शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

स्वास्थ्य
स्वास्थ्य कानून से टकराते प्रतिष्ठान
                                                    सोनल माथरू

    भारत में अनियंत्रित स्वास्थ्य सेवाआें पर नकेल कसने को सरकारी प्रयासों की खिलाफत करते निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता यह भूल जाते हैं कि भारत में करीब ४ करोड़ नागरिक प्रतिवर्ष महंगी स्वास्थ्य सेवाआें की वजह से गरीबी रेखा से नीचे जा रहे हैं । निजी क्षेत्र की अनाप-शनाप लाभ कमाने की प्रवृत्ति यहां भी अपना असर दिखा रही है और लोग घर बार बेचकर अपने सगे संबंधियों का उपचार करवा रहे हैं । आवश्यकता महज निजी स्वास्थ्य क्षेत्र पर नकेल कसने की नहीं बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाआें को बेहतर एवं सर्वसुलभ बनाने की है ।
    केन्द्र द्वारा चिकित्सा शिक्षा के नियमन संबंधी प्रयासों के प्रति अप्रसन्नता दर्शाने के पश्चात् अब चिकित्सकों ने बिना किसी जवाबदेही के फलते-फूलते चिकित्सकीय संस्थानों के नियमन के लिए उठाए जा रहे सरकारी प्रयासों के खिलाफ कमर कस ली है । देश मेंचिकित्सकों की सबसे बड़ी संस्था इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन (आई.एम.ए.) अनेक राज्य सरकारों को धमकी दे रही है कि यदि उन्होनें रोग नियमन स्थापना (पंजीयन एवं नियमन) अधिनियम, २०१० जो कि एक केन्द्रीय कानून है, को लागू किया तो वह उनके खिलाफ मुकदमा दायर कर देगी ।
    संघीय स्वास्थ्य विभाग एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताआें का कहना है कि आईएमए का विरोध आधारहीन है । कोलकता स्थित संस्था पीपुल फॉर बेटर ट्रीटमेंट जो कि चिकित्सकों द्वारा की गई चिकित्सकीय लापरवाही के खिलाफ कार्य करती है, के कुणाल साहा का कहना है आई.एम.ए. तो केवल चिकित्सकों के हितों के लिए ही कार्य करती है । कुछ चिकित्सक इस कानून का इसलिए विरोध कर रहे है क्योंकि उन्हें दिखाई दे रहा है कि इसके लागू होने से उनके हितोंको चोट पहुंचेगी ।
    मार्च में बनाए गए इस कानून का लक्ष्य है कि सभी निजी एवं सरकारी अस्पतालों, क्लिनिक, जांच प्रयोगशाला को एक ही नियामक इकाई नेशनल काउंसिल फॉर क्लिनिकल इस्टेबलिशमेंट के अन्तर्गत लाकर सभी को गुणवत्तापूर्ण उपचार सुनिश्चित करवाना । इसका प्रमुख लक्ष्य है कि चिकित्सा प्रणाली में विद्यमान लागत पर अंकुश लगाना और आपातकालीन सेवाएं सुनिश्चित करना ।
    चूंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है ऐसे में राज्यों को इसे लागू करने के लिए प्रस्ताव पारित करना होगा । अभी तक सिक्किम, मिजोरम, अरूणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान एवं झारखंड ने इसे अपना लिया है । अन्य अधिकांश राज्यों में आई.एम.ए. सरकारों को रोक रहा है । जबकि तमिलनाडु आई.एम.ए. वहां की सरकार को इस अधिनियम को न अपनाने हेतु मना चुकी है । आई.एम.ए. की पंजाब एवं दिल्ली शाखाआें ने धमकी दी है कि यदि उन्होनंें इसे अपनाया तो वह न्यायालय में जाएगी ।
