विशेष लेख
काफी -आधुनिकता का पेय
ईश्वरचन्द्र शुक्ल/वीरेन्द्र कुमार
आजकल अभिजात्य वर्ग के लोग काफी पीना अधिक पंसद करते हैं । अनेक प्रकार के स्वाद की काफी का चलन है, देश मेें विशेष अवसरों पर काफी ही पिलाई जाती है । इसका स्वाद जब आप पहली बार पियेंगे तो रूचिकर नहीं लगेगा । लेकिन आदत डालने पर स्वादिष्ट लगता है । विदेशों में काफी पीना स्वास्थ्यकर माना जाता हैं वहाँ पर अधिक से अधिक पचास मिली. सान्द्र काफी चीनी तथा दूध रहित ही पंसद की जाती है ।
काफी पाउडर जो हम प्रयोग करते हैं उसे एक पौधे की फलियों के बीज से प्राप्त् किया जाता है । इसका नाम काफी एरेबिका, काफी रोबस्टा तथा काफी लिबेरिका है । लिबेरिका की गुणवत्ता कुछ कम होती है । पौधे के लाल पके हुए बेरी में दो फलियाँ होती हैं, जिन्हें काफी बनाने में प्रयोग किया जाता है । इस फली के बीज म्यूसिलेज, पल्प तथा झिल्ली से ढके होते हैं । अलग की गयी फलियाँ हल्के नीले रंग की होती हैं जिसे हरी काफी कहा जाता है । इसका स्वाद अरूचिकर होता है तथा सुगन्ध की कमी होती है । भूनने के बाद इन बीजों में एक विशिष्ट सुगन्ध पैदा होती है जो कि कई भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तनों के कारण होती है । हरी काफी की फलियों के आकार तथा बनावट में अन्तर होता है तथा इन्हें हाथ से ही कई श्रेणियों में बांटा जाता है ।
काफी को चिकोरी के साथ मिलाया जाता है जिसकी मात्रा पचास प्रतिशत तक हो सकती है । चिकोरी एक प्रकार का पावडर है जो कि चिकोरियम इन्टायबस की जड़ से प्राप्त् किया जाता है । इससे काफी की सान्द्रता कम होती है तथा काफी पेय में तीखापन और सुगन्ध पैदा होती है । घुलनशील काफी या त्वरित काफी एक ठोस पदार्थ है जिसे काफी के अति सान्द्र घोल से निर्वात छिड़काव सुखाने की एक विधि द्वारा प्राप्त् किया जाता है । यह काफी पानी में अतिशीघ्र घुलनशील होती है । काफी पेय की गुणवत्ता इसकी सुगन्ध, रंग, तीखापन तथा उत्तेजनात्मक प्रभाव से आंकी जाती है । काफी के दुष्प्रभावों को रोकने हेतु इसकी हरी फलियों से घोलक निष्कर्षण द्वारा कैफीन को निकाला जा सकता है । इसके लिये डायक्लोरो मीथेन का प्रयोग किया जाता है । काफी पेय का स्वाद तथा विशेषता के लिए कई शब्द प्रयोग किये जाते है । मानक पेय का मीठा, खट्टा, फलों वाला, फलों के छिलके वाला स्वाद भी होता है जो कि अनुपयुक्त फलियों के प्रयोग के कारण होता है । मोहक सुगन्ध से भरपूर शराब जैसा सूखी घास वाला स्वाद या सुगन्ध युक्त सामान्य माना जाता है ।
काफी में कैफीन तथा ट्रायगोनेलीन मुख्य एल्कोलायड पाये जाते हैं । भूनने के बाद कैफीन एक अम्ल के साथ निष्कर्षित हो सकती है । हरी फलियों में यह मुख्यत: क्लोरोजेनिक अम्ल के साथ रहता है । काफी पेय का तीखापन टैनिन तथा कैफीन के कारण होता है । उबालने पर ये पानी में निष्कर्षित हो जाते है तथा तीखापन प्रदान करते हैं । भूनने पर फलियों में सुगन्ध पैदा होती है जो कि विभिन्न प्रकार के वाष्पशील पदार्थो जो कि एक साथ बन जाते हैं के कारण होती है, इन्हें कैफीनाल कहते हैं । ये मुख्यत: गंधक युक्त यौगिकों से भरपूर होते हैं । भूनने पर सुक्रोज (गन्ने की शक्कर) अपघटित हो जाती है जिससे पेय में रंग आता है । ट्रायगोनेलीन अपघटित होकर पायरिडीन तथा निकोटिनिक अम्ल बनाता है । काफी का उत्तेजक प्रभाव कैफीन के कारण होता है ।
