हमारा भूमण्डल
कचरा : अब हमारी पैतृक सम्पत्ति
एंड्रयु लाम
अमेरिका में ४० प्रतिशत भोजन की कीमत करीब १६५ अरब डॉलर बैठती है । वैसे सामान्य भाषा में कहें तो ४ लोगों का अमेरिकी परिवार प्रतिवर्ष करीब १,१८,००० रूपए का खाना कचरे में फेंकता है । इस प्रवृत्ति ने पूरी मानव सभ्यता के लिये अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है ।
बचपन में मैं सुपर बाजार के कूड़ेदान से उठाया गया खाना खाता था । ७० के दशक के मध्य में हम पहली बार एक शरणार्थी की तरह वियतनाम से अमेरिका में प्रविष्ठ हुए थे और मेरे सबसे बड़े भाई को घर के पास एक सुपर बाजार में काम मिल गया था । उसे दिए गए कई कामों में से एक जो उसे विशेष रूप से अरूचिकर लगता था । वह था रात में ऐसे भोज्य पदार्थो को कूड़ेदान में फेंकना, जिनकी खाने की तिथि निकल गई हो और इसके बाद उन पर क्लोरॉक्स नामक एक रसायन का छिड़काव करना, जिससे कि कचरा बीनने वाले एवं गरीब निराश हो ।
बिना भूले वह अपने साथियों को रात के अंधेरे में बुलाता था और उस बचे हुए खाने - जिनमें बिस्कुटों के सीलबंद डिब्बे, खाने की जमी हुई ट्रे, टूना मछली के डिब्बे, आटे की थैलियां और खाने की नाना प्रकार की वस्तुएं शामिल थी, को हमारे द्वारा निकाल दिए जाने के बाद वह उन पर रसायन डाल देता था । एक दिन सुपर बाजार के प्रबंधक ने उसे रंगे हाथोंपकड़ लिया और वहां पर एक ताला बंद कचरा पेटी लगा दी । इसके बाद मेरे भाई को नौकरी से हाथ धोना पड़ा ।
बदस्तूर जारी - जहां तक कचरे की बात है तब से अब तक स्थिति में अधिक परिवर्तन नहीं आया है । बल्कि स्थितियां और बदत्तर हुई हैं । यह सच है कि अमेरिकी वस्तुआें का पुनर्उत्पाद (रिसायकलिंग) करते हैं । हम हरियाली और धु्रवीय भालुआें की बचाने की बात भी करते है । लेकिन अमेरिकी पहले की तरह बर्बादी करने वाले बने हुए हैं । प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद (एनआरडीसी) द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार औसत अमेरिकी नागरिक दक्षिण पूर्व एशिया के नागरिकों के मुकाबले १० गुना ज्यादा भोजन की बर्बादी करते हैं । यह १९७० के दशक में अमेरिकी नागरिकों द्वारा की जा रही बर्बादी से ५० प्रतिशत अधिक है । शोध में पाया गया कि हम हमारे भोजन का ४० प्रतिशत फेंक देते है । इसकी प्रतिवर्ष की अनुमानित कीमत करीब १६५ अरब डॉलर (एक डॉलर - ५३ रू.) होती है । इस लंबी मंदी के दौर में भी गणना करें तो औसतन चार लोगों का परिवार प्रतिवर्ष २२०० डॉलर (१,१८,००० रू.) मूल्य के बराबर का भोजन फेंक देता है । इसके अन्य विपरीत प्रभाव भी है । जैसा कि अमेरिका में गत तीस वर्षो में कचरे की मात्रा दुगनी हुई है ।
अनुमानत: अमेरिका के ८० प्रतिशत उत्पादों को एक बार प्रयोग करने के बाद फेंक दिया जाता है, जबकि सभी प्रकार के प्लास्टिक के ९५ प्रतिशत, कांच के बर्तनों के ७५ प्रतिशत एवं एल्यूमिनियम पेय पदार्थ डिब्बों के ५० प्रतिशत का पुनचर्क्रण (रिसायकलिंग) होता ही नहीं है। इसके बजाय या तो इन्हें जला दिया जाता है या गाड़ दिया जाता है ।
