जन जीवन
गुटखा प्रतिबंध से मचा बवाल
अंकुर पालीवाल
पिछले कुछ समय से सिगरेट उद्योग व गुटखा उद्योग में यह लड़ाई चल रही है कि कौन सा तम्बाकू उत्पाद मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए कम हानिकारक है । इन उद्योगोंने एक-दूसरे के खिलाफ विज्ञापनों के जरिए कमर कस ली है तथा भ्रामक स्थितियां पैदा की जा रही हैं । पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार लाख टके की बात तो यह है कि सिगरेट हो या गुटखा पाउच, दोनों ही मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकर है ।
अगस्त २०११ में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथारिटी एक्ट के चलते कोई १४ राज्यों ने गुटखा पर प्रतिबंध लगाया क्योंकि गुटखे को देशभर में होने वाले ८० प्रतिशत मुंह के कैंसर की बीमारी के लिये जिम्मेदार माना जाता है । गुटखा उद्योग की तरफ से जारी विज्ञापन कहते हैंकि तंबाकू चबाने पर लगा प्रतिबंध पक्षपात पूर्ण है और उनका सवाल है कि सरकार ने सिगरेट पर प्रतिबंध क्योंनहीं लगाया ?
इन विज्ञापनों ने गुटखा के खिलाफ कार्य कर रहे गैर मुनाफा अभियानों को त्वरित प्रेसवार्ता बुलाने के लिए प्रेरित किया । प्रेस वार्ता में स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रतिनिधि भी सम्मिलित हुए । मंत्रालय के निदेशक अमाल पुष्प ने प्रतिबंध को वाजिब ठहराते हुए कहा कि सरकार ने प्रतिबंध लगाने के लिये गुटखे को इसलिए चुना क्योंकि ज्यादातर लोग गुटखा खाते है । श्री पुष्प ने कहा कि भारत में तंबाकू का सेवन करने वाले २७४.९ मिलियन वयस्कों में से ७५ प्रतिशत लोग धुआरहित तंबाकू का सेवन करते हैं । इसके नुकसान की चपेट मेंआसानी से आ जाने वाले वर्ग, जिसमें महिलाएं और किशोर भी शामिल है, सिगरेट की तुलना में गुटखे का सेवन ज्यादा करत है । ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे २०१० के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि लगभग १८ प्रतिशत महिलाएं धुआंरहित तंबाकू सेवन करती ले रही है, हैं, जबकि सिर्फ ३ प्रतिशत महिलाएं बीड़ी सहित और दूसरे तरीकों से तंबाकू के धुएं का सेवन करती हैं ।
हालांकि जब श्री पुष्प को सिगरेट के बारे में पूछा गया तो वे असहाय नजर आए । उन्होंने कहा मैं मानता हूं कि सिगरेट भी उतनी ही हानिकारक है, लेकिन अभी तक ऐसा विधान नहीं है जिसके तहत इसे प्रतिबंधित किया जा सके । सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट, २००३ के दायरे में सिगरेट और गुटखा दोनों ही आते हैं, लेकिन यह एक्ट सिर्फ तंबाकू उत्पादों को ही विनियमित करता है । गुटखा भी, फ ूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथरिटी एक्ट के अमल मेंआने के बाद ही प्रतिबंधित किया जा सका है । कानून, गुटखा को एक खाद्य उत्पाद मानता है और ऐसी किसी भी खाद्य सामग्री पर प्रतिबंध की बात कहता है जिसमें निकोटीन जैसा हानिकारक पदार्थ है ।
धुआं रहित तम्बाकू संगठन के एक प्रतिनिधि ने आरोप लगाया कि नीतियों में खामियों की आड़ लेकर दरअसल सरकार सिगरेट लॉबी का पक्ष वहीं प्रतिबंध का समर्थन करते हुए एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के जगदीप छोकर का कहना है कि भारतीय सिगरेट बाजार के ८० प्रतिशत हिस्से पर नियंत्रण रखने वाली, आई टी सी लिमिटेड कंपनी, सत्तारूढ़ पार्टी सहित, दूसरे राजनैतिक दलों को चंदा देने वाले बड़े दानदाताआें में से एक हैं । दिल्ली नॉन प्रॉफिट ने अभी हाल ही में राजनैतिक दलों का मिलने वाले चंदे के स्त्रोतों का अध्ययन किया है ।
विज्ञापन में दर्शाये गये कई सारे तथ्यों में से एक यह जथ्य बताता है: गुटखा के एक पाउच में ०.२ ग्राम तंबाकू ह जबकि वहीं एक सिगरेट में ०.६३ ग्राम तंबाकू है । वॉलेन्टरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इण्डिया की कार्यकारी निदेशक भावना मुखोपाध्याय इसे धोखाधड़ी बताती हैं । उनका कहना है कि १ ग्राम से लेकर ३.५ ग्राम तक की साइज वाले गुटखे बाजार में है जिनके मसाले में तंबाकू का प्रतिशत भिन्न-भिन्न है । और तो और गुटखे के मिश्रण के बारे में कोई प्रामाणिक हिसाब भी नहीं है ।
एक और तथ्य यह भी कहता है कि सिगरेट में ४००० केमिकल्स हैं जबकि गुटखा में ३००० केमिकल्स । पब्लिक हेल्थ फॉउण्डेशन ऑफ इण्डिया के हेल्थ प्रमोशन एंड टोबैको कंट्रोल की निदेशक मोनिका अरोरा कहती है कि धुआंरहित तंबाकू में कुछ कम केमिकल्स हो सकते हैं लेकिन उनमें से २८ केमिकल्स ऐसे हैं, जो कैंसरजन्य है । उन्होनें यह भी बताया कि कैंसरजन्य एक ही केमिकल बीमारी, अपंगता और मौत के लिये पर्याप्त् है ।
इन विज्ञापनों का यह भी दावा है कि प्रतिबंध के कारण ४० मिलियन लोगों की रोजी-रोटी छिन गई है । मोनिका अरोरा बताती है कि सरकारी अनुमान के मुताबिक साल २००४-०५ में तंबाकू उद्योग जनित औपचारिक क्षेत्र में ७ मिलियन लोग रोजगार से लगे हुए थे । अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार जोड़कर भी यह ४० मिलियन तक नहीं पहुंच सकता । उन्होनें इस दावे का भी खण्डन किया कि देश में किसान कोई सात लाख हेक्टेयर जमीन पर तंबाकू की पैदावार ले रहे हैं । तंबाकू विकास निदेशालय के मुताबिक धुआंरहित तंबाकू की खेती के लिए इस्तेमाल की जा रही जमीन महज ४००० हेक्टेयर है । सुश्री मुखोपाध्याय कहती है कि अब जब प्रतिबंध के कारण मुनाफा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है तो गुटखा उद्योग रोजी-रोटी के मुद्दे को आगे कर उसकी आड़ ले रहा है ।
आंध्रप्रदेश के सेंट्रल टोबैको रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बताया कि उसी जमीन पर गन्ने, मक्का, धान और कपास की फसल ली जा सकती है, इससे किसानों को वैकल्पिक आजीविका मिल सकती है । योजना आयोग की रिपोर्ट २०१० के मुताबिक गुटखा उद्योग द्वारा जनित सालाना राजस्व १.६२ बिलियन यू एस डालर है, जबकि इसके कारण होने वाली बड़ी बीमारियों के इलाज में होने वाला खर्च ६ गुना ज्यादा है ।
प्रेस वार्ता में श्री पुष्प ने कहा संवैधानिक रूप से सभी राज्यों को प्रतिबंध को लागू करना चाहिए । हमने सभी राज्यों को इसके संबंध में लिखा है पर वे इसमें समय लगा रहे हैं ।
गुटखा प्रतिबंध से मचा बवाल