क्लोरोजेनिक अम्ल ही मुख्यत: कार्बनिक अम्ल हरी फलियों में होता है इसके साथ ही नगण्य मात्रा में सिट्रिक तथा मौलिक अम्ल होते हैं । इसकी मात्रा भूनते समय कम हो जाती है । इसके अपघटन से ही सुगन्ध पैदा होती है । काफी की मधुर गंध कैफियोल समूह के पदार्थो के कारण होती है । इसमें मुख्यत: एसिटल्डिहाइड, एसीटोन, डायएसिटिल, वैलेरेल्डिहाइड तथा अन्य पदार्थो जिनकी संख्या लगभग तीन सौ होती है उपस्थित होते हैं । ये मुख्यत: एल्कोहॉल, ईथर एल्डिहाइड, कीटोन, डायकीटोन, एस्टर, फीनॉल तथा गंधक और फ्यूरॉन की प्रकृति के होते हैं ।
फलियों से काफी के निर्माण की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी होती है । सर्वप्रथम फलियों को साफ किया जाता है तथा पल्प एवं आवरण को हटाया जाता है । यह प्रक्रिया प्राकृतिक ढंग से की जाती है । फलियों को पेड़ पर सूखने दिया जाता है या फिर मशीन में डालकर धोया जाता है । प्राकृतिक रूप से प्राप्त् फलियों को संतोस कहा जाता है । पल्प सहित फलियों के आकार के अनुसार विभाजित किया जाता है तथा किण्वन पात्र से प्रवाहित किया जाता है । किण्वन म्यूसिलेज पर्त को हटाता है । फलियों को पानी भरे पात्र में दो-तीन दिन तक रखा जाता है जिससे कि क्रिया पूर्ण हो सके ।
म्यूसिलेज रहित फलियों को धूप या हीटर के माध्यम से सुखाया जाता है । नमी के आधार पर फलियोंका रंग बदलता है जिसमें लगभग ३० प्रतिशत सफेद से काली, १२ प्रतिशत भूरी हरी तथा १० प्रतिशत भूरी नीली हो जाती है । आवश्यकता से अधिक सूखापन पीला रंग कर देता है । इस प्रकार प्राप्त् फलियाँ समान रूप से नीली, नीली भूरी या हरे भूरे रंग की होती है । ये बड़ी तथा गोलाकार होती हैं यदि एक भी फली चेरी से मिल जाती है या दोनों को एक साथ मिला देते है तो गुणवत्ता वाली काफी मिलती है ।
भूनने के प्रक्रिया मेंफलियों को शीघ्रता से १८० डिग्री सेन्टीग्रेट पर भूना जाता है, जिससे नमी तथा भार कम हो जाता है । भूनने के बाद फलियाँ गहरे भूरे रंग की हो जाती है तथा केन्द्र में एक सफेद रंग का दाग रहता है । भूनने के तरीके पर स्वाद निर्भर होता है । भूनने का सामान्य समय पाँच से पन्द्रह मिनट होता है । भूनने का स्तर केवल आँखों से देखकर तय किया जाता है ।
काफी का व्यापार हरी फलियों के रूपमें किया जाता है । तैयार की गई फलियाँ यदि ठीक से रखी जाय तो ये वर्षो तक अच्छी बनी रह सकती है । अधिक ताप तथा नमी फलियों को बरबाद कर देती है । भुनी हुई फलियों का रासायनिक संघटन प्रति १०० ग्राम में निम्नवत होता है - कैलोरी ५२.५ किलोग्राम, प्रोटीन १.९ ग्राम, वसा १.७ ग्राम, शर्करा ७.२ ग्राम, कैल्सियम ०.०५ ग्राम, फास्फोरस ०.०५ मिलीग्राम, लौह तत्व रस ०.१ मिलीग्राम, विटामिन-ए ७७ आई. यूनिट, थायमीन ०.०२ मिलीग्राम, निकोटिनिक अम्ल ०.०९ मिलीग्राम, विटामिन-सी ०.८७ मिलीग्राम, विटामिन रीबोफ्लेविन ०.०९ मिलीग्राम, सुक्रोज ०.४३ मिलीग्राम, नमी ०.३-५.६ ग्राम, कुल राख ३.४-४.९ ग्राम, जल में घुलनशील राख ३-३.६ ग्राम, घुलनशील राख की क्षारकता १.९-३.२ ग्राम, अम्ल में अघुलनशील राख ००.०० ग्राम, रेशे १०.५-१५.३ ग्राम, कैफीन ०.९-१.८ ग्राम, शुष्क पदार्थ २३-३३ ग्राम, ईथर घुलनशील पदार्थ ८-१४.२ ग्राम, डेक्सट्रोज १.२४ ग्राम तथा क्लोरजेनिक अम्ल ४.७४ ग्राम है ।