ग्रहीय कचरा - अमेरिका में विश्व की कुल जनसंख्या का महज ५ प्रतिशत ही निवास करता है जबकि वह विश्व ऊर्जा संसाधनों के ३० प्रतिशत से ज्यादा का उपभोग करता है और विश्व में पैदा होने वाले जहरीले कचरे में से ७० प्रतिशत अमेरिका में ही उत्सर्जित होता है । ग्लोबल अलायंस फॉर इनसिनेरेटर ऑल्टरनेटिव (वैकल्पिक भस्मक का वैश्विक संगठन) का कहना है कि यदि हमारे ग्रह पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अमेरिका की दर से उपभोग करने लगे तो हमें अपने उपभोग को पूरा करने के लिए ३ से ५ अतिरिक्त ग्रहों की आवश्यकता पड़ेगी ।
अधिक समय नहीं बीता है जबकि मितव्ययता एक नैतिक कार्य माना जाता था । लेकिन अब हमारी दो तिहाई अर्थव्यवस्था उपभोग पर आधारित है । हम ऐसे युग में रह रहे है, जिसमें ग्लेशियर पिघल रहे है एवं बढ़ता समुद्री जलस्तर, धु्रवीय भालू डूब रहे हैं, मेढ़क महामारीकी रफ्तार से खत्म हो रहे हैं, कोरल गायब हो रहे है और वनों के साथ-साथ हमारी जैव विविधता भी लुप्त् हो रही है । हम बढ़ते वैश्विक तापमान के युग में रह रहे हैं । जहां तूफान हमारे शहरों और नगरों को तहस-नहस कर रहे हैं और हमारी जीवन रहने लायक ही नहीं बच पा रहा है । इसने हमारे ग्रह पर एक अभूतपूर्व संकट खड़ा कर दिया है ।
प्रसिद्ध लेखक डेविड सुजुकी का कहना है कि जब अर्थव्यवस्था का अस्तित्व उपभोग पर आश्रित हो जाता है तो हम कभी नहीं पूछते कि इसकी अधिकतम सीमा क्या है ? हमें इन सबकी आवश्यकता क्यों है ? और क्या यह हमें और आनंदित कर रही है ? हमारे व्यक्तिगत उपभोग के पर्यावरणीय, सामाजिक एवं आध्यात्मिक परिणाम सामने आते है । अब हमारी जीवनशैली संबंधी धारणाआें के पुन: परीक्षण का समय आ गया है । तूफान केटरीना के बाद अमेरिकियों ने अधिक संख्या में इन सवालों को पूछना आरंभ कर दिया है । लेकिन उपभोक्तावाद एक ताकतवर शक्ति है और इसने अत्यधिक कुशग्रता से इसे विज्ञापन के माध्यम से अमेरिकी सपने की संज्ञा दे दी है, जिससे बहुत कम लोग उबर पाते हैं । उपभोक्ता द्वारा ही हमारी अर्थव्यवस्था के ७० प्रतिशत से अधिक व्यय किया जाता है । हम जानते हैं कि परिवर्तन की आवश्यकता है । परन्तु मोटापे के शिकार अनेक व्यक्तियों की तरह जो कि डाइटिंग एवं कसरत तो करना चाहते हैं ठीक उसी तरह एक देश की तरह हम भी इस आदत को छोड़ नहीं पा रहे हैं ।
कचरा हमारे युग की पैतृक सम्पत्ति बन गया है । यह सबसे बड़ा मानव निर्मित ढांचा है । यह चीन की दीवार की तरह है । वर्तमान में सबसे बड़ा मानव निर्मित ढांचा, पूर्वी महान कचरा क्षेत्र (ईस्टर्न ग्रेट ेगारबेज पेच) है । इसमें केलिफोर्निया एवं हवाई के मध्य समुद्र में प्लासिटक का विशाल वलयाकार बना हुआ है । कुछ वैज्ञानिकोंका मानना है कि इसका आकार टेक्सास प्रांत के बराबर है ।
शरणार्थी से खरीदी की सनक तक - मेरा परिवार एवं रिश्तेदारों ने स्वयं शरणार्थी के रूप में शुरूआत की थी और आज ऐसा मध्यमवर्गीय अमेरिकी बन गये हैं, और कई बार प्रतीत होता है कि उनका ध्येय भी सनक तक खरीददारी का हो गया है ।
