शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

ज्ञान विज्ञान
मंगल पर एलियंस की मौजूदगी रहस्य बरकरार
    एलियंस की मौजूदगी को लेकर अभी तक रहस्य ही बना हुआ है । अब मंगल ग्रह पर एलियंस की मौजूद होने की बात कही जा रही है। नासा के क्यूरियोसिटी रोवर को मंगल के आकाश में एक अजीब सी सफेद रोशनी नाचती हुई दिखी है । इसके अलावा क्यूरियोसिटी द्वारा भेजी गई तस्वीरों में आकश में दिखने वाले चार धब्बे भी दिखाई पड़े हैं । उड़नतश्तरियों (यूएफओ) को पहचानने वाले लोगों को दावा है कि ये धब्बे दरअसल एलियन्स (दूसरे ग्रह के वासी) के अंतरिक्षयान है, जो अंतरिक्ष में मानव की गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं ।

 
नासा के क्यूरियोसिटी द्वारा मंगल की सतह से भेजी गई ये तस्वीरें फिलहाल एक पहेली बनी हुई हैं । हालांकि नासा और फोटोग्राफी के विशेषज्ञों का कहना है कि यह और कुछ नहीं कैमरे के लेंस पर लगे कुछ दाग ही हैं । हालांकि, नासा ने इन संदिग्ध दृश्यों पर कोई टिप्पणी नहीं की है । क्यूरियोसिटी  द्वारा भेजी गई तस्वीरों में इन संदिग्ध धब्बों की पहचान यूट्यूब के यूजर स्टीफन हैनर्ड ने की । हैनर्ड एलियन डिस्कलोजर यूके नामक समूह के सदस्य हैं । नासा की बेबसाईट पर ये तस्वीरें सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है । हैनर्ड ने इस रोशनी का रहस्य सुलझाने के लिए तस्वीरों पर कई फिल्टरों को इस्तेमाल किया । हैनर्ड के अनुसार मंगल पर गए क्यूरियोसिटी ने जो तस्वीरें भेजी हैं, उनमें से इन चार धब्बों को पहचानना बहुत मुश्किल    है । फिलहाल ये तय किया जा रहा है कि यह कोई अज्ञात उड़नतश्तरी है, मिट्टी के कण हैं या फिर कुछ और ? 

मस्तिष्क से रक्त के थक्के निकालेगा उपकरण
    वैज्ञानिकों ने एक ऐसे उपकरण की खोज की है, जो मस्तिष्क में जमे रक्त के थक्के को हटा सकेगा । इसकी खोज के साथ ही मस्तिष्काघात (स्ट्रोक) के इलाज में एक नया दौर शुरू हो सकेगा ।
    ब्रिटिश जनरल द लेनसेट में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के लॉस एंजेलिस स्ट्रोक सेन्टर के निदेशक तथा डेविड गेफेन स्कूल ऑफ मेडिसिन में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर जेफरी एल. सावरे के नेतृत्व में इसकी खोज की गई है । सोलिटेर फ्लो रिजर्वेशन डिवाइस नामक इस उपकरण को क्लीनिकल परीक्षण में भी आशा से ज्यादा सफल पाया गया   है ।


पूरी तरह नई पीढ़ी के इस उपकरण की सहायता से मस्तिष्क की अवरूद्ध रक्तवाहिनियों में से थक्के कोपूरी तरह हटाया जाना संभव होगा । इसे एक पतली कैथेट्र ट्यूब की सहायता से अवरूद्ध रक्तवाहिनी में प्रवेश कराया जाता है । इस उपकरण की डिजाइन इस प्रकार की है कि यह रक्तवाहिनी में प्रवेश के बाद स्वत: अपना आकार बढ़ा लेता है । आकार बढ़ाने के दौरान यह थक्के पर दबाव डालता है तथा उसे जकड़ लेता है । जब उपकरण को रक्तवाहिनी से बाहर निकाला जाता है, तो इसकी जकड़ में आया थक्का भी बाहर निकल आता है तथा रक्तवाहिनी खुल जाती है । इस प्रक्रिया में ६१ प्रतिशत मरीजों के मस्तिष्क में रक्तस्त्राव भी नहीं हुआ । साथ ही स्ट्रोक होने के तीन महीनें बाद भी इसके उपयोग से थक्का हटाने में सफलता मिली है । सोलिटेर को अमेरिका के फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से भी मान्यता मिल चुकी है । वैज्ञानिकों का कहना है कि यह उपकरण इस्किमिक स्ट्रोक जैसी बीमरियों के इलाज को बदलकर रख देगा । इस्किमिक स्ट्रोक मस्तिष्क की रक्तवाहिनी के अवरूद्ध होने के कारण होता है ।