    आई.एम.ए. जो कि २६ जून के देशव्यापी विरोध कर चुकी है की मुख्य चिंता यह है कि इस कानून की वजह से अधिकांश एकल चिकित्सक क्लिनिक बंद हो जाएंगी । आई.एम.ए. चेन्नई के सचिव जयलाल का कहना है निजी चिकित्सक ग्रामीण क्षेत्रोंमें भी मरीजों को सेवा देते हैं । वे इस कानून में दिए गए उच्च् मापदण्डों को पूरा नहीं कर सकते । यह कानून केवल कॉरपोरेट अस्पतालों को ही बढ़ावा देता है । दिल्ली स्थित जी.एम. मोदी हॉस्पिटल के निदेशक (प्रशासन) विनय लाजरस का कहना है कि कानून में दिए गए मानकों का पालन करना बड़े अस्पतालों के लिए समस्या नहीं है क्योंकि वे उपचार संबंधी दिशानिर्देशों का कठोरता से पालन करते हैं । हालांकि वे यह स्वीकारते है कि मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल (अत्यन्त विशेषज्ञता वाले चिकित्सालयों) को अपनी उपचार संबंधी लागत को नियंत्रित करने में कठिनाई हो सकती है ।
    चिंता की एक अन्य वजह इसकी आकस्मिकता संबंधी धारा है, जिसके अन्तर्गत सभी चिकित्सकीय संस्थानों के लिए आकस्मिकता की स्थिति में मरीज का उपचार अनिवार्य कर दिया गया है, भले ही वह इसके बदले भुगतान कर सकता हो या नहीं । सरकार का कहना है कि यह धारा दुर्घटना में घायल अनेक मरीजों एवं गर्भवती महिलाआें का जीवन बचाने में सहायक सिद्ध होगी । वही आई.एम.ए. दिल्ली के हरीश गुप्त का कहना है कि एक स्त्री रोग विशेषज्ञ दिल का दौरा पड़े मरीज को किस प्रकार से आकस्मिक चिकित्सा सेवा प्रदान कर सकती / सकता है ? यदि प्रत्येक क्लिनिक पर आकस्मिक चिकित्सा उपकरण स्थापित करना अनिवार्य हो जाता है तो खर्चो में अत्यधिक वृद्धि हो जाएगी ।
    विरोध के बावजूद संघीय स्वास्थ्य मंत्रालय कानून को लागू करने को तत्पर है । वह चिकित्सा की विभिनन धाराआें के माध्यम से उपचार के दिशानिर्देश तैयार कर रहा है । इन दिशानिर्देशों में प्रत्येक चिकित्सकीय प्रक्रिया की मूल्य श्रेणी भी बताई   जाएगी । कोई भी चिकित्सक या अस्पताल इन दिशानिर्देशों में तयशुदा से ज्यादा भुगतान नहीं ले सकता है । स्वास्थ्य मंत्रालय के सह सचिव ए.के. पांड़ा का कहना है कि इस वर्ष के अंत तक दिशानिर्देश तैयार हो जाएंगे और अगले वर्ष से इन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के साथ जोड़ दिया जाएगा । देश में कोई भी नहीं जानता कि स्वास्थ्य संस्थान किस प्रकार से उपचार करते हैं और किस आधार पर वे अनाप-शनाप शुल्क लेते हैं ।
    यदि कोई चिकित्सक क्लिनिक स्थापित करना चाहता है तो उसे महज नगरपालिका अधिकारियों को सूचना देना होती है । वही मंत्रालय के उपसचिव वी.पी. सिंह का कहना है हालांकि बारह राज्यों में स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में पंजीकरण संबंधी कानून तो मौजूद हैं लेकिन वे पुराने पड़ चुके हैंऔर शायद ही कहीं उनका क्रियान्वयन हुआ है । यह आश्वासन देते हुए कि कोई भी क्लिनिक बंद नहीं होगी, उनका कहना है पहले दो वर्ष हमारा ध्यान राज्य एवं जिला स्तरीय परिषदों के माध्यम से आंकड़ों के एकत्रीकरण पर रहेगा । अंतत: उन्हें राष्ट्रीय परिषद् द्वारा तय किए गए मानकों का पालन करना ही होगा ।

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