पर्यावरण परिक्रमा
चांद पर पहला कदम रखने वाले आर्मस्ट्रांग नहीं रहे
चांद पर कदम रखने वाले प्रथम मानव के रूप में इतिहास रचने वाले अमेरिका के पूर्व अंतरिक्ष यात्री नील एल्डेन आर्मस्ट्रांग का २५ अगस्त को ८२ वर्ष की उम्र में निधन हो गया ।
चांद फतह करने वाले इस महामानव की चक्रीय धमनी में थक्का जमने की शिकायत के बाद इसके उपचार के लिए इसी माह उनकी दिल की बाईपास सर्जरी हुई थी । वह अमेरिकी अंतरिक्ष शोध एजेंसी नासा के अपोलो ११ मिशन के कमांडर के तौर पर २० जुलाई १९६९ को चांद पर पहुंचे थे । चांद पर कदम रखने के बाद आर्मस्ट्रांग ने कहा था यह एक मानव का छोटा कदम भले हो पर मानव जाति के लिए एक बड़ी छंलाग है ।
जिस समय वह चांद की सतह पर उतरे थे उनके ह्दय मेंप्रति मिनट १५० तक की धड़कन रिकार्ड की गई थी जो सामान्य स्थितियों के मुकाबले लगभग दो गुना थी लेकिन कई वर्षो बाद जब उनसे पूछा गया कि चांद पर अपने कदमों के निशान हजारों वर्षो तक अक्षुण्ण रह पाने के बारे में सोचकर वह क्या महसूस करते हैं, उन्होनें कहा मुझे इस तरह की उम्मीद है कि कोई वहां जाएगा और पुराने इतिहास का सफाया कर देगा ।
चांद फतह की यह यात्रा आर्मस्ट्रांग की आखिरी अंतरिक्ष यात्रा थी । इसके बाद अमेरिकी अंतरिक्ष शोध एजेंसी नासा ने उन्हें डेस्क ड्यूटी पर तैनात कर दिया था तब उन्हें नासा में उन्नत शोध एवं तकनीकी कार्यालय में विमानिकी विभाग का प्रभारी सहायक प्रशासक नियुक्त किया गया था । उन्होनें एक वर्ष बाद ही नासा की नौकरी छोड़ दी और सिनसिवाटी विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग के प्रोफेसर बन गए । हालांकि नासा छोड़ने के बाद उनका जीवन बेहद एकाकी होता चला गया और वह हाल तक सिनसिनाटी इलाके में ही केवल अपनी पत्नी कैरोल के साथ रह रहे थे ।
आर्मस्ट्रांग का बचपन ओहियों में बीता था । शुरू से ही उड़ान और विमानन क्षेत्र में उनकी रूचि थी । उन्होंने किशोरावस्था में ही पायलट लायसेंस हासिल कर लिया था । वह कोरियाई युद्ध के समय काम्बैट विमान मिशन में उड़ान भरने के बाद १९६२ में टेस्ट पायलट बने और नासा के अंतरिक्ष विज्ञानी कार्यक्रम से जुड़ गए थे । आर्मस्ट्रांग की कामयाबी को याद करते हुए चांद के एक क्रेटर का नामकरण उनके नाम पर किया गया है । यह क्रेटर आर्मस्ट्रांग के चांद पर उतरने के स्थान से लगभग ४८ कि.मी. की दूरी पर स्थित है । चांद पर फतह करने वाले इस जांबाज पायलट को २००५ में यह जानकार काफी हैरानी हुई और गुस्सा भी आया था कि उनकी हजामत बनाने वाले नाई ने उनके बालोंका संकलन नीलाम कर ३००० डालर कमा लिए थे । आर्मस्ट्रांग की आपत्ति के बावजूद खरीदार ने वे बाल लोटाने से इंकार कर दिया । उसका कहना था कि वह अब्राहम लिंकन, नेपोलियन, मर्लिन मुनरो, अल्बर्ट आइस्ट्रीम और ऐली अन्य हस्तियों के बाल जमाकर संग्रहालय खोलेगा ।
नेशनल पार्क होंगे स्पेशल टाइगर फोर्स के हवाले
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने मध्यप्रदेश के तीन टाइगर रिजर्व पार्क कान्हा, बांधवगढ़ तथा पेंच के प्रबंधन की जिम्मेदारी स्पेशल टाइगर फोर्स के हवाले करने का निर्णय लिया है । केन्द्र सरकार ने यह व्यवस्था पहले कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिजर्व में लागू की थी और यहां मिली सफलता को देखते हुए यह कदम उठाया है । स्पेशल टाइगर फोर्स देश के १३ टाइगर रिजर्व पार्को में भी लागू की गई है और इसके लिए पैसा केन्द्र सरकार एसटीपीएफ के अन्तर्गत फं ड से देगी ।