काफी दो प्रकार की होती है । हरित या बिना भुनी काफी जो कि कैफिया ऐरेबिका के बीज होते है जिनमें प्राय: कोई अशुद्धि नहीं रहती । दूसरी भुनी हुई काफी होती है जो कि पूर्णत: साफ की हुई हरित काफी है जिसे गहरे भूरे रंग आने तक भूना गया होता है तथा जिसमें इसकी विशिष्ट गंध होती है । जिसमें कोई भी अप्राकृतिक रंग, सुगन्ध, बाह्य पदार्थ, चमकदार पदार्थ न हो तथा पूर्णत: शुष्क तथा ताजी हो तथा अन्य कोई अरूचिकर गंध न हो । इसमें निम्नवत मानक होने चाहिए ।
१. एक नमूने की सम्पूर्ण राख जिसे १०० डिग्री सेन्टीग्रेट पर सुखाया गया हो पक्षियों के पर जैसी सफेद या हल्की नीली सफेद हो तथा कुल मात्रा ३ प्रतिशत से कम तथा ७ प्रतिशत से अधिक न हो । इसका कम से कम ६.५ प्रतिशत उबलते हुये आसुत पानी में घुल जाना चाहिए । इसी प्रकार तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में अघुलनशील राख भी ०.१ प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये ।
२. घुलनशील राख की क्षारकता सूखी काफी के प्रतिग्राम में ३.५ मिली से कम ४.५ मिली से अधिक ०.१एन अम्ल के बराबर नहीं होनी चाहिए ।
३. मानक विधि से मापने पर कैफीन की मात्रा १ प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए ।
४. २ ग्राम नमूने की जो कि १०० डिग्री सेन्टीग्रेट पर सुखाया गया हो तथा १०० मिली आसुत जल में एक घंटे उबाला गया हो के घोल में २६ प्रतिशत से कम तथा ३५ प्रतिशत से अधिक न हो ।
चिकोरी पावडर चिकोरियमिन टायबसलिन पौधे को जडों को साफ करके तथा भूनकर बनाया जाता है । इसमें ग्लूकोज या सुक्रोज तथा खाने योग्य वसा जो कि २० प्रतिशत भार से अधिक न हो मिला सकते है । इसे रंग, स्वाद तथा सुगन्ध से रहित होना चाहिए । काफी चिकोरी का मिश्रण शुद्ध काफी पावडर है इसे फ्रेंच काफी का नाम दिया जा सकता है ।
घुलनशील काफी पावडर का तात्पर्य ऐसी काफी से है जो कि ताजी भुनी हुई शुद्ध काफी फलियों से प्राप्त की जाती है । यह अत्यन्त महीन पावडर है जिसका रंग, स्वाद तथा सुगन्ध विशिष्ट काफी की तरह होता है । इसमें कोई भी मिलावट जैसे चिकोरी या अन्य पदार्थ मिला हुआ नहीं होना चाहिए । इसका मानक निम्नवत होना चाहिए । नमी ३.५ प्रतिशत से अधिक कुल राख १५ प्रतिशत से अधिक न हो, कैफीन की मात्रा २.८ प्रतिशत से कम न हो उबलते हुए पानी में यह आसानी से ३० सेकेण्ड में घुलनशील हो तथा ठण्डे पानी में १६-१८ डिग्री सेन्टीग्रेट पर कुछ देर हिलाने पर ३ मिनट में घुल जाये । त्वरित काफी-चिकोरी मिश्रण का निर्माण भुनी हुई पिसी काफी तथा चिकोरी द्वारा होता है । यह भी समरस पावडर होता है जिससे काफी-चिकोरी का स्वाद रंग तथा सुगन्ध विशिष्ट चिकोरी-काफी का होता है ।