नवीनतम तकनीक, फैशन की नवीनतम धारा, नई से नई कारें, सर्वश्रेष्ठ लेपटॉप, नवीनतम आई पेड एवं आई फोन, हमारे पास ये सबकुछ है । और हां, हालांकि मैं मितव्ययी होने का प्रयास करता हॅू लेकिन मैं उसी समीकरण का हिस्सा हॅू । डिनर पार्टी में यदि जितना मैं खा सकता हॅू उससे ज्यादा परोस दिया जाता है तो मैं अच्छा खाना भी फेंक देता हॅू ।
मेरे पास भी नवीनतम तकनीकें हैं और मैं इन्हीं आंकड़ों का हिस्सा हॅू । वैसे में इस तथ्य से वाकिफ हॅू कि आज मुख्यधारा के अमेरिकी ने सोचना प्रारंभ कर दिया है कि यदि सभी हमारे तरह का बनना चाहेंगे तो मौसम पर इसके क्या सीधे परिणाम पड़ेगे ? चीन से लेकर मुम्बई, केपटाउन से लेकर रियो डी जेनेरियो तक सभी अमेरिकी शैली का बेहतर जीवन चाहते हैं । हमारी सामूहिक इच्छाएं धराशायी होने के कगार पर पहुंचकर पारिस्थितिकी पर और अधिक दबाव डाल रही है ।
सेनफ्रांसिस्को में अपने घर वापस लौटते हुए मैने देखा कि दो बूढ़ी चीनी महिलाएं मेरे घर के पास स्थित रेस्टोरेंट में पड़े एल्युमिनियम के डब्बों एवं प्लास्टिक की बोतलों को तलाश रही थी । एकाएक एक कर्मचारी बाहर आया और उसने चिल्लाकर बूढ़ी महिलाआें को ऐसा करने से रोका । मैं गाली देती उन दोनों महिलाआें को आड़ में छुपते देखता रहा और मुझे अपना दीन-हीन अतीत याद हो आया । मुझे भय है कि जिस तरह से सब कुछ घटित हो रहा है और वैश्विक तापमान में वृद्धि से हमारी सभ्यता खतरे मेंे पड़ गई है, ऐसे में ये दो बूढ़ी कचरा बीनने वाली हमारे अपने पूर्व भविष्य का ही प्रतिनिधित्व कर रही है ।
कचरा : अब हमारी पैतृक सम्पत्ति
एंड्रयु लाम
अमेरिका में ४० प्रतिशत भोजन की कीमत करीब १६५ अरब डॉलर बैठती है । वैसे सामान्य भाषा में कहें तो ४ लोगों का अमेरिकी परिवार प्रतिवर्ष करीब १,१८,००० रूपए का खाना कचरे में फेंकता है । इस प्रवृत्ति ने पूरी मानव सभ्यता के लिये अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है ।
बचपन में मैं सुपर बाजार के कूड़ेदान से उठाया गया खाना खाता था । ७० के दशक के मध्य में हम पहली बार एक शरणार्थी की तरह वियतनाम से अमेरिका में प्रविष्ठ हुए थे और मेरे सबसे बड़े भाई को घर के पास एक सुपर बाजार में काम मिल गया था । उसे दिए गए कई कामों में से एक जो उसे विशेष रूप से अरूचिकर लगता था । वह था रात में ऐसे भोज्य पदार्थो को कूड़ेदान में फेंकना, जिनकी खाने की तिथि निकल गई हो और इसके बाद उन पर क्लोरॉक्स नामक एक रसायन का छिड़काव करना, जिससे कि कचरा बीनने वाले एवं गरीब निराश हो ।
बिना भूले वह अपने साथियों को रात के अंधेरे में बुलाता था और उस बचे हुए खाने - जिनमें बिस्कुटों के सीलबंद डिब्बे, खाने की जमी हुई ट्रे, टूना मछली के डिब्बे, आटे की थैलियां और खाने की नाना प्रकार की वस्तुएं शामिल थी, को हमारे द्वारा निकाल दिए जाने के बाद वह उन पर रसायन डाल देता था । एक दिन सुपर बाजार के प्रबंधक ने उसे रंगे हाथोंपकड़ लिया और वहां पर एक ताला बंद कचरा पेटी लगा दी । इसके बाद मेरे भाई को नौकरी से हाथ धोना पड़ा ।