बच्च्े के जन्म के बाद माँकी याददाश्त में तेजी

    बच्च्े के जन्म के बाद महिलाआें की याददाश्त पहले से ज्यादा तेज हो जाती है । एक अध्ययन में खुलासा किया गया है कि माँ बनने के बाद महिलाआें की समझने व याद करने की शक्ति उन महिलाआें से ज्यादा बेहतर हो जाती है, जिनके बच्च्े नहीं है ।
    मियामी की कार्लोस अल्बिजु यूनिवर्सिटी की अनुसंधानकर्ता मेलिसा सैंटियागो के अनुसार अभी तक आम धारणा थी कि माँ बनने के बाद  महिलाआें की याददाश्त तथा सोचने-समझने की शक्ति में कमी आती है, परन्तु इस अध्ययन ने यह तथ्य झूठला दिया है ।

 
    अध्ययन के लिए पहली बार माँ बनी ३५ ऐसी महिलाआें को चुना गया, जिनके बच्चें की उम्र १० से २४ माह के  बीच थी । साथ ही ३५ ऐसी महिलाआें को भी शामिल किया गया, जो कभी माँ नहीं बनी । इन्हें एक कागज १० सेकण्ड तक दिखाया गया, जिस पर ६ प्रतीक चिन्ह बने हुए थे । इसके बाद इनसेकहा गया कि याददाश्त के आधार पर देखे गए प्रतीकों की तस्वीर बनाएँ । यह प्रयोग कई बार दोहराया गया । पहली बार में मां बनी महिलायें समान रहीं, परन्तु दूसरी व तीसरी बार प्रयोग में माँआें का प्रदर्शन बेहतर रहा । इसके बाद महिलाआें को विभिन्न प्रतीक चिन्हों को एक साथ दिखाकर चित्र बनाने को कहा    गया । इस प्रयोग में भी माँआें का प्रदर्शन दूसरे समूह की महिलाआें से बेहतर रहा ।
    गर्भावस्था के दौरान विभिन्न हार्मोनों में परिवर्तन के कारण महिला का मस्तिष्क करीब पांच प्रतिशत तक सिकुड़ जाता है । प्रसूति के बाद छ: महीनों में मस्तिष्क पुन: अपने आकार में वापस आता है । ताजा अध्ययन में पता चलता है कि अपने आकार में वापस आने के दौरान मस्तिष्क अपने आप को इस प्रकार समायोजित   करता है, जिससे याददाश्त सुधर जाती है ।

क्लिनिकल ट्रायल में भारत अव्वल

    भारत में दवाआें के परीक्षण के दौरान मौतों की अधिक संख्या पर चिंता के बीच ताजा आंकड़ों से यह बात सामने आई है कि दुनिया में हो रहे क्लिनिकल ट्रायल का १.५ प्रतिशत भारत में हो रहे हैं ।
    पिछले चार वर्षो से क्लिनिकल ट्रायल के दौरान औसतन देश में प्रति सप्तह १० लोगों की मौत हो रही है । वर्ष २००८ से २०११ के बीच भारत में क्लिनिकल ट्रायल के दौरान २०३१ लोगों की मौत की खबर है । इसके कारण सरकार को क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति देने की व्यवस्था की समीक्षा के लिए समिति का गठन करना पड़ा है ।



    विश्व विघालय संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, नई औषधियों की क्षमता का पता लगाने के लिए मनुष्यों पर अब तक १७६.६४१ क्लिनिकल ट्रायल  हो चुका है । इनमें से २७७० परीक्षण भारत में हुए है । दुनिया में हुए कुल औषध परीक्षण का १.५ प्रतिशत भारत में हुआ है । इसके कारण होने वाली मृत्युदर लगातार उच्च् बनी हुई है । २००८ में इसके कारण २८८ लोगों की मौत हुई जबकि २००९ में ६३७ लोगों, २०१० में ६६८ लोगों और २०११ में ४३८ लोगों की मौत हुई ।
    स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन से प्राप्त् आंकड़ों से क्लिनिकल ट्रायल के बारे में जो विश्लेषण सामने आया है वह स्तब्ध करने वाला है । क्लिनिकल ट्रायल  के कारण करीब एक व्यक्ति रोज मारा जाता है ।
    देश में पर्याप्त् कानूनी प्रावधान नहीं होने की वजह से बहुराष्ट्रीय कंपनियां इन मौंतों के लिए मामूली सी रकम मुआवजे के रूप में देकर छुटकारा पा रही है ।    

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