इसे अशुद्धियों से रहित होना चाहिए तथा कोइंर् भी अन्य पदार्थ मिला न हो, नियमत: पैकेट के ऊपर काफी-चिकोरी का प्रतिशत अंकित होना चाहिए इसके भी निम्न मानक होने चाहिए । नमी भार के ५ प्रतिशत से अधिक न हो, कुल राख भार के ७ प्रतिशत से कम तथा १० प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिये तथा शुष्क कैफीन भार के १.४ प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए । पैकेट में ऊपर त्वरित काफी चिकोरी का मिश्रण का प्रतिशत अंकित होना चाहिए । जैसा कि प्रत्येक खाद्य पदार्थ में हो रहा है काफी भी मिलावट से अछूती नहीं है । इसमें मुख्यत: भूसी का पावडर, प्रयोग की हुई काफी, भूरा रंग, चिकोरी बिना बताये हुए, भुने हुए खजूर, इमली के बीज का पावडर आदि मिलाये जाते हैं ।
काफी पीने के आदत बनानी पड़ती है । यदि आप पहली बार काफी का सेवन करेंगे तो आपको पंसद नहीं आयेगी लेकिन आदत पड़ने पर वही स्वाद अच्छा लगने लगता है । कुछ लोग काफी को बिना शक्कर तथा दूध के प्रयोग करते हैं लेकिन कुछ लोग अधिक दूध के साथ पीना पंसद करते हैं । इतना ही नहीं ठण्डी काफी का भी प्रचलन अधिक है । विशेष अवसरों पर काफी घोल में झाग पैदा करके पिलाई जाती है । अधिक गर्म काफी पीने से गले का कैंसर होने की संभावना रहती है । अत: उबलते हुए पानी से बनी काफी को कुछ देर रखकर ही पीना चाहिए । कभी भी भोजन के बाद काफी नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे भोजन में उपस्थित लौह तत्व का अवशोषण शरीर में नहीं हो पाता है ।
काफी -आधुनिकता का पेय
ईश्वरचन्द्र शुक्ल/वीरेन्द्र कुमार
आजकल अभिजात्य वर्ग के लोग काफी पीना अधिक पंसद करते हैं । अनेक प्रकार के स्वाद की काफी का चलन है, देश मेें विशेष अवसरों पर काफी ही पिलाई जाती है । इसका स्वाद जब आप पहली बार पियेंगे तो रूचिकर नहीं लगेगा । लेकिन आदत डालने पर स्वादिष्ट लगता है । विदेशों में काफी पीना स्वास्थ्यकर माना जाता हैं वहाँ पर अधिक से अधिक पचास मिली. सान्द्र काफी चीनी तथा दूध रहित ही पंसद की जाती है ।
काफी पाउडर जो हम प्रयोग करते हैं उसे एक पौधे की फलियों के बीज से प्राप्त् किया जाता है । इसका नाम काफी एरेबिका, काफी रोबस्टा तथा काफी लिबेरिका है । लिबेरिका की गुणवत्ता कुछ कम होती है । पौधे के लाल पके हुए बेरी में दो फलियाँ होती हैं, जिन्हें काफी बनाने में प्रयोग किया जाता है । इस फली के बीज म्यूसिलेज, पल्प तथा झिल्ली से ढके होते हैं । अलग की गयी फलियाँ हल्के नीले रंग की होती हैं जिसे हरी काफी कहा जाता है । इसका स्वाद अरूचिकर होता है तथा सुगन्ध की कमी होती है । भूनने के बाद इन बीजों में एक विशिष्ट सुगन्ध पैदा होती है जो कि कई भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तनों के कारण होती है । हरी काफी की फलियों के आकार तथा बनावट में अन्तर होता है तथा इन्हें हाथ से ही कई श्रेणियों में बांटा जाता है ।
काफी को चिकोरी के साथ मिलाया जाता है जिसकी मात्रा पचास प्रतिशत तक हो सकती है । चिकोरी एक प्रकार का पावडर है जो कि चिकोरियम इन्टायबस की जड़ से प्राप्त् किया जाता है । इससे काफी की सान्द्रता कम होती है तथा काफी पेय में तीखापन और सुगन्ध पैदा होती है । घुलनशील काफी या त्वरित काफी एक ठोस पदार्थ है जिसे काफी के अति सान्द्र घोल से निर्वात छिड़काव सुखाने की एक विधि द्वारा प्राप्त् किया जाता है । यह काफी पानी में अतिशीघ्र घुलनशील होती है । काफी पेय की गुणवत्ता इसकी सुगन्ध, रंग, तीखापन तथा उत्तेजनात्मक प्रभाव से आंकी जाती है । काफी के दुष्प्रभावों को रोकने हेतु इसकी हरी फलियों से घोलक निष्कर्षण द्वारा कैफीन को निकाला जा सकता है । इसके लिये डायक्लोरो मीथेन का प्रयोग किया जाता है । काफी पेय का स्वाद तथा विशेषता के लिए कई शब्द प्रयोग किये जाते है । मानक पेय का मीठा, खट्टा, फलों वाला, फलों के छिलके वाला स्वाद भी होता है जो कि अनुपयुक्त फलियों के प्रयोग के कारण होता है । मोहक सुगन्ध से भरपूर शराब जैसा सूखी घास वाला स्वाद या सुगन्ध युक्त सामान्य माना जाता है ।
काफी में कैफीन तथा ट्रायगोनेलीन मुख्य एल्कोलायड पाये जाते हैं । भूनने के बाद कैफीन एक अम्ल के साथ निष्कर्षित हो सकती है । हरी फलियों में यह मुख्यत: क्लोरोजेनिक अम्ल के साथ रहता है । काफी पेय का तीखापन टैनिन तथा कैफीन के कारण होता है । उबालने पर ये पानी में निष्कर्षित हो जाते है तथा तीखापन प्रदान करते हैं । भूनने पर फलियों में सुगन्ध पैदा होती है जो कि विभिन्न प्रकार के वाष्पशील पदार्थो जो कि एक साथ बन जाते हैं के कारण होती है, इन्हें कैफीनाल कहते हैं । ये मुख्यत: गंधक युक्त यौगिकों से भरपूर होते हैं । भूनने पर सुक्रोज (गन्ने की शक्कर) अपघटित हो जाती है जिससे पेय में रंग आता है । ट्रायगोनेलीन अपघटित होकर पायरिडीन तथा निकोटिनिक अम्ल बनाता है । काफी का उत्तेजक प्रभाव कैफीन के कारण होता है ।
क्लोरोजेनिक अम्ल ही मुख्यत: कार्बनिक अम्ल हरी फलियों में होता है इसके साथ ही नगण्य मात्रा में सिट्रिक तथा मौलिक अम्ल होते हैं । इसकी मात्रा भूनते समय कम हो जाती है । इसके अपघटन से ही सुगन्ध पैदा होती है । काफी की मधुर गंध कैफियोल समूह के पदार्थो के कारण होती है । इसमें मुख्यत: एसिटल्डिहाइड, एसीटोन, डायएसिटिल, वैलेरेल्डिहाइड तथा अन्य पदार्थो जिनकी संख्या लगभग तीन सौ होती है उपस्थित होते हैं । ये मुख्यत: एल्कोहॉल, ईथर एल्डिहाइड, कीटोन, डायकीटोन, एस्टर, फीनॉल तथा गंधक और फ्यूरॉन की प्रकृति के होते हैं ।
फलियों से काफी के निर्माण की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी होती है । सर्वप्रथम फलियों को साफ किया जाता है तथा पल्प एवं आवरण को हटाया जाता है । यह प्रक्रिया प्राकृतिक ढंग से की जाती है । फलियों को पेड़ पर सूखने दिया जाता है या फिर मशीन में डालकर धोया जाता है । प्राकृतिक रूप से प्राप्त् फलियों को संतोस कहा जाता है । पल्प सहित फलियों के आकार के अनुसार विभाजित किया जाता है तथा किण्वन पात्र से प्रवाहित किया जाता है । किण्वन म्यूसिलेज पर्त को हटाता है । फलियों को पानी भरे पात्र में दो-तीन दिन तक रखा जाता है जिससे कि क्रिया पूर्ण हो सके ।