अंकुर पालीवाल
पिछले कुछ समय से सिगरेट उद्योग व गुटखा उद्योग में यह लड़ाई चल रही है कि कौन सा तम्बाकू उत्पाद मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए कम हानिकारक है । इन उद्योगोंने एक-दूसरे के खिलाफ विज्ञापनों के जरिए कमर कस ली है तथा भ्रामक स्थितियां पैदा की जा रही हैं । पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार लाख टके की बात तो यह है कि सिगरेट हो या गुटखा पाउच, दोनों ही मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकर है ।
अगस्त २०११ में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथारिटी एक्ट के चलते कोई १४ राज्यों ने गुटखा पर प्रतिबंध लगाया क्योंकि गुटखे को देशभर में होने वाले ८० प्रतिशत मुंह के कैंसर की बीमारी के लिये जिम्मेदार माना जाता है । गुटखा उद्योग की तरफ से जारी विज्ञापन कहते हैंकि तंबाकू चबाने पर लगा प्रतिबंध पक्षपात पूर्ण है और उनका सवाल है कि सरकार ने सिगरेट पर प्रतिबंध क्योंनहीं लगाया ?
इन विज्ञापनों ने गुटखा के खिलाफ कार्य कर रहे गैर मुनाफा अभियानों को त्वरित प्रेसवार्ता बुलाने के लिए प्रेरित किया । प्रेस वार्ता में स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रतिनिधि भी सम्मिलित हुए । मंत्रालय के निदेशक अमाल पुष्प ने प्रतिबंध को वाजिब ठहराते हुए कहा कि सरकार ने प्रतिबंध लगाने के लिये गुटखे को इसलिए चुना क्योंकि ज्यादातर लोग गुटखा खाते है । श्री पुष्प ने कहा कि भारत में तंबाकू का सेवन करने वाले २७४.९ मिलियन वयस्कों में से ७५ प्रतिशत लोग धुआरहित तंबाकू का सेवन करते हैं । इसके नुकसान की चपेट मेंआसानी से आ जाने वाले वर्ग, जिसमें महिलाएं और किशोर भी शामिल है, सिगरेट की तुलना में गुटखे का सेवन ज्यादा करत है । ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे २०१० के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि लगभग १८ प्रतिशत महिलाएं धुआंरहित तंबाकू सेवन करती ले रही है, हैं, जबकि सिर्फ ३ प्रतिशत महिलाएं बीड़ी सहित और दूसरे तरीकों से तंबाकू के धुएं का सेवन करती हैं ।
हालांकि जब श्री पुष्प को सिगरेट के बारे में पूछा गया तो वे असहाय नजर आए । उन्होंने कहा मैं मानता हूं कि सिगरेट भी उतनी ही हानिकारक है, लेकिन अभी तक ऐसा विधान नहीं है जिसके तहत इसे प्रतिबंधित किया जा सके । सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट, २००३ के दायरे में सिगरेट और गुटखा दोनों ही आते हैं, लेकिन यह एक्ट सिर्फ तंबाकू उत्पादों को ही विनियमित करता है । गुटखा भी, फ ूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथरिटी एक्ट के अमल मेंआने के बाद ही प्रतिबंधित किया जा सका है । कानून, गुटखा को एक खाद्य उत्पाद मानता है और ऐसी किसी भी खाद्य सामग्री पर प्रतिबंध की बात कहता है जिसमें निकोटीन जैसा हानिकारक पदार्थ है ।