प्रदेश में कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, पन्ना तथा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व पार्क है, लेकिन कान्हा में पिछले काफी समय से बांधों की संख्या कम होती जा रही थी । पिछले पांच वर्षो में प्रदेश में ५९ बाघों तथा ५८ तेंदुआें की अवैध शिकार अथवा प्राकृतिक रूप से मौते हुई हैं । केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा २१ अगस्त को जारी आदेश में उप्र के दुधवा पार्क, ऊत्तराखंड के कोरविट, राजस्थान के रणथम्बौर टाइगर रिजर्व, एमपी के पेंच, कान्हा तथा बांधवगढ़, अरूणाचल के पक्के, कर्नाटक के बांदीपुर, महाराष्ट्र के पेच तथा तधुवा अंधेरी, तमिलनाडु के मुडुमलाई, असम के काजीरंगा तथा उड़ीसा के सिमिलीपाल नेशनल पार्क के प्रबंधन की जिम्मेदारी स्पेशल टाइगर फोर्स को सौंपी गई है ।
इस संबंध में राज्यों से भी अभिमत नहीं लिया गया है । केन्द्र द्वारा २१ अगस्त को जारी आदेश की भनक अभी राज्य में फारेस्ट के आला अफसरों को भी नहीं है । वैसे केन्द्र टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में होने वाले विकास, बाघों की सुरक्षा तथा प्रबंधन पर पूरा खर्च उठाती है, फिर भी इसमें लगातार लापरवाही बरती जा रही है ।
मध्यप्रदेश में राज्य सरकार ने कान्हा, सतपुड़ा, बांधवगढ़ तथा पेंच आदि नेशनल पार्को की सुरक्षा मिलेट्ररी के रिटायर सैनिकों को सौंपी है, परन्तु यह भी बाघों की सुरक्षा करने में असफल साबित हुए है ।
पन्ना टाइगर रिजर्व में सुरंग बनाएगा रेलवे
मध्यप्रदेश में पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगली जानवर बहुप्रतीक्षित रेल परियोजना में बड़ी बाधा बनकर सामने आए हैं । खजुराहो-ललितपुर सिंगरौली रेल परियोजना के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व के अंदर से रेल लाइन डालने को पश्चिम मध्य रेल को केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति नहीं मिलने के बाद, रेल प्रशासन फॅारेस्ट के बीच से खुले में रेल लाइन ले जाने की बजाय १० किलोमीटर लंबे टनल (सुरंग) बनाने पर भी विचार कर रहा है । उधर रेल बजट में वित्तीय वर्ष २०१२-१३ के लिए ६० करोड़ रूपए की राशि इस प्रोजेक्ट को मंजूर की गई है ।
पमरे प्रशासन ने इस पन्ना जिले में राष्ट्रीय अभ्यारण्य के बीच से रेल लाइन बिछाने की अनुमति मांगी हुई है, लेकिन इसे पिछले ३ सालों से केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने ठंडे बस्ते में डाला हुआ है । जिस कारण इस परियोजना का महत्वपूर्ण भाग खजुराहो-पन्ना-देवेन्द्रनगर-नागौद-सतना के बीच १२५ किलोमीटर का काम अटका हुआ है ।
रेलवे ने वैकल्पिक उपायों के तहत रिजर्व फॉरेस्ट के बीचों-बीच १० किलोमीटर लंबा टनल बनाने पर भी विचार कर रहा है । यदि टनल का प्रस्ताव मंजूर हो जाता है तो रेल लाइन टनल के अंदर से ले जाई जा सकती है, जिससे वन्य जीवों पर भी कोई प्रभाव नहीं होगा और ७५ किलोमीटर का चक्कर भी बच जाएगा, लेकिन इतना जरूर है कि जंगल के बीच पहाड़ों के अंदर से टनल बिछाने के काम में रेलवे को कई सौ करोड़ रूपए खर्च करना पड़ेगे । अब देखना यह है कि रेलवे के किस वैकल्पिक उपायों को मंजूरी मिल पाती है ।
प्रत्येक घर को स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति
केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रोंमें स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिये राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) चलाया जा रहा है । इसके अन्तर्गत ग्रामीण आबादी को पर्याप्त् मात्रा में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के उनके प्रयासों में मदद करने के लिये राज्यों को वित्तीय तथा तकनीकी सहायता दी जाती है । वर्ष २०१२-१३ में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के लिये १०,५०० करोड़ रूपये का बजटीय आवंटन दिया गया है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत भारत सरकार ने आंशिक रूप से कवर की गई बसावटों और गुणवत्ता प्रभावित बसावटों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दी है । इसके अलावा पेयजल कार्यक्रम का ५ प्रतिशत आवंटन पेयजल में रासायनिक संदूषण की समस्याआें का सामना कर रहे राज्यों अथवा जापानी इन्सेफेलाइटिस और एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम प्रभावित उच्च् प्राथमिकता जिलों के लिये निर्धारित किया है ।
१२ वीं पंचवर्षीय योजना अवधि में पाइप से जलापूर्ति पर मुख्य ध्यान दिया जायेगा ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप से जल आपूर्ति को प्रोत्साहन दिया जा सके । भारत सरकार भी ग्रामीण बसावटों को कवर करने तथा परिवारों को निरन्तर आधार स्वच्छ तथा पर्याप्त् पेयजल उपलब्ध कराने के उपाय कर रही है । उल्लेखनीय है कि जनगणना २०११ के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रोंमें पेयजल लाने के लिये २२.१० प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को आधे किलोमीटर से अधिक पैदल चलना पड़ता है जबकि शहरी क्षेत्रों के ८.१ प्रतिशत परिवारों को पेयजल लाने के लिये १०० मीटर से अधिक पैदल चलना पड़ता है ।
चांद पर पहला कदम रखने वाले आर्मस्ट्रांग नहीं रहे
चांद पर कदम रखने वाले प्रथम मानव के रूप में इतिहास रचने वाले अमेरिका के पूर्व अंतरिक्ष यात्री नील एल्डेन आर्मस्ट्रांग का २५ अगस्त को ८२ वर्ष की उम्र में निधन हो गया ।
चांद फतह करने वाले इस महामानव की चक्रीय धमनी में थक्का जमने की शिकायत के बाद इसके उपचार के लिए इसी माह उनकी दिल की बाईपास सर्जरी हुई थी । वह अमेरिकी अंतरिक्ष शोध एजेंसी नासा के अपोलो ११ मिशन के कमांडर के तौर पर २० जुलाई १९६९ को चांद पर पहुंचे थे । चांद पर कदम रखने के बाद आर्मस्ट्रांग ने कहा था यह एक मानव का छोटा कदम भले हो पर मानव जाति के लिए एक बड़ी छंलाग है ।
जिस समय वह चांद की सतह पर उतरे थे उनके ह्दय मेंप्रति मिनट १५० तक की धड़कन रिकार्ड की गई थी जो सामान्य स्थितियों के मुकाबले लगभग दो गुना थी लेकिन कई वर्षो बाद जब उनसे पूछा गया कि चांद पर अपने कदमों के निशान हजारों वर्षो तक अक्षुण्ण रह पाने के बारे में सोचकर वह क्या महसूस करते हैं, उन्होनें कहा मुझे इस तरह की उम्मीद है कि कोई वहां जाएगा और पुराने इतिहास का सफाया कर देगा ।
चांद फतह की यह यात्रा आर्मस्ट्रांग की आखिरी अंतरिक्ष यात्रा थी । इसके बाद अमेरिकी अंतरिक्ष शोध एजेंसी नासा ने उन्हें डेस्क ड्यूटी पर तैनात कर दिया था तब उन्हें नासा में उन्नत शोध एवं तकनीकी कार्यालय में विमानिकी विभाग का प्रभारी सहायक प्रशासक नियुक्त किया गया था । उन्होनें एक वर्ष बाद ही नासा की नौकरी छोड़ दी और सिनसिवाटी विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग के प्रोफेसर बन गए । हालांकि नासा छोड़ने के बाद उनका जीवन बेहद एकाकी होता चला गया और वह हाल तक सिनसिनाटी इलाके में ही केवल अपनी पत्नी कैरोल के साथ रह रहे थे ।
आर्मस्ट्रांग का बचपन ओहियों में बीता था । शुरू से ही उड़ान और विमानन क्षेत्र में उनकी रूचि थी । उन्होंने किशोरावस्था में ही पायलट लायसेंस हासिल कर लिया था । वह कोरियाई युद्ध के समय काम्बैट विमान मिशन में उड़ान भरने के बाद १९६२ में टेस्ट पायलट बने और नासा के अंतरिक्ष विज्ञानी कार्यक्रम से जुड़ गए थे । आर्मस्ट्रांग की कामयाबी को याद करते हुए चांद के एक क्रेटर का नामकरण उनके नाम पर किया गया है । यह क्रेटर आर्मस्ट्रांग के चांद पर उतरने के स्थान से लगभग ४८ कि.मी. की दूरी पर स्थित है । चांद पर फतह करने वाले इस जांबाज पायलट को २००५ में यह जानकार काफी हैरानी हुई और गुस्सा भी आया था कि उनकी हजामत बनाने वाले नाई ने उनके बालोंका संकलन नीलाम कर ३००० डालर कमा लिए थे । आर्मस्ट्रांग की आपत्ति के बावजूद खरीदार ने वे बाल लोटाने से इंकार कर दिया । उसका कहना था कि वह अब्राहम लिंकन, नेपोलियन, मर्लिन मुनरो, अल्बर्ट आइस्ट्रीम और ऐली अन्य हस्तियों के बाल जमाकर संग्रहालय खोलेगा ।
नेशनल पार्क होंगे स्पेशल टाइगर फोर्स के हवाले
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने मध्यप्रदेश के तीन टाइगर रिजर्व पार्क कान्हा, बांधवगढ़ तथा पेंच के प्रबंधन की जिम्मेदारी स्पेशल टाइगर फोर्स के हवाले करने का निर्णय लिया है । केन्द्र सरकार ने यह व्यवस्था पहले कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिजर्व में लागू की थी और यहां मिली सफलता को देखते हुए यह कदम उठाया है । स्पेशल टाइगर फोर्स देश के १३ टाइगर रिजर्व पार्को में भी लागू की गई है और इसके लिए पैसा केन्द्र सरकार एसटीपीएफ के अन्तर्गत फं ड से देगी ।
प्रदेश में कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, पन्ना तथा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व पार्क है, लेकिन कान्हा में पिछले काफी समय से बांधों की संख्या कम होती जा रही थी । पिछले पांच वर्षो में प्रदेश में ५९ बाघों तथा ५८ तेंदुआें की अवैध शिकार अथवा प्राकृतिक रूप से मौते हुई हैं । केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा २१ अगस्त को जारी आदेश में उप्र के दुधवा पार्क, ऊत्तराखंड के कोरविट, राजस्थान के रणथम्बौर टाइगर रिजर्व, एमपी के पेंच, कान्हा तथा बांधवगढ़, अरूणाचल के पक्के, कर्नाटक के बांदीपुर, महाराष्ट्र के पेच तथा तधुवा अंधेरी, तमिलनाडु के मुडुमलाई, असम के काजीरंगा तथा उड़ीसा के सिमिलीपाल नेशनल पार्क के प्रबंधन की जिम्मेदारी स्पेशल टाइगर फोर्स को सौंपी गई है ।
इस संबंध में राज्यों से भी अभिमत नहीं लिया गया है । केन्द्र द्वारा २१ अगस्त को जारी आदेश की भनक अभी राज्य में फारेस्ट के आला अफसरों को भी नहीं है । वैसे केन्द्र टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में होने वाले विकास, बाघों की सुरक्षा तथा प्रबंधन पर पूरा खर्च उठाती है, फिर भी इसमें लगातार लापरवाही बरती जा रही है ।
मध्यप्रदेश में राज्य सरकार ने कान्हा, सतपुड़ा, बांधवगढ़ तथा पेंच आदि नेशनल पार्को की सुरक्षा मिलेट्ररी के रिटायर सैनिकों को सौंपी है, परन्तु यह भी बाघों की सुरक्षा करने में असफल साबित हुए है ।
पन्ना टाइगर रिजर्व में सुरंग बनाएगा रेलवे
मध्यप्रदेश में पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगली जानवर बहुप्रतीक्षित रेल परियोजना में बड़ी बाधा बनकर सामने आए हैं । खजुराहो-ललितपुर सिंगरौली रेल परियोजना के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व के अंदर से रेल लाइन डालने को पश्चिम मध्य रेल को केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति नहीं मिलने के बाद, रेल प्रशासन फॅारेस्ट के बीच से खुले में रेल लाइन ले जाने की बजाय १० किलोमीटर लंबे टनल (सुरंग) बनाने पर भी विचार कर रहा है । उधर रेल बजट में वित्तीय वर्ष २०१२-१३ के लिए ६० करोड़ रूपए की राशि इस प्रोजेक्ट को मंजूर की गई है ।
पमरे प्रशासन ने इस पन्ना जिले में राष्ट्रीय अभ्यारण्य के बीच से रेल लाइन बिछाने की अनुमति मांगी हुई है, लेकिन इसे पिछले ३ सालों से केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने ठंडे बस्ते में डाला हुआ है । जिस कारण इस परियोजना का महत्वपूर्ण भाग खजुराहो-पन्ना-देवेन्द्रनगर-नागौद-सतना के बीच १२५ किलोमीटर का काम अटका हुआ है ।
रेलवे ने वैकल्पिक उपायों के तहत रिजर्व फॉरेस्ट के बीचों-बीच १० किलोमीटर लंबा टनल बनाने पर भी विचार कर रहा है । यदि टनल का प्रस्ताव मंजूर हो जाता है तो रेल लाइन टनल के अंदर से ले जाई जा सकती है, जिससे वन्य जीवों पर भी कोई प्रभाव नहीं होगा और ७५ किलोमीटर का चक्कर भी बच जाएगा, लेकिन इतना जरूर है कि जंगल के बीच पहाड़ों के अंदर से टनल बिछाने के काम में रेलवे को कई सौ करोड़ रूपए खर्च करना पड़ेगे । अब देखना यह है कि रेलवे के किस वैकल्पिक उपायों को मंजूरी मिल पाती है ।
प्रत्येक घर को स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति
केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रोंमें स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिये राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) चलाया जा रहा है । इसके अन्तर्गत ग्रामीण आबादी को पर्याप्त् मात्रा में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के उनके प्रयासों में मदद करने के लिये राज्यों को वित्तीय तथा तकनीकी सहायता दी जाती है । वर्ष २०१२-१३ में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के लिये १०,५०० करोड़ रूपये का बजटीय आवंटन दिया गया है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत भारत सरकार ने आंशिक रूप से कवर की गई बसावटों और गुणवत्ता प्रभावित बसावटों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दी है । इसके अलावा पेयजल कार्यक्रम का ५ प्रतिशत आवंटन पेयजल में रासायनिक संदूषण की समस्याआें का सामना कर रहे राज्यों अथवा जापानी इन्सेफेलाइटिस और एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम प्रभावित उच्च् प्राथमिकता जिलों के लिये निर्धारित किया है ।
१२ वीं पंचवर्षीय योजना अवधि में पाइप से जलापूर्ति पर मुख्य ध्यान दिया जायेगा ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप से जल आपूर्ति को प्रोत्साहन दिया जा सके । भारत सरकार भी ग्रामीण बसावटों को कवर करने तथा परिवारों को निरन्तर आधार स्वच्छ तथा पर्याप्त् पेयजल उपलब्ध कराने के उपाय कर रही है । उल्लेखनीय है कि जनगणना २०११ के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रोंमें पेयजल लाने के लिये २२.१० प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को आधे किलोमीटर से अधिक पैदल चलना पड़ता है जबकि शहरी क्षेत्रों के ८.१ प्रतिशत परिवारों को पेयजल लाने के लिये १०० मीटर से अधिक पैदल चलना पड़ता है ।
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