म्यूसिलेज रहित फलियों को धूप या हीटर के माध्यम से सुखाया जाता है । नमी के आधार पर फलियोंका रंग बदलता है जिसमें लगभग ३० प्रतिशत सफेद से काली, १२ प्रतिशत भूरी हरी तथा १० प्रतिशत भूरी नीली हो जाती है । आवश्यकता से अधिक सूखापन पीला रंग कर देता है । इस प्रकार प्राप्त् फलियाँ समान रूप से नीली, नीली भूरी या हरे भूरे रंग की होती है । ये बड़ी तथा गोलाकार होती हैं यदि एक भी फली चेरी से मिल जाती है या दोनों को एक साथ मिला देते है तो गुणवत्ता वाली काफी मिलती है ।
भूनने के प्रक्रिया मेंफलियों को शीघ्रता से १८० डिग्री सेन्टीग्रेट पर भूना जाता है, जिससे नमी तथा भार कम हो जाता है । भूनने के बाद फलियाँ गहरे भूरे रंग की हो जाती है तथा केन्द्र में एक सफेद रंग का दाग रहता है । भूनने के तरीके पर स्वाद निर्भर होता है । भूनने का सामान्य समय पाँच से पन्द्रह मिनट होता है । भूनने का स्तर केवल आँखों से देखकर तय किया जाता है ।
काफी का व्यापार हरी फलियों के रूपमें किया जाता है । तैयार की गई फलियाँ यदि ठीक से रखी जाय तो ये वर्षो तक अच्छी बनी रह सकती है । अधिक ताप तथा नमी फलियों को बरबाद कर देती है । भुनी हुई फलियों का रासायनिक संघटन प्रति १०० ग्राम में निम्नवत होता है - कैलोरी ५२.५ किलोग्राम, प्रोटीन १.९ ग्राम, वसा १.७ ग्राम, शर्करा ७.२ ग्राम, कैल्सियम ०.०५ ग्राम, फास्फोरस ०.०५ मिलीग्राम, लौह तत्व रस ०.१ मिलीग्राम, विटामिन-ए ७७ आई. यूनिट, थायमीन ०.०२ मिलीग्राम, निकोटिनिक अम्ल ०.०९ मिलीग्राम, विटामिन-सी ०.८७ मिलीग्राम, विटामिन रीबोफ्लेविन ०.०९ मिलीग्राम, सुक्रोज ०.४३ मिलीग्राम, नमी ०.३-५.६ ग्राम, कुल राख ३.४-४.९ ग्राम, जल में घुलनशील राख ३-३.६ ग्राम, घुलनशील राख की क्षारकता १.९-३.२ ग्राम, अम्ल में अघुलनशील राख ००.०० ग्राम, रेशे १०.५-१५.३ ग्राम, कैफीन ०.९-१.८ ग्राम, शुष्क पदार्थ २३-३३ ग्राम, ईथर घुलनशील पदार्थ ८-१४.२ ग्राम, डेक्सट्रोज १.२४ ग्राम तथा क्लोरजेनिक अम्ल ४.७४ ग्राम है ।
काफी दो प्रकार की होती है । हरित या बिना भुनी काफी जो कि कैफिया ऐरेबिका के बीज होते है जिनमें प्राय: कोई अशुद्धि नहीं रहती । दूसरी भुनी हुई काफी होती है जो कि पूर्णत: साफ की हुई हरित काफी है जिसे गहरे भूरे रंग आने तक भूना गया होता है तथा जिसमें इसकी विशिष्ट गंध होती है । जिसमें कोई भी अप्राकृतिक रंग, सुगन्ध, बाह्य पदार्थ, चमकदार पदार्थ न हो तथा पूर्णत: शुष्क तथा ताजी हो तथा अन्य कोई अरूचिकर गंध न हो । इसमें निम्नवत मानक होने चाहिए ।
१. एक नमूने की सम्पूर्ण राख जिसे १०० डिग्री सेन्टीग्रेट पर सुखाया गया हो पक्षियों के पर जैसी सफेद या हल्की नीली सफेद हो तथा कुल मात्रा ३ प्रतिशत से कम तथा ७ प्रतिशत से अधिक न हो । इसका कम से कम ६.५ प्रतिशत उबलते हुये आसुत पानी में घुल जाना चाहिए । इसी प्रकार तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में अघुलनशील राख भी ०.१ प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये ।
२. घुलनशील राख की क्षारकता सूखी काफी के प्रतिग्राम में ३.५ मिली से कम ४.५ मिली से अधिक ०.१एन अम्ल के बराबर नहीं होनी चाहिए ।
३. मानक विधि से मापने पर कैफीन की मात्रा १ प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए ।
४. २ ग्राम नमूने की जो कि १०० डिग्री सेन्टीग्रेट पर सुखाया गया हो तथा १०० मिली आसुत जल में एक घंटे उबाला गया हो के घोल में २६ प्रतिशत से कम तथा ३५ प्रतिशत से अधिक न हो ।
चिकोरी पावडर चिकोरियमिन टायबसलिन पौधे को जडों को साफ करके तथा भूनकर बनाया जाता है । इसमें ग्लूकोज या सुक्रोज तथा खाने योग्य वसा जो कि २० प्रतिशत भार से अधिक न हो मिला सकते है । इसे रंग, स्वाद तथा सुगन्ध से रहित होना चाहिए । काफी चिकोरी का मिश्रण शुद्ध काफी पावडर है इसे फ्रेंच काफी का नाम दिया जा सकता है ।
घुलनशील काफी पावडर का तात्पर्य ऐसी काफी से है जो कि ताजी भुनी हुई शुद्ध काफी फलियों से प्राप्त की जाती है । यह अत्यन्त महीन पावडर है जिसका रंग, स्वाद तथा सुगन्ध विशिष्ट काफी की तरह होता है । इसमें कोई भी मिलावट जैसे चिकोरी या अन्य पदार्थ मिला हुआ नहीं होना चाहिए । इसका मानक निम्नवत होना चाहिए । नमी ३.५ प्रतिशत से अधिक कुल राख १५ प्रतिशत से अधिक न हो, कैफीन की मात्रा २.८ प्रतिशत से कम न हो उबलते हुए पानी में यह आसानी से ३० सेकेण्ड में घुलनशील हो तथा ठण्डे पानी में १६-१८ डिग्री सेन्टीग्रेट पर कुछ देर हिलाने पर ३ मिनट में घुल जाये । त्वरित काफी-चिकोरी मिश्रण का निर्माण भुनी हुई पिसी काफी तथा चिकोरी द्वारा होता है । यह भी समरस पावडर होता है जिससे काफी-चिकोरी का स्वाद रंग तथा सुगन्ध विशिष्ट चिकोरी-काफी का होता है ।
इसे अशुद्धियों से रहित होना चाहिए तथा कोइंर् भी अन्य पदार्थ मिला न हो, नियमत: पैकेट के ऊपर काफी-चिकोरी का प्रतिशत अंकित होना चाहिए इसके भी निम्न मानक होने चाहिए । नमी भार के ५ प्रतिशत से अधिक न हो, कुल राख भार के ७ प्रतिशत से कम तथा १० प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिये तथा शुष्क कैफीन भार के १.४ प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए । पैकेट में ऊपर त्वरित काफी चिकोरी का मिश्रण का प्रतिशत अंकित होना चाहिए । जैसा कि प्रत्येक खाद्य पदार्थ में हो रहा है काफी भी मिलावट से अछूती नहीं है । इसमें मुख्यत: भूसी का पावडर, प्रयोग की हुई काफी, भूरा रंग, चिकोरी बिना बताये हुए, भुने हुए खजूर, इमली के बीज का पावडर आदि मिलाये जाते हैं ।
काफी पीने के आदत बनानी पड़ती है । यदि आप पहली बार काफी का सेवन करेंगे तो आपको पंसद नहीं आयेगी लेकिन आदत पड़ने पर वही स्वाद अच्छा लगने लगता है । कुछ लोग काफी को बिना शक्कर तथा दूध के प्रयोग करते हैं लेकिन कुछ लोग अधिक दूध के साथ पीना पंसद करते हैं । इतना ही नहीं ठण्डी काफी का भी प्रचलन अधिक है । विशेष अवसरों पर काफी घोल में झाग पैदा करके पिलाई जाती है । अधिक गर्म काफी पीने से गले का कैंसर होने की संभावना रहती है । अत: उबलते हुए पानी से बनी काफी को कुछ देर रखकर ही पीना चाहिए । कभी भी भोजन के बाद काफी नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे भोजन में उपस्थित लौह तत्व का अवशोषण शरीर में नहीं हो पाता है ।
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