धुआं रहित तम्बाकू संगठन के एक प्रतिनिधि ने आरोप लगाया कि नीतियों में खामियों की आड़ लेकर दरअसल सरकार सिगरेट लॉबी का पक्ष वहीं प्रतिबंध का समर्थन करते हुए एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के जगदीप छोकर का कहना है कि भारतीय सिगरेट बाजार के ८० प्रतिशत हिस्से पर नियंत्रण रखने वाली, आई टी सी लिमिटेड कंपनी, सत्तारूढ़ पार्टी सहित, दूसरे राजनैतिक दलों को चंदा देने वाले बड़े दानदाताआें में से एक हैं । दिल्ली नॉन प्रॉफिट ने अभी हाल ही में राजनैतिक दलों का मिलने वाले चंदे के स्त्रोतों का अध्ययन किया है ।
विज्ञापन में दर्शाये गये कई सारे तथ्यों में से एक यह जथ्य बताता है: गुटखा के एक पाउच में ०.२ ग्राम तंबाकू ह जबकि वहीं एक सिगरेट में ०.६३ ग्राम तंबाकू है । वॉलेन्टरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इण्डिया की कार्यकारी निदेशक भावना मुखोपाध्याय इसे धोखाधड़ी बताती हैं । उनका कहना है कि १ ग्राम से लेकर ३.५ ग्राम तक की साइज वाले गुटखे बाजार में है जिनके मसाले में तंबाकू का प्रतिशत भिन्न-भिन्न है । और तो और गुटखे के मिश्रण के बारे में कोई प्रामाणिक हिसाब भी नहीं है ।
एक और तथ्य यह भी कहता है कि सिगरेट में ४००० केमिकल्स हैं जबकि गुटखा में ३००० केमिकल्स । पब्लिक हेल्थ फॉउण्डेशन ऑफ इण्डिया के हेल्थ प्रमोशन एंड टोबैको कंट्रोल की निदेशक मोनिका अरोरा कहती है कि धुआंरहित तंबाकू में कुछ कम केमिकल्स हो सकते हैं लेकिन उनमें से २८ केमिकल्स ऐसे हैं, जो कैंसरजन्य है । उन्होनें यह भी बताया कि कैंसरजन्य एक ही केमिकल बीमारी, अपंगता और मौत के लिये पर्याप्त् है ।
इन विज्ञापनों का यह भी दावा है कि प्रतिबंध के कारण ४० मिलियन लोगों की रोजी-रोटी छिन गई है । मोनिका अरोरा बताती है कि सरकारी अनुमान के मुताबिक साल २००४-०५ में तंबाकू उद्योग जनित औपचारिक क्षेत्र में ७ मिलियन लोग रोजगार से लगे हुए थे । अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार जोड़कर भी यह ४० मिलियन तक नहीं पहुंच सकता । उन्होनें इस दावे का भी खण्डन किया कि देश में किसान कोई सात लाख हेक्टेयर जमीन पर तंबाकू की पैदावार ले रहे हैं । तंबाकू विकास निदेशालय के मुताबिक धुआंरहित तंबाकू की खेती के लिए इस्तेमाल की जा रही जमीन महज ४००० हेक्टेयर है । सुश्री मुखोपाध्याय कहती है कि अब जब प्रतिबंध के कारण मुनाफा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है तो गुटखा उद्योग रोजी-रोटी के मुद्दे को आगे कर उसकी आड़ ले रहा है ।
आंध्रप्रदेश के सेंट्रल टोबैको रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बताया कि उसी जमीन पर गन्ने, मक्का, धान और कपास की फसल ली जा सकती है, इससे किसानों को वैकल्पिक आजीविका मिल सकती है । योजना आयोग की रिपोर्ट २०१० के मुताबिक गुटखा उद्योग द्वारा जनित सालाना राजस्व १.६२ बिलियन यू एस डालर है, जबकि इसके कारण होने वाली बड़ी बीमारियों के इलाज में होने वाला खर्च ६ गुना ज्यादा है ।
प्रेस वार्ता में श्री पुष्प ने कहा संवैधानिक रूप से सभी राज्यों को प्रतिबंध को लागू करना चाहिए । हमने सभी राज्यों को इसके संबंध में लिखा है पर वे इसमें समय लगा रहे हैं ।
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