प्रसंगवश
खरमोर : मालवा के खास मेहमान
बरसात में चार माह के समय में मध्यप्रदेश में सरदारपुर और सैलाना में खरमोर खास मेहमान होते है । हर बार की तरह इस वर्ष भी प्रवासी पक्षी खरमोर ने सैलाना मेें डेरा डाल लिया है । ये पक्षी बरसों से सैलाना के खरमोर अभ्यारण्य में हनीमून के लिए आते हैं और अपना परिवार बढ़ाकर बरसात समािप्त् के बाद यहां से चले जाते हैं । ये पक्षी हजारों किमी दूर दक्षिण भारत के रास्ते मालवाचंल में चार माह व्यतीत करने आते है ।
प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ डॉ. सलीम अली इन शर्मिले पक्षियों को खोजते हुए सन् १९८३ में सैलाना आए थे । सन् १९८३ में पहली डॉ. अली ने जब खरमोर पक्षी को दूरबीन से देखा था तो खुशी से उछल पड़े थे । बाद में उनके अनुरोध पर ही सैलाना के शिकारवाड़ी क्षेत्र को सरकार ने खरमोर अभ्यारण्य घोषित कर खरमोर को संरक्षण देने के प्रयास शुरू किये । वन परिक्षेत्राधिकारी प्रदीप कछावा ने बताया कि प्रतिवर्ष जुलाई से अक्टूबर तक का समय यहां बीताकर खरमोर वापस लौट जाते है ।
खरमोर को मालवा क्षेत्र प्रजनन के लिए उपयुक्त लगता है । खरमोर नर की अपेक्षा मादा का कद छोटा होता है । मादा को रिझाने का भी नर का अजीब तरीका है । नर खरमोर एक दिन में ३०० से ४०० बार जमीन से लगभग एक मीटर ऊपर उछल-उछल कर मादा खरमोर को आकर्षित करता है । करीब पौने दो माह बाद मादा अंडे देती है और सवा महीने में अंडे से बच्च निकलता है । श्री कछावा के अनुसार खरमोर की जानकारी देने, उनके अंड़ों को संभालने, सहेजने वाले किसानों को वन विभाग द्वारा नकद पुरस्कार भी दिया जाता है । खरमोर शर्मिला पक्षी है । जरा-सी आहट से वे घास के अंदर छुप जाते हैं । इस वर्ष २६ खरमोर आए हैं । इनमें १६ नर और १० मादा खरमोर है ।
सैलाना में आने वाले खरमोर पक्षी की संख्या - वर्ष २००१ में १४, वर्ष २००२ में ०९, वर्ष २००३ में १५, वर्ष २००४ में ०७, वर्ष २००५ में २६, वर्ष २००६ में २८, वर्ष २००७ में २७, वर्ष २००८ में ३८, वर्ष २००९ में ३२, वर्ष २०१० में २४, वर्ष २०११ में २० एवं वर्ष २०१२ में २६ पक्षी दिखाई दिए ।
बरसात में चार माह के समय में मध्यप्रदेश में सरदारपुर और सैलाना में खरमोर खास मेहमान होते है । हर बार की तरह इस वर्ष भी प्रवासी पक्षी खरमोर ने सैलाना मेें डेरा डाल लिया है । ये पक्षी बरसों से सैलाना के खरमोर अभ्यारण्य में हनीमून के लिए आते हैं और अपना परिवार बढ़ाकर बरसात समािप्त् के बाद यहां से चले जाते हैं । ये पक्षी हजारों किमी दूर दक्षिण भारत के रास्ते मालवाचंल में चार माह व्यतीत करने आते है ।
प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ डॉ. सलीम अली इन शर्मिले पक्षियों को खोजते हुए सन् १९८३ में सैलाना आए थे । सन् १९८३ में पहली डॉ. अली ने जब खरमोर पक्षी को दूरबीन से देखा था तो खुशी से उछल पड़े थे । बाद में उनके अनुरोध पर ही सैलाना के शिकारवाड़ी क्षेत्र को सरकार ने खरमोर अभ्यारण्य घोषित कर खरमोर को संरक्षण देने के प्रयास शुरू किये । वन परिक्षेत्राधिकारी प्रदीप कछावा ने बताया कि प्रतिवर्ष जुलाई से अक्टूबर तक का समय यहां बीताकर खरमोर वापस लौट जाते है ।
खरमोर को मालवा क्षेत्र प्रजनन के लिए उपयुक्त लगता है । खरमोर नर की अपेक्षा मादा का कद छोटा होता है । मादा को रिझाने का भी नर का अजीब तरीका है । नर खरमोर एक दिन में ३०० से ४०० बार जमीन से लगभग एक मीटर ऊपर उछल-उछल कर मादा खरमोर को आकर्षित करता है । करीब पौने दो माह बाद मादा अंडे देती है और सवा महीने में अंडे से बच्च निकलता है । श्री कछावा के अनुसार खरमोर की जानकारी देने, उनके अंड़ों को संभालने, सहेजने वाले किसानों को वन विभाग द्वारा नकद पुरस्कार भी दिया जाता है । खरमोर शर्मिला पक्षी है । जरा-सी आहट से वे घास के अंदर छुप जाते हैं । इस वर्ष २६ खरमोर आए हैं । इनमें १६ नर और १० मादा खरमोर है ।
सैलाना में आने वाले खरमोर पक्षी की संख्या - वर्ष २००१ में १४, वर्ष २००२ में ०९, वर्ष २००३ में १५, वर्ष २००४ में ०७, वर्ष २००५ में २६, वर्ष २००६ में २८, वर्ष २००७ में २७, वर्ष २००८ में ३८, वर्ष २००९ में ३२, वर्ष २०१० में २४, वर्ष २०११ में २० एवं वर्ष २०१२ में २६ पक्षी दिखाई दिए ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें