पर्यावरण समाचार
गैस त्रासदी : २८ साल भी न्याय नहीं मिला
भोपाल गैस त्रासदी को २८ साल हो चुके हैं, लेकिन इससे प्रभावित हुए बाशिंदे अभी भी इंसाफ की बाट जोह रहे हैं । २८ बरस पहले २ और ३ दिसम्बर १९८४ की दरमियानी रात को लगभग पांच हजार लोगों तथा सरकारी रिकार्ड के मुताबिक अब तक लगभग १५ हजार लोगोंको मौत की नींद सुला चुकी तथा हजारों अन्य लोगों को बीमार-लाचार बना चुकी इस त्रासदी को याद कर भोपालवासियों की रूह आज भी कांप उठती है । इससे न केवल उस समय के लोग प्रभावित हुए, बल्कि बाद की पीढ़ियां भी इसके असर से अछूती नहीं रही ।
लेकिन बीसवीं सदी की इस भीषणतम औद्योगिक त्रासदी के गुनहगारों को सजा दिलाने का मामला अभी भी कानूनी और राजनीतिक झमेलों में उलझा हुआ है । केन्द्र और राज्य सरकार ने सभी आरोपियों को माकूल सजा और पीड़ितों को पर्याप्त् मुआवजा दिलाने के अलावा उनके दीर्घकालिक पुनर्वास संबंधी कुछ निर्णय भी लिए, लेकिन वे सिर्फ घोषणा बनकर रह गए । कार्बाइड कारखाने के घातक रसायनों का सुरक्षित निपटारा भी अभी तक नहीं हुआ है, जबकि यह काम केन्द्र और राज्य सरकारों की प्राथमिकता सूची में अव्वल होना चाहिए था । यहीं नहीं सरकार और न्यायपालिका यह सुनिश्चित करने में भी नाकाम रहे कि भोपाल गैस त्रासदी के जिम्मेदार लोगों को न सिर्फ हादसे के लिए जवाबदेह ठहराया जाए, बल्कि उन्हें देश में कोई भी व्यवसाय करने की अनुमति भी न दी जाए ।
यह देखकर हैरानी होती है कि यूनियन कार्बाइड पर नियंत्रण कर लेने वाली डॉउ केमिकल्स भारत में आराम से कारोबार कर रही है, जबकि इस कंपनी ने भोपाल त्रासदी के लिए जिम्मेदारी लेने और इससे प्रभावित लोगों को आवश्यक राहत व मुआवजा देने से इंकार कर दिया है । यह सरकारों की कमजोरीं का ही नतीजा है कि आज भी बड़ी औद्योगिक परियोजनाआें में आपदा प्रबंधन तंत्र विकसित नहीं किए जा रहे हैं । आज भी हमारे पास यह सुनिश्चित करने के लिए कोई विश्वसनीय तंत्र नहीं है, जिससे कि ऐसी उद्योगजनित दुर्घटनाआें के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जा सके ।
गैस त्रासदी : २८ साल भी न्याय नहीं मिला
भोपाल गैस त्रासदी को २८ साल हो चुके हैं, लेकिन इससे प्रभावित हुए बाशिंदे अभी भी इंसाफ की बाट जोह रहे हैं । २८ बरस पहले २ और ३ दिसम्बर १९८४ की दरमियानी रात को लगभग पांच हजार लोगों तथा सरकारी रिकार्ड के मुताबिक अब तक लगभग १५ हजार लोगोंको मौत की नींद सुला चुकी तथा हजारों अन्य लोगों को बीमार-लाचार बना चुकी इस त्रासदी को याद कर भोपालवासियों की रूह आज भी कांप उठती है । इससे न केवल उस समय के लोग प्रभावित हुए, बल्कि बाद की पीढ़ियां भी इसके असर से अछूती नहीं रही ।
लेकिन बीसवीं सदी की इस भीषणतम औद्योगिक त्रासदी के गुनहगारों को सजा दिलाने का मामला अभी भी कानूनी और राजनीतिक झमेलों में उलझा हुआ है । केन्द्र और राज्य सरकार ने सभी आरोपियों को माकूल सजा और पीड़ितों को पर्याप्त् मुआवजा दिलाने के अलावा उनके दीर्घकालिक पुनर्वास संबंधी कुछ निर्णय भी लिए, लेकिन वे सिर्फ घोषणा बनकर रह गए । कार्बाइड कारखाने के घातक रसायनों का सुरक्षित निपटारा भी अभी तक नहीं हुआ है, जबकि यह काम केन्द्र और राज्य सरकारों की प्राथमिकता सूची में अव्वल होना चाहिए था । यहीं नहीं सरकार और न्यायपालिका यह सुनिश्चित करने में भी नाकाम रहे कि भोपाल गैस त्रासदी के जिम्मेदार लोगों को न सिर्फ हादसे के लिए जवाबदेह ठहराया जाए, बल्कि उन्हें देश में कोई भी व्यवसाय करने की अनुमति भी न दी जाए ।
यह देखकर हैरानी होती है कि यूनियन कार्बाइड पर नियंत्रण कर लेने वाली डॉउ केमिकल्स भारत में आराम से कारोबार कर रही है, जबकि इस कंपनी ने भोपाल त्रासदी के लिए जिम्मेदारी लेने और इससे प्रभावित लोगों को आवश्यक राहत व मुआवजा देने से इंकार कर दिया है । यह सरकारों की कमजोरीं का ही नतीजा है कि आज भी बड़ी औद्योगिक परियोजनाआें में आपदा प्रबंधन तंत्र विकसित नहीं किए जा रहे हैं । आज भी हमारे पास यह सुनिश्चित करने के लिए कोई विश्वसनीय तंत्र नहीं है, जिससे कि ऐसी उद्योगजनित दुर्घटनाआें के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जा सके ।
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