकलन किया जाए तो हमें ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जब यात्राआें, रैलियों एवं जनसभाआें के लिए हरियाली का हरण किया गया ।
श्रीमती इंदिरा गांधी लम्बे समय तक प्रधानमंत्री रहीं, जबकि राजीव गांधी कम समय के लिए रहे, परंतु इनकी यात्राआें के समय देश में कई स्थानों पर पेड़ काटे गये, विशेषकर हेलिपेड बनाने हेतु । उस समय मीडिया इतना सशक्त नहीं था एवं नही पर्यावरण के प्रति इतनी जागरूकता थी, अत: पेड़ों के कटनेके समाचार स्थानीय समाचारपत्रों के अंदर के पन्नोंपर दबकर रह जाते थे ।
वर्ष १९९६ में तत्कालीन प्रधानमंत्री देवगौड़ा की मेवात (हरियाणा) यात्रा के समय ३०० हरे भरे पेड़ों को काटकर हेलिपेड बनाया गया था । इनमें से ज्यादातर नीम एवं शीशम के पेड़ थे, जिन्हें वाई. एम. डिग्री कॉलेज के विद्यार्थियोंने बड़े परिश्रम से बड़ा किया था । इस घटना की जानकारी जब वहां के मुख्यमंत्री बंसीलाल को लगी तो उन्होंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा था कि वें स्वयं इस क्षेत्र में कई बार हेलिकॉप्टर से यात्रा कर चुके हैं परंतु पेड़ कभी नहीं काटे गए क्योंकि वहां हेलिकॉप्टर उतारने की व्यवस्था पहले से ही मौजूद है । उन्होंने राज्य सरकार से दोषियों को सजा देने हेतु कहा । चंडीगढ़ पर्यावरण सुरक्षा समिति ने इस संबंध में पंजाब व हरियाणा उच्च् न्यायालय में जनहित याचिका भी लगाई थी । इन सभी के क्या परिणाम निकले, पता नहीं चल पाया ।
वर्ष २००२ के नवम्बर माह में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की हिमाचल प्रदेश की यात्रा के समय भी व्यवस्था एवं सुरक्षा हेतु सैकड़ों पेड़ काटे गये थे । पेड़ों के कटने की घटना समाचार पत्रों एवं टी.वी. चेनल्स पर आने से इसका भारी विरोध हुआ । विरोध को देखते हुए सरकारी विभागों ने इस पर लीपापोती की एवं बताया कि बेकार वृक्ष ही काटे गये थे । अब सरकारी विभागों को कौन समझाये कि वृक्ष जीवनपर्यन्त कभी बेकार नहीं होते हैं ?
नवम्बर २००४ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. कलाम की दक्षिण भारत की यात्रा के समय एर्नाकुलम के मेरीन ड्राइव क्षेत्र में गुलमोहर के कई पेड़ काटे गये थे । कई पर्यावरण एवं वृक्ष प्रेमियों ने इससे नाराज होकर डॉ. कलाम को संदेश भेजकर दुख जताया । डॉ. कलाम ने इसे बहुत ही संवेदनशीलता से लिया । यात्रा के बाद राष्ट्रपति भवन से उनके प्रेस सचिव पी.एस. नायर ने स्थानीय प्रशासन को पत्र लिखकर काटे गये वृक्षों के बदले दस गुना नये पेड़ लगाने के निर्देश दिये ।
दिसम्बर २००७ में भी तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल की तीन दिवसीय अंडमान निकोबार को पारिवारिक यात्रा हेतु भी सैकड़ों वृक्षों की बलि चढ़ाई गयी थी । हेलिपेड निर्माण व अन्य कार्यो हेतु हेवलाक, वांडूर एवं पोर्टब्लेयर स्थानों पर ४०० से ज्यादा पेड़ काटे गये थे । झारखंड राज्य की दूसरी वर्षगांठ मनाने हेतु नवम्बर २००२ में सभास्थल क्षेत्र में लगे ऐसे २००० पेड़ काट दिये गये जो वन विभाग द्वारा १०-१२ वर्ष पूर्व लगाये गये थे । उत्तर प्रदेश में इसी वर्ष अम्बेडकर रैली के आयोजन हेतु ३००० पेड़ काटे गये थे एवं सर्वोच्च् न्यायालय की अधिकार प्राप्त् समिति से इसकी शिकायत भी की गई थी ।
ये तो ऐसी कुछ घटनाएं है, जो अधिक वृक्षों के काटे जाने से मीडिया में आई एवं जिन्होनें लोगों का ध्यान आकर्षित किया । परन्तु राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की यात्राआें, रैलियों एवं सभाआें से देश के अन्य शहरों एवं ग्रामीण इलाकों में कितने वृक्ष काटे गये, इसकी कोई जानकारी नहीं है । जुलाई २०१० में तत्कालीन केन्द्रीय वन व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने निजी हेलिपेड बनाने पर जो रोक लगाई थी, उसका पालन राजनेताआें की यात्रा के समय भी किया जाना चाहिए ।
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय तथा गृह विभाग को राजनेताआें की यात्रा, रैलियां एवं सभा स्थल आदि पर हरियाली को सुरक्षित बनाये रखने हेतु नियम, कानून बनाकर उन पर अमल करवाना चाहिये । राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के अपने कार्यालयों से यात्रा संबंधित जो दिशा-निर्देश दिये जाते हैं उसी में पेड़ों को बचाने के निर्देश भी दिये जाने चाहिये । जरूरी यह है कि यात्रा के रास्तों से पेड़ काटने के बजाय यात्राआें के रास्ते बदले दिए जाएं । यात्राएं, सभा व रैलियां तो महज कुछ घंटों या कुछ दिनों में समाप्त् हो जाती हैं परन्तु इनके लिए वर्षो पुराने वृक्षों को काटना किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं है ।
राजनेताआें एवं दल के प्रमुख लोगों को मुगल बादशाह औरंगजेब की पेड़ों के प्रति प्रेम दर्शाने वाली घटना से प्रेरणा लेना चाहिए । औरंगजेब के शासनकाल मेंएक बार समाचार आया कि एक मस्जिद गिर गयी है । बादशाह ने तुरन्त पूछा कि मस्जिद के पास जो दरख्त (वृक्ष) थे वे सही सलामत हैं या नहीं ? समाचार देने वाले ने कहा कि जहांपनाह दरख्त तो महफूज (सुरक्षित) हैं । बादशाह ने खुदा का शुक्रियाअदा किया । बादशाह के एक वजीर ने सकुचाते हुए पूछा कि हुजूर दरख्तों में ऐसा क्या है ? बादशाह ने जवाब दिया कि मस्जिद तो हम तुरन्त दोबारा बनवा सकते हैं मगर इतने पुराने दरख्तों को अपनी सारी उम्र्र लगाकर भी वापस नहीं ला सकते है ।
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