बदस्तूर जारी - जहां तक कचरे की बात है तब से अब तक स्थिति में अधिक परिवर्तन नहीं आया है । बल्कि स्थितियां और बदत्तर हुई हैं । यह सच है कि अमेरिकी वस्तुआें का पुनर्उत्पाद (रिसायकलिंग) करते हैं । हम हरियाली और धु्रवीय भालुआें की बचाने की बात भी करते है । लेकिन अमेरिकी पहले की तरह बर्बादी करने वाले बने हुए हैं । प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद (एनआरडीसी) द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार औसत अमेरिकी नागरिक दक्षिण पूर्व एशिया के नागरिकों के मुकाबले १० गुना ज्यादा भोजन की बर्बादी करते हैं । यह १९७० के दशक में अमेरिकी नागरिकों द्वारा की जा रही बर्बादी से ५० प्रतिशत अधिक है । शोध में पाया गया कि हम हमारे भोजन का ४० प्रतिशत फेंक देते है । इसकी प्रतिवर्ष की अनुमानित कीमत करीब १६५ अरब डॉलर (एक डॉलर - ५३ रू.) होती है । इस लंबी मंदी के दौर में भी गणना करें तो औसतन चार लोगों का परिवार प्रतिवर्ष २२०० डॉलर (१,१८,००० रू.) मूल्य के बराबर का भोजन फेंक देता है । इसके अन्य विपरीत प्रभाव भी है । जैसा कि अमेरिका में गत तीस वर्षो में कचरे की मात्रा दुगनी हुई है ।
अनुमानत: अमेरिका के ८० प्रतिशत उत्पादों को एक बार प्रयोग करने के बाद फेंक दिया जाता है, जबकि सभी प्रकार के प्लास्टिक के ९५ प्रतिशत, कांच के बर्तनों के ७५ प्रतिशत एवं एल्यूमिनियम पेय पदार्थ डिब्बों के ५० प्रतिशत का पुनचर्क्रण (रिसायकलिंग) होता ही नहीं है। इसके बजाय या तो इन्हें जला दिया जाता है या गाड़ दिया जाता है ।
ग्रहीय कचरा - अमेरिका में विश्व की कुल जनसंख्या का महज ५ प्रतिशत ही निवास करता है जबकि वह विश्व ऊर्जा संसाधनों के ३० प्रतिशत से ज्यादा का उपभोग करता है और विश्व में पैदा होने वाले जहरीले कचरे में से ७० प्रतिशत अमेरिका में ही उत्सर्जित होता है । ग्लोबल अलायंस फॉर इनसिनेरेटर ऑल्टरनेटिव (वैकल्पिक भस्मक का वैश्विक संगठन) का कहना है कि यदि हमारे ग्रह पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अमेरिका की दर से उपभोग करने लगे तो हमें अपने उपभोग को पूरा करने के लिए ३ से ५ अतिरिक्त ग्रहों की आवश्यकता पड़ेगी ।
अधिक समय नहीं बीता है जबकि मितव्ययता एक नैतिक कार्य माना जाता था । लेकिन अब हमारी दो तिहाई अर्थव्यवस्था उपभोग पर आधारित है । हम ऐसे युग में रह रहे है, जिसमें ग्लेशियर पिघल रहे है एवं बढ़ता समुद्री जलस्तर, धु्रवीय भालू डूब रहे हैं, मेढ़क महामारीकी रफ्तार से खत्म हो रहे हैं, कोरल गायब हो रहे है और वनों के साथ-साथ हमारी जैव विविधता भी लुप्त् हो रही है । हम बढ़ते वैश्विक तापमान के युग में रह रहे हैं । जहां तूफान हमारे शहरों और नगरों को तहस-नहस कर रहे हैं और हमारी जीवन रहने लायक ही नहीं बच पा रहा है । इसने हमारे ग्रह पर एक अभूतपूर्व संकट खड़ा कर दिया है ।
