अभिव्यक्ति
भाषा की उत्पत्ति पर वाक्युद्ध
डॉ.डी. बालसुब्रमण्यन
सौ से ज्यादा प्राचीन व समकालीन इंडो-युरोपीय भाषाआें के मूल शब्द भंडारों के अध्ययन से पता चलता है कि इंडो-युरोपीय भाषाआें की पूर्वज भाषा की उत्पत्ति एनाटोलिया यानी एशिया माइनर में हुई थी, जो आजकल का तुर्की है ।
इंडो-युरोपीय भाषाआें की पूर्वज भाषा की उत्पत्ति कहां हुई इससे जर्मन, इतालवी, रूसी, फारसी, हिन्दी आदि विविध भाषाएं कैसे पैदा हुई ?
हैदराबाद विश्वविद्यालय के भूतपूर्व उपकुलपति प्रोफेसर भद्रीराजू कृष्णमूर्ति के निधन के साथ ही भारतीय भाषाआें के विद्वत्तापूर्ण विश्लेषण का एक युग समाप्त् हो गया है । उनकी किताब दी द्रविडियन लैंगवेजेस में द्रविडियन भाषाआें की उत्पत्ति, विकास और विविधता का सटीक विवरण प्रस्तुत हुआ है ।
उन्होनें ही मुझे आनुवांशिकी विशेषज्ञ ल्यूगी केवेलीस्फोर्जा के इस मत से परिचित कराया था कि आनुवंशिक वंशवृक्ष और भाषा वृक्ष में कई समानतांए है । और उन्होने ही मुझे इन मान्यताआें के बारे में सोचने को प्रेरित किया था ।
यह सच है कि डीएनए वह बीज है जिसके आधार आनुवंशिक वंशवृक्ष विकसित हुआ है, फल-फूला है और विविधतापूर्ण बना है । इसी तरह शब्द एक बीज है जिससे भाषा बनते है, विकसित होती है और संख्या वृद्धि करती है । जिस तरह से जीन्स डीएनए के क्रम होते हैंऔर जीन्स का संग्रह (जिनोम) सजीव की रचना को निर्धारित करता है, उसी तरह शब्द, वाक्यांश, वाक्य और व्याकरण भाषा को परिभाषित करते हैं ।
जिस तरह से जीवों का विकास अपने पूर्वजों से हुआ है, उसी तरह भाषाएं भी किसी पैतृक भाषा या प्रोटो भाषा से विकसित हुई है । सवाल यह है कि इंडो-युरोपीय भाषाआें के पूर्वज यानी प्रोटो-इंडो-युरोपीय भाषा की उत्पत्ति कहां हुई और जर्मन, इतालवी, रूसी, फारसी और हिन्दी जैसी विविध भाषाआें का विकास कैसे हुआ । यह फिलहाल विवाद का मुद्दा है या यों कहें कि इस पर वाक्युद्ध जारी है ।
इस संबंध में हाल ही में ऑकलैण्ड विश्वविघालय, न्यूजीलैंड के डॉ.क्वेन्टिन एटकिन्सन और उनके साथियों ने साइंस के अंक में एक पर्चा प्रस्तुत किया है जिसमें प्रोफेसर कृष्णमूर्ति की भी गहरी रूचि थी ।
एटकिन्सन ने ल्यूगी केवेली स्फोर्जा के उसी विचार को आगे बढ़ाया है और इंडो-युरोपीय भाषाआें की उत्पत्ति के अध्ययन में उसी सांख्यिकीय पद्धति का उपयोग किया है जो जैव विकास के अध्ययन में इस्तेमाल होती है । जैव विकास के अध्ययन में हम डीएनए अणु के क्रम से शुरू करते हैं यह देखने की कोशिश करते हैं कि समय के साथ-साथ इसमें कैसे परिवर्तन होते हैं और नई प्रजातियां अस्तित्व में आती हैं ।
दूसरा उतना ही प्रभावी तरीका यह है कि हम किसी वर्तमान समूह, जैसे स्तनधारियों के डीएनए (जीनोम) से शुरू करें और फिर पीछे लौटते हुए देखें कि विकास के क्रम में कहां-कहां इनमें विविधता पैदा हुई और कैसे कुत्ते, बिल्ली, गाय-भैंस और मनुष्य जैसी विभिन्न प्रजातियां बनती गई ।
भाषा विज्ञान में हम मूल शब्दों (प्रोटो-शब्दों) से शुरू करते हैं । ये वे मूल शब्द हैं जिनसे विविधता की उत्पत्ति हुई है । उदाहरण के तौर पर प्रोटो-इंडो-युरोपीय शब्द मेहटर हिन्दी में मां या माता, जर्मन में मुटर, लेटिन में माटेर, रूसी में माट और फारसी में मादर हुआ।
एटकिन्सन ने इसी तरह के सजातीय शब्दों के साथ शुरूआत की और सभी शब्दों को एक-एक अंक दिया । जब इन सजातीय शब्दों का स्थान किसी अन्य शब्द ने ले लिया तो इन्हें शून्य अंक दिया गया । इस द्विअंकीय स्कोर के आधार पर उन्होनें उसी सांख्यिकी पद्धति का उपयोग किया जिसके जरिए डीएनए क्रम का विश्लेषण करके वायरस महामारियों की खोजबीन हुई थी ।
पिछले दिनों १०३ प्राचीन या समकालीन भाषाआें के मूल शब्द भण्डार के डैटा का उपयोग करके उन मूल बिन्दुआें का पता लगाया गया है जहां से भाषाएं अलग-अलग होना शुरू हुई थीं । इसका परिणाम यह निकला कि प्रोटो-इंडो-युरोपीय भाषा की शुरूआत एनाटोलिया या एशिया मायनर से हुई थी जो आजकल का टर्की है ।
सांइस में प्रकाशित अपने शोध पत्र में एटकिन्सन कहते है हमें इस बात के निर्णायक प्रमाण मिले हैं कि (प्रोटो भाषा की) उत्पत्ति घास के मैदानों(स्टेपीज) की बजाय एनाटोलिया में हुई है । इंडो-युरोपीय भषा वृक्ष के समय और उसके मूल स्थान संबंधी अनुमान एनाटोलिया से कृषि के विस्तार से मेल खाते हैं जो करीब ८०००-९५०० वर्ष पूर्व शुरू हुआ था ।
ऊपर दिए गए दो शब्द घास के मैदानों और कृषि पर गौर करें। ब्रिटिश पुरातत्ववेत्ता कोलिन रेनफू्र ने १९८७ में ही कहा था कि कृषि और भाषा का प्रसार साथ-साथ हुआ है ।
जब शिकारी संग्रहकर्ता समुदाय से कृषि समुदाय बना, तो एक सुगठित समाज अस्तित्व में आया जहां समुदाय के अंदर और अन्य समुदायों के साथ गहन अंतर्क्रिया होती थी । जब ये समुदाय फैले या अन्य जगहों पर भी ऐसे समुदाय बने, तो संप्रेषण में सक्रियता आई और भाषा का विकास शुरू हुआ ।
अन्य प्रमाण दर्शाते हैं कि इंडो-युरोपीय भाषा क्षेत्र में कृषि का विकास एनाटोलिया में हुआ था और वह भी मात्र ९५००-१०००० साल पूर्व । ऐसा माना जाता है कि यहीं से कृषि पूरब और पश्चिम दोनो तरफ फैली । जैसे-जैसे नए-नए कृषि समुदाय बने, भाषा में भी विविधता बढ़ती गई ।
इस व्याख्या से सब सहमत नहीं है । एटकिन्सन के शोध पत्र के ऑनलाइन प्रकाशन के चंद घंटो के भीतर ई-मेल और ब्लॉग पर वाक्युद्ध शुरू हो गया । इस संबंध में दूसरा सिद्धांत यह है कि प्रोटो-इंडो-युरोपीय भाषा की उत्पत्ति पश्चिम एशिया में केस्पियन क्षेत्र में हुई । इसे स्टेपीज भी कहते हैं - स्टेपीज यानी दक्षिण-पूर्वी युरोप और एशिया का समतल मैदान जहां पेड़ नहीं हैं और वह घास से पूरी तरह ढंका हुआ है ।
आंधप्रदेश के ज्यादातर हिस्से में तेलगू बोली जाती है, जो इंडो-युरोपीय भाषा परिवार का ही हिस्सा है । लेकिन उसके दक्षिण के राज्य में बोली जाने वाली भाषा तमिल की उत्पत्ति भी राज बनी हुई है ।
भाषा की उत्पत्ति पर वाक्युद्ध
डॉ.डी. बालसुब्रमण्यन
सौ से ज्यादा प्राचीन व समकालीन इंडो-युरोपीय भाषाआें के मूल शब्द भंडारों के अध्ययन से पता चलता है कि इंडो-युरोपीय भाषाआें की पूर्वज भाषा की उत्पत्ति एनाटोलिया यानी एशिया माइनर में हुई थी, जो आजकल का तुर्की है ।
इंडो-युरोपीय भाषाआें की पूर्वज भाषा की उत्पत्ति कहां हुई इससे जर्मन, इतालवी, रूसी, फारसी, हिन्दी आदि विविध भाषाएं कैसे पैदा हुई ?
हैदराबाद विश्वविद्यालय के भूतपूर्व उपकुलपति प्रोफेसर भद्रीराजू कृष्णमूर्ति के निधन के साथ ही भारतीय भाषाआें के विद्वत्तापूर्ण विश्लेषण का एक युग समाप्त् हो गया है । उनकी किताब दी द्रविडियन लैंगवेजेस में द्रविडियन भाषाआें की उत्पत्ति, विकास और विविधता का सटीक विवरण प्रस्तुत हुआ है ।
उन्होनें ही मुझे आनुवांशिकी विशेषज्ञ ल्यूगी केवेलीस्फोर्जा के इस मत से परिचित कराया था कि आनुवंशिक वंशवृक्ष और भाषा वृक्ष में कई समानतांए है । और उन्होने ही मुझे इन मान्यताआें के बारे में सोचने को प्रेरित किया था ।
यह सच है कि डीएनए वह बीज है जिसके आधार आनुवंशिक वंशवृक्ष विकसित हुआ है, फल-फूला है और विविधतापूर्ण बना है । इसी तरह शब्द एक बीज है जिससे भाषा बनते है, विकसित होती है और संख्या वृद्धि करती है । जिस तरह से जीन्स डीएनए के क्रम होते हैंऔर जीन्स का संग्रह (जिनोम) सजीव की रचना को निर्धारित करता है, उसी तरह शब्द, वाक्यांश, वाक्य और व्याकरण भाषा को परिभाषित करते हैं ।
जिस तरह से जीवों का विकास अपने पूर्वजों से हुआ है, उसी तरह भाषाएं भी किसी पैतृक भाषा या प्रोटो भाषा से विकसित हुई है । सवाल यह है कि इंडो-युरोपीय भाषाआें के पूर्वज यानी प्रोटो-इंडो-युरोपीय भाषा की उत्पत्ति कहां हुई और जर्मन, इतालवी, रूसी, फारसी और हिन्दी जैसी विविध भाषाआें का विकास कैसे हुआ । यह फिलहाल विवाद का मुद्दा है या यों कहें कि इस पर वाक्युद्ध जारी है ।
इस संबंध में हाल ही में ऑकलैण्ड विश्वविघालय, न्यूजीलैंड के डॉ.क्वेन्टिन एटकिन्सन और उनके साथियों ने साइंस के अंक में एक पर्चा प्रस्तुत किया है जिसमें प्रोफेसर कृष्णमूर्ति की भी गहरी रूचि थी ।
एटकिन्सन ने ल्यूगी केवेली स्फोर्जा के उसी विचार को आगे बढ़ाया है और इंडो-युरोपीय भाषाआें की उत्पत्ति के अध्ययन में उसी सांख्यिकीय पद्धति का उपयोग किया है जो जैव विकास के अध्ययन में इस्तेमाल होती है । जैव विकास के अध्ययन में हम डीएनए अणु के क्रम से शुरू करते हैं यह देखने की कोशिश करते हैं कि समय के साथ-साथ इसमें कैसे परिवर्तन होते हैं और नई प्रजातियां अस्तित्व में आती हैं ।
दूसरा उतना ही प्रभावी तरीका यह है कि हम किसी वर्तमान समूह, जैसे स्तनधारियों के डीएनए (जीनोम) से शुरू करें और फिर पीछे लौटते हुए देखें कि विकास के क्रम में कहां-कहां इनमें विविधता पैदा हुई और कैसे कुत्ते, बिल्ली, गाय-भैंस और मनुष्य जैसी विभिन्न प्रजातियां बनती गई ।
भाषा विज्ञान में हम मूल शब्दों (प्रोटो-शब्दों) से शुरू करते हैं । ये वे मूल शब्द हैं जिनसे विविधता की उत्पत्ति हुई है । उदाहरण के तौर पर प्रोटो-इंडो-युरोपीय शब्द मेहटर हिन्दी में मां या माता, जर्मन में मुटर, लेटिन में माटेर, रूसी में माट और फारसी में मादर हुआ।
एटकिन्सन ने इसी तरह के सजातीय शब्दों के साथ शुरूआत की और सभी शब्दों को एक-एक अंक दिया । जब इन सजातीय शब्दों का स्थान किसी अन्य शब्द ने ले लिया तो इन्हें शून्य अंक दिया गया । इस द्विअंकीय स्कोर के आधार पर उन्होनें उसी सांख्यिकी पद्धति का उपयोग किया जिसके जरिए डीएनए क्रम का विश्लेषण करके वायरस महामारियों की खोजबीन हुई थी ।
पिछले दिनों १०३ प्राचीन या समकालीन भाषाआें के मूल शब्द भण्डार के डैटा का उपयोग करके उन मूल बिन्दुआें का पता लगाया गया है जहां से भाषाएं अलग-अलग होना शुरू हुई थीं । इसका परिणाम यह निकला कि प्रोटो-इंडो-युरोपीय भाषा की शुरूआत एनाटोलिया या एशिया मायनर से हुई थी जो आजकल का टर्की है ।
सांइस में प्रकाशित अपने शोध पत्र में एटकिन्सन कहते है हमें इस बात के निर्णायक प्रमाण मिले हैं कि (प्रोटो भाषा की) उत्पत्ति घास के मैदानों(स्टेपीज) की बजाय एनाटोलिया में हुई है । इंडो-युरोपीय भषा वृक्ष के समय और उसके मूल स्थान संबंधी अनुमान एनाटोलिया से कृषि के विस्तार से मेल खाते हैं जो करीब ८०००-९५०० वर्ष पूर्व शुरू हुआ था ।
ऊपर दिए गए दो शब्द घास के मैदानों और कृषि पर गौर करें। ब्रिटिश पुरातत्ववेत्ता कोलिन रेनफू्र ने १९८७ में ही कहा था कि कृषि और भाषा का प्रसार साथ-साथ हुआ है ।
जब शिकारी संग्रहकर्ता समुदाय से कृषि समुदाय बना, तो एक सुगठित समाज अस्तित्व में आया जहां समुदाय के अंदर और अन्य समुदायों के साथ गहन अंतर्क्रिया होती थी । जब ये समुदाय फैले या अन्य जगहों पर भी ऐसे समुदाय बने, तो संप्रेषण में सक्रियता आई और भाषा का विकास शुरू हुआ ।
अन्य प्रमाण दर्शाते हैं कि इंडो-युरोपीय भाषा क्षेत्र में कृषि का विकास एनाटोलिया में हुआ था और वह भी मात्र ९५००-१०००० साल पूर्व । ऐसा माना जाता है कि यहीं से कृषि पूरब और पश्चिम दोनो तरफ फैली । जैसे-जैसे नए-नए कृषि समुदाय बने, भाषा में भी विविधता बढ़ती गई ।
इस व्याख्या से सब सहमत नहीं है । एटकिन्सन के शोध पत्र के ऑनलाइन प्रकाशन के चंद घंटो के भीतर ई-मेल और ब्लॉग पर वाक्युद्ध शुरू हो गया । इस संबंध में दूसरा सिद्धांत यह है कि प्रोटो-इंडो-युरोपीय भाषा की उत्पत्ति पश्चिम एशिया में केस्पियन क्षेत्र में हुई । इसे स्टेपीज भी कहते हैं - स्टेपीज यानी दक्षिण-पूर्वी युरोप और एशिया का समतल मैदान जहां पेड़ नहीं हैं और वह घास से पूरी तरह ढंका हुआ है ।
आंधप्रदेश के ज्यादातर हिस्से में तेलगू बोली जाती है, जो इंडो-युरोपीय भाषा परिवार का ही हिस्सा है । लेकिन उसके दक्षिण के राज्य में बोली जाने वाली भाषा तमिल की उत्पत्ति भी राज बनी हुई है ।
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