ग्लोबल वार्मिग से कृषि पैदावार में कमी के संकेत
वातवरण में लगातार बढ़ रही कार्बन डाईऑक्साईड की मात्रा से न केवल वैश्विक तापमान में वृद्धि (ग्लोबलवार्मिग) तथा स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां हो रही है, बल्कि फसलों की पैदावार कम होने से विश्व में खाद्यान्न संकट भी उभर रहा है ।
विश्व के वैज्ञानिक फसलों की ऐसी नई किस्मों को विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं, जो बदलते मौसम में अच्छी पैदावार दे सकें । धान की बौनी किस्म आई आर आई ने १९६० के दशक में खाद्यान्न पैदावार के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी लेकिन धीरे-धीरे इस किस्म को लोगोंने छोड़ दिया, क्योंकि यह वातावरण में बढ़ने वाली कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा को बर्दाश्त नहीं कर पायी । हालंाकि, यह गैस हरे पौधों और वृक्षों के लिए जरूरी है, क्योंकि धूप की उपस्थिति में पादप जगत कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से ग्लूकोज बनाते है तथा ऑक्सीजन वातावरण में छोड़ते है ।
लेकिन, हाल ही के शोधों में पाया गया है कि कार्बन डाइआक्साइड की अधिक मात्रा फसलों तथा पौधों के लिए उचित नहीं है। जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ मोलिक्युलर प्लांट फिजियोलाजी तथा पोट्सडेम विश्वविघालय के शोधकर्ताआें ने पाया है कि कार्बन डाइआक्साइड की अधिक मात्रा फसलों की बौनी किस्मों को बहुत नुकसान पहुंचाती है । जिस समय धान की नई किस्म आई आर आठ विकसित की गई थी उसके बाद इसके नतीजे बहुत अच्छे रहे और पैदावार में गुणात्मक एवं मात्रात्मक वृद्धि भी हुई ।
लेकिन विभिन्न शोधों में पाया गया है कि इस किस्म की पैदावार में १५ फीसदी तक की कमी आई है और अब इसे उगाना फायदे का सौदा नहीं रहा है । हालांकि, पिछले ५० वर्षो में इस किस्म की अनुवांशिक प्रणाली में कोई परिवर्तन नहीं आया है, लेकिन इससे होने वाली पैदावार काफी कम हो गई है ।
गौरतलब है कि १९६० के दशक के बाद से वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में २५ फीसदी बढ़ोतरी हुई है । इस शोध से जुड़ी वैज्ञानिक जोस स्किफर्स का कहना है कि अब कृषि वैज्ञानिकों के समक्ष ऐसी नई किस्में विकसित करने की चुनौतियां है, जो प्रतिकूल मौसम में भी अच्छी पैदावर दे सकें ।
वातवरण में लगातार बढ़ रही कार्बन डाईऑक्साईड की मात्रा से न केवल वैश्विक तापमान में वृद्धि (ग्लोबलवार्मिग) तथा स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां हो रही है, बल्कि फसलों की पैदावार कम होने से विश्व में खाद्यान्न संकट भी उभर रहा है ।
विश्व के वैज्ञानिक फसलों की ऐसी नई किस्मों को विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं, जो बदलते मौसम में अच्छी पैदावार दे सकें । धान की बौनी किस्म आई आर आई ने १९६० के दशक में खाद्यान्न पैदावार के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी लेकिन धीरे-धीरे इस किस्म को लोगोंने छोड़ दिया, क्योंकि यह वातावरण में बढ़ने वाली कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा को बर्दाश्त नहीं कर पायी । हालंाकि, यह गैस हरे पौधों और वृक्षों के लिए जरूरी है, क्योंकि धूप की उपस्थिति में पादप जगत कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से ग्लूकोज बनाते है तथा ऑक्सीजन वातावरण में छोड़ते है ।
लेकिन, हाल ही के शोधों में पाया गया है कि कार्बन डाइआक्साइड की अधिक मात्रा फसलों तथा पौधों के लिए उचित नहीं है। जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ मोलिक्युलर प्लांट फिजियोलाजी तथा पोट्सडेम विश्वविघालय के शोधकर्ताआें ने पाया है कि कार्बन डाइआक्साइड की अधिक मात्रा फसलों की बौनी किस्मों को बहुत नुकसान पहुंचाती है । जिस समय धान की नई किस्म आई आर आठ विकसित की गई थी उसके बाद इसके नतीजे बहुत अच्छे रहे और पैदावार में गुणात्मक एवं मात्रात्मक वृद्धि भी हुई ।
लेकिन विभिन्न शोधों में पाया गया है कि इस किस्म की पैदावार में १५ फीसदी तक की कमी आई है और अब इसे उगाना फायदे का सौदा नहीं रहा है । हालांकि, पिछले ५० वर्षो में इस किस्म की अनुवांशिक प्रणाली में कोई परिवर्तन नहीं आया है, लेकिन इससे होने वाली पैदावार काफी कम हो गई है ।
गौरतलब है कि १९६० के दशक के बाद से वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में २५ फीसदी बढ़ोतरी हुई है । इस शोध से जुड़ी वैज्ञानिक जोस स्किफर्स का कहना है कि अब कृषि वैज्ञानिकों के समक्ष ऐसी नई किस्में विकसित करने की चुनौतियां है, जो प्रतिकूल मौसम में भी अच्छी पैदावर दे सकें ।
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