प्रसिद्ध लेखक डेविड सुजुकी का कहना है कि जब अर्थव्यवस्था का अस्तित्व उपभोग पर आश्रित हो जाता है तो हम कभी नहीं पूछते कि इसकी अधिकतम सीमा क्या है ? हमें इन सबकी आवश्यकता क्यों है ? और क्या यह हमें और आनंदित कर रही है ? हमारे व्यक्तिगत उपभोग के पर्यावरणीय, सामाजिक एवं आध्यात्मिक परिणाम सामने आते है । अब हमारी जीवनशैली संबंधी धारणाआें के पुन: परीक्षण का समय आ गया है । तूफान केटरीना के बाद अमेरिकियों ने अधिक संख्या में इन सवालों को पूछना आरंभ कर दिया है । लेकिन उपभोक्तावाद एक ताकतवर शक्ति है और इसने अत्यधिक कुशग्रता से इसे विज्ञापन के माध्यम से अमेरिकी सपने की संज्ञा दे दी है, जिससे बहुत कम लोग उबर पाते हैं । उपभोक्ता द्वारा ही हमारी अर्थव्यवस्था के ७० प्रतिशत से अधिक व्यय किया जाता है । हम जानते हैं कि परिवर्तन की आवश्यकता है । परन्तु मोटापे के शिकार अनेक व्यक्तियों की तरह जो कि डाइटिंग एवं कसरत तो करना चाहते हैं ठीक उसी तरह एक देश की तरह हम भी इस आदत को छोड़ नहीं पा रहे हैं ।
कचरा हमारे युग की पैतृक सम्पत्ति बन गया है । यह सबसे बड़ा मानव निर्मित ढांचा है । यह चीन की दीवार की तरह है । वर्तमान में सबसे बड़ा मानव निर्मित ढांचा, पूर्वी महान कचरा क्षेत्र (ईस्टर्न ग्रेट ेगारबेज पेच) है । इसमें केलिफोर्निया एवं हवाई के मध्य समुद्र में प्लासिटक का विशाल वलयाकार बना हुआ है । कुछ वैज्ञानिकोंका मानना है कि इसका आकार टेक्सास प्रांत के बराबर है ।
शरणार्थी से खरीदी की सनक तक - मेरा परिवार एवं रिश्तेदारों ने स्वयं शरणार्थी के रूप में शुरूआत की थी और आज ऐसा मध्यमवर्गीय अमेरिकी बन गये हैं, और कई बार प्रतीत होता है कि उनका ध्येय भी सनक तक खरीददारी का हो गया है ।
नवीनतम तकनीक, फैशन की नवीनतम धारा, नई से नई कारें, सर्वश्रेष्ठ लेपटॉप, नवीनतम आई पेड एवं आई फोन, हमारे पास ये सबकुछ है । और हां, हालांकि मैं मितव्ययी होने का प्रयास करता हॅू लेकिन मैं उसी समीकरण का हिस्सा हॅू । डिनर पार्टी में यदि जितना मैं खा सकता हॅू उससे ज्यादा परोस दिया जाता है तो मैं अच्छा खाना भी फेंक देता हॅू ।
मेरे पास भी नवीनतम तकनीकें हैं और मैं इन्हीं आंकड़ों का हिस्सा हॅू । वैसे में इस तथ्य से वाकिफ हॅू कि आज मुख्यधारा के अमेरिकी ने सोचना प्रारंभ कर दिया है कि यदि सभी हमारे तरह का बनना चाहेंगे तो मौसम पर इसके क्या सीधे परिणाम पड़ेगे ? चीन से लेकर मुम्बई, केपटाउन से लेकर रियो डी जेनेरियो तक सभी अमेरिकी शैली का बेहतर जीवन चाहते हैं । हमारी सामूहिक इच्छाएं धराशायी होने के कगार पर पहुंचकर पारिस्थितिकी पर और अधिक दबाव डाल रही है ।
सेनफ्रांसिस्को में अपने घर वापस लौटते हुए मैने देखा कि दो बूढ़ी चीनी महिलाएं मेरे घर के पास स्थित रेस्टोरेंट में पड़े एल्युमिनियम के डब्बों एवं प्लास्टिक की बोतलों को तलाश रही थी । एकाएक एक कर्मचारी बाहर आया और उसने चिल्लाकर बूढ़ी महिलाआें को ऐसा करने से रोका । मैं गाली देती उन दोनों महिलाआें को आड़ में छुपते देखता रहा और मुझे अपना दीन-हीन अतीत याद हो आया । मुझे भय है कि जिस तरह से सब कुछ घटित हो रहा है और वैश्विक तापमान में वृद्धि से हमारी सभ्यता खतरे मेंे पड़ गई है, ऐसे में ये दो बूढ़ी कचरा बीनने वाली हमारे अपने पूर्व भविष्य का ही प्रतिनिधित्व कर रही है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें