सामयिक
क्या सारे भारतीय भ्रष्टाचारी है ?
न्या. चन्द्रशेखर धर्माधिकारी
दुनियाभर में भारत की छवि ऐसी बन रही है कि मानो सारा देश और नागरिक समाज भ्रष्टाचार से ओतप्रोत हैं । लेकिन देश की यह छवि कितनी सच्ची हैं और कितनी झूठी है, इसे कोन तय कर सकता है ?
पत्रकारिता के क्षेत्र में जो जो अपवाद या असाधारण घटना होती है, उसी की खबरें छपती हैं । अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारत में सदाचार या ईमानदारी की ही खबर छपनी चाहिये, क्योंकि कहीं अब सामान्य नियम नहीं रहा । अब तो भ्रष्टाचार, बेईमानी, अन्याय या शोषण ही है, जो राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन का सामान्य नियम बन गया है । सारा देश, सारे भारतीय भ्रष्टाचारी ही है । इसलिए वही सामान्य नियम है । जो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चल रहा है, उससे मैं बरसों पूर्व जुड़ा था ।
असल में देखा जाए तो अण्णा हजारे ने जो आंदोलन खड़ा किया उसके पीछे की प्रेरणापुंज थे-स्वतंत्रजा सेनानी अच्युतरावजी पटवर्धन । जो आदर्श ग्राम योजना अभी अमल में लाई हे, उसकी भी प्रेरणा अच्युतरावजी की थी । दिल्ली में रामलीला मैदान पर भ्रष्टाचार समाप्त् करने के लिए जनलोकपाल की मांग सामने आई तब मैंने उस आंदोलन के प्रमुख व्यक्तियों से सवाल पूछा था कि आपके सपने का जनलोकपाल बन सके ऐसे एक भी व्यक्ति का नाम आप अवगत करा सकते है क्या ? क्योंकि यह जनलोकपाल ऐसा होना चाहिए, जो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश से लेकर सबके खिलाफ कार्यवाही कर सके । उनके काम पर निगरानी रखे । वे असमंजस मेंपड़ गये । फिर उन्होंने मुझे पूछा कि गांधीजी ऐसे व्यक्ति नहीं है क्या ? तब मैं असमंजस मेंपड़ गया । क्योंकि ऐसा सशक्त व्यक्ति, जो यह काम कर सकेगा मेरे ध्यान में नहीं आया । जो कुछ नाम प्रथमदृष्टा सामने आये, उनकी उम्र तथा स्वास्थ्य, उन्हें यह काम करने के लिए ससक्त नहीं मान सकता और आज तो तथाकथित गांधीजनों की संस्थाएं दुर्भाग्य से अदालतबाजी और सम्पत्ति के जतन, संवर्द्धन और संरक्षण में ही व्यस्त है ।
दादा धर्माधिकारी ने १५ मई १९६८ को रांची में आयोजित गांधीजनों के शिविर में एक भाषण में कहा था कि हम पार्टियों को अपने में कोड ऑफ कण्डक्ट यानी आचार संहिता बनाना चाहिए । एक-दूसरे से ईमानदारी से व्यवहार करना चाहिए । लोग हमसे पूछ सकते है कि आपका क्या हाल है ? आपकी रचनात्मक संस्थाआें पर तो आये दिन गबन के आरोप हो रहे है । आपके भण्डारों में तो खादी स्टॉक-शॉर्ट (घट) हो जाते है । तो कौन-सी आपकी ऐसी संस्था है, जिसे हम लोकसत्ता के लिए नमूना माने ? किसी भी संस्था को ऐसा नहीं मान सकते । आपकी सारी की सारी संस्थाएं कलुषित और भ्रष्ट हो गई है । हम जो लोग गांधी-विनोबा को मानने वाले है, वे दुनियाभर के पापों का ही ध्यान करते है । तो मुझे कुछ ऐसा मालूम होता है कि हम उन पापों के साथ सम्बद्ध होने वाले है । असल में हमारे आशीर्वाद में भी शक्ति नहीं और शाप में भी शक्ति नहीं है । दादा का यह भाषण गांधीजनों को ही आत्मचिन्तन करने के लिए किया गया था । क्या जनलोकपाल अर्थात् जिस तरह का हम या लोग चाहते है, ऐसा व्यक्ति भारत में हमारे बीच है ? यही तो यक्ष प्रश्न है ? क्योंकि सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप किये जा रहे है ।
धार्मिक क्षेत्र में ऐसा व्यक्ति ढूंढने जाए तो करीब-करीब सारे के सारे धार्मिक ट्रस्ट और उनको चलाने वाले तथाकथित धर्मपुरूष भी इसी पापों में डूबे हुए है । तब ऐसा जनलोकपाल कहां से लाया जाएं या आएगा ? यह विचारणीय है । मैंने न्यायपालिका में वकील या न्यायमूर्ति के नाते आधी जिंदगी बिताई है । मैंने शकंराचार्य से इस देश के श्रेष्ठतम, नेताआें और महानुभावों के मामले चलाए है । इन्होंने अदालत में गीता, कुरान या बाइबल जैसे धर्मग्रंथों पर हाथ रखकर सच कहने की या सच के सिवा कुछ न कहने की शपथ ली । लेकिन इनमेंसे एक ने भी सौ फीसदी सत्य कथन नहीं कहा । सौ फीसदी सत्य कथन करने वाला गवाहदार मैंने नहीं देखा । ऐसी स्थिति में अपेक्षित जनलोकपाल कहां से लाएंगे ?
आज तो तथाकथित धार्मिक देश की यह स्थिति है कि ऐसा एक भी व्यक्ति बड़ी से बड़ी दूरबीन लेकर ढूंढने निकले तो भी मुश्किल हैं, जिस पर आरोप नहीं लगे है, या नहीं लगाये जा सकते । आज दुनिया में भारत की ऐसी छवि बनी है कि मानो सारा देश और सारे भारतीय भ्रष्ट हैं । देश की यह छवि कहां तक सच्ची या झूठी है यह कौन तय करेगा ? जब सारे भारतीय ही भ्रष्टाचारी है और ऐसा एक भी क्षेत्र, संस्था या प्रणाली नहीं है जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हो । ईसा मसीह ने प्रश्न पूछा था कि जिसने कभी कोई पाप या कुकर्म नहीं किया है, वही कुकर्मी को पत्थर मारे । तब भीड़ में से एक भी व्यक्ति आगे नहीं आया । यही आज देश की स्थिति है । यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है ।
ग्रीक साधु डायोजिनिस अपने ढंग के अनोखे व्यक्ति थे । एक बार दिन के सूर्य प्रकाश मेंलालटेन लेकर निकल पड़े । उनके एक परिचित व्यक्ति ने पूछा, हे महातमन् यह कौन-सा नया तरीका है ? इस सूर्य केे प्रकाश में यह लालटेन क्यों ? डायोजिनिस ने धीमे तथा शांतिपूर्वक कहा : मैं सज्जन की खोज में निकला हूं । एथेन्स के लोगों को सूर्यप्रकाश में भी कही सज्जन व्यक्ति नहीं दिखाई देता है । सब एक दूसरे की कमियां और दोष ही निकालते रहते है । अत: मैंने सोचा कि शायद लालटेन के उजाले में ही कोई सज्जन मिल जाए । यही स्थिति आज भारत की है । यहां किसी को भी सद्चरित्र या सज्जन व्यक्ति नहीं दिखाई दे रहा है । सारे के सारे व्यक्ति और संस्थाएं भ्रष्टाचार से लिप्त् है, ऐसे रोज आरोप-प्रत्यारोप हो रहे है । मंदिर में मच्छर हो गये, इसलिए मंदिर को ही जलाकर नष्ट-भ्रष्ट क रने के प्रयोग हो रहे है ।
अब हमारे सामने यही यक्ष प्रश्न है कि जनलोकपाल कानून पारित हो भी जाए तो जैसी अपेक्षा है वैसा जनलोकपाल कहां से लाये ? कौन ऐसा जनलोकपाल बन सकेगा ? क्या हमारे पास इसका उत्तर है । जो आरोप कर रहे है वे भी इसका उत्तर नहींदे पा रहे है । कम से कम महादेव की पिंडी पर बिच्छू बैठा है और उसे जूता उठाकर मारने के सिवा अन्य पर्याय नहींहै । ऐसे वक्त जूते का वार भगवान की पिंडी पर नहीं होगा, इतना विवेक तो रखना जरूरी है । वरना सारा भारत और उसकी त्याग संस्कृति ही नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगी । यही हमारी वेदना है । अब तो कोई भी निर्णय ले तो भी कोई ना कोई भ्रष्टाचार का आरोप करेगा ही यह लगभग तय है, इसलिए अब शासकीय अधिकारियों ने निर्णय लेना ही बन्द कर दिया है और सारी व्यवस्था ठप्प हो गई है । क्या हम यही चाहते है ?
क्या सारे भारतीय भ्रष्टाचारी है ?
न्या. चन्द्रशेखर धर्माधिकारी
दुनियाभर में भारत की छवि ऐसी बन रही है कि मानो सारा देश और नागरिक समाज भ्रष्टाचार से ओतप्रोत हैं । लेकिन देश की यह छवि कितनी सच्ची हैं और कितनी झूठी है, इसे कोन तय कर सकता है ?
पत्रकारिता के क्षेत्र में जो जो अपवाद या असाधारण घटना होती है, उसी की खबरें छपती हैं । अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारत में सदाचार या ईमानदारी की ही खबर छपनी चाहिये, क्योंकि कहीं अब सामान्य नियम नहीं रहा । अब तो भ्रष्टाचार, बेईमानी, अन्याय या शोषण ही है, जो राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन का सामान्य नियम बन गया है । सारा देश, सारे भारतीय भ्रष्टाचारी ही है । इसलिए वही सामान्य नियम है । जो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चल रहा है, उससे मैं बरसों पूर्व जुड़ा था ।
असल में देखा जाए तो अण्णा हजारे ने जो आंदोलन खड़ा किया उसके पीछे की प्रेरणापुंज थे-स्वतंत्रजा सेनानी अच्युतरावजी पटवर्धन । जो आदर्श ग्राम योजना अभी अमल में लाई हे, उसकी भी प्रेरणा अच्युतरावजी की थी । दिल्ली में रामलीला मैदान पर भ्रष्टाचार समाप्त् करने के लिए जनलोकपाल की मांग सामने आई तब मैंने उस आंदोलन के प्रमुख व्यक्तियों से सवाल पूछा था कि आपके सपने का जनलोकपाल बन सके ऐसे एक भी व्यक्ति का नाम आप अवगत करा सकते है क्या ? क्योंकि यह जनलोकपाल ऐसा होना चाहिए, जो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश से लेकर सबके खिलाफ कार्यवाही कर सके । उनके काम पर निगरानी रखे । वे असमंजस मेंपड़ गये । फिर उन्होंने मुझे पूछा कि गांधीजी ऐसे व्यक्ति नहीं है क्या ? तब मैं असमंजस मेंपड़ गया । क्योंकि ऐसा सशक्त व्यक्ति, जो यह काम कर सकेगा मेरे ध्यान में नहीं आया । जो कुछ नाम प्रथमदृष्टा सामने आये, उनकी उम्र तथा स्वास्थ्य, उन्हें यह काम करने के लिए ससक्त नहीं मान सकता और आज तो तथाकथित गांधीजनों की संस्थाएं दुर्भाग्य से अदालतबाजी और सम्पत्ति के जतन, संवर्द्धन और संरक्षण में ही व्यस्त है ।
दादा धर्माधिकारी ने १५ मई १९६८ को रांची में आयोजित गांधीजनों के शिविर में एक भाषण में कहा था कि हम पार्टियों को अपने में कोड ऑफ कण्डक्ट यानी आचार संहिता बनाना चाहिए । एक-दूसरे से ईमानदारी से व्यवहार करना चाहिए । लोग हमसे पूछ सकते है कि आपका क्या हाल है ? आपकी रचनात्मक संस्थाआें पर तो आये दिन गबन के आरोप हो रहे है । आपके भण्डारों में तो खादी स्टॉक-शॉर्ट (घट) हो जाते है । तो कौन-सी आपकी ऐसी संस्था है, जिसे हम लोकसत्ता के लिए नमूना माने ? किसी भी संस्था को ऐसा नहीं मान सकते । आपकी सारी की सारी संस्थाएं कलुषित और भ्रष्ट हो गई है । हम जो लोग गांधी-विनोबा को मानने वाले है, वे दुनियाभर के पापों का ही ध्यान करते है । तो मुझे कुछ ऐसा मालूम होता है कि हम उन पापों के साथ सम्बद्ध होने वाले है । असल में हमारे आशीर्वाद में भी शक्ति नहीं और शाप में भी शक्ति नहीं है । दादा का यह भाषण गांधीजनों को ही आत्मचिन्तन करने के लिए किया गया था । क्या जनलोकपाल अर्थात् जिस तरह का हम या लोग चाहते है, ऐसा व्यक्ति भारत में हमारे बीच है ? यही तो यक्ष प्रश्न है ? क्योंकि सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप किये जा रहे है ।
धार्मिक क्षेत्र में ऐसा व्यक्ति ढूंढने जाए तो करीब-करीब सारे के सारे धार्मिक ट्रस्ट और उनको चलाने वाले तथाकथित धर्मपुरूष भी इसी पापों में डूबे हुए है । तब ऐसा जनलोकपाल कहां से लाया जाएं या आएगा ? यह विचारणीय है । मैंने न्यायपालिका में वकील या न्यायमूर्ति के नाते आधी जिंदगी बिताई है । मैंने शकंराचार्य से इस देश के श्रेष्ठतम, नेताआें और महानुभावों के मामले चलाए है । इन्होंने अदालत में गीता, कुरान या बाइबल जैसे धर्मग्रंथों पर हाथ रखकर सच कहने की या सच के सिवा कुछ न कहने की शपथ ली । लेकिन इनमेंसे एक ने भी सौ फीसदी सत्य कथन नहीं कहा । सौ फीसदी सत्य कथन करने वाला गवाहदार मैंने नहीं देखा । ऐसी स्थिति में अपेक्षित जनलोकपाल कहां से लाएंगे ?
आज तो तथाकथित धार्मिक देश की यह स्थिति है कि ऐसा एक भी व्यक्ति बड़ी से बड़ी दूरबीन लेकर ढूंढने निकले तो भी मुश्किल हैं, जिस पर आरोप नहीं लगे है, या नहीं लगाये जा सकते । आज दुनिया में भारत की ऐसी छवि बनी है कि मानो सारा देश और सारे भारतीय भ्रष्ट हैं । देश की यह छवि कहां तक सच्ची या झूठी है यह कौन तय करेगा ? जब सारे भारतीय ही भ्रष्टाचारी है और ऐसा एक भी क्षेत्र, संस्था या प्रणाली नहीं है जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हो । ईसा मसीह ने प्रश्न पूछा था कि जिसने कभी कोई पाप या कुकर्म नहीं किया है, वही कुकर्मी को पत्थर मारे । तब भीड़ में से एक भी व्यक्ति आगे नहीं आया । यही आज देश की स्थिति है । यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है ।
ग्रीक साधु डायोजिनिस अपने ढंग के अनोखे व्यक्ति थे । एक बार दिन के सूर्य प्रकाश मेंलालटेन लेकर निकल पड़े । उनके एक परिचित व्यक्ति ने पूछा, हे महातमन् यह कौन-सा नया तरीका है ? इस सूर्य केे प्रकाश में यह लालटेन क्यों ? डायोजिनिस ने धीमे तथा शांतिपूर्वक कहा : मैं सज्जन की खोज में निकला हूं । एथेन्स के लोगों को सूर्यप्रकाश में भी कही सज्जन व्यक्ति नहीं दिखाई देता है । सब एक दूसरे की कमियां और दोष ही निकालते रहते है । अत: मैंने सोचा कि शायद लालटेन के उजाले में ही कोई सज्जन मिल जाए । यही स्थिति आज भारत की है । यहां किसी को भी सद्चरित्र या सज्जन व्यक्ति नहीं दिखाई दे रहा है । सारे के सारे व्यक्ति और संस्थाएं भ्रष्टाचार से लिप्त् है, ऐसे रोज आरोप-प्रत्यारोप हो रहे है । मंदिर में मच्छर हो गये, इसलिए मंदिर को ही जलाकर नष्ट-भ्रष्ट क रने के प्रयोग हो रहे है ।
अब हमारे सामने यही यक्ष प्रश्न है कि जनलोकपाल कानून पारित हो भी जाए तो जैसी अपेक्षा है वैसा जनलोकपाल कहां से लाये ? कौन ऐसा जनलोकपाल बन सकेगा ? क्या हमारे पास इसका उत्तर है । जो आरोप कर रहे है वे भी इसका उत्तर नहींदे पा रहे है । कम से कम महादेव की पिंडी पर बिच्छू बैठा है और उसे जूता उठाकर मारने के सिवा अन्य पर्याय नहींहै । ऐसे वक्त जूते का वार भगवान की पिंडी पर नहीं होगा, इतना विवेक तो रखना जरूरी है । वरना सारा भारत और उसकी त्याग संस्कृति ही नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगी । यही हमारी वेदना है । अब तो कोई भी निर्णय ले तो भी कोई ना कोई भ्रष्टाचार का आरोप करेगा ही यह लगभग तय है, इसलिए अब शासकीय अधिकारियों ने निर्णय लेना ही बन्द कर दिया है और सारी व्यवस्था ठप्प हो गई है । क्या हम यही चाहते है ?
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